शनिवार, 29 सितंबर 2012

दबाव बढ़ाने की राजनीति

डॉ. महेश परिमल
अजित का इस्तीफा स्वीकार होने के बाद काग्रेस-राकापा का असली द्वंद्व शुरू हो गया हैत्र अब अजित पवार विपक्ष और काग्रेस दोनों पर निशाना साधने के लिए स्वतंत्र होंगे। शरद पवार ने साफ कर दिया है कि अजित के इस्तीफे के बाद उपमुख्यमंत्री का पद किसी को नहीं दिया जाएगा। ऐसी स्थिति में अजित स्वयं ही रिमोट कंट्रोल से राकापा कोटे के मंत्रियों को निर्देश देने के लिए स्वतंत्र होंगे। साथ ही पूरे राज्य में घूम-घूमकर भविष्य में होनेवाले राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तैयारी करेंगे। ताकि अगले विधानसभा चुनाव के बाद वह सीधे मुख्यमंत्री पद की दावेदारी मजबूत कर सकें। पिछले वर्ष हुए राज्य के स्थानीय निकाय चुनावों में करीब-करीब हर स्तर पर काग्रेस के मुकाबले राकापा बीस रही है। अजीत पवार इसी मजबूती को विधानसभा चुनाव में भुनाकर मुख्यमंत्री पद हासिल करना चाहते हैं। इस बीच, राकापा के प्रदेश अध्यक्ष मधुकरराव पिचड़ ने पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा कि वे अजीत के साथ एकजुटता दिखाने के लिए प्रदर्शनों तथा बड़े पैमाने पर इस्तीफे से दूर रहे।
लगता है भ्रष्टाचार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को चैन से बठने नहीं देगा। टू जी स्पेक्ट्रम कांड से उबरे, तो कोयला घोटाले ने जकड़ लिया। बड़ी मुश्किल से उससे छुटकारा मिला, तो अब महाराष्ट्र की राजनीति डांवाडोल होने लगी है। इसमें भी कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे अजीत पवार द्वारा 72 हजार करोड़ का सिंचाई घोटाला किए जाने की खबर है। अब तक महाराष्ट्र सरकार में अपनी सहभागिता दिखाने वाले शरद पवार अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करते रहे। पर भतीजे अजीत पवार ने इस्तीफा देकर उनके सारे किए कराए पर पानी फेर दिया है। पवार के इस्तीफ से कांग्रेस-एनसीपी की युति सरकार के सामने संकट आ खड़ा हुआ है। इससे कांग्रेस की जो हालत होनी है, सो होगी ही, पर एनसीपी में जो भीतरी लड़ाई चल रही थी, वह बाहर आ गई है। आश्चर्य की बात यह है कि पवार ने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेजा है, पर एनसीपी के विधायकों ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष अजीत पवार को ही दिया है। यहां शरद पवार के खिलाफ खुली लड़ाई का शंखनाद हो चुका है। अब पवार के खिलाफ पवार और एनसीपी के खिलाफ कांग्रेस खड़ी हो गई है।
एक समय ऐसा भी था, जब शरद पवार ने भतीजे अजीत पवार की ऊंगली पकड़कर राजनीति के गलियारे में लाने की कोशिश की थी। शरद पवार की ही कृपा से अजित को उप मु यमंत्री की कुर्सी मिली थी। शरद पवार जब दिल्ली की राजनीति में उलझ गए, उस दौरान अजित पवार ने महाराष्ट्र की राजनीति में अपना महत्वपूर्ण किंतु मजबूत स्थान बना लिया। जब सिंचाई घोटाला सामने आया, तब शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया को मंत्रीपद दिलाने की तैयारी पूरी कर ली थी। वे चाहते थे कि उनकी बेटी के नेतृत्व में ही सन 2014 का चुनाव लड़ा जाए। वे अपनी बेटी को महराष्ट्र की मु यमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। पर अजीत पवार ने जो चाल चली, उससे शरद पवार का समीकरण बिगड़ गया। अजित ने सही समय पर सही चोट की, ताकि चाचा कुछ न कर पाएँ। अब हालत यह है कि वे पार्टी को बचाने में लगे हैं। पर पार्टी पर भतीजे का वर्चस्व कायम है।
