गुरुवार, 10 जून 2010

बेतहाशा काम, बेशुमार दाम, इससे हुई मौतें तमाम


डॉ. महेश परिमल
एयर इंडिया एक्सप्रेस की दुबई से मेंगलोर आने वाली फ्लाइट दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इसके कारणों की जाँच चल रही है। ब्लेक बॉक्स मिल गया है। अभी तक जो भी पता चला है, उससे यही लगता है कि यह दुर्घटना किसी तकनीकी खराबी के कारण नहीं हुई है। इसकी वजह पायलटों की भूल भी हो सकती है। वैसे भी सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि 78 प्रतिशत विमान दुर्घटनाएँ मानवीय भूल के कारण होती हैं। एयर इंडिया का किराया कम है, इसलिए लोग उस पर अधिक सफर करते हैं, पर वे भूल जाते हैं कि यही एयर इंडिया पायलटों से अधिक से अधिक काम लेता है, इसलिए थके-हारे पायलटों के हाथों में सैकड़ों लोगों की जान दे दी जाती है। निर्दोष यात्री यह नहीं समझ पाते कि पायलट को लगने वाला नींद का एक झोंका भी उनकी जान लेने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि एयर इंडिया पर सफर करने वाले सचमुच अधर में होते हैं। गंतव्य तक पहुँच गए, तो किस्मत, नहंीं तो मौत का साथ तो है ही।
एक बात तो स्पष्ट है कि एयर इंडिया एक्सप्रेस स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। इसलिए जितने भी हैं, उनसे अधिक से अधिक काम लिया जा रहा है। डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन(डीजीसी) द्वारा तय किया गया है कि केबिन क्रू(पायलट और एयर होस्टेस)से एक वर्ष में एक हजार घंटे से अधिक फ्लाइट न कराई जाए। एयर इंडिया के पास अभी 390 केबिन कू्र हैं, पर आवश्यकता 540 की है। इस कारण जो स्टाफ है, उन पर काम का अत्यधिक बोझ है। फ्लाइट नम्बर 812 का केबिन स्टाफ एक हजार घंटे की अपनी समय सीमा पूरी कर चुका था। उसके बाद भी वह काम कर रहा था, यह बात तो जाँच से ही सामने आएगी। एयरलाइंस मुनाफा कमाने के लिए लगातार गलतियाँ करती जा रही है। अधिकांश एयर लाइंस रात को विमान हेंगर में रखने के बजाए एक ही रात में विमान को रिटर्न के लिए विवश करते हैं। इसे तकनीकी भाषा में क्विक टर्न एराउंड (क्तञ्ज्र) फ्लाइट कहते हैं। दुबई से मेंगलोर की फ्लाइट भी इसी तरह की (क्तञ्ज्र) फ्लाइट थी। यह फ्लाइट 21 मई की रात 8 बजे कालिकट से दुबई जाने के लिए निकली थी और भारतीय समय के अनुसार रात 12 बजे दुबई पहुँची थी। फ्लाइट की लेडिंग तो हुई, उसके बाद कू्र वॉक एराउंड इंस्पेक्शन, फ्यूल चेक और वातावरण की जानकारी लेने में ही व्यस्त रहा। ये सारे कार्य पूरे होते-होते फ्लाइट की वापसी का वक्त हो गया। इस कारण केबिन कू्र आराम नहीं कर पाया। पूरी रात का जागरण करते हुए पायलट को मेंगलोर में लेडिंग के समय नींद का हल्का झोंका आ गया होगा। इसलिए उसके विमान ने रन वे ओवरशूट कर लिया, ऐसी संभावना है। रास्ते पर होने वाली विमान दुर्घटनाओं 50 प्रतिशत दुर्घटनाएँ रात दो बजे और सुबह 6 बजे ही होती हैं। फ्लाइट नम्बर 812 में ऐसा ही होने की संभावना है।
