मंगलवार, 18 अगस्त 2009

स्वाइन फ्लू के खिलाफ जीती जंग!


स्वाइन फ्लू का नाम आते ही लोग भयग्रस्त हो जाते हैं। उनकी हालत खराब हो जाती है। लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो पूरे धैर्य के साथ इसका मुकाबला करना जानते हैं। यहां के सिविल अस्पताल में एक मासूम स्वाइन फ्लू से पीडि़त होकर आई, इत्मीनान से इलाज करवाया और करीब एक सप्ताह बाद पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घर चली गई।
यहां के एक पॉश इलाके में रहने वाले एक उच्चअधिकारी की बेटी अमेरिका से आई, वहां से आते ही उसमें स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखाई देने लगे। इसके बाद उसके पालकों ने उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया। आज वह मासूम पूरी तरह से स्वस्थ है।
इस संबंध में उसके पिता ने कहा कि हमें जैसे ही पता चला कि बिटिया में स्वाइन फ्लू के लक्षण हैं, हमने बिना देर किए उसे अस्पताल में भर्ती कराया। वहां उसकी थ्ेराप्यूटिक इलाज शुरू किया गया, साथ ही अन्य दवाएं तेजी से असर दिखाएं, इसलिए उसे लगातार 5 दिनों तक टेमी फ्लू की दो गोलियां दी जाने लगी। इसके बाद उसके नाक और गले से निकलने वाले द्रव्य का नमूना लेकर उसे दिल्ली भेजा गया। 48 घंटे में उसकी पॉजीटिव रिपोर्ट आ गई। इसके बाद बच्ची को एक बार फिर टेमी फ्लू के डोज दिया जाने लगा। इस बीच घर के सदस्यों ने बाहर निकलना बंद कर दिया और रोग फैले नहीं, इसलिए मास्क पहनना शुरू कर दिया।
स्वाइन फ्लू से जंग जीतने के बाद बच्ची के पिता ने कहा कि तुरंत इलाज इस बीमारी से जीतने का पहला कदम है। पूरे धैर्य और सतर्कता से इस काम को संपादित किया जाना चाहिए। हड़बड़ी में कोई काम न करें, लोगों के लिए यही मेरा संदेश है।


तंद्रिक संन्निपात ज्वर अर्थात स्वाइन-फ्लू
- दोनों के लक्षण समान, रोकथाम संभव
- आयुर्वेद में प्रभावशाली उपचार
- सरकार से ओपीडी शुरू करने की अनुमति मांगी
अहमदाबाद के मणिबहन आयुर्वेद अस्पताल अक्षीधक एवं वैद्य टी एल स्वामी ने आयुर्वेद औषधियों से स्वाइन-फ्लू के प्रभावशाली उपचार का दावा किया है। इस दावे के साथ ही अधीक्षक ने स्वाइन-फ्लू रोगियों के उपचार हेतु सरकार से अनुमति मांगी है। इनका कहना है कि सरकार से अनुमति प्राप्त होने पर अस्पताल में ओपीडी शुरू की जाएगी।
स्वामी का कहना है कि स्वाइन-फ्लू और आयुर्वेद ग्रंथ में वर्णित तंद्रिक संन्निपात ज्वर दोनों के लक्षण समान हैं। हालांकि स्वाइन-फ्लू मिटाया नहीं जा सकता है लेकिन आयुवैदिक औद्याषियों में इसके कारक को मानव शरीर में फैलने से रोकने की शक्ति है।
रोकथाम इनसे :
स्वामी ने कहा कि स्वाइन-फ्लू से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। वजह आयुर्वेद के गं्रथ 'भावप्रकाशÓ में गलसुआ व तंद्रिक संन्निपात ज्वर और स्वाइन-फ्लू दोनों के लक्षण समान हैं। तुलसी, अलसी, एरंडमूल, पिपली, हेमगर्भ पोट्टली रस, त्रिभुवन कीर्ति रस, महासुदर्शन घनवटी, एवं सितोपलादी चूर्ण रोग की पकड़ को कमजोर करने में सक्षम हैं। रोग से बचने हेतु लोगों को इनका प्रयोग करना चाहिए।
यह भी सहमत
स्वामी के दावे पर शहर के अन्य आयुर्वेदाचार्यों ने मुंहर लगाई है। आयुर्वेदाचार्या प्रवीणभाई हीरपरा ने बताया गला सूजना वाली बीमारी (गलसुंड) तथा स्वाइन-फ्लू लक्षणों के मद्देनजर समान लग रहे हैं। इन्हें रोकने में आयुवैदिक औषधियां कारगर हैं। साथ ही घरेलू उपचार भी प्रभावशाली हैं। मसलन तुलसी के 15 पत्ते, एक ग्राम सौंठ एवं पांच ग्राम गुढ़ का दृव्य मिश्रण तैयार कर कुल्ला करें। लाभ होगा।
आयुर्वेदाचार्य विपुल कानानी के अनुसार आंवला, जेठीशहद एवं अरडूसी (अलसी) जैसी बलदायक औषधियों का सेवन कर स्वाइन-फ्लू से सुरक्षित रहा जा सकता है। कारण यह रोगप्रतिरोधी शक्ति में वृध्दि करते हैं।

ठंडी जगह पर सक्रिय होते हैं स्वाइन फ्लू के वाइरस
स्वाइन फ्लू के डर से आजकल लोग मास्क लगाकर बाहर निकलने लगे हैं। इस तरह से लोग भले ही यह सोचते हों कि इससे हमने स्वाइन फ्लू को अपने से दूर कर लिया। वास्तव में देखा जाए, तो स्वाइन फ्लू ठंडी चीजें ग्रहण करने से होता है। आजकल डॉक्टर मरीजों को गर्म और ताजा भोजन लेने की सलाह इसीलिए दे रहे हैँ।
यदि सचमुच स्वाइन फ्लू से बचना है, तो ठंडी खुराक का त्याग करो। आइस्क्रीम, ठंडी बीयर, ठंडे पेय पदार्थ ही स्वाइन फ्लू के लिए जिम्मेदार हैं। स्वाइन फ्लू एच 1 और एन 1 के वाइरस ठंडे वातावरण में ही अधिक सक्रिय होते हैं। अभी भारत में इस वाइरस के फैलाव की गति अपेक्षाकृत काफी धीमी है। यह वाइरस ठंडे माहौल में विशेष रूप से सक्रिय होता है। यह सच है कि यह बीमारी सांस द्वारा फैलती है, पर इसका सीधा संबंध ठंडी चीजों को ग्रहण करने से है।

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