शनिवार, 30 जनवरी 2010

गांधीजी का अंतिम दिन


पी के लहरी
आज से ठीक 61 वर्ष पूर्व 30 जनवरी 1948, शुक्रवार का दिन हमारे इतिहास में एक अविस्मरणीय दिन है। भारत के पुनरुत्थान एवं जनजागृति के लिए जिन्होंने 33 वर्षों तक अथक परिश्रम कर विश्व इतिहास में एक गौरवशाली कार्य किया। अपनी व्यूहरचना से जिन्होंने समाज से सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय का मूल मंत्र लेकर एक प्राचीन सभ्यता को पुनर्जीवित किया, ऐसे युगपुरुष के जीवन का आज अंतिम दिन था। निर्लिप्त भाव से जिन्होंने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, सर्वधर्म समभाव और शारीरिक श्रम को महत्वपूर्ण बनाया था, जिनकी ईश्वर में गहरी आस्था थी, जिन्होंने सत्य की खोज के लिए सतत बैचेनी महसूस की थी, ऐसे वृद्ध को लोगों ने 'बापू' के प्यारे संबोधन से या 'महात्मा' के आदरपूर्ण पद से सुशोभित किया था। ऐसे युगपुरुष को विश्व गांधीजी के नाम से पहचानता था। यह व्यक्ति अनेक रूप में अनोखा था। श्री जिन्ना के लिए वे एक धूर्त और कपटी नेता थे। श्री अंबेडकर गांधीजी का सम्मान तो करते ही थे, किंतु साथ ही उनके प्रति संदेह भाव भी था। अनेक मुस्लिमों को वे खुदा के नेक दिल बंदे लगते थे, तो अनेक हिंदुओं को वे कृष्ण के अवतार लगते थे। कांग्रेस पार्टी की सदस्यता की चार आने की फीस भरने में भी वे सबसे अलग रहे और जिस पार्टी के विघटन के लिए उन्होंने दस्तावेज तैयार किए थे, उस 'राष्ट्रीय महासभा' के 62 वर्ष के इतिहास में से 27 वर्ष तो केवल 'गांधी युग' के ही थे। राष्ट्रीय कांग्रेस को वे एक छोटी नहीं, किंतु एक बड़ी पार्टी के रूप में देखना चाहते थे। ऐसी पार्टी जो सभ्य समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती हो। साथ ही विशाल जनाधार के लिए आंदोलन भी करती हो, राष्ट्रीय कांग्रेस को ऐसी पार्टी बनाने का महत्वपूर्ण कार्य उन्होंने किया। देश की जनता की नब्ज पकड़ने में वे पारंगत थे। भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को व्यावहारिक रूप से अमल में लाने के लिए उन्होंने स्वयं के साथ असंख्य प्रयोग किए थे। उनका जीवन आईने की तरह साफ था। वे परंपरा में विश्वास रखते थे, साथ ही धर्म और समाज की अनेक रूढ़ियों को जड़ से उखाड़ने के लिए क्रांतिकारी विचारधारा भी रखते थे। राजनैतिक और सामाजिक परिवर्तन के लिए सत्याग्रह, असहयोग, स्वदेशी आंदोलन, उपवास, पद यात्रा और अनेक रचनात्मक कार्यों द्वारा कठिन लगने वाले कार्यों के भी सफल परिणाम प्राप्त किए थे।
20 सदी के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में वे जन-जन में लोकप्रिय थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें 'राष्ट्रपिता' का संबोधन दिया। कविवर रवींद्रनाथ ने उनमें भारत की आत्मा और सामान्य जन के साथ एकरूप हो जाने वाले साधारण इंसान की छवि देखी। व्यस्त समय में से या जेल में मिले फुरसत के लम्हों से, गंभीर चर्चा के बीच या आपसी बातचीत में यह व्यक्ति हँसने और हँसाने का अवसर चुरा ही लेता था। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह थी कि यह सद्गुण उन्हें ईश्वर से उपहार में नहीं मिले थे, बल्कि लंबे समय की आराधना के साथ सजग होकर अनुशासन, संयम और समर्पण की भावना से इन गुणों का विकास हुआ था। असाधारण व्यक्तित्व के धनी गांधीजी ने हमेशा कहते थे कि उन्हें जो भी कुछ प्राप्त किया है, वह कोई भी व्यक्ति निष्ठापूर्वक किए गए प्रयत्नों से अवश्य प्राप्त कर सकता है।