एयर इंडिया एक्सपे्रस ये एयर-इंडिया की सस्ती शाखा है। एयर इंडिया की अपेक्षा इसका किराया कम होता है। कम किराए के कारण लोग इसमें अधिक से अधिक यात्रा करते हैं। इस कारण पायलटों से अधिक से अधिक काम लिया जाता है। एयर इंडिया एक्सप्रेस के चीफ ऑफ ऑपरेशन केप्टन राजीव वाजपेयी ने तमाम केबिन कू्र को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा है, जिसमे कहा गया है कि कुछ स्टेशनों में स्टॉफ की कमी है, पर फ्लाइट की समय सीमा बढ़ न जाए, इसकी जवाबदारी प्रत्येक कर्मचारी की है। इस सूचना पर अमल न होता देख 6 मई को ही राजीव वाजपेयी ने सभी को एक कड़ा पत्र लिखा। सच्चाई तो यही है कि श्री वाजपेयी का यह रवैया ही काफी अन्यायपूर्ण था। यह जवाबदारी तो कर्मचारियों की नहीं, बल्कि एयरलाइंस की होनी चाहिए। एयर लाइंस के मैनेजर की तरफ से किसी पायलट को ड्यूटी पर आने का आदेश दिया जाता है, तो अपनी नौकरी बचाने के लिए पायलट इंकार नहीं करता। दूसरी ओर इस प्रकार की विमान दुर्घटना रोज-रोज तो होती नहीं, इसलिए स्टाफ की कमी की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस असावधानी के कारण थके-हारे पायलट की भूल के कारण 158 लोगों की जान चली गई। अब यह आवश्यक हो गया है कि देश की तमाम एयर लाइंस में फ्लाइट अवर्स की सीमा का कड़ाई से पालन हो।
मेंगलोर की विमान दुर्घटना हुई, उसके लिए एयर लाइंस की हार्ड लेडिंग को जवाबदार माना जा सकता है। एयरोडायनेमिक्स की भाषा में लेंडिंग दो प्रकार की होती है। हार्ड और साफ्ट लेङ्क्षडग। विमान का जितना वजन होता है, उतने बल के साथ जो हवाई पट्टी को छुए, तो उसका फोर्स 1-जी कहलाता है। यदि विमान अपने वजन की अपेक्षा दोगुने वजन के साथ लेंडिंग करता है, तो उसे हार्ड लेंडिंग कहते हैं। हार्ड लेंडिंग मेें विमान जब हवाई पट्टी को छूता है, तो यात्रियों को हल्का झटका लगता है। हार्ड लेंडिग कम लंबाई वाली हवाई पट्टी पर हो सकती है। यह सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित भी है। बोइंग कंपनी के विमान 2.5 जी तक हार्ड लेंडिंग को सहन कर सकते हैं। पर एयर लाइंस की नीति साफ्ट लेंडिंग की होती है। एयर इंडिया के अनुसार कोई पायलट जो 1.65 जी की अपेक्षा अधिक बल के साथ लेंडिंग करे, तो उसे इसका स्पष्टीकरण देना होता है। पायलट साफ्ट लेंडिंग करने के लिए हवाई पट्टी आ जाती है, तब कुछ सेकंड के लिए विमान को जमीन से स्पर्श कराने के बदले उसे हवा में तैरता रखते हैं। फ्लाइट नम्बर 812 के पायलट भी साफ्ट लेंडिंग करने की चिंता में विमान रन वे ओवरशूट हुआ हो, इसकी पूरी-पूरी संभावना है। पायलट जब ओवरशूट करते हैं, तब उन्हें डर होता है कि विमान निश्चित स्थान पर खड़ा नहीं हो पाएगा, तब उनके पास बचने का एक ही विकल्प होता है। जिसे गो एराउंड के रूप में जाना जाता है। गो एराउंड में हवाई पट्टी के पर उतरते समय विमान खड़े करना का खतरा दिखता है, तो फिर से टेक-ऑफ किया जाता है और एक चक्कर लगाकर सुरक्षित रूप से लेंडिंग की जाती है। यदि विमान को खड़े करने के लिए गेयर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, तो गो एराउंड का विकल्प अपनाकर दुर्घटना का टालने की पूरी कोशिश की जाती है। कई पायलट थकान के कारण जब गो एराउंड के विकल्प का प्रयोग करने लगे, तो इस पर कड़ी नीति बनाई गई। अब यदि कोई पायलट गो एराउंड करता है, तो उसे इसका स्पष्टिकरण देना पड़ता है। इस नीति के कारण विमान की लेंडिंग में यात्रियों की जान हमेशा जोखिम में रहती है। मेंगलोर में उतरने के पहले पायलट ने गो एराउंड विकल्प का उपयोग करने की कोशिश की थी, पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। ऐसा कहा जाता है।

