बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

केजरीवाल का अगला निशाना कौन ?

डॉ. महेश परिमल
अन्ना हजारे से अलग होकर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेसाध्यक्ष के दामाद राबर्ट बढेरा पर गलत तरीके से सम्पत्ति बटोरने का आरोप लगाकर कांग्रेसी खेमे में हलचल पैदा कर दी है। अब हर कांग्रेस अपने तरीके से इस आरोप को झुठलाने में लगा है। अभी तक किसी ने ऐसा बयान नहीं दिया है कि इसकी जांच की जाएगी। सभी उनकी ढाल बनने में लगे हैं। उधर भाजपा की हालत भी खराब ही है। वह इस पर कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि केजरीवाल के समर्थन में बोलकर वह अपनी फजीहत नहीं कराना चाहती। केजरीवाल के आरोपों के विरोध में माहौल बनना शुरू हो गया है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा के ही नेता शांता कुमार ने वढेरा की हिमाचल में सम्पत्ति के संबंध में केजरीवाल को दिए गए पत्र को लेकर अपनी आँख ही बंद कर ली है। वित्त मंत्री चिदम्बरम ने पहले ही वढेरा के खिलाफ किसी प्रकार की जांच से इंकार कर दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अवसर का लाभ न उठाते हुए राकांपा नेता शरद पवार बढेरा की मदद के लिए दौड़ पड़े हैं। उन्होंने राबर्ट को सलाह भी दे डाली कि वे केजरीवाल के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। इस पूरे मामले में आखिर भाजपा शांत क्यों है? यह एक रहस्य ही है।
भाजपा चुप क्यों है?
कांग्रेस के खिलाफ बोलने का कोई मौका न चूकने वाले गुजरात के नरेंद्र मोदी भी इस पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। अभी तक उन्होंने कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ खूब बोला है, पर इस मामले में उनकी खामोशी संदेह पैदा करती है। उधर वढेरा ने केजरीवाल पर आरोप लगाया है कि वे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए उन पर इस तरह का आरोप लगा रहे हैं। भाजपा को इस मामले में कुछ भी मसाला नहीं मिल रहा है। उसका रुख भ ी समझ में नहीं आ रहा है। एक तरफ वह विजय गोयल के नेतृत्व में दिल्ली में भारी-भरकम बिजली बिलों के खिलाफ आंदोलन चलाती है, तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल जब बिजली बिलों की होली जलाते हैं, तो उसमें भाग नहीं लेती। भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि केजरीवाल के पास कोई व्यवस्थित समूह नहीं है। उन्हें किसी पार्टी का समर्थन भी प्राप्त नहीं है। केजरीवाल के पास केवल छोटे शहरों के लोगों का ही समर्थन है। अगर केजरीवाल इतने ही सच्चे होते, तो अन्ना उन्हें क्यों छोड़ते? इस तरह के बयान देकर भाजपा नेता अपना पल्लू झाड़ रहे हैं। वैसे इसके पहले भी भाजपा ने राबर्ट वढेरा के मामले पर लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान वढेरा के डीएलएफ के साथ हुए सौदे के संबंध में चर्चा के लिए नोटिस दिया था। पर अंतिम क्षणों में अपनी यह मांग वापस ले ली थी। इससे भाजपा और आरएसएस के अनेक लोगों का दिल दुखा था। इस समय भी वढेरा का मामला गर्म है, तो भाजपा को इसका लाभ लेना चाहिए। एक समूह का कहना है कि यह सब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चल रही विधानसभा चुनाव को लेकर की गई तैयारी का एक भाग है। ताकि समय आने पर इसका लाभ उठाया जाए।
वढेरा के बाद कौन?
केजरीवाल द्वारा वढेरा की सम्पत्ति के मामले उठाए गए कदम से सभी दलों के नेताओं की नींद ही उड़ गई है। अभी दस अक्टूबर को एक और धमाका होने वाला है। इस प्रकरण से कांग्रेस को थोड़ी परेशानी हुई है। क्योंकि वढेरा की सम्पत्ति केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि राजस्थान और हरियाणा में भी है। प्रश्न स्वाभाविक है कि दूसरा धमाका क्या कांग्रेस या किसी अन्य दल को परेशानी में डाल सकता है? कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस बार केजरीवाल किसी भाजपा नेता को ही निशाना बना सकते हैं। केजरीवाल ने शुरू से ही कांग्रेस-भाजपा से एक निश्चित दूरी बनाकर रखी है।
वैसे कांग्रेसी नेताओं को ढाल बनने की अपेक्षा केजरीवाल के आरोपों की तह पर जाना चाहिए। आज उनके निशाने पर राबर्ट हैं, कल कोई और हो सकता है। तो क्या सबके लिए ढाल बनना आवश्यक है? आखिर कब तक लीपापोती की जाएगी। सत्ता बदलते देर नहीं लगती। इसलिए वढेरा की सम्पत्ति की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। आखिर यह कैसे हो गया कि पांच साल पहले जिसके पास केवल 50 लाख रुपए थे, आज उसके पास 300 करोड़ की सम्पत्ति है। अगर राबर्ट ने यह सम्पत्ति एक उद्यमशील युवा के रूप में अर्जित की है, तो कांग्रेस को इसका प्रचार करना चाहिए कि राबर्ट एक सफल उद्यमी है। उसने अपनी मेहनत से अपने कारोबार को बढ़ाया है? अगर वास्तव में ऐसा ही है, तो कांग्रेस इसे आज के युवाओं के सामने एक प्रेरणा के रूप में ले। उसाक उदाहरण अन्य युवाओं को दे। सभी नेता जब राबर्ट को बचाने में लग जाएं, तो यह समझना ही होगा कि मामला गड़बड़ है। वैसे भी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि इस मामले की जाँच निष्पक्ष होगी। हमारे देश में ऐसी कोई एजेंसी या संस्था नहीं है, जो निष्पक्ष जांच कर सके। सरकार तो कैग की रिपोर्ट को गलत ठहरा सकती है,तो एजेंसी की रिपोर्ट को भी गलत ठहराने में देर क्या लगती है? ऐसा होना नहीं चाहिए, पर जब सरकार हर मोर्चे पर विफल हो, तो जांच करवाने में कैसे सफल हो सकती है? इसलिए सरकार से किसी अच्छे की उम्मीद करना बेकार है। यदि केजरीवाल अपना अभियान जारी रखते हैं, तो धीरे-धीरे ही सही, लोग उनके साथ हो सकते हैं। सरकार की विफलता को सभी ने देख ही लिया है। अब यदि एक अभियान एक अच्छे उद्देश्य के लिए शुरू हुआ है, तो उसे पूरा होना ही है। अभी केजरीवाल के साथ भीड़ नहीं है। यह सच है, पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आज पूरा देश है। यदि केजरीवाल अपना लक्ष्य केवल भ्रष्टाचार पर ही केंद्रित करें, तो संभव है कल उनके समर्थक बढ़ सकते हैं। कोई अभियान अकेले ही शुरू होता है। लोग तो बाद में जुड़ते हैं।
  डॉ. महेश परिमल

Post Labels