शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

आइए, समस्याओं का स्वागत करें !

भारती परिमल
लोग कहते हैं कि समस्याएँ अनंत हैं। जिनसे हमेशा जूझते रहना पड़ता है। बहुत सी समस्याएँ तो हम सुलझाा लेते हैं किंतु कुछ समस्याए तो हम यँ ही खरीदते भी हैं। इसका अंदाज़ा मुझे पहले नहीं था। यह तब पता चला जब हम महिलाएँ आपस में बैठी और आदतन घर में आई चीज़ों के बारे में बखान करने लगी। मेरी समस्या यदि सोलर कुकर थी तो श्रीमती शर्मा की समस्या फ्रिज़ था। श्रीमती रस्तोगी के यहां तो अभी-अभी नई समस्या लगी ही थी टेलिफोन के रूप में। आइए इन समस्याओं से आपको भी अवगत कराया जाए। दरअसल बढ़ती महंगाई और हर महीने गैस सिलेंडर बदलने के चक्कर से बचने के लिए पति की इच्छा न होते हुए भी मैंने सोलर कुकर खरीद ही लिया। उसका मुहूर्त करते हुए घर के आंगन में रख उसे धूप दिखाई ही थी कि पड़ोसन की नज़र उस पर पड़ गई। वह मेरे पास आई और कहने लगी - बहनजी, हमारी गैस खत्म हो गई है, कृपया आपके सोलर कुकर में मेरे दाल-चावल पका दीजिए। मैं कुछ कहती इसके पहले ही वह अपने दाल-चावल मुझे थमा चुकी थी।
दूसरे दिन बच्चों की स्कूल की छुट्टी होने की वजह से हमारा बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम था। घर से बाहर निकल ही रहे थे कि श्रीमती कश्यप ने घर में प्रवेश किया। मुस्कराते हुए बोली - शाम को हमारी बिटिया का जन्मदिन है, तो केक बनाना था। आपके सोलर कुकर में रख देते हूँ ज़रा देखते रहिएगा। वे तो केक रखकर चली गई और साथ ही पति और बच्चे भी मुझ पर बिगडते हुए नाराज़ हो कर चले गए। यह दर्शाते हुए कि कुकर तुमने खरीदा है अब तुम ही झेलो। और मैं सारा दिन केके को बनते हुए देखती रही। शाम को श्रीमती कश्यप आई और बिना धन्यवाद दिए ही अपना केक लेकर चली गई। एक दिन तो गज़ब हो गया। पड़ोस की नकचढ़ी लड़की जो कभी मुझसे सीधे मुँह बात न करती, वह शाम के वक्त आई और मुस्कराते हुए मुझसे सोलर कुकर की मांग कर बैठी। मैंने उससे कहा भी कि भला बिना धूप के इसका क्या काम ! किंतु वह अपनी ज़िद् पर अडी रही और मेरी इजाज़त पाते ही वहीं पर अपनी श्रृंगार पेटी लेकर आ गई। सोलर कुकर खोल कर उसके आईने के सामने अपना 'मेकअप' करने लगी। तब मैंने जाना कि सोलर कुकर का एक उपयोग यह भी है।
आज सोलर कुकर खरीदे हुए एक माह हो चुका है। एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब इसका उपयोग न हुआ हो। मगर हमने न इसमें बने भोजन का स्वाद चखा है और न ही मैंने इसमें 'मेकअप' का मज़ा लिया है। हाँ, पूरे मोहल्ले का यह प्यारा सोलर कुकर अवश्य बन चुका है। यही हाल श्रीमती शर्मा का है। उनके यहाँ कहने भर को उनका अपना फ्रिज़ है। फ्रिज़ भरा हुआ भी है मगर उसमें रखी चीजें उनकी नहीं, पड़ौसियों की है। उनके पति इतने साधु प्रवृत्ति के हैं कि किसी को कुछ भी रखने से ना नहीं कहते। नजीजा यह है कि उनकी खद की वस्तुएँ बाहर पड़ी खराब हो रही है। बचा हुआ खाना फेंकना पड़ता है। बासी सब्ज़ियों से काम चलाना पड़ता है। फ्रिज़ के ठंडे पानी की बजाए गरम पानी पीना पड़ता है यानि कि समस्या का कोई समाधान नहीं।श्रीमती रस्तोगी की समस्या तो इससे कहीं ज्यादा खतरनाक है। अभी-अभी लगे टेलिफोन ने उनकी नाम में दम कर रखा है। हर पाँच मिनट के अंतराल में उनके दरवाले पर घंटी बजती है और कोई न कोई पडौसी फोन करने आता है। समस्या सिर्फ यही नहीं है, फोन भीआते हैं, तो उनके नहीं, पडौसियों के होते हैं। एक बार तो उनके एक पड़ौसी ने दरवाज़ा खटखटाया वह भी रात ग्यारह बजे! मनवता के नाते उन्होंने फोन करने की इजाज़त दे दी और वे फोन पर पूरे आधे घंटे बातचीत करते रहे। घर में सभी की नींद खराब हुई और जो फोन का बिल आया, तो उसे देख कर तो श्रीमती रस्तोगी की तो तबियत ही खराब हो गई। उनके घर पर फोन के नाम से पडोसियों की ऐसी लाइन लगी होती है कि उन्हें खुद को ही फोन करना हो, तो पास के किसी एस.टी.डी.बूथ में जाना पड़ता है। तो यह है, हमारी खुद की खरीदी हुई समस्याएँ ! इनसे बचा भी नहीं जा सकता क्योंकि इन्हें शौक बनाकर हमने ही अपने गले बांधा है। तो आइए समस्याओं का यूँ ही स्वागत करते रहें और अपना माथा पीटते रहें।
भारती परिमल

1 टिप्पणी:

Post Labels