भारत में पायलटों की कमी है, इसीलिए अब विदेशी पायलटों की नियुक्ति एयरलाइंस में होने लगी है। मेंगलोर फ्लाइट का पायलट जेड. ग्लुसिशिया सर्बिया का था। इन दिनों तमाम एयरलाइंस रशिया, चेकोस्लोवाकिया आदि यूरोपीय देशों से पायलटों का आयात कर रही हैं। यह सच है कि इन देशों के पायलट एक्सपर्ट हैं, पर वे भारत के वातावरण एवं हवाई पट्टियों से बिलकुल अनजान हैं। देश में इस समय करीब 600 विदेशी पायलट हैं। कई बार इनके उच्चारण को हवाई अड्डे पर तैनात ट्राफिक कंट्रोलर समझ नहीं पाते हैं। इनका वेतन भी भारतीय पायलटों की अपेक्षा काफी अधिक है। इसलिए इन पायलटों के खिलाफ भारतीय पायलटों में नाराजगी है। पहले यह तय किया गया था कि एक जुलाई से विदेशी पायलटों का उपयोग बंद कर दिया जाएगा, पर अब इसे एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिया गया है। सरकार भी इस दिशा में निष्क्रिय है। एक तो मानवीय भूल उस पर प्रशासनिक भूल, इन दोनों के कारण यात्रियों का जीवन ही अंधकारमय हो गया है।
एयरलाइंस के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। यात्रियों को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। एयरलाइंस अपना खर्च भी कम कर रही है। ताकि मुनाफा बढ़ाया जा सके। इस चक्कर में पायलटों का वेतन कम किया जा रहा है और उनके काम के घंटों में बढ़ोत्तरी की जा रही है। ऐसे में पायलटों में नशे की आदत बढ़ती जा रही है। घर-परिवार के कई दिनों तक दूर रहकर पायलट एयर होस्टेस से प्यार करने लगते हैं। इसमें कई बार उन्हें मानसिक तनाव से भी होकर गुजरना पड़ता है। इन हालात से गुजरते हुए यदि वे विमान का संचालन करते हैं, तो अपनी जिंदगी उन पर दाँव लगाने वाले यात्रियों की क्या हालत होती होगी, यह तो तमाम विमान हादसों से जाना ही जा सकता है।
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. Records of the conversation between the pilots and ATC has shown that co-pilot H S Ahluwalia more than once urged Captain Zlatko Glusica not to land and instead go around.
    Importantly, Ahluwalia’s warning had come well before the aircraft had descended below decision height – the critical level at or before which a final decision on whether to land or go around is to be taken – said highly placed sources. Ahluwalia, who was based in Mangalore and had landed there 66 times, voiced his concern when the aircraft was about 800 feet high, they added.
    “Ahluwalia warned at least twice against landing and urged his commander to go around. He had probably realized the aircraft was either too fast or too high on approach – indicating unstable approach – and would not be able to stop safely on the table-top Mangalore runway. In such situations, going around is a standard operating procedure which enables the aircraft to land safely in second attempt,” said a source at ATC. The aircraft (IX 812) was coming from Dubai.
    But the warning went in vain and the aircraft did not go around. It landed, only to crash and fall off the cliff from this table-top runway. The latest revelation only confirms Ahluwalia’s excellent knowledge of the local runway condition. The co-pilot lived in the city. He was due for commandership later in May.
    The International Civil Aviation Organisation (ICAO) has guidelines for cockpit resource management (CRM) that makes it mandatory for commanders to listen to their comparatively less experienced co-pilots as they may also have something valid to say. According to industry sources, CRM training is very strong in Jet Airways, where Ahluwalia had served earlier. “This is the backbone of Jet and this training would have made Ahluwalia call out very strongly,” said sources.

    http://www.bharatchronicle.com/mangalore-crash-commander-ignored-co-pilots-advice-6571

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