गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

फैसला और जोखिम का भाईचारा


डॉ. महेश परिमल
एक जोखिमभरा फैसला कई मुश्किलों को आसान कर देता है. कई लोग महत्वपूर्ण समय पर भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले पाते, वजह जानने की कोशिश करो, तो यही सामने आएगा कि उनका संशय हमेशा उन पर हावी होता है. वे हरदम यही सोचते हैं कि कहीं हमारा निर्णय गलत हो गया तो, हम बरबाद हो जाएँगे. बस यही डगमगाता आत्मविश्वास उनके जीवन की नैया को भी डगमगा देता है. जोखिम तो हर फैसले में होता है, क्या इस डर से कोई निर्णय लेना ही नहीं चाहिए?
यह तय है कि फैसले की घड़ी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, इसमें हमें काफी दूर तक सोचना पड़ता है. इस दौरान हम दोनों पक्षों पर समान रूप से नहीं सोच पाते. हमारा ध्यान सबसे पहले उसके नकारात्मक पक्ष की ओर जाता है. इसलिए डर के मारे हम निर्णय लेने की उस महत्वपूर्ण स्थिति को टाल देते हैं. इस तरह से हम यथास्थितिवाद के शिकार हो जाते हैं. हममें से अधिकांश लोग 'निर्णय लेने में भय' की ग्रंथि से पीड़ित होते हैं. वे बार-बार इस बात से घबराते हैं कि कहीं हम गलत निर्णय न ले लें, जिसकी हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पडे, यहाँ वे यह भूल जाते हैं, निर्णय न लेना उससे भी महँगा पड़ सकता है. हर निर्णय जोखिमभरा तो होता ही है, इससे यह नहीं मानना चाहिए कि हमारा गलत निर्णय हमारे भविष्य को ही चौपट कर देगा. जो जितने अधिक निर्णय लेगा, वह उतना ही सफल माना जाएगा. क्योंकि यह उस खेल की तरह है, जिसमें हार-जीत तो होती ही रहती है. यह सिक्के के दो पहलू हैं. हमारे निर्णय हमारे व्यक्तित्व को हीरे की कणी की तरह चमकाते हैं. निर्णय न लेना उस मूर्ख की बात याद दिलाता है, जिसका यह संकल्प था कि जब तक वह तैरना नहीं सीख लेता, तब तक पानी में नहीं उतरेगा.
हमारे आसपास जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, उनके व्यक्तित्व का बारीकी से अध्ययन किया जाए, तो यही पाएँगे कि उन्होंने अधिक से अधिक निर्णय लिए. यह आवश्यक नहीं कि जितने भी निर्णय लिए, वे सभी अच्छे थे. लेकिन हर बार एक गलत निर्णय ने उन्हें यह सीख दी कि किस तरह से गलत निर्णय नहीं लेने चाहिए. यह बात तय मान लें, कि जिसने कभी गलती नहीं कि वह कभी सफल नहीं हो सकता.
आपने यह पाया होगा कि निर्णय लेने के तुरंत बाद हम भीतर से काफी राहत महसूस करते हैं, तनावमुक्त हो जाते हैं. पर कुछ समय बाद जब नकारात्मक परिणाम सामने आने लगते है, तब हमारा विचलित होना स्वाभाविक है. इस स्थिति में हमारा धैर्य खोने लगता है. यही स्थिति होती है संभलने की, क्योंकि यही समय होता है, जब उस निर्णय के सकारात्मक परिणाम भी सामने आने वाले होते हैं. अगर हम खोते हुए धैर्य के साथ विचलित होने लगेंगे, तो निर्णय के सकारात्मक पहलुओं की ओर हमारा ध्यान नहीं जाएगा. यह वह स्थिति है, जब किसी समस्या का समाधान एक शेर की तरह हमारे सामने होता है, उसके पूँछ पर समाधान होता है. किंतु हम शेर से ही इतने आक्रांत हो जाते हैं कि हमारा ध्यान उसकी पूँछ की तरफ नहीं जाता. यहाँ हमारे धैर्य की परीक्षा होती है. अक्सर ऐसा ही होता है कि हम समझ नहीं पाते और निर्णय के अच्छे पहलू हमारे करीब से होकर गुंजर जाते हैं, इसका आभास हमें बाद में होता है.

