शनिवार, 19 जनवरी 2013

राजनीति की एक और स्‍याह तस्‍वीर

दैनिक जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण में आज प्रकाशित मेरा आलेख 

राजनीति की एक और स्‍याह तस्‍वीर
महेश परिमल 
कबीर ने कहा है कि यदि आपके सामने गुरु और ईश्वर दोनों ही हों तो पहले गुरु को प्रणाम करें, क्योंकि गुरु की शिक्षा के कारण ही ईश्वर के दर्शन हुए हैं। अब चार बार मुख्यमंत्री रह चुके 78 वर्षीय ओम प्रकाश चौटाला को दिल्ली की एक कोर्ट ने हरियाणा में तीन हजार से अधिक शिक्षकों की अवैधानिक तरीके से भर्ती में दोषी पाया है। उनके साथ उनके पुत्र अजय चौटाला और अन्य 53 लोगों को इस आरोप में जेल भेजा गया है। इसमें प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार, चौटाला के भूतपूर्व विशेष अधिकारी एवं अन्य राजकीय सलाहकार भी शामिल हैं। आश्चर्य की बात यह है कि दोषी ठहराए गए लोगों में 16 महिलाएं भी हैं। यही नहीं, पिछले 12 सालों में इस मामले से संबंधित छह लोगों का देहांत भी हो चुका है। सरकार और गुरुओं की मिलीभगत से हुए इस गोरखधंधे को एक नया आयाम मिला है। चूंकि मामला पूर्व मुख्यमंत्री से जुड़ा है, इसलिए इसका फैसला इतनी देर से आया। इस तरह से नेताओं पर न जाने कितने आरोप होंगे, कितने ही मामले अदालत में चल भी रहे होंगे, उन सब पर एक नजर डाली जाए तो स्पष्ट होगा कि कई मामले जान-बूझकर लटकाए जा रहे हैं। इस मामले में नैतिकता के अध:पतन की पराकाष्ठा को ही पार कर लिया गया। नई पीढ़ी का भविष्य तैयार करने के लिए ऐसे लोगों का चयन किया गया, जिनका वर्तमान ही भ्रष्टाचार में पूरी तरह से डूबा हुआ है। जो लायक थे, उन्हें मौका नहीं मिला। जिन्होंने रिश्वत दी, वे सभी पिछले 12 सालों से नौकरी कर रहे हैं। यह मामला 1999 का है, जब चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। एक वर्ष के कार्यकाल में तीन हजार से अधिक जूनियर बेसिक टीचर्स की भर्ती की गई थी। बताया जा रहा है कि इसमें से हरेक प्रत्याशी से तीन से चार लाख रुपये की रिश्वत ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2003 में इस घोटाले की जांच के आदेश दिए थे। सीबीआइ ने 2008 में आरोप पत्र दाखिल किए। इस घोटाले के दौरान शिक्षा विभाग चौटाला के पास ही था। चौटाला ने शिक्षा निदेशक से कहा था कि वे साक्षात्कार की बोगस सूची तैयार करें और जिन्होंने रिश्वत दी है, उन्हें 20 में से 17 या 19 अंक दें। यह मामला तब बाहर आया, जब तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार एक आवेदन के साथ अदालत में पहुंचे और उन्होंने साक्षात्कार की मूल सूची प्रस्तुत की। सवाल यह उठता है कि संजीव कुमार जब स्वयं ही इस घोटाले में लिप्त हैं तो वह कोर्ट में क्यों गए? इस संबंध में एक अधिकारी ने यह खुलासा किया है कि संजीव कुमार को आशंका थी कि रिश्वत से मिलने वाली राशि का बंटवारा समान रूप से नहीं हुआ है। शिक्षकों की भर्ती में जिनका चयन नहीं हुआ है, वे भी संजीव कुमार को अपना समर्थन देंगे। ओमप्रकाश चौटाला उन्हीं देवीलाल के पुत्र हैं, जिनका नाम लेते ही हजारों वृद्ध और युवा झूम उठते हैं। वे भारतीय राजनीति के वरिष्ठ नेता, किसानों के मसीहा और हरियाणा के जननायक थे। भारतीय राजनीति के सामने उन्होंने अपना चरित्र प्रकट किया। वे अब भी प्रासंगिक हैं। वे दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और एक बार देश के उप-प्रधानमंत्री भी रहे। प्रधानमंत्री का पद उन्होंने यह कहकर त्याग दिया था कि देश के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजरता है। सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, बल्कि जनसेवा के लिए होती है। उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला पिता की विरासत एवं उनके गुणधर्मो को संभाल नहीं पाए। उनकी हरकतों को देखकर देवीलाल हमेशा उन्हें खुलेआम अनदेखा करते रहे। ओमप्रकाश चौटाला सोने की घडि़यों की तस्करी और भेंट में सोने की ईट स्वीकारने को लेकर विवाद में रहे। उन पर यह भी आरोप है कि रुचिका मामले में चौटाला ने हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी एसपीएस राठौड़ को बचाया था। चौटाला राजग और संप्रग सरकार में रह चुके हैं। अब वे कांग्रेस-भाजपा को सांपनाथ-नागनाथ कहते हैं। अब अगर देवीलाल के पौत्रों की बात करें तो सीबीआइ ने वर्ष 2006 में अजय-अभय के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दाखिल किया है। आरोप यह है कि दोनों ने चौटाला शासन के दौरान आय से अधिक 1467 करोड़ रुपये की संपत्ति हासिल की। दूसरी ओर अभय चौटाला के जबर्दस्ती इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन का अध्यक्ष बनने से काफी विवाद हुआ था। इसी तरह अजय चौटाला वर्ष 2000 में टेबल-टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बन बैठे। यह सब पिता के मुख्यमंत्रित्व काल में ही उनके लाडलों ने किया। ऐसा भी नहीं है कि पिता-पुत्र ने मिलकर केवल यही एक घोटाला किया है। उन्होंने न जाने कितने घोटाले किए होंगे, जो अभी तक प्रकाश में नहीं आए हैं। इस समय देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग सड़कों पर आ रहे हैं। अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, बाबा रामदेव आदि किसी न किसी रूप में लोगों की अगुवाई कर रहे हैं। राष्ट्रव्यापी आंदोलन हो रहे हैं। ऐसे में यह कहना मुनासिब होगा कि अन्ना हजारे के आंदोलन में ओम प्रकाश चौटाला भी शामिल हुए थे। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना परचम लहराया था। अब वही 12 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में तिहाड़ जेल के मेहमान बने हैं। ऐसे अनेक लोग हैं, जो आम जीवन में भ्रष्टाचार का खुले रूप विरोध करते हैं, पर भ्रष्टाचार के दलदल में पूरी तरह से सने हुए होते हैं। यह मामला इतनी देर से सामने आया, इससे यह कहा जा सकता है कि सरकार स्वयं इस तरह के मामलों को लटकाए रखने में दिलचस्पी लेती है। देश के भ्रष्ट नेता और नौकरशाह साठगांठ कर जिस तरह का खेल कर रहे हैं, वह देश के लिए कितना घातक है, यह इस मामले से स्पष्ट हो जाता है। सरकार इस मामले में गंभीर है, ऐसा नहीं लगता। सरकार पर पहले भी यह आरोप लग चुका है कि वह सीबीआइ का इस्तेमाल अपने हित में करती है। यह मामला 12 साल तक आखिर क्यों अटका रहा, इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं होगा। निश्चित रूप से ऐसे कई मामले होंगे, जो भ्रष्टाचार को ढंकने का काम कर रहे होंगे। भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ समय रहते फैसला नहीं आता तो यही समझना होगा कि सरकार उन्हें संरक्षण दे रही है। देर से आया फैसला किसी अन्याय से कम नहीं है। घोटालेबाज नेताओं के कामकाज में किसी प्रकार का फर्क अभी तक नहीं आया है। यह इस मामले ने बता दिया। अल्पमत वाली सरकार से भला ऐसी उम्मीद कैसे की जा सकती है? भयभीत सरकार, डरी-सहमी सरकार, अपनों से ही घिरी और अपनों में ही उलझी सरकार से किसी अच्छे की उम्मीद करना ही बेकार है।
 (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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