अजीत पवार पर यह आरोप है कि उन्होंने सिंचाई मंत्री रहने के दौरान करीब 20 हजार करोड़ के सिंचाई ठेके अपने ही चहेतों को दिए। इस काम में नियमों को ताक पर रख दिया गया। सरकार द्वारा तैयार की गई सिंचाई योजनाओं का लाभ आज तक प्रदेश के किसानों को नहीं मिल पाया है। यही महाराष्ट्र है, जहाँ अभी तक सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। अजीत के बाद सिंचाई मंत्री का पद एनसीपी के ही सुनील तटकरे को दिया गया, इन पर भी भ्रष्टाचार के अनेक आरोप हैं। इस तरह से सिंचाई के नाम पर सरकार के 72 हजार करोड़ रुपए नेताओं और मंत्रियों की जेबों में चले गए। कांग्रेसी मु यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने एनसीपी पर लगाम कसने के लिए ही इस घोटाले पर श्वेतपत्र लाने की घोषणा की थी। लेकिन अजीत पवार सवा सेर निकले, उन्होंने चौहान को पाठ पढ़ाने के लिए ही विधायकों के सामूहिक इस्तीफे का नाटक रचा। इस समय महाराष्ट्र विधानसीा की कुल 288 सीटों में कांग्रेस 82 और एनसीपी 62 सीटों पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं। इन दोनों को मिलाकार कुल संख्या 144 होती है। इसके बाद कई छोटे-छोटे दलों ने भी सरकार को अपना समर्थन दे रखा है। यदि एनसीपी के विधायक सरकार को अपना समर्थन देना बंद कर दें, तो चौहान सरकार का गिरना तय है। अपना इस्तीफा देकर अजीत पवार सरकार को गिराना नहीं चाहते, बल्कि चौहान के कांधे पर बंदूक रखकर वे शरद पवार को सबक सिखाना चाहते हैं। इस तरह से वे शरद पवार पर दबाव बढ़ाना चाहते हैं। ताकि जो वे चाहते हैं, उसे पवार कर दें। वैसे चौहान पर भी भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। उन पर लगे आरोपों की जांच बहुत ही धीमी गति से चल रही है। ये जांच तेजी से हो, इसीलिए शरद पवार के कहने से ही अजित पवार ने इस्तीफा दिया था, पर अजित पवार ने इस्तीफे के बाद जो चाल चली, उसे शरद पवार हतप्रभ रह गए हैं।
अजित पवार उप मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ एनसीपी के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेज दिया। इसके बाद उन्होंने अपने बंगले पर एनसीपी के विधायकों की बैठक बुलाई। इस बैठक में एनसीपी के सभी विधायकों ने पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष मधुकर पिचड़ को अपना इस्तीफा भेज दिया। यह स्क्रिप्ट शरद पवार ने नहीं लिखी थी, बल्कि इसे लिखने वाले थे अजित पवार। शरद पवार उस समय कोलकाता में थे। उन्हें जब विधायकों के इस्तीफे की जानकारी मिली, तो उन्हें सहसा विश्वास नहीं हुआ। इस पर लीपापोती करते हुए उन्होंने यही कहा कि सभी विधायक अपना इस्तीफा वापस ले लेंगे। देखना यह है कि शरद पवार के इस फैसले को विधायक मानते हैं या नहीं? वैसे महाराष्ट्र एनसीपी के कई विधायक भी भ्रष्टाचार में गले तक डूबे हुए हैं। उनकी पहचान ही भ्रष्टाचारी के रूप में होने लगी है। सिंचाई मंत्री सुनील तटकर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच भी चल रही है। एनसीपी के ही दूसरे मंत्री छगन भुजबल के खिलाफ भी महाराष्ट्र भवन में हुए भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। परिवहन विभाग के मंत्री गुलाब राव देवकर तो जलगांव हाउसिंग घोटाले में जेल की सजा भी भोग चुके हैं।
