बुधवार, 11 जून 2008

टिमटिम तारे, फूलों से प्यारे


भारती परिमल
आकाश में तारों का अपना एक अलग संसार है। यह संसार अपने आपमें अनोखा है। अनगिनत तारों से भरे इस संसार में सभी तारों का अलग-अलग घर है। सभी के अपने-अपने ऑंगन और अपने-अपने खिलौने हैं। यहाँ का नियम ऐसा है कि सभी को अपने ही ऑंगन में इन खिलौनों के साथ खेलना है। कोई किसी के ऑंगन में या घर में नहीं जा सकता। हाँ, अपने ऑंगन में खेलते-कूदते एक-दूसरे से बात जरूर की जा सकती है। यहाँ हर समय केवल सुबह का उजियाला रहता है। दोपहर, शाम और रात की परिभाषा ये तारे नहीं जानते। ये तो बस अपने घर में पड़े रहते हैं या फिर ऑंगन में ही उछलते-कूदते, गीत गुनगुनाते रहते हैं।
लम्बे समय से ऐसा ही जीवन जीते हुए एक तारा इससे बोर हो गया। उसने अपने सामने ऑंगन पर खेलते तारे को आवाज लगाई- ऐ... भाई, झिलमिल..।
क्या है भाई टिमटिम?
क्या तुम एक जैसी दिनचर्या से बोर नहीं हो गए? टिमटिम ने पूछा।
झिलमिल बोला- हाँ, बोर तो हो गया हूँ, पर क्या करूँ?
टिमटिम बोला- मेरा भी यही हाल है। मैं तो अब इससे ऊबने लगा हूँ और थक भी गया हूँ।
तो, फिर घर के अंदर जाओ और चादर ओढ़कर सो जाओ- झिलमिल ने कहा।
टिमटिम बोला- नहीं, भाई। मैं ऐसी थकान की बात नहीं कर रहा। मैं तो इन सभी चीजों से बोर हो गया हूँ और कुछ नया करना चाहता हूँ, कोई नई जगह जाना चाहता हूँ। एक ही घर, एक ही ऑंगन, एक ही गीत मैं इन सभी से थक चुका हूँ।
झिलमिल ने कहा- तो फिर ऐसा करो, हम दोनों चुपचाप आपस में घर बदल लेते हैं, तुम मेरे घर में आ जाओ और मैं तुम्हारे घर पर आ जाता हूँ। किसी को पता भी न चलेगा और हमारी बोरियत दूर हो जाएगी।
टिमटिम बोला- बिलकुल नहीं, ऐसा करने से न तो तुम्हें मजा आएगा और न ही मुझे क्योंकि हमारे घर भी तो एक जैसे ही बने हुए हैं। फिर हमें यह थोड़े ही लगेगा कि हम एक नए घर में आए हैं।
तो फिर क्या किया जाए?
टिमटिम बोला- क्यों न ऐसा करें कि हम इस दुनिया से बाहर निकल कर दूसरी दुनिया की सैर करें?
झिलमिल डरते हुए बोला- नहीं, नहीं। हम ऐसा नहीं कर सकते। हमारे बाप-दादा के जमाने से ऐसा ही चला आ रहा है। हम इसे बदल नहीं सकते।
टिमटिम बोला- पर क्या तुमने कभी घर की छत पर चढ़ कर बाहर की दुनिया देखी है? कितनी खूबसूरत और रंगबिरंगी है।
झिलमिल ने कहा- हाँ, देखी है ना। वो दुनिया सचमुच देखने में बहुत खूबसूरत लगती है, पर क्या किया जा सकता है? हम वहाँ नहीं जा सकते।
टिमटिम बोला- क्यों नहीं जा सकते? तुम यदि साथ चलो, तो हम दोनों मिलकर उस दुनिया को देख सकते हैं।
यह सुनकर झिलमिल ने अपने दोनों कान पकड़ लिए और बोला- ना, बाबा ना। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आज तक किसी ने ऐसा नहीं सोचा।
टिमटिम बोला- सोचा तो होगा, पर कोई ऐसा कर नहीं पाया। हम दोनों साथ मिलकर ऐसा कर सकते हैं। बस थोड़ी सी हिम्मत की जरूरत है।

