गुरुवार, 3 जनवरी 2008

बीमारियों को आमंत्रित करता अतिशुध्द पानी

भारती परिमल
अभी कुछ दिनों पहले ही मौसम का मिजाज अचानक बदल गया था. बच्चा भीगा हुआ घर पहुँचा. उसकी माँ चिंतित हो गई. चिंता होना स्वाभाविक था, सो तुरंत उसकी सेवा में लग गई. पहले तो पूरा शरीर तौलिए से पोंछा, फिर उसके लिए गरम दूध तैयार किया. शरीर कुछ गरम होने लगा, तब दादी से पूछकर घरेलू इलाज शुरू कर दिया. मैं सोचने लगा- बचपन में हम न जाने कितनी बार भीगे, पर ऐसी तीमारदारी कभी नहीं की गई. हम दोस्तों के साथ पानी में भीगते, यहाँ तक कि धूल में लोटते, खेलते-खेलते कई बार कीचड़ शरीर पर लग जाता, पर हम बहुत ही कम बीमार पड़ते. लेकिन आजकल के बच्चे मौसम बदलते ही छीकेंं खाना शुरू कर देते हैं. शाम होते-होते बीमार भी पड़ जाते हैं. ऐसा क्यों होता है?
आज जब इस बात को सोचता हूँ, तो पाता हूँ कि क्या हम सही थे, या फिर आज के बच्चे सही हैं? बात सही या गलत की नहीं है, बात यह हैे कि उस समय हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता अधिक थी. हम कुछ भी खा लेते थे और पचा लेते थे. लेकिन आज के बच्चे हिदायतों के साथ पलते-बढ़ते हैं, इसलिए उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. घर का शुध्द पानी लेकर स्कूल जाने वाला बच्चा भूलवश यदि स्कूल का या किसी साथी की बोतल का पानी पी लेता है, तो उसका असर तुरंत दिखाई देने लगता है. क्या इतना शुध्द पानी पीना आवश्यक है?
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि आज विकासशील देशों में रोगाणुयुक्त अशुध्द पानी पीने से 20 लाख लोग हर वर्ष मौत को प्राप्त होते हैं, वहीं दूसरी ओर विकसित देशों में रोगाणुमुक्त अतिशुध्द पानी से अनेक लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, इनमें से कई लोगों की मौत भी हो रही है. सवाल यह उठता है कि अशुध्द और शुध्द दोनों ही तरह का पानी पीने से जब लोगों की मौत हो रही हो, तो किस तरह का पानी पीया जाए? यह निर्विवाद है कि सभी को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. लोग रखते भी हैं, पर स्वास्थ्य का ध्यान कितना रखना चाहिए, यह दिलचस्प हो सकता है. ऊपर के उदाहरण से स्पष्ट है कि कुछ बच्चे कितना भी मिट्टी, कीचड़, धूल आदि में खेलें, पर वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ते, पर कुछ बच्चे जो हिदायतों के साथ पलते-बढ़ते हैं, वे अक्सर थोड़ी सी लापरवाही से ही बीमार पड़ जाते हैं. यह बात केवल बच्चों पर ही नहीं, बड़ों पर भी लागू पड़ती है.
आइए जानें कि हमारे समाज में विभिन्न प्रकार के लोग विभिन्न तरह का पानी किस तरह पीते हैं. शहरों में नगर निगम या नगर पालिकाओं द्वारा जंतु मुक्त और क्षार मुक्त पानी का वितरण किया जाता है. जिन्हें इस तरह का पानी नहीं मिलता, वे अपने घरों पर ही बेल-बोरिंग करवाकर उसके पानी का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के पानी में अशुद्धता अधिक होती है. गंदे पानी को छानने से साफ तो किया जा सकता है, पर उसकी अशुध्दता बरकरार होती है. पानी को पूरी तरह से शुद्ध करने के लिए उसे उबालना पड़ता है, पर ऐसा बहुत कम लोग कर पाते हैं. आजकल शुध्द पानी बेचने का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है. तरह-तरह के छोटे-छोटे वॉटर प्यूरीफायर प्लांट आजकल आम हो गए हैं. इस पानी का उपयोग कई लोग करते हैं, पर इससे उस पानी में घुलने वाले क्षार कम नहीं हो पाते. दूसरी ओर गाँवों में पानी के लिए लोग कुऑं, नदी, तालाब या फिर बाँध का पानी उपयोग में लाते हैं. यह पानी शहरों के पानी से थोड़ा सा शुध्द होता है. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि पानी कहीं भी, कभी भी शुध्द मिल ही नहीं सकता. जो कंपनियों शुद्ध पानी बेचने का दावा करती हैं, वह भी अशुध्द पानी ही बेचती है.
अब अमेरिका का 1993 का एक किस्सा ले लें. उस देश के मिलवाऊकी के लोग शहर के पानी शुद्धिकरण प्लांट से पानी प्राप्त करते थे. इस प्लांट को पानी मिशीगन सरोवर से प्राप्त होता था. लोग इस पानी को पीने के आदी हो चुके थे. एक दिन अचानक मिशीगन सरोवर का पानी बढ़ने लगा, इससे प्लांट बंद हो गया और लोगों को अशुध्द पानी मिलने लगा. परिणामस्वरूप 4 लाख लोग 'क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस नामक रोग के शिकार हो गए. इस रोग का लक्षण यही है कि यह रोगी को बहुत ही दस्त लगते हैं, और वह बिस्तर पकड़ लेता है. यह रोग 'क्रिप्टोस्पोरिडियम' नामके सूक्ष्म जीव से होता है. इस रोग से 54 लोग मौत के शिकार हो गए थे. जो उस देश के लिए एक बहुत बड़ी दुर्घटना थी. भारत जैसे विकासशील और अन्य अविकसित देशों के लिए तो यह एक साधारण बात है.
दुनिया के बदलते मौसम के कारण अब पानी से होने वाली बीमारियों की संख्या बढ़ रही है. लोग अनाज से कम लेकिन पानी से अधिक बीमार होने लगे हैं. इसे ध्यान में रखते हुए यह कहा जाए कि आज शुध्द पानी पीना भी स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है. आज हमारे देश में पानी का कोई भी ऐसा स्रोत नहीं है, जो पूरी तरह से शुध्द पानी देता हो. फिर भी लोग तरह-तरह के पानी पी रहे हैं. अतिशुध्द पानी पीने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, किंतु साधारण पानी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता ही है. यह सभी जानते हैं. शुध्द पानी बेचने का दावा करने वाली तमाम कंपनियाँ झूठी हैं. आजकल शुध्द पानी के नाम पर पाऊच में जो पानी मिल रहा है, उसे चमकीला बनाने के लिए उसमें एचसीएल याने हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाया जाता है. इसकी शुध्दता तो और भी संदिग्ध है. इस तरह के पानी पर भरोसा तो किया ही नहीं जा सकता.
अंत में यही कहा जा सकता है कि पानी अपनी आय के अनुसार ही पीना चाहिए. जिसकी जितनी अधिक आय होगी, वह उतना ही शुध्द पानी पिएगा और उसी शुद्धता के साथ बीमार भी पड़ेगा, दूसरी ओर साधारण पानी पीने वाला साधारण बीमारियों का शिकार होगा. इतना तो तय है कि साधारण पानी तो कहीं भी मिल जाएगा, पर अतिशुध्द पानी हर जगह मिलना संभव नहीं है. किसी अमीर आदमी का अतिशुद्ध पानी कहीं खतम हो गया, तो उसे अतिशुद्ध पानी मिलना संभव नहीं होगा. इस स्थिति में उसका बीमार पड़ना निश्चित है. इससे यही सीख मिलती है कि इंसान को हर तरह के हालात के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.
भारती परिमल

