सोमवार, 30 मई 2011

बदलते परिवेश में बदलती पत्रकारिता



आज पत्रकारिता दिवस


अतुल कुमार शर्मा

समाज को जागरुक रखने में प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

प्रजातांत्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र के विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका जहां संवैधानिक स्तंभ हैं, वहीं पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। बात अगर भारतीय परिवेश में भारतीय पत्रकारिता की करें तो यह सशक्त भूमिका अदा कर रही है। आज कोई क्षेत्र पत्रकारिता की परिधि से बाहर नहीं है। आजादी पूर्व की पत्रकारिता व वर्तमान पत्रकारिता दोनों के स्वरूपों, कार्य प्रणाली व लक्ष्यों में भले ही परिवर्तन आ गया हो, लेकिन भूमिका दोनों ही समय में महत्वपूर्ण रही है। परिवर्तन की बयार दोनों ही कालों में बही है। यह भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र की व्यापक्ता व विकास का सूचक ही है कि स्वतंत्रता पूर्व चुनिंदा समाचार पत्रों पत्रिकाओं की संख्या आज पचास हजार का आंकड़ा पार गई है। साथ ही हर्ष का विषय है कि इनमें से बीस हजार से ज्यादा हिंदी भाषा के हैं। हिंदी प्रेमियों व पाठकों हेतु यह संतोष का विषय है। दर्जनों चौबीसों घंटों सातों दिनों चलने वाले हिंदी भाषी चैनलों ने तो सूचना तंत्र को तथा जनसंचार को एक नई परिभाषा प्रदान की है। जहां तक पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी पत्रकारिता के उदय का सवाल है तो यह उद्भव लगभग 185 वर्ष पुराना है। उदन्तमार्तण्ड हिंदी भाषा का वह पहला समाचार पत्र था जिसका प्रकाशन 1826 में कलकत्ता के कोल्हू टीला नामक स्थान से हुआ। इस प्रथम हिंदी भाषी समाचार पत्र के संपादक, मुद्रक व प्रकाशन थे पंडित युगल किशोर शुक्ल। हिंदी बहुल क्षेत्र में प्रकाशित होने वाला प्रथम समाचार पत्र बनारस अखबार था जो सन् 1845 में प्रारंभ हुआ। इसके पश्चात हिंदी पत्रकारिता के अनेक युग आए जिनमें भारतेंदु युग व द्विवेदी युग प्रमुख रहे हैं। स्वतंत्रता से पूर्व जहां ‘द ट्रिब्यून’, ‘द हिंदू’, मराठा, स्वदेशमिनम् व बंगाली जैसे विविध भाषी समाचार पत्रों की तूती बोलती थी, वहीं अर्जुन, सैनिक, प्रताप, नवयुग, इंदौर समाचार, आर्यव्रत व नई दुनिया जैसे हिप्र जातांत्रिक व्यवस्था में लोकतंत्र के विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका जहां संवैधानिक स्तंभ हैं, वहीं पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। बात अगर भारतीय परिवेश में भारतीय पत्रकारिता की करें तो यह सशक्त भूमिका अदा कर रही है। आज कोई क्षेत्र पत्रकारिता की परिधि से बाहर नहीं है। आजादी पूर्व की पत्रकारिता व वर्तमान पत्रकारिता दोनों के स्वरूपों, कार्य प्रणाली व लक्ष्यों में भले ही परिवर्तन आ गया हो, लेकिन भूमिका दोनों ही समय में महत्वपूर्ण रही है। परिवर्तन की बयार दोनों ही कालों में बही है। यह भारतीय पत्रकारिता के क्षेत्र की व्यापक्ता व विकास का सूचक ही है कि स्वतंत्रता पूर्व चुनिंदा समाचार पत्रों पत्रिकाओं की संख्या आज पचास हजार का आंकड़ा पार गई है। साथ ही हर्ष का विषय है कि इनमें से बीस हजार से ज्यादा हिंदी भाषा के हैं। हिंदी प्रेमियों व पाठकों हेतु यह संतोष का विषय है। दर्जनों चौबीसों घंटों सातों दिनों चलने वाले हिंदी भाषी चैनलों ने तो सूचना तंत्र को तथा जनसंचार को एक नई परिभाषा प्रदान की है। जहां तक पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी पत्रकारिता के उदय का सवाल है तो यह उद्भव लगभग 185 वर्ष पुराना है। उदन्तमार्तण्ड हिंदी भाषा का वह पहला समाचार पत्र था जिसका प्रकाशन 1826 में कलकत्ता के कोल्हू टीला नामक स्थान से हुआ। इस प्रथम हिंदी भाषी समाचार पत्र के संपादक, मुद्रक व प्रकाशन थे पंडित युगल किशोर शुक्ल। हिंदी बहुल क्षेत्र में प्रकाशित होने वाला प्रथम समाचार पत्र बनारस अखबार था जो सन् 1845 में प्रारंभ हुआ। इसके पश्चात हिंदी पत्रकारिता के अनेक युग आए जिनमें भारतेंदु युग व द्विवेदी युग प्रमुख रहे हैं।
अतुल कुमार शर्मा

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