गुरुवार, 31 जनवरी 2013

कुंभ मेले के बहाने नारी और नदी की सुरक्षा पर चिंता

डॉ. महेश परिमल
हमारे देश में कुंभ मेले की परंपरा बरसों से चली आ रही है। 12 साल बाद कुंभ मेले का आयोजन प्रयाग में हा रहा है। इससे देश की आध्यात्मिक शक्ति को जानने का अवसर मिलता है। इसे समझने के लिए हजारों की संख्या में विदेशी भी शामिल होते हैं और स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। उत्तरायण यानी मकर संक्रांति से यह मेला शुरू हुआ है। प्रयाग इन दिनों श्रद्धा और आस्था की नगरी बन गई है। देश-विदेश से साधुओं का आगमन हुआ है। सभी गंगा नदी में स्नान कर पुण्य कमा रहे हैं। कुंभ में साधुओं की जो शाही सवारी निकलती है, उसे देखकर लोग दांतों तले ऊंगली दबा देते हैं। मशीनों से पुष्पवर्षा और आधुनिक बेंड बाजों की धमक से कुंभ की सवारी शोभित होती है। वैदिक मंत्रों के जाप आदि से पूरा शहर गुंजायमान हो रहा है। इस बार विभिन्न अखाड़ों से एक ओर देश की नारी की रक्षा पर चिंता की गई है, तो कुछ अखाड़ों से देश की नदियों पर भी चिंता व्यक्त की गई है। कुल 55 दिनों तक चलने वाले इस मेले में इस बार जो अनोखा हुआ है, वह यह कि अखाड़ा परिषद के बीच चलने वाला विवाद समाप्त हो गया है। मेले में लोगों की सुरक्षा के लिए  हेलीकाप्टर की व्यवस्था की गई है। मुफ्त इलाज और 24 घंटे तक रिवर्स एम्बुलेंस की सुविधा भी इस बार देखी गई है। कुंभ मेले में देश-विदेश से आए साधु-संत आकर्षण का केंद्र हैं। भारतीय संतों और योग गुरुओं के साथ विदेशी संत और महात्माओं का प्रवचन जारी है। इन प्रवचन सुनने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है। जो साधु विदेशी हैं, उन्होंने अपना भारतीय नाम धारण कर लिया है। इनमें से हेरिस नाम के साधु भी हैं, जो महर्षि महेश योगी के शिष्य हैं, उन्होंने अपना नाम कृष्णराम-गोपाल रखा है। सतुबा बाबा के शिष्य राबर्ट ने हरिहरानंद नाम धारण किया है।
प्राचीन काल में सप्तपुरी में एक नगरी प्रयाग के नाम से पहचानी जाती थी। प्रयाग का बहुत ही महत्व है। सभी तीर्थो में प्रयाग की गणना सर्वश्रेष्ठ तीर्थो में की जाती है। ब्रह्माजी ने यहीं अनेक यज्ञ किए हैं। यही त्रिवेणी स्नान होता है। यही अक्षय बड़ अतिप्राचीन है। प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। जब देव दानवों ने समुद्र मंथन किया, तब अंत में अमृतकुंभ प्राप्त होता है। कुंभ को विराट स्वरूप मानकर ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। अमृत कुंभ में 12 आदित्य,  12 राशियां, एकादश रुद्र, दस इंद्रियां, 12 महीने और वामन-वसु उसके अंदर निवास करते हैं। इंद्र का पुत्र जयंत जब इस कुंभ को लेकर भागा, तो देवता उसके पीछे भागे। अंत में वह पकड़ा गया, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर प्रकट हुए और असुरों को दिग्भ्रमित कर अमृत कुंभ को देवताओं के बीच बांट दिया। इस खींचतान में कुंभ चार स्थानों पर गिर गया। इन्हीं चार स्थानों पर आज कुंभ मेला लगता है। यही चारों स्थान हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन है। जहां हर बारह वर्षो में चैत्र में हरिद्वार, उसके बाद तीन वर्ष प्रयाग में माघ महीने में अर्ध कुंभ का आयोजन होता है। इस दौरान गुरु वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होता है। कुंभ मेला भरने का एक निश्चित समय भारतीय ग्रह गणित के आधार पर रखा जाता है। जिसमें सूर्य,चंद्र और गुरु का स्थान महत्व का है। जिस तरह से पृथ्वी के लिए सूर्य का स्थान महत्वपूर्ण है, पृथ्वी को सूर्य का परिभ्रमण करने में एक वर्ष यानी 365 दिन लगते हैं, उसी तरह गुरु को सूर्य का परिभ्रमण करने में 12 वर्ष लगते हैं। गुरु और सूर्य उपरोक्त नियमानुसार कुछ राशियों में होते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेला विश्व में सबसे बड़ा मेला माना जाता है। इस मेले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें एक करोड़ श्रद्धालु स्नान करते हैं।
