सोमवार, 14 जनवरी 2013

अनुशासन सिखाती पतंग


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अनुशासन सिखाती पतंग
डॉ महेश परिमल
 सूर्य उत्तरायण हो गया है। गुजरात और राजस्थान में लोगों के अगले कुछ दिन घर की छत पर ही गुजरेंगे। लोगों में एक उत्साह, जोश, उमंग और स्फूर्ति होती है इन दिनों में। वैज्ञानिक कहते हैं, इस समय वातावरण में कुछ ऐसी ऊर्जा होती है जो आंखों को राहत पहंुचाती है। इसलिए लोग पतंग के बहाने आकाश को निहारते हैं। तब आंखों को ठंडक पहुंचती है। रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर हर किसी का मन ललचाता है। इस पतंग से हम अनुशासन का सबक सीख सकते हैं। पतंग के हर दांव-पेच का हमारे जीवन पर असर हो सकता है। पतंग को अनुशासन से जोड़कर देखें तो सब-कुछ समझ में आ जाएगा। अनुशासन कई लोगों को एकबारगी बंधन लगता है, पर सच यह है कि यह अपने आप में एक मुक्त व्यवस्था है जो जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए अत्यावश्यक है। बरसों बाद जब मां अपने बेटे से मिलती है तब उसे वह कसकर अपनी बाहों में भींच लेती है। क्या थोड़े ही पलों का वह बंधन सचमुच बंधन है? क्या आप बार-बार इस बंधन में नहीं बंधना चाहेंगे? यहां यह कहा जा सकता है कि बंधन में भी सुख है। यही अनुशासन है। अनुशासन को यदि दूसरे ढंग से समझना हो तो हमारे सामने पतंग का उदाहरण है। पतंग काफी ऊपर होती है। डोर ही होती है जो उसे संभालती है। बच्चा यदि पिता से कहे कि यह पतंग तो डोर से बंधी है, तब यह कैसे मुक्त आकाश में विचर सकती है? तब यदि पिता उस डोर को ही काट दे तो बच्चा कुछ ही देर में पतंग को जमीन पर पाता है। बच्चा जिस डोर को पतंग के लिए बंधन समझ रहा था, वह बंधन ही था, जो पतंग को ऊपर उड़ा रहा था। वही बंधन अनुशासन है। अनुशासन ही होते हैं, जिससे मानव आधार प्राप्त करता है। क्या आपने पतंग को आकाश में कभी मुक्त उड़ते देखा है? क्या कभी सोचा है कि इससे जीवन जीने की कला सीखी जा सकती है? गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। लोग पूरे दिन पतंग उड़ाते हैं। पतंग का यह त्योहार अपनी संस्कृति की विशेषता ही नहीं दिखलाता, बल्कि आदर्श व्यक्तित्व का संदेश भी देता है। पतंग का आशय है अपार संतुलन, नियमबद्ध नियंत्रण, सफल होने का आक्रामक जोश और परिस्थितियों के अनुकूल होने का अद्भुत समन्वय। वास्तव में देखा जाए तो गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में पतंग जैसा व्यक्तित्व उपयोगी बन सकता है। पतंग का ही दूसरा नाम है, मुक्त आकाश में विचरने की मानव की सुषुप्त इच्छाओं का प्रतीक। इसके साथ ही पतंग आक्रामक एवं जोशीले व्यक्तित्व की भी प्रतीक है। उसका कन्ना संतुलन की कला सिखाते हैं। कन्ना बांधने में थोड़ी-सी भी लापरवाही होने पर पतंग यहां-वहां डोलती है। यानी सही संतुलन नहीं रह पाता। इसी तरह हमारे व्यक्तित्व में भी संतुलन न होने पर जीवन गोते खाने लगता है। इसलिए व्यक्तित्व में संतुलन होना बेहद जरूरी है। आज के इस तेजी से बदलते आधुनिक परिवेश में प्रगति करनी है तो काम के प्रति समर्पण भावना भी उतनी ही आवश्यक है। साथ ही परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना और उसे निभाना भी जरूरी है। इन परिस्थितियों में नौकरी, व्यवसाय और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन रखना अतिआवश्यक हो जाता है, इसमें हुई थोड़ी-सी लापरवाही जिंदगी की पतंग को असंतुलित कर देती है। पतंग से सीखने लायक दूसरा गुण है नियंत्रण। खुले आकाश में उड़ने