शनिवार, 20 दिसंबर 2008

प्रिय प्रीति के नाम प्रेम की पाती


शादी की सालगिरह की कोटिश: बधाइयाँ

एक ओस पाती पर रखी
अलसभोर की सगी सखी
जमी पर ठहरा बादल या कुहासा
फिर भी दिखती तुम मेरी खुशी
टप टप टपकती सूरज की किरण में तुम
निर्झर बहती चाँद की रोशनी में तुम
होले-हौल चलते झरनों में तुम
मेरे अनुलोम-विलोम सांसों में तुम
मेरी मदहीन मदमाती रातों में तुम
हर गम और खुशी
की बातों में तुम
मेरे सुर और बेसुर रागों में तुम
पतझड़ और बागे बहारों में तुम
न भूलने वाली और भूली यादों में तुम
मेरी जागते और सोते ख्वाबों में तुम
सिर्फ तुम और सिर्फ तुम ही तुम
खुशाल राठौड़10-12- 2008


मेरी एक अन्य कविता

आस-निराशा

मैं मुतमइन हूँ पत्थर भी पिघल सकता है
पहले इस पानी को बर्फ तो बनने दो
वो कहते हैं कुछ भी याद नहीं मुझे
अतीत की यादों को भूलने तो दो
आग का दरिया पार किया है मैंने
मुझे इस आग में तपने तो दो
एक तरल विश्वास बहता है मेरे भीतर
तुम छूकर इसे पनपने तो दो
अब नहीं चला जाता इस डगर पर
तुम इन साँसों को चलने तो दो
बहुत जी लिया किनारे रहकर
अब तो इस नाव को डूबने तो दो
डॉ. महेश परिमल

2 टिप्‍पणियां:

  1. Priti ji ko shadi ke salgirah ki dher sari badhai..

    magar lagta hai aap priti ji ka parichay karana bhul gaye hain.. :)

    kavita bhi achchhi hai..

    जवाब देंहटाएं
  2. dono kavitaayen bahut sundar aur bhaavpoorn hai ...ye line kaafi kuch kah jaati hai /..

    बहुत जी लिया किनारे रहकर
    अब तो इस नाव को डूबने तो दो

    aapko bahut badhai ..

    vijay
    for some new poems , pls visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

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