महाकुंभ मेले का अध्ययन
हार्वर्ड युनिवर्सिटी महाकुंभ मेले का अध्ययन करेगी। ऐसा माना जाता है कि इस मेले में दुनिया भर में सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है। विभिन्न फैकल्टी और छात्रों का एक दल इलाहाबाद जाकर इस मेले के संचालन तंत्र और इसके अर्थशास्त्र के बारे में अध्ययन करेगा। इस धार्मिक आयोजन के दौरान जमा होने वाली भीड़ को भी अध्ययन की विषय-वस्तु बनाया जाएगा। हार्वर्ड के फैकल्टी ऑफ आटर्स एंड साइंसेज, स्कूल ऑफ डिजाइन, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, हार्वर्ड डिवाइनिटी स्कूल और हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के फैकल्टी और छात्र मैपिंग इंडियाज कुंभ मेला प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए इलाहाबाद जाएंगे। वे कुंभ मेले को लेकर विभिन्न शोध करेंगे, जिसमें प्रत्येक 12 वर्ष बाद विश्व भर से लाखों तीर्थयात्री आते हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से कहा गया है कि कुंभ मेले के लिए अस्थाई रूप से पॉप-अप मेगा सिटी का निर्माण किया गया है। करीब एक महीने तक चलने वाले इस धार्मिक आयोजन के दौरान तीर्थयात्री और पर्यटक यहां रुकेंगे। हार्वर्ड के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के सहायक निदेशक मीना हेवेट ने कहा, ऐसा पहली बार है जब हार्वर्ड इस प्रकार का अध्ययन कर रहा है। फैकल्टी और छात्र इस पर मिलकर काम करेंगे। कुंभ मेले के अध्ययन के लिए आने वाली टीम के संभावित सदस्य लोगन प्लास्टर ने कहा है कि हार्वर्ड की टीम इस बात का जवाब ढ़ूंढने का प्रयास करेगी कि इतना बड़ा आयोजन किस प्रकार संभव है। महाकुंभ में पौष पूर्णिमा पर 27 जनवरी को होने वाले शाही स्नान का शंकराचार्यों ने बहिष्कार किया था, पर अब उनमें ही विवाद गहराता जा रहा है। शंकराचार्यों ने गंगा के निर्मलीकरण के सवाल पर बहिष्कार किया था।   दोनों का कहना है कि सरकार ने महाकुंभ में गंगा की शुद्धता बनाए रखने का वादा किया था, लेकिन गंगा आज भी पहले जैसी ही मैली है। 
कुंभ मेले में इस बार नदियों की सुरक्षा ओर प्रदूषण से बचाने पर विशेष रूप से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां नदियों को माँ का स्थान दिया गया है। नदी को मां का स्थान देने की इस विचारधारा से प्रभावित होकर इटली, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, मलेशिया और चेक गणराज्य तथा दक्षिण अफ्रीका से बड़ी संख्या में युवाओं का आगमन सैलानियों के रूप में हुआ है। पिछले साल नवम्बर माह में आस्ट्रेलिया से एण्ड्रूज परिवार समेत भारत आए हैं। इलाहाबाद में रहकर एण्ड्रूज ने भारत की संस्कृति को अच्छी तरह से समझते हुए हिंदी भाषा सीखना शुरू किया। अब वे अच्छी तरह से हिंदी में लोगों से वार्तालाप कर रहे हैं। अब वह अपने दोस्तों और परिवारजनों को भी हिंदी सीखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एण्ड्रूज ने अपने साथियों के साथ एक ऐसी नाव तैयार की है, जिसमें वे लोगोंे को मुफ्त में गंगा नदी की सैर करवाते हैं। इसके साथ ही भारत की नदियों में फैले प्रदूषण के प्रति भी बहुत चिंतित हैं। आस्ट्रेलिया से आए ढिल्लन नामक पर्यावरणविद कहते हैं कि जिस तरह से गंगा नदी के तट सूख रहे हैं, उसी तरह से इस नदी में प्रदूषण बढ़ रहा है। इसके लिए भारतीय प्रजा को अब जागरूक होना होगा। नदी मानवजाति की धरोहर है, इसे बचाना हर नागरिक का कर्तव्य है। विदेशियों की इस गुहार को यदि भारतीय समझ जाएं, तो प्रयाग संगम में शुरू हुए इस कुंभ मेले में भारतीय संस्कृति-श्रद्धा और समस्याओं की समझ के लिए त्रिवेणी का संगम साबित होगा, ऐसा समझा जा सकता है।
  डॉ. महेश परिमल



Post Labels