1 टिप्पणी:

  1. आजकल शुध्द पानी के नाम पर पाऊच में जो पानी मिल रहा है, उसे चमकीला बनाने के लिए उसमें एचसीएल याने हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाया जाता है

    एचसीएल याने हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाए जाने की सूचना गलत है डाक्टर साहब, हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाने से तो पानी खट्टा हो जाएगा। खट्टा जल कोई पी नहीं पाएगा। यदि अत्यन्त न्यून मात्रा में भी हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाया जाए तो वह जल में विद्यमान कैल्शियम बाईकार्बोनेट से प्रतिक्रिया करके कैल्शियम क्लोराइड में परिवर्तित हो जायेगा, किन्तु उससे जल की चमक नहीं बढ़ती। यदि कोई जल की चमक बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसा कर रहा है तो वह गलतफहमी में है।

    हाँ जल शुद्घ करके बोतलों या पाउचों मे भरने वाले कारखानों मे जल शुद्ध करने वाली मशीनों (रिवर्स ओसमोसिस)में जल भेजने से पहले हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाया जाता है जो शुद्धिकरण के समय जल में से निकल जाता है। रिवर्स ओसमोसिस के फीडवाटर मे हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाने का उद्देश्य रिवर्स ओसमोसिस मशीन के मेम्ब्रेन (membrane)को स्केल (scale) लगने से बचाना होता है। हाइड्रोक्लोरिक एसिड से जल की चमक पर कोई अन्तर नहीं पड़ता।

    अति शुद्ध जल पीने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के विषय में भी बहुत सारी भ्रांतियाँ हैं। वाटर प्युरिफायर विक्रेता डराते हैं कि जल की क्षारीयता या कठोरता से पथरी बन जाती है। यह असत्य है। खारे जल से पथरी होने के कोई प्रमाण नहीं हैं। अशुद्ध जल में यदि बैक्टेरिया व वायरस हैं तो वे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं। खनिज पदार्थों में हानिकारक तत्व हैं लैड, अर्सेनिक, क्रोमियम, फ्लोराईड्स आदि। सौभाग्य से इन तत्वों से युक्त जल बहुत कम स्थानों पर पाया जाता है। भूगर्भ के नलकूप से निकाले गये जल में बैक्टेरिया व वायरस तभी पाये जाते हैं जब किसी कारणवश भूतल का दूषित जल मिश्रित हो जाये। साधारणतया भूगर्भीय जल बैक्टेरिया व वायरस से मुक्त होता है क्योंकि भूगर्भ में उनके पनपने के लिये ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होती। भूगर्भीय जल में हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैस घुली हो सकती है जिससे जल का स्वाद अप्रिय हो सकता है। अधिकांश भूगर्भीय जलों में कैल्शियम व मैग्नेशियम के यौगिक होते हैं जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं होते। इसलिये भूगर्भीय जल साधारणतया पेयजल के रूप में बिना शुद्धिकरण किये हुए सुरक्षित ही होता है। किन्तु शुद्ध किया हुआ जल भी पूर्णतया सुरक्षित होता है। बैक्टेरिया व वायरस तो किसी के भी शरीर में किसी भी प्रकार से प्रवेश करेगा तो अपना प्रभाव दिखायेगा ही चाहे वह अतिशुद्घ जल पीने वाला हो या साधारण जल पाने वाला।

    अति शुद्ध जल के विषय में एक भ्रामक बात और कही जाती है कि अति शुद्ध जल पीने से शरीर में खनिज तत्वों की कमी हो जाती है। प्रतिदिन लिये जाने वाले आहार जैसे दूध, अनाज, दालें, सब्जियाँ, फलों इत्यादि में शरीर की आवश्यकता से अधिक ही खनिज व अन्य पोषक तत्व होते हैं जो मल, मूत्र व पसीने के रूप में शरीर से बाहर निकलते हैं। यदि पाचन शक्ति ठीक न हो तो जल हो या भोजन शरीर कहीं से भी पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर सकेगा। जो लोग अतिशुद्ध जल का सेवन कर रहे हैं किसी दूसरे जल का सेवन करने पर उनके रोगी हो जाने के कोई प्रमाण नहीं है, केवल स्वाद बदलने की समस्या सामने आ सकती है। असुरक्षित जल के सेवन करने से प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती हो ऐसी कोई बात नहीं है। अतिशुद्ध जल का सेवन भी कोई आवश्यक नहीं है। आवश्यक है जल का प्रदूषण मुक्त होना।

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