शनिवार, 26 अप्रैल 2008

नाम गुम जाएगा, सरनेम ही रह जाएगा


डॉ. महेश परिमल
किसी की हस्ती की शादी हो, तो मीडिया को इस बात की चिंता पहले रहती है कि दुल्हन अब अपना उपनाम ( सरनेम ) क्या रखेगी। अब ऐश्वर्या को ही ले लो। लोगों को बड़ी चिंता थी कि अब वह अपना सरनेम क्या लिखेगी। अरे भई, उसने तो अपने नाम के आगे बच्चन लिखना भी शुरू कर दिया है। लेकिन बहुत से लोग अभी भी चिंतित हैं कि ऐश्वर्या बच्चन कैसा लगेगा? अब कैसा भी लगे, वह तो लिखेगी, आप क्या कर लेंगे?

खैर नामों की महिमा अपनी जगह कायम है। भले ही शेक्सपियर कह गए हों कि नाम में क्या रखा है। सच तो यह है कि आज नाम नहीं सरनेम बिकता है। हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने शादी के बाद अपना सरनेम नहीं बदला। अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान जब प्रियंका को जब गांधी उपनाम से संबोधित किया, तब उन्होंने कहा कि मुझे प्रियंका गांधी नहीं, बल्कि प्रियंका वढेरा कह कर बुलाएँ। उस समय वहाँ पर प्रियंका भाई राहुल गांधी और उनके पति राबर्ट वढेरा भी मौजूद थे। यह भी सच है कि किसी भी काँग्रेसी को उन्हें प्रियंका वढेरा कहना नहीं सुहाता, फिर भी लोग गाहे-बगाहे उन्हें प्रियंका गांधी बोल ही देते हैं। इसी दिन अभिताभ बच्चन ने भी प्रेस वालों से कहा कि अब ऐश्वर्या श्रीमती बच्चन के नाम से पहचानी जाएँगी। शबाना आजमी आज भी इसी नाम से पहचानी जा रही है। इस नाम में उनके पिता मरहूम कैफी आजमी का नाम जुड़ा है। आजमी याने आजमगढ जिले के निवासी होने के कारण आजमी तखल्लुस इस्तेमाल में लाया गया। बड़े घर की बड़ी बातें, इस बात के मद्देनजर आज युवतियाँ शादी के बाद अपने पिता के ब्रांड नेम को छोड़ना नहीं चाहती। वे पिता के ब्रांड नेम के सहारे ही आगे बढ़ना चाहती हैं। ससुराल से मिले उपनाम के सहारे अपनी पहचान कायम करना वह नहीं चाहती। पहले सरहद पार की बात करते हैं। बेनजीर भुट्टो ने शादी कभी अपना उपनाम जरदारी इस्तेमाल में नहीं लाया। इसी नाम की ही बदौलत वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद पर काबिज हो पाईं। आज भी वे अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो के ब्रांड नाम से ही पहचानी जाती हैं।


अब हमारे सामने हैं आशा भोंसले। आर. डी. बर्मन से शादी के बाद भी उन्होंने अपना उपनाम भोंसले बरकरार रखा। जब उन्होंने शादी की थी, तब राहुल देव बर्मन एक काफी ऊँचा नाम था, पर उन्होंने अपना पुराना सरनेम नहीं छोड़ा। इन्हीं के साथ आता है शर्मिला टैगोर का नाम। नवाब पटौदी से शादी के बाद भी उन्होंने अपना सरनेम नहीं बदला। उनके बेटे और बेटी ने जरूर अपने पिता के सरनेम अपने नाम के साथ लगाया, पर शर्मिला ने अपना ब्रांड नाम नहीं छोड़ा, वह अब भी शर्मिला टैगोर के नाम से ही जानी जाती है। राजनीति में देखा जाए, तो गांधी ब्रांड नाम सबसे बड़ा है। इसी गांधी ने भाजपा को भी नहीं छोड़ा। एक समय ऐसा था, जब उसने संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी को अपने साथ लिया। एक वक्ता के रूप में भाजपा ने वरुण गांधी को खूब सामने लाया। वे अपनी कविताओं से लोगों को खूब रिझाते। आज भी वे भाजपा के जूनियर कार्र्यकत्ता के रूप में पहचाने जाते हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया ने शादी के बाद भी अपने राजपरिवार को अपने नाम के साथ ही रखा।

