बुधवार, 7 नवंबर 2012

ननद-भाभी की पदयात्रा से कांग्रेस की नींद हराम

डॉ. महेश परिमल
दो महिलाएं, रिश्ते में दोनों हैं ननद-भाभी। जब ये दोनों अपने ऐश्वर्यशाली जीवन को छोड़कर पदयात्रा पर निकलती हैं, तो जनसैलाब उमड़ पड़ता है, इन्हें देखने के लिए। इनमें से एक हैं, जगन रेड्डी की पत्नी और दूसरी महिला हैं जगन की बहन। जगन रेड्डी इस समय जेल में हैं। पति और भाई की छवि को चमकदार बनाने के लिए इन महिलाओं द्वारा की जा रही पदयात्रा कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाली है। पद यात्रा ने मिलने वाले जन समर्थन ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। वैसे भी कर्नाटक और आंध्र में कांग्रेस की हालत पतली है। वह अपनी छवि को साफ बनाने के लिए प्रयास करती रहती है। हाल में एस.एम. कृष्णा को विदेश मंत्री पद से हटाकर उन्हें पार्टी के लिए काम करने का आदेश दिया गया है। इससे कांग्रेस की स्थिति में कहां तक सुधार आ पाएगा, कहना मुश्किल है।
आंध्र प्रदेश के चेहरों को नए मंत्रिमंडल में लेकर और पूर्व विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा को कर्नाटक में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस ने एक कोशिश की है। आंध्र में जगन रेड्डी की बगावत ने कांग्रेस को हिलाकर रख दिया है। उधर कर्नाटक में येद्दियुरप्पा की बगावत में कांग्रेस अपना हित खोज रही है। आंध्र में जगन के परिवार वालों ने ही कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। जिस तरह से कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश को महत्व दिया है, उससे यही लगता है कि आंध्र में डूबती नैया को बचाने के लिए कांग्रेस हाथ-पैर मार रही है। कर्नाटक में कांग्रेस बहुत कुछ खो चुकी है। इसीलिए कृष्णा को भेजकर वह उसकी क्षतिपूर्ति करना चाहती है। उत्तर प्रदेश में मिली करारी हार का कारण कमजोर संगठन माना गया है। इसे स्वयं राहुल गांधी ने भी स्वीकार किया है। इसीलिए अब वह अपना पूरा जोर कर्नाटक पर लगा रही है, ताकि साख बची रहे। जब से येद्दियुरप्पा ने भाजपा से नाता तोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा की है, तब से कांग्रेस वहाँ अपनी सक्रियता दिखाने लगी है। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा भी  पुत्र कुमार स्वामी के साथ कांग्रेस को तोड़ने में पूरी ताकत लगा दी है।
एक वह समय भी था, जब राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री थे, तब कांग्रेस के नेता उनकी इजाजत के बिना पानी भी नहीं पीते थे। रेड्डी की यह पूरी कोशिश होती कि केंद्रीय स्तर पर भी आंध्र के किसी चेहरे को प्राथमिकता न दी जाए। वे मानते थे कि आंध्र में उनसे बड़ा कोई नेता है ही नहीं। इस बार मंत्रिमंडल फेरबदल में जयपाल रेड्डी से पेट्रोलियम मंत्रालय छीन लिया गया। राजशेखर होते, तो ऐसा कदापि न होता। उनकी अनुपस्थिति में जयपाल रेड्डी को कांग्रेस ने फालतू मान लिया है। वैसे जयपाल रेड्डी को शायद दबाव के चलते हटाया गया है। उनकी ईमानदारी शायद कांग्रेस को खटक रही थी। कांग्रेस की इसी नीति के कारण राजशेखर रेड्डी के वफादार कांग्रेस के प्रति कम और जगन रेड्डी के लिए अधिक वफादार माने जा रहे हैं। जगन रेड्डी की बहन शर्मिष्ठा और पत्नी भारती ने इस समय अपने ऐश्वर्यशाली जीवन को छोड़कर पदयात्रा शुरू की है। जिसके पति और भाई जेल में हो, उन्हें देखने के लिए लोग उमड़ रहे हैं। कई बार जनसैलाब को संभालना मुश्किल हो रहा है। जगन के प्रशंसकों की भीड़ ने कांग्रेस की नींद हराम कर दी है। राजशेखर रेड्डी ने भी इसी तरह पदयात्रा कर सत्ता प्राप्त की थी। आज इतिहास दोहराया जा रहा है।
आंध्र की सुलगती समस्या तेलंगाना आंदोलन है। कांग्रेस इससे जितना दूर भागने की कोशिश करती है, यह समस्या और भी विकराल होती जा रही है। हालात यही रहे, तो यहां से कांग्रेस का पत्ता कभी भी कट सकता है। राजशेखर की मौत के बाद ही सत्यम कंप्यूटर घोटाला सामने आया। अरबों रुपए की हेराफेरी इस घोटाले में हुई। अभी दो सप्ताह पहले ही सत्यम के डायरेक्टरों की एफडी सील की गई है। कांग्रेस की कमजोरी को देखते हुए भाजपा ने कर्नाटक से अपनी एंट्री ली। वहां वह सत्ता पर भी काबिज हो गई। भाजपा को भी इससे आश्चर्य हुआ। किंतु येद्दियुरप्पा द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से भाजपा की बड़ी बदनामी हुई। वैसे भाजपा ने पूरी कोशिश की, कि किसी भी तरह से येदि को बचा लिया जाए। पर पार्टी के लिए येदि काफी महंगे साबित हुए। अंतत: उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया। अब भाजपा को कर्नाटक में अपना भविष्य साफ नजर नहीं आ रहा है। कृष्णा के आने के बाद हालात बदलेंगे, ऐसा कांग्रेस सोचती है। पर कृष्णा के मन में विदेश मंत्रालय छिन जाने का गम है, लेकिन गांधी परिवार से उनकी नजदीकियों के चलते वे इस गम को भुलाकर पार्टी के लिए बेहतर काम करेंगे, ऐसा माना जा सकता है। मंत्रिमंडल में फेरबदल कर कांग्रेस ने आंध्र और कर्नाटक पर ध्यान केंद्रित किया है। यह एक चुनौतीपूर्ण समय है। 2014 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस चाहती है कि वहां से अधिक से अधिक सीटें मिलें। आंध्र में लोकसभा की 42 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं। दोनों मिलाकर 70 सीटें होती हैं। इसमें से कांग्रेस कितना हथिया सकती है, यही देखना है। एक समय ऐसा भी था, जब इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत थी। कांग्रेस ने कृष्णा को आंध्र और कर्नाटक में काम करने के लिए कहकर एक सराहनीय काम किया है। विदेश मंत्री रहने के दौरान उनके कार्य उतने सराहनीय नहीं रहे। परंतु गांधी परिवार के करीबी होने के कारण उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। अब देखना है कि कृष्ण की बांसुरी बजती है या नहीं। बांसुरी के बजने से सीटें अधिक से अधिक मिल जाएं, तो कांग्रेस का भला ही होगा। कृष्णा भी अपनी स्थिति मजबूत कर लेंगे। इसके लिए चुनाव की प्रतीक्षा करनी होगी।
  डॉ. महेश परिमल

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