बुधवार, 10 जून 2009

जेल वरदान है उन सबके लिए


डॉ. महेश परिमल
जेल यानी अपने किए की सजाओं को भुगतने का स्थान। कोई किसी को बद्दुआ भी नहीं देना चाहेगा कि वह ऐसी किसी जेल में जाए, जहाँ उसे अपनी सजा को शारीरिक पीड़ाओं के साथ भुगतना पड़े। अक्सर सलाखों के पीछे जाने वाले साधारण कैदी भी अपनी सजा पूरी करने के बाद एक खूंखार अपराधी के रूप में बाहर आते हैं। जेल से निकलने के बाद उसे रोजगार की तलाश होती है, जो उसे नहीं मिलता। इसलिए वह उन लोगों का आर्थिक संरक्षण प्राप्त करता है, जो उससे आपराधिक कार्य करवाते हैं। इस तरह से जेल उसके लिए बड़े अपराधी बनने का प्रशिक्षण केंद्र से अधिक कुछ नहीं होती। लेकिन यहाँ जिस जेल की चर्चा की जा रही है, उस जेल में हर कोई आना चाहता है। इस जेल में आने के पहले अपराधी को यह सिद्ध करना पड़ता है कि वह पेशेवर अपराधी नहीं है। आवेश में उससे गुनाह हो गया और वह जेल चला गया। इस जेल में अपराधी अपने परिवार के साथ घर में रहता है। शहर जाकर काम करता है। उसकी अपनी गाड़ी भी होती है, जिससे वह कहीं भी जा सकता है। इस जेल की एक खासियत यह भी है कि यहाँ महिला कैदियों को भी पुरुष कैदियों के साथ रखा जाता है, फिर भी महिला कैदी अपने-आप को सुरक्षित महसूस करती हैं। इस जेल के कैदियों का जीवन देखकर सामान्य आदमी को ईष्र्या हो सकती है।
यह जेल है राजस्थान के जयपुर हवाई अड्डे के पास स्थित सांगनेर 'ओपन जेल। मनीष दीक्षित इसी जेल के एक कैदी हैं। उसके पास कार है। वह आधुनिक सेलफोन का इस्तेमाल करता है। वह एक अत्याधुनिक घर में रहता है। वह एक सिविल इंजीनियर है। उसका रहन-सहन देखकर लगता है कि वह एक सफल व्यावसायिक है। वास्तव में वह एक हत्या के अपराध में सजा काटने वाला गुनाहगार है। पर वह अपनी सजा के 6 वर्ष ऊँची-ऊँची दीवारों वाली जेल में काटकर ही इस जेल में आ पाए हैं। बड़ी जेल में वे अपने स्वभाव से यह बताने में सफल रहे कि वे पेशेवर अपराधी नहीं हैं। बस उनकी इसी खासियत उन्हें इस ओपन जेल में ले आई।
राजस्थान सरकार ने सन 1963 में प्रयोग के तौर पर इस तरह की जेल की शुरुआत की थी। कुछ समय बाद यह प्रयोग इतना सफल रहा कि तीन और जेलें शुरू की गईं। अपराध को छोड़कर नया जीवन प्रारंभ करने का अवसर देने वाली इस जेल में अभी 504 कैदी सजा भोग रहे हैं। कुछ समय बाद यहाँ दस और खुली जेल बनाने की योजना है। इस जेल की कुछ और खासियतें हैं, यहाँ ऊँची-ऊँची दीवारें नहीं हैं और न ही कैदियों पर हर समय नजर रखने वाले बंदूकधारी सिपाही। इस जेल में करीब 170 सजायाफ्ता कैदी अपने परिवार के साथ रहते हैं। घर का भोजन करते हैं। उनके घर में टीवी, फ्रिज जैसी आधुनिक सुविधाएँ हैं। कई घरों के आँगन में कार आदि चार पहिया वाहन भी खड़े हैं। इस प्रकार की खुली जेल का प्रयोग राजस्थान के राज्यपाल संपूर्णानंद ने शुरू किया था। उन्हें इस तरह की खुली जेल की प्रेरणा पश्चिमी देशों से मिली थी। किसी भी सजायाफ्ता कैदी को तुरंत ही इस खुली जेल में नहीं लाया जाता। गंभीर अपराधों में शामिल होकर लंबी सजा काटने वाले कैदियों के अच्छे व्यवहार को ध्यान में रखकर उनका स्थानांतरण इस खुली जेल में किया जाता है। यहाँ आने के पहले उसे पारंपरिक जेल में कम से कम 6 वर्ष बिताने होते हैं। इसके बाद उस कैदी की शिक्षा भी देखी जाती है। शिक्षित लोगों के साथ यह होता है कि वे आवेश में आकर अपराध तो कर बैठते हैं, पर उसका पछतावा उन्हें जीवनभर होता है। इसी प्रायश्चित भरे जीवन को सँवारने का एक छोटा-सा प्रयास है, यह खुली जेल।
