मंगलवार, 12 जनवरी 2010

खलनायकी का पर्याय बन गए अमरीश पुरी


उन अभिनेताओं में सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा. जिन्होंने अपनी कड़क आवाज. रोबदार भाव.भंगिमाओं और अभिनय की विशेष शैली से खलनायकी को एक नया अंदाज दिया और उसे लोकप्रियता के ऊंचे मुकाम पर पहुंचाया। लगभग चालीस वर्ष की उम्र में रुपहले परदे की ओर रख करने के बाद अमरीश पुरी ने लगभग तीन दशक के कैरियर में 250 फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाया। मिस्टर इंडिया में उनका किरदार मोगैम्बो तो कुछ इस तरह उनके नाम से जुड़ गया था कि आज भी लोग उनकी उस भूमिका को याद करते हुए बरबस कह उठत। हैं ''मोगैम्बो खुश हुआ'' वर्तमान दौर में अनेक कलाकार किसी अभिनय प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लेकर अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत करते हैं लेकिन अपन। आप में अभिनय का चलता. फिरता प्रशिक्षण संस्थान होन। के बावजूद अमरीश पुरी हमेशा रंगमंच से जुडे रहे। मुम्बई के पृथ्वी आर्ट थिएटर की तो वह एक अलग पहचान बन गए थे। अमरीश पुरी ने पचास के दशक में हिमाचल प्रदेश के शिमला से स्नातक की उपाधि लेने के बाद मुम्बई का रख किया। उस समय उनके बड़े भाई मदनपुरी हिन्दी फिल्म में खलनायक के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके थे। अमरीश पुरी 1954 में अपने पहले स्क्रीन टेस्ट में सफल नहीं हुए। उसके बाद उन्होंने कुछ दिनों तक श्रम मंत्रालय में नौकरी की और साथ ही सत्यदेव दुबे के नाटकों में अपने अभिनय का कमाल भी दिखाते रहे। बाद में वह पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर में कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। चालीस वर्ष की उम्र तक पहुंचने के बाद फिल्मी कलाकार परिपक्व होत। है जबकि अमरीश पुरी ने अपने जीवन के 40वें वसंत से अपने फिल्मी जीवन की शुरुआत। वर्ष 1971 में उन्होंने फिल्म रेशमा और शेरा से खलनायक के रप में अपने कै रियर की शुरूआत की लेकिन वह इस फिल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। मशहूर बैनर बाम्ब। टॉकीज में कदम रखने के बाद उन्हें बड़े बड़े बैनर की फिल्में मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपन। कैरियर का आधार बनाया।इन फिल्मों में श्याम बेनेगल की कलात्मक फिल्में जैसे निशांत, 1975, मंथन 1976, भूमिका 1977, कलयुग 1980, और मंडी 1983, जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल है जिनमें उन्होंने नसीरूद्दीन शाह स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए। इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की 1983 में प्रदशत कलात्मक फिल्म अर्ध्दसत्य में निभाया। इस फिल्म में उनके सामने कला फिल्मों के दिग्गज अभिनेता ओमपुरी थे। बरहराल, धीरे धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने कुर्बानी 1980 नसीब 1981 विधाता 1982, हीरो 1983, अंधाकानून 1983, कुली 1983, दुनिया 1984, मेरी जंग 1985, और सल्तनत 1986, और जंगबाज 1986 जैसी कई सफल फिल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। वर्ष 1987 में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। वर्ष।987 में अपनी पिछली फिल्म. 'मासूम' की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो .इनविजबल मैन. पर आधारित थी। इस फिल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म में उनके किरदार का नाम था. मौगेम्बो.और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फिल्म के बाद उनकी तुलना फिल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई। इस फिल्म में उनका संवाद मौगेम्बो खुश हुआ इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं। भारतीय मूल के कलाकारों को विदेशी फिल्मों में काम करन। का मौका नहीं मिल पाता है . लेकिन अमरीश पुरी ने जुरैसिक पार्क जैसी ब्लाक बस्टर फिल्म के निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म इंडियाना जोंस एंड द टेंपल आफ डूम में खलनायक के रूप में माँ काली के भक्त का किरदार निभाया। इस किरदार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और इसके बाद उन्हें हॉलीवुड से कई प्रस्ताव मिल। जिन्हें उन्होन। स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि हालीवुड में भारतीय मूल के कलाकारों को नीचा दिखाया जाता है। यह बात अक्सर देखन। में आती है कि फिल्मी पर्दे पर क्रूर दिखने वाला खलनायक वास्तविक जीवन में इसके उलट होता है और यही बात अमरीश पुरी में भी थी। निजी जीवन में अत्यंत कोमल हृदय अमरीश पुरी ने गंगा जमुना सरस्वती1988, शहंशाह 1988, दयावान 1988, सूर्या 1989, रामलखन 1989, त्रिदेव 1989, जादूगर 1989, बंटवारा 1989, किशन कन्हैया 1990, घायल 1990, आज का अर्जुन 1990, सौदागर 1991, अजूबा 1991, फूल और कांटें 1991, दीवाना 1992, दामिनी 1993, गदश 1993 और करण अर्जुन1995 जैसी सफल फिल्मो में अपना एक अलग समां बांधे रखा। अमरीश पुरी ने अपने अभिनय को एकरपता से बचाने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करन। के लिए अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया। इस क्रम में वर्ष 1995 में प्रदशत यश चोपड़ा की सुपरहिट फिल्म. दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे में उन्होनें फिल्म अभिनेत्री काजोल के पिता की रोबदार भूमिका निभाई। यह फिल्म बालीवुड के इतिहास में सबसे ज्यादा लगभग 10 वर्ष लगातार एक ही सिनेमा हाल में चलने वाली फिल्म बनी। अमरीश पुरी को मेरी जंग 1985, घातक 1996 और विरासत 1997 फिल्मों में जानदार अभिनय के लिए फिल्म फेयर के पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा उन्होंने कोयला 1997, परदेस 1997, चाईना गेट 1998, चाची 420, 1998, ताल 1999, गदर 2001, मुझसे शादी करोगी 2004 एतराज 2004 हलचल 2004 और किसना 2005 जैसी कई फिल्मों के जरिए सिनेदर्शकों को अपनी ओर खींचे रखा। खलनायक की भूमिका के निखार में नायक की प्रतिभा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी कारण महानायक अमिताभ बच्चन के साथ अमरीश पुरी के निभाए किरदार अधिक प्रभावी रहे। उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ रेशमा और शेरा ईमान धर्म, दोस्ताना, नसीब, शक्ति, अंधाकानून, कुली, शहंशाह, गंगा जमुना सरस्वती, जादूगर, अजूबा, आज का अर्जुन, लाल बादशाह, हिन्दुस्तान की कसम, मोहब्बत, लक्ष्य और देव जैसी अनेक कामयाब फिल्मों में काम किया। पंजाब के छोटे से गांव नौशेरां में वर्ष 1932 को जन्में अमरीश पुरी ने 73 वर्ष की आयु में 12 जनवरी 2005 को अंतिम सांस ली।
प्रेम कुमार

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई एक सशक्त कलाकार और इंसान थे. उनसे मिलने का अवसर मिला था .

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  2. amreesh puri par pathaneey lekh. achcha laga. khalnaayak ke jeevan ko gaur se dekhen to ve ghoshit nayako se zyada bade naayak hote hai.

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