मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

अंडरवर्ल्ड में गॉडमदर, मम्मी, नानी और सुप्रीमो का दबदबा


डॉ. महेश परिमल
अंडरवर्ल्ड की दुनिया एक ऐसी दुनिया है, जिसमें जाने के कई रास्ते होते हैं, पर आने का हर रास्ता बंद होता है।इसलिए जब भी कोई अपराध की इस दुनिया में कदम रखता है, तब यही सोचकर वह आगे बढ़ता रहता है कि अब उसके कदम अपनी आम जिंदगी की ओर नहीं बढेग़े। बाहर कदम रखते ही उसकी पूरी दुनिया ही बदल जाती है। उसका रहन-सहन ही नहीं, बल्कि उसका नाम भी बदल जाता है।वह साधारण लोगों के बीच भी असाधारण लोगों की तरह रहता है। उसके सम्पर्क सूत्र भी बढ़ जाते हैं। अपनी निश्ठा दिखाता हुआ वह तेजी से आगे बढ़ने लगता है और कुछ ही महीनों में वह इस दुनिया का ''सयाना'' बन जाता है।इसके विपरीत उसकी पत्नी, प्रेयसी और बच्चों का जीवन कुछ जोखिम भरा हो जाता है। फिल्मी दुनिया में तो अंडरवर्ल्ड के आदमी ही अपने प्रतिद्वंद्वी को ''टपका या लुढ़का'' देते हैं, इस प्रक्रिया में कई बार उसके बच्चे या फिर पत्नी, प्रेयसी भी मौत का शिकार हो जाती है।पर आज हालात बदल रहे हैं। अपराध की इस असली दुनिया में अब गॉडमदर, मम्मी, नानी या फिर सुप्रीमो का दबदबा बढ़ने लगा है।अब तक यही एक ऐसा क्षेत्र था, जिसमें महिलाओं का नामो-निशान नहीं था, किंतु अब इस क्षेत्र में भी महिलाओं ने बाजी मारनी शुरू कर दी है।माफिया में अब वास्तविक जीवन में कथित अपराधियों की पत्नी, बहन या रखैल उनके धंधे को आगे बढ़ाने का काम बखूबी कर रही हैं।

इस दुनिया में महिलाओं की सूची अब लम्बी होने लगी है। उनके ''साथी'' एक आदेश पर अपनी जान देने को तैयार रहते है। परंतु एक लम्बे समय बाद यही गुंडे पुलिस के मुखबिर बन जाते हैं, और उनके साम्राज्य का नेस्तनाबूत कर देते हैं। गॉडमदर संतोक बेन जाडेजा, सुजाता निखलज, पद्मा पुजारी, हसीना पार्कर, आशा गवली, मोनिका बेदी ये ऐसे नाम हैं, जो अपराध की दुनिया में जाने-पहचाने जाते हैं।ये सभी महिलाएँ जब विवाह करती हैं, तब शायद उन्हें यह मालूम नहीं होता कि उनका पति अपराध की दुनिया से वास्ता रखता है, या फिर उसके प्रेम की गिरफ्त में होतीे हैं।तब उन्हें अपने प्रेमी की वास्तविक स्थिति का पता नहीं होता, और जब पता चलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
गुजरात में जहाँ महात्मा गाँधी का जन्म हुआ था, उसी पोरबंदर में माफिया डॉन सरमन मुंजा जाडेजा 1986 में जब मारा गया, तब उसकी पत्नी संतोक बेन जाडेजा ने डॉन की गद्दी सँभाल ली, तब उसे ''गॉडमदर'' के रूप में जाना जाता था।चेम्बूर की सुजाता निखलज को ''नानी'' के रूप में पहचाना जाता था।ये सारी महिलाएँ मेडम, दादी, और सुप्रीमो के नाम से पहचानी जाती।एक समय पूरे गुजरात में संतोक बेन जाडेजा की तूती बोलती थी, आज भले ही वह जेल में हो, पर सच तो यही है कि उनके भी दिन थे।उसी तरह सुजाता निखलज, पद्मा पुजारी और आशा गवली का साम्राज्य पूरे मुम्बई में फैला हुआ है। भारत दाऊद इब्राहीम के पूरे काम उसकी बहन हसीना पार्कर के ही इशारे पर होते थे।इन्हें पकड़ना आसान नहीं होता है, क्योंकि यह सीधे किसी भी अपराध से जुड़े नहीं होते। इनके खिलाफ सुबूत इकट्ठे करना टेढ़ी खीर साबित होता है।