30 जनवरी 1948 का दिन गांधीजी के लिए हमेशा की तरह व्यस्तता से भरा था। प्रात: 3.30 को उठकर उन्होंने अपने साथियों मनु बेन, आभा बेन और बृजकृष्ण को उठाया। दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर 3.45 बजे प्रार्थना में लीन हुए। घने अंधकार और कँपकँपाने वाली ठंड के बीच उन्होंने कार्य शुरू किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दस्तावेज को पुन: पढ़कर उसमें उचित संशोधन कर कार्य पूर्ण किया। 4.45 बजे गरम पानी के साथ नींबू और शहद का सेवन किया। एक घंटे बाद संतरे का रस पीकर वे पत्र-व्यवहार की फाइल देखते रहे। चार दिन पहले सरदार पटेल द्वारा भेजा गया एक पत्र वे अकथनीय वेदना के साथ पढ़ते रहे। जिसमें अपने और नेहरु के आपसी मतभेद और मौलाना के साथ विवाद के कारण उन्होंने इस्तीफा देने के लिए गांधीजी से अनुमति माँगी थी। सेवाग्राम के लिए पत्र भेजने की सूचना वे किसी को दे रहे थे, उस वक्त मनुबेन ने पूछा कि यदि दूसरी फरवरी को सेवाग्राम जाना होगा, तो किशोर लाल मशरुवाला को लिखा गया पत्र न भेजकर उनसे मुलाकात ही कर लेंगे और पत्र दे देंगे। महात्मा का जवाब था ''भविष्य किसने देखा है? सेवाग्राम जाना तय करेंगे, तो इसकी सूचना शाम की प्रार्थना सभा में सभी को देंगे।'' उपवास से आई कमजोरी को दूर करने के लिए उन्होंने आधे घंटे की नींद ली और खाँसी रोकने के लिए गुड़-लौंग की गोली खाई। लगातार खाँसी आने के कारण मनु बेन ने दवा लेने की बात की, तो उन्होंने जवाब दिया ''ऐसी दवा की क्या आवश्यकता? राम-नाम और प्रार्थना में विश्वास कम हो गया है क्या?''
सुबह सात बजे से उनसे भेंट करने वाले लोग आने लगे। राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु और प्यारेलाल आदि के साथ चर्चा की। मालिश, स्नान, बंगला भाषा का अभ्यास आदि कार्य पूरे कर सुबह साढ़े नौ बजे टमाटर, नारंगी, अदरक और गाजर का मिश्रित जूस पीया। उपवास के बाद अभी दूसरा आहार लेना शुरू नहीं किया था। दक्षिण अफ्रीका के सहयोगी मित्र रुस्तम सोराबजी सपरिवार आए और उनके साथ अतीत के स्मरणों में खो गए। थकान के कारण फिर आधे घंटे लेट गए। जागने पर उन्हें स्फूर्ति महसूस हुई। उपवास के बाद पहली बार बिना किसी के सहारे चले तो मनु बेन ने मजाक किया ''बापू, आज आप अकेले चल रहे हैं, तो कुछ अलग लग रहे हैं।'' गांधीजी ने जवाब दिया ''टैगोर ने गाया है, वैसे ही मुझे अकेले ही जाना है।'' दोपहर को दिल्ली में एक अस्पताल और अनाथ आश्रम की स्थापना के लिए डॉक्टरों से चर्चा की और मिलने आए मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल के साथ चर्चा कर सेवाग्राम जाने की इच्छा व्यक्त की। अपने प्रिय सचिव स्व. महादेव देसाई के जीवन चरित्र और डायरी के प्रकाशन के लिए नरहरि परिख की बीमारी को ध्यान में रखते हुए चंद्रशंकर शुक्ल को यह जवाबदारी सौंपना तय किया। दोपहर को ठंड की गुनगुनी धूप में नोआखली से लाया हुआ बाँस का टोप पहनकर पेट पर मिट्टी की पट्टी बाँधकर आराम कर रहे थे, उस समय नाथूराम गोडसे चुपचाप पूरे स्थान का निरीक्षण कर वहाँ से चला गया था।