कोई भी निर्णय लेने के पहले हमें मानसिक रूप से बुरे से बुरे परिणाम भोगने के लिए तेयार हो जाना चाहिए. कुछ लोगों के लक्ष्य सुनिश्चित होते हैं. वे अपने निर्णय से संबंधित हर जानकारी एकत्रित कर उसके तमाम पहलुओं का मूल्यांकन करते हैं. संभावित लाभ-हानि की सूची बना लेते हैं, तब सोच-समझकर निर्णय लेते हैं. वे जानते हैं कि निर्णय लेते समय उन्होंने समझदारी से काम लिया है. यदि उनका निर्णय गलत साबित हो जाता है, तो उसके कुप्रभावों का सामना करने के लिए भी वे तैयार होते हैं.
आप इस मुगालते में कभी न रहें कि आपने गलत निर्णय लिया ही नहीं. बड़े से बड़े और सफल से सफल नेता भी कई बार गलत निर्णय ले चुके हैं. पर हर बार गलत निर्णय ने उसके सही निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाया ही है. नेपोलियन ने रुस पर जाड़े में युध्द किया, हिटलर ने भी यही गलती दोहराई, इसी तरह चर्चिल और गालिपोली की लड़ाई, जॉन केनेडी और पिग्स की खाड़ी, ईरान से अमेरिकी बंधको की मुक्ति, या फिर इंदिरा गाँधी द्वारा आपात्काल लागू करना, इस तरह के निर्णयों की एक लंबी सूची है. इन नेताओं के निर्णयों के अध्ययन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
अनिर्णय की स्थिति में देर तक रहने के बजाए एक क्षण में निर्णय लेकर आगे बढ़ जाना बुद्धिमानी है. चाहे विमान चालक हो, या फिर अन्य वाहन चालक. वे तुरंत निर्णय लेते हैं, बीच चौराहे पर वाहन रोककर यह सोचने नहीं लगते कि किधर जाएँ. वे निर्णय लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. मात्र एक प्रतिशत संभावना है, जिसमें उनका निर्णय गलत होता है. तो आप भी इस एक प्रतिशत के डर से शेष 99 प्रतिशत की असीम संभावनाओं पर पानी क्यों फेर रहे हैं. अपने उन मित्रों से अवश्य सावधान रहें, जो भोजन के लिए आपका निमंत्रण स्वीकार करते हैं और आप जब उनसे पूछते हैं कि क्या खाना पसंद करेंगे, तो वे कहते हैं कि कुछ भी चलेगा. दरअसल इसका मतलब यह है कि वे निर्णय लेने में कमजोर हैं. उनका यह अवगुण उनके अन्य कार्यों में झलकता है.हमें निर्णय लेने ही चाहिए, हमें निर्णय लेते रहना चाहिए, हर निर्णय हमें सबक देगा. इसे कतई न भूलें. जोखिम की परवाह कभी न करें, क्योंकि जोखिम का डर आपके साये की तरह सदैव आपके साथ होगा. हममें से कई लोग ऐसे भी है, जो जोखिमभरा फैसला लेने में माहिर होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि डरपोक और संकोची बने रहने से कुछ नहीं होगा. यह प्रवृति नुकसान और अपयश देती है. अत: फैसला लेने में देर न करो, पर दिमाग को सोचने का पूरा समय दो.
हाल ही में मुम्बई में अप्रवासी भारतीयों का सम्मेलन हुआ. इसमें कई ऐसे भारतीय शामिल हुए, जो बरसों पहले अपना देश छेोड़कर विदेश गए थे. वहाँ जाकर उन्होंने अपने बलबूते पर अपनी दुनिया बसाई, ये सब कुछ हुआ उनके अपने निर्णय लेने की क्षमता के कारण. इनमें से एक हैं हरसुख भाई. 1968 में जब वे बड़ोदरा एम.एस. यूनिवर्सिटी में से बी.कॉम करने के बाद जब वे अमेरिका पहुँचे, तब उनके पास केवल दो डॉलर थे. पहले तो उन्होंने एक हॉटल में वेटर की नौकरी की. इस नौकरी में उन्हें प्लेट धोना पड़ता था. उन्होंने इस काम को मन लगाकर किया. इस दौरान उन्होंने एमबीए किया और उसी हॉटल में एकाउंटेंट के रूप में काम शुरू किया. पाँच साल के भीतर ही उन्होंने केलिफोर्निया में पहली मोटेल शुरू की. इसके बाद उन्होनें पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपने चार भाइयों को भी उन्होंने अमेरिका बुला लिया. अब पाँचों मिलकर निर्णय लेते, और आगे बढ़ने का उपक्रम करते. आज वे अमेरिका की तीस होटलों के मालिक हैं,यही नहीं अब तक 34 होटल बनाकर बेच भी चुके हैं. क्या उन्होंने कभी ंगलत निर्णय नहीं लिए होंगे? निश्चित ही उनके कई निर्णय गलत हुए होंगे, पर हर गलत निर्णय ने उनकी राह को मजबूत किया. आज वे पाँचों भाई विफल लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं. उन दो डॉलरों ने हरसुख भाई को जो दिशा दी, उसे वे कभी नहीं भूले. यदि उनके पास अधिक धन होता, तो निश्चित ही वे इतना आगे नहीं बढ़ पाते. जहाँ धन की कमी होती है, वहाँ बुद्धि अधिक काम करती है. बुद्धि का काम करना याने निर्णय लेते रहना. मस्तिष्क को हमेशा सक्रिय और चौकस रखना. यही बनाता है हमारे रास्तों को सुगम.
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. Sir, khaana khane ke liye kuchh bhi chalega vala jumla to mera bhi hai magr iska karan ye nahi ki main nirnay lene me sksham nahi hun.. iska karan ye hai ki mujhe kisi bhi khane se parhej nahi hai.. :)

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