शुक्रवार, 5 जून 2009
प्रकृति को निहारने के लिए बस कुछ इंतजार...
आज है पर्यावरण दिवस। प्रकृति ने अभी पूरे मानव जगत से रुठी हुई है। इसलिए वह अपना प्रकोप दिखा रही है। इस मानव जाति ने प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ की है, उसे वह कभी माफ नहीं करेगी। इसीलिए अभी वह अपना प्रकोप दिखा रही है। बस थोड़ा-सा इंतजार और कर लें। अभी प्रकृति उन दुष्टों के लिए व्यूह रचना तैयार कर रही है, जो उसे खिलौना समझते हैं। बहुत ही क्रूर है प्रकृति, वह नहीं छोड़ेगी, इन दुष्टों को। खूब दंड देगी, कड़ा दंड देगी। आज जो पानी बरबार कर रहे है, उन्हें वह ऐसे स्थानों पर भेजेगी, जहाँ कई दिनों तक पानी के दर्शन ही नहीं होते। संभव है, वह ऐसे हालात पैदा कर दे, जिससे पानी बरबाद करने वाला 5 किलोमीटर दूर से एक बाल्टी पानी लाने लगे। तरसा-तरसाकर दंड देगी उन्हें। आज जो पेड़ों को काट रहे हैं, संभव है उनके लिए कभी किसी काम के लिए लकड़ी नसीब न हो। इसलिए जिसने भी पर्यावरण को बरबाद करने में अपनी भूमिका निभाई है, वह तैयार रहे, अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए। फिर... फिर देखना प्रकृति का राग वर्षा... किस तरह से संगीतमय सफर शुरू होगा, जब झमाझम बारिश होगी। प्रकृति खूब खुश होगी। बस थोड़ा सा इंतजार प्रकृति के इस मचलते रूप को देखने का...
शुरू होगा प्रकृति का राग मल्हार
धरती की इस पुकार ने मानसून को इतना बेचैन कर दिया कि जल्दबाजी में उसमें चक्रवात (आइला) उठने लगे। यदि ऐसा न होता तो संभवत: वो कुछ जल्दी ही बरस पड़ता। जून महीने की शुरुआत के साथ ही मेघों की जमघट, गड़गड़ाहट, बिजली की चमक और बूंदों की टपटपाहट शुरू हो जाती है।
इनकी ध्वनि किसी संगीत से कम नहीं है। प्रकृति भी सुर और लय में बंधकर मानो लाजवाब संगीत का अहसास कराती है। मेघों का यह संगीत अब भी कुछ फासलों पर है। मौसम विभाग का मानना है कि मानसून थोड़ा आगे बढ़ गया है। बंगाल की खाड़ी में चक्रवात की स्थिति बनने से बूंदों के संगीत के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
मौसम की करवट बदलने के साथ ही प्रकृति के संगीत में झूमने के लिए लोग बेकरार है। मौसम विशेषज्ञों की माने तो केरल में जल्द मानसून आने के कारण यहां भी समय से पहले मानसून आने के कयास लगे थे लेकिन चक्रवात की गति तेज होने के कारण वह बांग्लादेश की तरफ मुड़ गया।
प्रकृति के रोम-रोम में बसा है संगीत-
शास्त्रीय गायक सुनील मसूरकर कहते हैं प्रकृति के रोम-रोम में संगीत बसा है। सृष्टि का निर्माण भी ओम नाद से हुआ है। बारिश में जब पक्षी चहचहाते हैं, बादल गरजते हैं और तेज आंधी-तूफान आता है तो प्रकृति के कण-कण में संगीत की सजीवता का आभास होता है।
बादलों की गर्जना सी होती है मल्हार की तान-
शुभदा मराठे कहती हैं बारिश में अकसर राग मल्हार गाया जाता है। मिया, गौड़, रामदासी, मेघ, मीरा व सरजू मल्हार में स्वरों के प्रभाव का पूरा उपयोग दिखता है। यदि साधक की साधना हो तो राग सुनकर बादल भी बरसने लगते है। मल्हार की तान भी ऐसी होती है जैसे बादलों की गर्जना। नदी का बहना हो या हवा का चलना सभी में लय तत्व दिखता है। कोयल की कूक में भी पंचम स्वर निकलते हैं। इन सभी में से उत्पन्न ध्वनि सात स्वर बनाती है।
पक्षियों के जीवन में नया राग -
नेचर वालेंटियर के भालू मोंढे कहते हैं बारिश से सभी जगह बदलाव नजर आएगा। जहां चारों तरफ हरियाली होगी, तालाब लबालब होंगे वहीं पक्षियों के जीवन में भी नया राग बज उठेगा। गर्मी में यह हाल है कि पक्षी चोंच खुली रखकर सांस ले रहे है लेकिन बारिश आते ही पंख फड़फड़ा उठेंगे। पत्तों की साइज भी डबल हो जाएगी। मुरझाए पेड़ो में फुटान आ जाएगी यहां तक की रंग भी बदल जाएंगे।
सूखे पत्थरों से निकलते हैं झरने -ट्रेकर्स राजीव किल्लेदार बताते हैं बारिश के मौसम में ट्रेकर्स में नई उर्जा व उत्साह देखने को मिलता है। महू व खंडवा रोड पर फैली हरियाली को देखने के लिए लोग वीकेंड पर निकल पड़ते है। चोरल के घाट की खूबसूरती देखने लायक होती है। सूखी नदियां लबालब हो जाती है और कई जगह नए झरने बहने लगते हैं।
लेबल:
प्रकृति
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बेहद सामायिक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंपर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लें
प्रकृति के इस रंग से परिचित कराने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सामयिक व बढिया पोस्ट है।आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही मुद्दा उठाया है आपने.. विकासशील देश आज भी हाथ पर हाथ धरे बैठे है...!आखिर में प्रकृति अपना काम करने लगी है..प्रलय निकट है...संकेत मिलने लगे है...!आप जिस मौसम का इंतजार कर रहे है,हो सकता है वो कभी न आये...
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