एक बात सबको चौंका रही है कि एनसीपी के विधायकों ने अपने इस्तीफे शरद पवार को क्यों नहीं सौंपे? पार्टी की इकाई के अध्यक्ष को क्यों सौंपे? शरद पवार की योजना थी कि अजित पवार के इस्तीफे से वे केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे कि पृथ्वीराज चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए। इसके पहले भी उन्होंने दिल्ली में जो बलवा किया था, उस समय भी उनकी यही मांग थी, पर उनकी मांग को नहीं माना गया था। यदि चाचा-भतीजा मिल जाएं, तो वे दोनों पृथ्वीराज चौहान को परेशान कर सकते हैं। महाराष्ट्र के इस महाभारत में देखना यह है कि शरद पवार की नेतागिरी कसौटी पर कसी जाती है या नहीं? शरद पवार की नजरें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। इसके लिए वे समय-समय पर अपने होने का अहसास केंद्र सरकार को कराते रहते हैं। पर केंद्र उनकी एक नहीं सुनता। कांग्रेस के लिए पवार कभी विश्वसनीय नहीं रहे। अपने सर पर कई मंडलों, बोर्डो, समितियों का ताज रखने वाले शरद पवार एक तरफ केंद्र में स्वयं को बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री की जी हुजूरी में लगे रहते हैं, तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री बनने की कसक को अपने भीतर महसूस करते रहते हैँ। उनकी छवि एक बगावती के रूप में है। इंदिरा गांधी ने जब 1977 में बुरी तरह चुनाव हार गईं थी, तब उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया था। 1986 में वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद 1999 में उन्होंने एनसीपी नाम से नई पार्टी बना ली। कांग्रेस छोड़ने का मुख्य कारण उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल होना माना था। उन्हें आशा थी कि त्रिशंकु लोकसभा होने की स्थिति में वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में उभरकर आएंगे। पर यहां भी उनका समीकरण बिगड़ गया। कांग्रेस के दिवंगत नेता अजरुन सिंह ने तो स्पष्ट कह दिया था कि शरद पवार किसी भी रूप में कांग्रेस के विश्वसनीय नहीं हो सकते। वे किसी भी समय पार्टी के साथ धोखा कर सकते हैं। जब उन्होंने एनसीपी का गठन किया, तब भी उन्होंने कहा था कि यह उनकी आखिरी हरकत नहीं होगी। वे किसी न किसी तरह से कांग्रेस के साथ सौदेबाजी करेंगे ही। अजरुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है।
स्वार्थ की राजनीति क्या स्वरूप दिखाती है, यह जानना बाकी है, क्योंकि न तो चाचा विश्वसनीय हैं और न ही भतीजा। राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। यह सभी जानते हैं। आज कांग्रेस को शरद पवार भले ही अपने लग रहे हों, पर सच तो काफी पहले ही अजरुन सिंह ने बता दिया था। यह तो कांग्रेस की विवशता है कि शरद पवार को अपने साथ सहयोगी दलों के नेता के रूप में रखे हुए है। सहयोग के नाम पर उधर मुलायम सिंह यादव अपने समर्थन की कीमत वसूल रहे हैं। अब शरद पवार भी आगे आ जाएंगे। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने अभी तक उपमुख्यमंत्री अजित पवार का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने काग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाकर सभी को चुप रहने के निर्देश जरूर दिए, ताकि विवाद कोई नया रूप न ले। मुख्यमंत्री ने अपने पार्टी विधायकों को संकेत दिए कि अजीत पवार के फैसले पर दोनों दलों के शीर्ष नेता जो निर्णय करेंगे, वह उसी का पालन करेंगे।
डॉ. महेश परिमल

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