इस खुली जेल में कम खतरनाक कैदी अपनी सजा का अंतिम भाग अपने परिवार के साथ बिताते हैं। वे करीब के शहर में जाकर काम कर अपनी रोजी-रोटी प्राप्त कर सकते हैं। जेल परिसर में अपना घर भी बना सकते हैं। यहाँ आने के बाद बाद वे अपने जीवन को सँवारते हुए महिला अपराधियों से शादी भी कर सकते हैं। पूरे भारत में ऐसी 27 जेलें हैं। केवल राजस्थान ही ऐसा राज्य है, जहाँ अभी इस तरह की 13 जेल है। अगले वर्ष दस और जेल तैयार हो जाएंगी। इसके सफल होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि यह जेल शहर से करीब होने के कारण यहाँ के कैदी शहर जाकर अपनी रोजी-रोटी के लिए काम कर सकते हैं। कई जेल तो विश्वविद्यालय की तरह हैं। जहाँ कैदी विभिन्न तरह के काम कर सकते हैं। कोई अपनी अधूरी शिक्षा को पूर्ण करने लगता है, तो कोई लेबोटरी टेक्नीशियन के रूप में काम कर रहा है। यहाँ एक और कैदी सूरजमल है, जो अपने जीजाजी की हत्या करने के बाद सजा भोग रहा है। उसे जोधपुर के एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन के केम्पस में रखा गया है। यहाँ वह अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहता है। जब वह बड़ी जेल में था, उसने फिलोसफी और पॉलीटिकल साइंस में अनुस्नातक किया था। रिसर्च स्टेशन के फार्म में काम करके वह हर महीने ढाई हजार रुपए कमा लेता है। इसके बाद वह वेल्डिंग का काम करके भी कुछ और धन प्राप्त कर लेता है। उसका मानना है कि इस खुली जेल ने उसे कुशल व्यवसायी बना दिया है। सजा पूरी होने के बाद भी उसे अपने पाँव पर खड़े होने में कोई परेशानी नहीं होगी। राजस्थान के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस पी. के. तिवारी मानते हैं कि वे यहाँ के हर अपराधी के जीवन से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। एक-एक कैदी के जीवन की कहानी दिलचस्प है। इस पर तो शोध भी हो रहे हैं।
इस जेल की परिकल्पना आदर्श जेल की तरह है। कैदी यहाँ आकर अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने का ही काम करते हैं। इससे उनके पुनर्वसन की समस्या आड़े नहीं आती। इसके बाद भी इस जेल से जुड़े कुछ अपवाद भी हैं। सन 1989 से 1997 तक इस जेल से 7 कैदी भाग भी चुके हैं। 1998 से 2008 तक यह आँकड़ा 32 तक पहुँच गया। इसके बाद भी यहाँ आकर यदि किसी कैदी ने यहाँ के नियम-कायदों को अनदेखा किया, उसे वापस बड़ी जेल भी भेजा गया है। फिर भी अधिकांश कैदियों का मानना है कि यहाँ आकर जब उनकी शिक्षा और व्यवसाय दोनों ही सफलीभूत हो रहे हों, तो फिर इस जेल के नियमों को मानने में कोई बुराई नहीं है। फिर यहाँ का स्वच्छंद जीवन फिर भला कहाँ मिलेगा?
इस तरह के विचारों और कैदियों के समग्र विकास की अवधारणा को लेकर खोली गई ये खुली जेल आज कैदियों के लिए वरदान साबित हो रही है, इसमें कोई शक नहीं।
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. मुझे पूरा विश्वास है कि यह पोस्ट हिन्दी ब्लॉग जगत के चंद ऐतिहासिक पोस्टों में सुमार होगा। बहुत खुशी हुई "संवेदनाओं के पंख ' पर आकर। इसलिए इसका लिंक मैं अपने ब्लॉग"दो पाटन के बीच'में दे रहा हूं। ऐसे पोस्टों की संख्या अगर बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में ब्लॉग भी एक गंभीर रचनात्मक विधा बन सकती है।
    सच में ये जेल न्याय शास्त्र की नयी परिभाषा गढ़ रहे हैं। मैं भी इस विचार का समर्थक हूं कि गुनाह खत्म होने चाहिए न की इंसान। सजा का मतलब सबक होना चाहिए न की मानव-उत्पीड़न। विडंबना यह है कि हम इस मामले में सदियों पुरानी परंपरा को ही ढो रहे हैं। आज न्याय शास्त्र पर सबसे कम अनुसंधान हो रहे हैं, जबकि अपराध शास्त्र पर अरबो-अरब रुपये फूंके जा रहे हैं। फिर भी अपराध नहीं घट रहे। किसी ने ठीक ही कहा है कि आखिरकार प्यार और करुणा ही इस दुनिया को बचायेंगे।
    सुंदर, गंभीर और सकारात्मक लेखन के लिए बहुत-बहुत बधाई
    रंजीत

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