शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

धनबल से प्राप्त बाहुबल का प्रतीक हैं रेड़डी बंधु

डॉ. महेश परिमल
कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। इस बार लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने पूरे सबूत के साथ अपनी रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि राज्य में हुए अवैध खनन एवं खनिजों की चोरी में 1827 करोड़ के घोटाले में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पूरी तरह से संलिप्त हैं। उनके साथ उनके चार सहयोगी मंत्री एवं 600 अधिकारी भी शामिल हैं। हालांकि रिपोर्ट अभी सरकार को नहीं सौंपी गई है, पर उसके लीक होने के कारण यह खुलासा हुआ। कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर यह आरोप है कि उन्होंने अपने परिवार को उपकृत करने के अलावा रेड्डी बंधुओं को अपनी मनमानी करने की पूरी छूट दी। इसलिए उनके खिलाफ जाँच कर उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। अब मुख्यमंत्री के पास इस्तीफा देने के सिवाय कोई चारा नहीं है। रेड़्डी बंधुओं ने बेल्लारी में जिस तरह से अपनी समानांतर सरकार चलाई है, उससे स्पष्ट है कि उन पर मुख्यमंत्री का वरदहस्त है।
जिस बेल्लारी में रेड्डी बंधु साइकिल में घूमा करते थे, आज उनका निजी हेलीकाप्टर है। कारों का लंबा काफिला है। राजमहल जैसा निवास स्थान है। सुरक्षा के लिए कमांडो की फौज है। इन्हें लेकर भाजपा में जबर्दस्त विरोधाभास है। कर्नाटक में भाजपा को जो सत्ता मिली है, उसमें रेड्डी बंधुओं की मनी और मसल पॉवर की अहम भूमिका है। भाजपा सत्ता छोड़ना नहीं चाहती। पार्टी में रेड्डी बंधुओं का विरोध है। यदि उन्हें पार्टी से निकालती है, तो पार्टी की छवि उज्‍जवल हो सकती है। इसके लिए सत्ता खोनी पड़ेगी, जो वह नहीं चाहती। पार्टी नेता सुषमा स्वराज की नजर 1914 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर है। इस चुनाव में यदि भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा बनता है, तो प्रजा कांग्रेस से विमुख हो सकती है। इन संयोगों में भाजपा के पास विकल्प के रूप में सत्ता हासिल करने का उत्तम अवसर है। भाजपा को यदि बहुमत मिलता है, तो सुषमा स्वराज का प्रधानमंत्री बन सकती हैं। इसलिए अपनी छवि को स्वच्छ रखने के लिए उन्होंने रेड्डी बंधुओं से मुँह फेर लिया है। दूसरी ओर पार्टी तो रेड्डी बंधुओं के साथ है ही। अब देखना यही है कि इन विरोधाभासों के चलते भाजपा किस मुँह से प्रजा के सामने जाकर वोट माँगेगी?
रेड्डी बंधुओं के आर्थिक साम्राज्य के बारे में लोगों को जानकर आश्चर्य हुआ ही होगा। माना यह जा रहा है कि पिछले 10 वर्षो में गैरकानूनी रूप से खनन के कारोबार में रेड्डी बंधुओं ने करीब 4,000 करोड़ रुपए कमाए हैं। दक्षिण भारत में कर्नाटक में जब भाजपा की पहली स्वतंत्र सरकार बनी, तो इसमें रेड्डी बंधुओं का विशेष हाथ था। पूरे दक्षिण भारत में रेड्डी बंधुओं की छाप माइनिंग माफिया के रूप में है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में असंवैधानिक रूप से खनिजों का खनन कर रेड्डी बंधुओं ने अरबों रुपए इकट्ठे किए हैं। इसी संपत्ति के कारण उनका बाहुबल इतना बढ़ गया कि वे कर्नाटक की राजनीति को अपनी जेब में रखते हैं। इसलिए मुख्यमंत्री येदियुरप्पा भी उनसे पंगा लेना नहीं चाहते। भाजपा भले ही भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर पूरे देश में आंदोलन करती रहे, पर कर्नाटक में इस मामले में उसकी फजीहत ही होती है। सभी जानते हैं कि यहाँ पर भाजपा भ्रष्टाचार का पालन-पोषण ही कर रही है। इसलिए भाजपा की छवि पूरे देश में बिगड़ रही है। सुषमा स्वराज ने जब इन रेड्डी बंधुओं के खिलाफ बोलना शुरू किया, तो पार्टी में अंतर्कलह शुरू हो गया। श्रीमती स्वराज रेड्डी बंधुओं को मंत्री पद दिए जाने की विरोधी थी, पर येदियुरप्पा और अरुण जेटली के कहने पर वह मान गईं। वह मान तो गईं, पर अरुण जेटली के सामने वह और अधिक आक्रामक हो गईं।
अब तो सभी को पता चल ही गया है कि आंध्र प्रदेश में एक मध्यम वर्गीय पुलिस कांस्टेबल के परिवार में रेड्डी बंधुओं का जन्म हुआ। उसी बेल्लारी ने इन रेड्डी बंधुओं को साइकिल पर घूमते हुए देखा है। आज से 13 वर्ष पूर्व 1998 में रेड्डी बंधुओं ने कर्नाटक के बेल्लारी एक फाइनेंस कंपनी की स्थापना की। यह कंपनी धन के दोगुना करने का लालच देती थी। इससे उन्होंने करोड़ों की ठगी की। 2003 में रेड्डी बंधुओं ने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में ओबुलापुरम माइनिंग कंपनी के नाम पर 50 लाख रुपए का निवेश कर खदान का धंधा शुरू किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. राजशेखर रेड्डी का उन पर वरदहस्त था। परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री के पुत्र राजशेखर रेड्डी उनके कारोबार में सहभागी थे। इसी समय चीन के बीजिंग में ओलम्पिक खेलों के लिए लोहे की आवश्यकता हुई, इसके लिए रेड्डी बंधु सामने आए और उन्होंने चीन को लोहे की भरपूर आपूर्ति की। इससे सन् 2003 से लेकर 2008 के बीच रेड्डी बंधुओं ने करीब 4000 करोड़ रुपए अर्जित किए। इन रेड्डी बंधुओं पर यह आरोप है कि इन्हें आंध्र प्रदेश में खनिज काम के लिए 450 हेक्टेयर जमीन दी गई थी, इसका लाभ उठाते हुए उन्होंने आंध्रप्रदेश के पड़ोस में स्थित कर्नाटक के बेल्लारी जिले के जंगल की हजारों फीट जमीन पर कब्जा जमा लिया। फिर वहाँ से खनिज निकालने का काम शुरू किया। बेल्लारी जिले की एक माइनिंग कंपनी एमएसपीएल ने सरकार को आगाह किया कि रेड्डी बंधुओं ने उनकी जमीन पर असंवैधानिक रूप से खनन काम कर रहे हैं। पर रेड्डी बंधुओं की राजनीतिक पहुँच के कारण कुछ नहीं हो पाया। जंगल विभाग भी किसी की नहीं सुनता।
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस सरकार का वरदहस्त रेड्डी बंधुओं पर था। सरकार की तरफ से उन्हें हड़प्पा जिले में 24 हजार करोड़ रुपए की लागत से स्टल प्लांट स्थापित करने के लिए 10 हजार एकड़ जमीन दी गई। यही नहीं इसके बाद फिर 4 जार एकड़ जमीन उन्हें एयरपोर्ट के लिए दी। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सीधे-सीधे आरोप लगाया है कि रेड्डी बंधुओं के कारोबार में जगनमोहन रेड्डी भी भागीदार हैं। रेड्डी बंधुओं को दी गई जमीन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी जनहित याचिका दायर की गई। इससे सुप्रीमकोर्ट ने माइनिंग की लीज के खिलाफ स्टे ऑर्डर दिया था, पर बाद में इसे रद्द कर दिया गया। रेड्डी बंधुओं पर यह भी आरोप है कि उन्होंने कर्नाटक राज्य की सीमा पर घुसपैठ कर वहाँ भी असंवैधानिक रूप से खनन कार्य किया है। इसके लिए उन्होंने दो राज्यों के बीच लगने वाले खंभों को भी उखाड़ दिया है। पहले रेड्डी बंधु कांग्रेस के समर्थक थे। पर 1999 जब सोनिया गांधी और सुषमा स्वराज ने बेल्लारी से लोकसभा चुनाव लड़ा, तब से वे भाजपा केम्प में शामिल हो गए। इस चुनाव में सोनिया गांधी चुनाव जीत गई। पर अमेठी से भी जीतने के कारण उन्हें बेल्लारी की सीट छोड़नी पड़ी। इसका पूरा लाभ उठाते हुए रेड्डी बंधुओं की ताकत का इस्तेमाल करते हुए बेल्लारी लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया।