चेम्बूर के तिलक नगर में सामान्य मध्यम वर्ग परिवार से निकली सुजाता निखलज के प्रेम में डॉन छोटा राजन पड़ा, उस समय वह दाऊद का विश्वस्त था।जब उस पर पुलिस का शिकंजा कसने लगा, तब उसका काम सुजाता ही देखने लगी।जब छोटा राजन दाऊद से अलग हुआ, तब सुजाता अपने तीन बच्चों को लेकर मुम्बई आ गई।तब उसे लगा कि किसी की टांग तोड़कर या किसी से जबर्दस्ती वसूली करने से अच्छा है कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे पुलिस की नजर उस पर न पडे, अतएव उसने खुशी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी खोल ली।इस कंपनी की आड़ में उसके काले धंधे भी होने लगे।उधर पद्मा पुजारी मूलत: सिख है। अंडरवर्ल्ड से जुड़े रवि पुजारी के सम्पर्क में तो वह अपने स्कूल के ही दिनों से थी।वह कांवेंट में पढ़ी-लिखी है, इसलिए धाराप्रवाह ऍंगरेजी बोल लेती है।हाल ही में फिल्म निर्देशक महेश भट्ट को धमकी देने वाले पुजारी के गेंग के ही थे।पद्मा की तरह आशा गवली भी अंडरवर्ल्ड के डॉन अरुण गवली की पत्नी है।अरुण गवली जब विधान सभा चुनाव में जीत गया, तब पर्दे के पीछे से उसका सारा काम आशा ही सँभालती थी। आशा गवली को हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों का बेहतर ज्ञान है।गवली गेंग के आदमी उसे पहले ''आशा मेम'' से संबोधित करते थे, पर अब ''मम्मी'' के नाम से संबोधित करते हैं। मुम्बई में ही पढ़े-बढ़े सुरेश गुरु सालेम की गेंग के लिए काम करता था, दत्ता सावंत की हत्या में इसी गेंग का हाथ था, ऐसा कहा जाता है। 2006 में जब सुरेश मारा गया, तब से उसकी पत्नी ने ही उसका पूरा काम देखना शुरू किया। बहरहाल वह जेल में है।

अंडरवर्ल्ड का एक नियम यह है कि सामान्यत: अपने परिवार की किसी भी महिला को अपने धंधे में शामिल नहीं किया जाता।प्रतिस्पर्धियों में कितनी भी दुश्मनी क्यों न हो, पर उसके परिवार की महिलाओं पर कभी हाथ नहीं डाला जाता था।डॉन अपने साथियों को यही आदेश देते कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर प्रतिस्पर्धी के घर की महिलाओं का पूरा सम्मान किया जाए।पर अब वैसी बात नहीं रही।कड़ी प्रतिस्पर्धा, रंजिश के कारण अब लोग इस तरह के नियम की अहवेलना करने लगे हैं।अब तो सबसे पहले महिलाओं को ही अपना निशाना बनाने लगे हैं।इस स्थिति में महिलाओं ने स्वयं को तैयार कर लिया और उन्होंने भी हथियार उठा लिए।फिर क्या था, इन महिलाओं ने भी अपने पति के धंधे को पूरी तरह से अपना लिया और शुरू कर दिया, किसी को भी लुढ़काना, टपकाना, सुपारी लेना, वसूली करना इनके बाएँ हाथ का काम हो गया।इनके नखरे भी अजीब होते।62 किलो वजनी, पाँच फीट दो इंच ऊँची सुनिता देखने में प्रभावशाली लगती थी, उसे जब पुलिस स्टेशन लाया गया, तब वह वहाँ का पानी पीने को भी तैयार न थी। पूरे 16 दिनों तक उसे सलाइन पर रखा गया।दिखने में बला की खूबसूरत मोनिका बेदी ने अपने प्रेमी अबू सालेम को फिल्मी हस्तियों के फोन नम्बर और पते दिए थे।अवैध वसूली में इन्होंने करोड़ों रुपए कमाए। पुलिस के अनुसार मोनिका की योजना थी कि इस धन से वह अबू सलेम को दाऊद के शिकंजे से मुक्त करा लेगी और अमेरिका में सेटल हो जाएगी।इनकी यह योजना निश्फल हुई और आज ये दोनों ही अलग-अलग जेलों में बंद हैं।
इस तरह से अंडरवर्ल्ड की यह दुनिया के बेताज बादशाहों के दिन फिरने लगे हैं।अब न तो वह कानून व्यवस्था रही, न ही उनके अपने नियम कायदे।जब तक इनके धंधे में उसूल था, तब तक इनका धंधा खूब चला, पर बेईमानी के धंधे में जब ईमानदारी नहीं रही, तब से उनका धंधा भी चौपट होने लगा।अब यह कोरी कल्पना नहीं रही कि कानून के हाथ लम्बे नहीं होते। अब तो अपराधी कोई भी हो, उसकी नियति सीखचों के पीछे ही लिखी है।अभी भी कई ऐसे हैं, जो कानून से खेल रहे हैं, पर कभी न कभी तो वह स्थिति आएगी, जब लोग उन्हें सलाखों के पीछे देखेंगे।
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. चेहरे बदलते रहते हैं मार किसी न किसी रुप में जब तक समाज है, ये लोग बने ही रहेंगे.

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