झिलमिल ने कहा- वो हिम्मत तो मेरे पास नहीं है। तुम्हें जाना है, तो जाओ। मैं तो तुम्हारे साथ नहीं आऊँगा।
टिमटिम ने अकेले ही बाहर की रंगबिरंगी दुनिया देखने का फैसला कर लिया और जगमग करता हुआ, फररर फररर फररर उड़ता हुआ.... पृथ्वी पर आ पहुंँचा।
उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उसने सफेद बर्फ से लिपटे हुए पहाड़ को देखा। झर-झर झरते झरने, कल-कल करती नदियाँ, हरी-भरी धरती और चहचहाते पंछियों का कलरव ये सभी उसके लिए आश्चर्य की चीजें थीं। इससे बढ़कर आश्चर्य था- चार पैर वाले पशुओं के साथ दो पैर वाले मनुष्यों का मेलजोल। आपस में किस तरह से पशु-पक्षी, मनुष्य सभी हिलमिल कर रहते हैं। एक दूसरे के साथ इनका अपनेपन का व्यवहार। किसी एक घर में ही कैद रहने का कोई नियम नहीं। कोई हरी धरती पर रहता है, तो कोई खुले मैदान में, तो कोई अपनी पसंद के मकान बनाकर रहता है। आपस में एक दूसरे से बोलना, घर आना-जाना। ये सभी चीजें उसे बहुत भली लगी।
टिमटिम तो अपनी आकाश की दुनिया ही भूल गया। वह तो इसी दुनिया में खुश हो कर दिन बिताने लगा। कभी किसी पेड़ पर चढ़ गया, तो कभी किसी लहरों के साथ दूर-दूर तक बहता रहा। जब थक गया, तो बर्फीले पहाड़ पर आराम कर लिया, तो कभी खुले मैदान में खूब घूमा। यूँ ही करते हुए, दिन-महीने गुजरते गए।
यहाँ आकाश में झिलमिल को अपने मित्र की चिंता होने लगी। आखिर इतना समय बीत जाने पर भी टिमटिम वापस क्यों नहीं आया। एक दिन हिम्मत करके वह भी अपने मित्र की तलाश में धरती की ओर चल पड़ा। खोजते-खोजते कई दिन बीत गए। उसे धरती की रंगबिरंगी दुनिया को नजदीक से देखना अच्छा लगा। नए लोगों को देखकर वह बहुत खुश होता। फिर टिमटिम की याद आते ही उदास हो जाता। एकदिन लहरों के साथ अठखेलियाँ करते हुए टिमटिम से उस की मुलाकात हो ही गई।
झिलमिल को देखकर टिमटिम बहुत खुश हुआ। अब दोनों दोस्त मिल चुके थे। साथ मिलकर खूब सैर करते। यहाँ केवल सुबह नहीं थी। दोपहर, शाम, रात का बदलता हुआ रूप भी था। सो वे दोनों तो यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहे थे।
उन दोनों की इच्छा थी कि वे इसी धरती पर हमेशा के लिए रह जाए, पर इसे पूरी कौन करेगा। दोनों जगमगाते हुए, नदी, नाले, सागर, पेड़, पौधे, जंगल, पहाड़, मैदान सभी कुछ पार करते हुए, शाम ढले सूरज दादा के पास पहुँचे। वे अपने घर वापस जाने की तैयारी कर रहे थे। दोनों ने सूरज दादा को प्रणाम किया और अपने मन की बात कही। सूरज दादा ने दोनों की अभिलाषा को समझा और उसे स्वीकार करते हुए उन्हें हमेशा के लिए फूलों के रूप में इस धरती पर रहने की अनुमति दे दी।
फूलों का रंगबिरंगा रूप पाकर दोनों तारे बेहद खुश हो गए। फिर तो आकाश के तारों के संसार में घर-घर में ये बात पहुँच गई। उन तारों के बीच फूल बनकर धरती पर आने की होड़ लग गई। तारों की ये स्पर्धा आज भी चालू है। जब ये तारे फूल बनते हैं, तो सुगंध के माध्यम से अपनी खुशी जाहिर करते हैं और ईश्वर के चरणों में स्थान पाकर सूरज दादा का आभार मानते हैं।
भारती परिमल

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति.. बचपन की कहानियो की याद आ गयी

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  2. लगा कि बचपन में हूं जयप्रकाश भारती जी का नंदन पढ़ रहा हूं। शुक्रिया..

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