रेड्डी बंधुओं ने अपनी आर्थिक ताकत का उपयोग राजकीय ताकत बढ़ाने के लिए किया। सन् 2000 में सोमशेखर रेड्डी बेल्लारी के नगर निगम चुनाव जीता। बेल्लारी की राजनीति में आगे बढ़ने के लिए उन्होंने बी. श्रीरामुलु नामक दलित राजनेता की सहायता ली। इन्हें लोग चौथा रेड्डी बंधु के नाम से जानते हैं। सन् 2004 में करुणकर रेड्डी लोकसभा चुनाव बेल्लारी की सीट से जीता। उधर श्रीरामुलु विधानसभा की सीट से जीत गए। जनार्दन रेड्डी विधानपरिषद का चुनाव जीतकर एकएलसी बन गए। इस समय कर्नाटक में भाजपा-जेडी(यु)की गठबंधन सरकार थी। श्रीरामुलु उसकअध्यक्ष बन गए। इस समय जनार्दन रेड्डी ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी पर 150 करोड़ रुपए की रिश्वत माँगने का आरोप लगाकर बवाल मचा दिया। इसके चलते रेड्डी बंधु पूरे देश में पहचाने जाने लगे। 2008 में जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए, तब रेड्डी बंधुओं ने बेल्लारी जिले की 9 में से 8 सीटों पर भाजपा को जीत दिलाई। इसके बाद सरकार बनाने के लिए उन्होंने निर्दलीय विधायकों के लिए खजाना ही खोल दिया। इसका असर यह हुआ कि दक्षिण भारत में भाजपा ने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा। इस दौरान रेड्डी बंधुओं की ताकत इतनी बढ़ी कि उन्होंने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को ब्लेकमेल करने लगे। 2009 में रेड्डी बंधुओं ने येदियुरप्पा से नाराज होकर उनकी सरकार ही गिराने की कोशिश की। तब सुषमा स्वराज ने बीच में आकर येदियुरप्पा की सरकार को बचा लिया। रेड्डी बंधुओं की राजनैतिक ताकत के कारण ही कर्नाटक मंत्रिमंडल में उन्हें तीन पद मिले हैं। जनार्दन रेड्डी, करुणाकर रेड्डी और श्रीरामुलु अभी मंत्री हैं। चौथे सोमशेखर कर्नाटक मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के अध्यक्ष हैं। 2008 में रेड्डी बंधुओं को पद दिए जाने का सुषमा स्वराज ने विरोध प्रकट किया था। इसके बाद भी येदियुरप्पा मंत्रिमंडल में रेड्डी बंधुओं का समावेश किया गया था। उस समय भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडु भी इसमें शामिल थे। हाल ही में वर्तमान भाजपाध्यक्ष नितीन गड़करी ने रेड्डी बंधुओं को मंत्रिमंडल में लिए जाने के येदियुरप्पा के प्रयासों का बचाव किया है।
इस तरह रेड्डी बंधुओं ने अपनी ताकत से कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की राजनीति में अपना दबदबा कायम किया है। कोई भी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ कितने ही नारे बुलंद कर ले, पर इन रेड्डी बंधुओं के आगे उनके नारों में वह दम नहीं रहता। अगर भाजपा स्वच्छ छवि बनाना चाहती है, तो उसे रेड्डी बंधुओं का मोह छोड़ना होगा? ऐसे में ये कांग्रेस के साथ मिल जाएँ, इसमें भी कोई शक नहीं है। अपने धन-बल के कारण वे राजनीति में कुंडली मारकर बैठ गए हैं। किसी पार्टी में वह दमखम नहीं है, जो इन्हें ललकार सके।
डॉ. महेश परिमल

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