वाली पतंग को देखकर लगता है कि वह अपने-आप ही उड़ रही है, लेकिन उसका नियंत्रण डोर के माध्यम से उड़ाने वाले के हाथ में होता है। डोर का नियंत्रण ही पतंग को भटकने से रोकता है। हमारे व्यक्तित्व के लिए भी एक ऐसी ही लगाम की आवश्यकता होती है। निश्चित लक्ष्य से दूर ले जाने वाले अनेक प्रलोभनरूपी व्यवधान हमारे सामने आते हैं। ऐसी परिस्थितियों में स्व नियंत्रण और अनुशासन ही हमारे जीवन की पतंग को निरंकुश बनने से रोक सकता है। पतंग की उड़ान भी तभी सफल होती है, जब प्रतिस्पद्र्धा में दूसरी पतंग के साथ उसके पेच लड़ाए जाते हैं। पतंग के पेच में हार-जीत की जो भावना देखने में आती है, वह शायद ही कहीं और देखने को मिले। पतंग किसी की भी कटे, खुशी दोनों को ही होती है। जिसकी पतंग कटती है वह भी अपनी पतंग कटने का गम भूलकर दूसरी पतंग का कन्ना बांधने में लग जाता है। यही व्यावहारिकता जीवन में भी होनी चाहिए। अपना गम भूलकर दूसरों की खुशियों में शामिल होना और एक नए संकल्प के साथ जीवन की राहों पर चल निकलना ही इंसानियत है। पतंग का आकार भी उसे एक अलग ही महत्व देता है। हवा को तिरछा काटने वाली पतंग हवा के रुख के अनुसार खुद को संभालती है। आकाश में अपनी उड़ान को कायम रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहने वाली पतंग हवा की गति के साथ मुड़ने में जरा भी देर नहीं करती। हवा की दिशा बदलते ही वह भी अपनी दिशा तुरंत बदल देती है। इसी तरह मनुष्य को परिस्थितियों के अनुसार ढलना आना चाहिए। जो लोग खुद को समय और हालात के अनुसार नहीं ढाल पाते वे आउट डेटेड बन जाते हैं और हमेशा गतिशील रहने वाले एवरग्रीन होते हैं। यह सीख हमें पतंग से ही मिलती है। पतंग उड़ाने में सिद्धहस्त व्यक्ति यदि जीवन को भी उसी अंदाज में ले तो वह जीवन की राहों में सदैव अग्रसर होता चला जाएगा। बस थोड़ा-सा संभलने की बात है। जीवन की डोर यदि थोड़ी भी कमजोर हुई तो जीवन ही जोखिम में पड़ जाता है। इसीलिए पतंग उड़ाने वाले हमेशा खराब मांजे को अलग कर देते हैं, जिसका उपयोग कन्ना बांधने में किया जाता है। उस धागे से पेच नहीं लड़ाए जा सकते। ठीक उसी तरह जीवन में भी उसी पर विश्वास किया जा सकता है, जो सबल हो, जिस पर जीवन के अनुभवों का मांजा लगा हो, वही व्यक्ति हमारे काम आ सकता है। उसके अनुभवों से हमें सीखने को मिलता है। धागों में कहीं भी अवरोध या गांठ का होना पतंगबाजों को शोभा नहीं देता, क्योंकि यदि पेच लड़ाते समय प्रतिद्वंद्वी का धागा उस गांठ के पास आकर अटक गया तो समझो कट गई पतंग। पतंग का धागा वहीं रगड़ खाएगा और डोर काट देगा। जीवन भी यही कहता है। जीवन में मोहरूपी अवरोध आते ही रहते हैं, लेकिन सही इंसान इस मोह के पड़ाव पर नहीं ठहरता, वह सदैव मंजिल की ओर ही बढ़ता रहता है। चलना जीवन की कहानी, रुकना मौत की निशानी यही मूलवाक्य होना चाहिए। 25 या 50 पैसे से शुरू होकर पतंग हजारों रुपयों की भी मिलती है। इसी तरह जीवन के अनुभव भी हमें कहीं भी किसी भी रूप में मिल सकते हैं। छोटे से बच्चे भी प्रेरणा के स्त्रोत बन सकते हैं, तो झुर्रीदार चेहरा भी हमें अनुभवों के मोती बांटता मिलेगा। हमें इनसे कैसे और कब ये अनुभव लेने हैं, इस पर नजर रखनी होगी। वैसे ही जैसे आकाश में उड़ती पंतगों पर नजर रखते हैं कि कब और कौनसी पतंग से पेच लड़ाने हैं। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह से अनुभवों के मोतियों को समेटते हैं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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