दोपहर को मुलाकात का सिलसिला फिर शुरू हुआ। दिल्ली के कुछ दृष्टिहीन लोग आवास की माँग को लेकर उनके पास आए। शेरसिंह और बबलू राम चौधरी हरिजनों की दुर्दशा के लिए बात करने आए। सिंध से आचार्य मलकानी और चोइथराम गिडवानी वहाँ की स्थिति का वर्णन करने आए। श्री चांदवानी पंजाब में सिखों में भड़के आक्रोश और हिंसा के समाचार लाए। श्री लंका के नेता डॉ. डिसिल्वा अपनी पुत्री के साथ आए। उन्होंने 14 फरवरी को श्री लंका की मुक्ति का संदेश दिया। डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने अपनी पुस्तक और फे्रंच फोटोग्राफर ने फोटो एलबम उन्हें उपहार में दी। 'टाइस' मैगजीन के मार्गरेट बर्क व्हाइट से मुलाकात की और श्री महराज सिंह ने एक विशाल सम्मेलन के आयोजन के लिए उनसे सलाह ली।
शाम सवा चार बजे सरदार पटेल इस्तीफे के संबंध में सौराष्ट्र के राजनैतिक प्रसंगों पर चर्चा के लिए उनसे मिलने आए। सरदार पटेल के साथ खूब तन्मयता से बातचीत की, लेकिन बातचीत के दौरान उन्होंने चरखा चलाना जारी रखा। शाम का भोजन पूरा हो, इसका भी ध्यान रखा। इसके बाद भी शाम 5 बजे प्रार्थना का समय हो रहा था, लेकिन उनकी बातचीत पूरी नहीं हो पाई थी। मनु बेन और आभा बेन ने प्रार्थना में जाने के लिए संकेत किया। जिसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद सरदार पटेल की पुत्री मणिबेन ने हिम्मत करके समय की पाबंदी की ओर उनका ध्यान दिलाया, तो गांधीजी तेजी से उठ गए। देर होने से नाराज हुए गांधीजी ने अपनी लाठी समान लाड़ली मनु-आभा से नाराजगी व्यक्त की। प्रार्थना सभा में प्रवेश करते समय उन्होंने मौन धारण कर रखा था और मनु-आभा के कंधों का सहारा लेकर तेज गति से चलते हुए गांधीजी को रास्ता देने के लिए लोग एक तरफ हट जाते थे। कुछ लोग नमस्कार की मुद्रा में गांधीजी दर्शन कर कृतार्थ भाव अनुभव करते थे।
प्रार्थना के लिए जाते समय रास्ते में अचानक एक आदमी सैनिक की वर्दी में उनके सामने आकर खड़ा हो गया। उसके और गांधीजी के बीच मात्र तीन कदम का फासला था। तब उसने नीचे झुककर प्रणाम की मुद्रा में सहजता से हाथ झुकाया और कहा ''नमस्ते गांधीजी'' मनु बेन ने उसे रास्ते से हट जाने के लिए कहा कि तुरंत ही उसने बलपूर्वक मनुबेन को गिरा दिया। उसके दो हाथों के बीच रखी काले रंग की सात बोर की बेरेटा पिस्तौल में से तीन धमाकों के साथ तीन गोलियाँ निकलीं, जो महात्मा गांधी के श्वेत वस्त्र को लहुलुहान कर गई। वंदन की मुद्रा में झुका उनका शरीर धीरे-धीरे आभा बेन की तरफ ढहता गया। गोडसे की तीन गोलियों का तीन अक्षर का उनका प्रतिभाव था ''हे राम!'' उस समय उनकी कमर पर लटकी घड़ी में शाम के 5 बजकर 17 मिनट हो रहे थे। 30 जनवरी 1948 के सूर्यास्त के साथ पंडित नेहरु को लगा कि हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है। चारों ओर अंधकार व्याप्त है। लेकिन दूसरे ही क्षण सत्य प्रकट हुआ और नेहरु ने कहा ''मेरा कहना गलत है, हजारों वर्षों के अंत होने तक यह प्रकाश दिखता ही रहेगा और अनगिनत लोगों को सांत्वना देता रहेगा।'' सरदार पटेल ने कहा ''आज का दिन हमारे लिए शर्म, ग्लानि और दु:ख से भरा है। जिस पागल युवक ने यह सोचकर बापू की हत्या की होगी कि उसके इस कार्य से गांधीजी के उदात्त कार्य रुक जाएँगे, तो उसकी यह मान्यता पूरी तरह से गलत साबित होगी। गांधीजी हमारे हृदय में जीवित हैं और उनके अमर वचन हमें सदैव राह दिखाते रहेंगे।''