समय के साथ चलते हुए कुछ युवतियाँ शादी के बाद झट से पति का सरनेम इस्तेमाल करना शुरू कर देती हैं, क्योंकि उनके पति का सरनेम उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करता है। अब हिलेरी रोधन ने शादी के बाद तुरंत ही पति बिल क्ंलिटन का उपनाम अपने साथ जोड़ लिया। इन दिनों वह अमेरिका के राश्ट्रपति पद की सशक्त उम्मीदवार है। इसी तरह जॉन. एफ. केनेडी से शादी करने के पहले जेकी केनेडी का नाम जेकवेलीन बॉवीर था। केनेडी उन्हें जेकी कहकर बुलाते थे। बाद में उनकी पहचान जेकी केनेडी की तरह ही हुई। केनेडी की हत्या के बाद इस विधवा ने जब दूसरी शादी की, तब उन्होंने अपने पति का सरनेम ओनासिस इस्तेमाल में नहीं लाया। वह आज भी जेकी केनेडी के नाम से पहचानी जाती हैं।
अब आते हैं बच्चन सरनेम पर। देखा जाए तो बच्चन सरनेम न होकर तखल्लुस है। अक्सर साहित्यकार अपने नाम के आगे किसी एक शब्द को तखल्लुस के रूप में इस्तेमाल करते हैं। धर्मवीर भारती, फणीश्वर नाथ 'रेणु', गोपाल दास 'नीरज', सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', उपेन्द्रनाथ 'अश्क', लाला 'जगदलपुरी', प्यारे लाल आवारा, महेश अनघ, उर्मिला शिरीष आदि ऐसे नाम हैं, जो तखल्लुस के साथ ही पहचाने जाते हैं। अब आते हैं 'बच्चन' तखल्लुस पर। इस तखल्लुस के साथ भी एक घटना जुड़ी हुई है। बात तब की है, जब हरिवंश राय जी ने लिखना शुरू किया। अखबारों में नाम आने लगा- हरिवंश राय, लोगों को आश्चर्य हुआ कि आखिर यह कौन है? तब उनकी पहचान एक छात्र के रूप में ही थी। जब अधिक नाम प्रकाशित होने लगा, तो चर्चा भी होने लगी। बात जब उनके परिवार तक पहुँची, तब बड़े-बूढ़ों से पूछा गया कि आखिर यह हरिवंश राय कौन हैं। तब उन्होंने अपनी ठेठ भोजपुरी में कहा- अरे ऊही हमार घर के बच्चन है ना, उही ये लिखत हय। यहाँ एक बच्चे को और भी छोटा करके बच्चन कहा गया। गाँव में आज भी किसी ठाकुर को नीचा दिखाना होता है, तो उसे 'ठकुरा' कहा जाता है। ठीक इसी तरह बच्चे को और छोटा करके बच्चन कहा गया। तब हरिवंश राय जी को यह अच्छा लगा, तो उन्होंने 'बच्चन' को तखल्लुस के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। बाद में पहली पत्नी की मृत्यु के बाद जब उन्होंने तेजिंदर कौर से शादी की, तब उन्हें समाज से निष्कासित कर दिया गया। इस तरह से वे राय उपनाम का उपयोग नहीं कर सकते थे। जब अमिताभ और अजिताभ का स्कूल में दाखिला हुआ, तो परेशानी नाम की आई। तब हरिवंश राय ने अपना तखल्लुस 'बच्चन' बच्चों के नाम के आगे लिख दिया। पहले यह नाम साहित्य जगत में खूब प्रसिध्द हुआ, फिर अमिताभ के फिल्मों में आने के बाद तो यह इतना प्रचलित हो गया कि लोग इसे बच्चन को सरनेम के रूप में ही जानने लगे। अब तो यह एक ब्रांड नेम होकर रह गया है। इस नाम के साथ जुड़ना ही लोगों को गौरवान्वित करता है।
नाम की महिमा भले ही खत्म हो जाए, पर उपनाम की महिमा कभी खत्म नहीं होगी। आज कार्पोरेट जगत में नाम मुखर हो रहा है। लोग परस्पर 'फर्स्ट नेम' से पुकारने के लिए कहा जाता है, इससे लोग आसानी से करीब हो जाते हैं। मुश्किल तब होती है, जब लोग अपने बॉस को भी उनके नाम से पुकारते हैं। इससे भले ही कर्मचारी और बॉस के बीच दूरी कम होती हो, पर सच तो यह है कि हर रिश्ता एक दूरी की माँग करता है। यह दूरी ही है, जो विश्वास के बल पर भीतर से दोनों को जोड़ती है।
डॉ. महेश परिमल

2 टिप्‍पणियां:

  1. शेक्सपियर ने कहा नाम में क्या रखा है.. और ये लिखने के बाद उसके निचे खुद अपना नाम लिखा दिए.. :)

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  2. शेक्सपियर,साहिब की एक ओर भी पचान थी, कई बार महान लोग भी कुछ ना कुछ गल्ती करते हे, सब कुछ नाम से ही चलता हे, इस मे कोई दो राय नही, बाकी PD ने सच लिख दिया हे.

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