विश्व के कोने-कोने से श्रद्धांजलि का प्रवाह बह रहा था। इनमें अनेक जानी-मानी हस्तियाँ थीं, तो सामान्य लोग भी थे। सभी की भावना एक ही थी। ब्रिटिश सम्राट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली, पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल, फ्रांस के प्रधानमंत्री दविदोल, स्टेफर्ड क्रिप्स, जनरल स्मट्स और प्रसिद्ध उपन्यासकार पर्ल बक ने श्रद्धांजलि दी। अनेक देशों के कई अज्ञात व्यक्त्यिों ने एक दिन का उपवास रखकर श्रद्धांजलि देना तय किया। फ्रांस के समाजवादी नेता लियो ब्लूम ने सामान्य विश्व नागरिक की भावनाओं को अपने शब्दों में प्रस्तुत किया ''मैंने गांधी को देखा नहीं था, मुझे उनकी भाषा नहीं आती, मैंने उनके देश में कदम भी नहीं रखा है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मानो कोई अत्यंत करीबी रिश्तेदार को खोया है।'' संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने शोक संदेश में कहा ''गांधीजी गरीब से गरीब, निराश्रित और सर्वहारा वर्गों के सहारा थे।'' ब्रिटिश नाटककार जार्ज बर्नाड शॉ ने अपनी बात व्यंग्यात्मक रूप से कही ''संसार में 'अच्छा' आदमी बनना कितना खतरनाक है!'' श्री जिन्ना ने इस समय भी अपनी चिर-परिचित शैली में कहा ''गांधीजी हिंदू जाति के महान लोगों में से एक थे।''
महात्मा गांधी की मृतदेह के समीप गायी जाने वाली सर्वधर्म प्रार्थना के दो अंश उनके जीवन और मृत्यु के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर रहे थे। अलीगढ़ के ख्वाजा अब्दुल मजीद ने कुरान-ए-शरीफ की आयतें पढ़ीं- ''हे ईमानदारों, सब्र और खामोशी के साथ खुदा की मदद माँगो, खुदा की इबादत करते हुए मरने वाले को मरा हुआ न समझो। वे जिंदा हैं8च, जिसे आप नहीं समझ सकते। वक्त से पहले और खुदा की मर्जी के बगैर कोई नहीं मर सकता।'' हिंदू धर्म ग्रंथ गीता में भी यही बात कही गई है कि हर प्राणी जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है। अत: इसका दु:ख नहीं मनाना चाहिए। गांधीजी ने कहा था ''हमारी प्रजा सदियों से गुलामी में सड़ रही है, इस सड़ाँध से उपजने वाली गंदगी आज हमारे सामने बिखरी पड़ी है, जिसे हमें साफ करना है। इसके लिए पूरा जीवन भी कम है। हमारी शिक्षा यदि अलग तरीके से हुई होती, तो हम यूँ हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे होते। जब तक हम अपने काम से निराश हुए बिना उसमें पूरी तरह से लिप्त रहेंगे, तभी हमारा संघर्ष हमें नए युग के भारत में ले जाएगा।''

मेरा जीवन, मेरी वाणी बाकी सभी तो केवल है पानी
जिसमें सत्य की जय-जयकार, मेरा जीवन वही निशानी


उमाशंकर जोशी

जय हिंद

पी के लहरी

3 टिप्‍पणियां:

  1. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जयंती के अवसर पर श्रद्धा-सुमन अर्पित कर रहा हूँ . राष्ट्रपिता की चर्चा कर उनको याद करने के लिए आभार

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  2. जयंती नही मिश्र जी, पुण्यतिथी।

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