गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

सृष्टि का यौवन है वसंत








सृष्टि का यौवन है वसंत
डॉ. महेश परिमल
प्रकृति का सबसे रमणीय रूप देखना हो, तो वसंत ऋतु को आत्मसात कर लो। इस समय प्रकृति में जो कुछ भी हो रहा है, उसे ध्यान से देखो। सोलह कलाओं से खिल उठने वाली प्रकृति, सौंदर्य लुटाने वाली प्रकृति सभी को लुभाती है। जिस तरह से हम प्रेम उत्सव मनाते हैं, ठीक उसी तरह प्रकृति भी अपना उत्सव मनाती है। प्रकृति के इसी उत्सव को हम वसंत कहते हैं। जो प्रकृति के साथ रहते हैं, वे भला वसंत को किस तरह से अनदेखा कर सकते हैं? उल्लास और उमंग का ही दूसरा नाम है वसंत ऋतु। वसंत यह तो सृष्टि का यौवन है और यौवन ही जीवन का वसंत है। वसंत यानी निसर्ग का छलकता वैभव। वसंत यानी जीवन खिलने का उत्सव। वसंत ऋतु यानी पेड़ों का श्रंगार। वसंत यानी नव पल्लवित, आम्रकुंजों की महक से सुवासित उल्लास और प्रसन्नता से छलकता प्रकृति का वातावरण। इसमें गूंजने वाली कोयल की कू-कू मन को आनंदविभोर कर देती है।
वसंत ऋतु यानी सभी तरह की समानता। इन दिनों कड़कड़ाती ठंड नहीं लगती। पसीना लाने वाली गर्मी भी नहीं होती। सभी को प्यारा लगे, वैसा मौसम। जीवन का वसंत खिलता है, तो जीवन में आने वाले सुख-दु:ख, जय-पराजय, यश-अपयश आदि में भी समानता रखनी चाहिए। जिस तरह से मौसम में तब्दीली देखी जाती है, ठीक उसी तरह से मानव जीवन में भी एक मौसम पतझड़ का आता है। इस दौरान यदि अपने इष्ट देवता पर दृढ़ता से विश्वास रखा जाए, तो हमारा जीवन भी खुशियों से खिल उठेगा। आशा का दीप सतत प्रज्ज्वलित रखने की सूचना वसंत ही देता है। हमारा जीवन हरियाली से युक्त होगा, इस गारंटी देता है वसंत। वसंत ऋतु एक वेदकालीन पर्व है।
वसंत यानी प्रेम, रोमांस और उन्माद का समय, क्योंकि गहरे प्रेम की शर्मीली अभिव्यक्ति यानी वसंत। प्यार की यादों की अभिव्यक्ति यानी वसंत। कहीं मां का वात्सल्य यानी प्रेम, तो कहीं समुद्री किनारे प्रेयसी के साथ हाथ में हाथ डालकर सब कुछ भूलकर बिताए गए पलों की जुगाली यानी वसंत। कहीं सब कुछ भूलकर भक्त की नवधा भक्ति यानी वसंत। इन सभी स्थानों में जहां प्रेम है, वहां है वसंत। वसंत कोई भौतिक वस्तु नहीं है, पर एक  हृदय से महसूस किया जाने वाला एक अहसास है। समस्त जड़-चेतन प्रकृति में प्राण फूंकते हैं, इससे प्रकृति स्वयं ही नृत्य करने लगती है। जीवन में जिस तरह से किशोरावस्था के बाद यौवन आता है, ठीक उसी तरह से वसंत में प्रकृति पर यौवन झूमने लगता है। जब किसी को प्रेयसी की स्वीकारोक्ति मिलती है, तब उसके जीवन में वसंत का आगमन होता है, ठीक उसी तरह से वसंत में प्रकृति चारों तरफ से खिल उठती है।प्रकृति नवोदित बन जाती है। पेड़ों पर नई कोंपलें आने लगती हैं। नए पत्तों से पूरा पेड़ ही लहलहाने लगता है, ये नयनाभिराम दृश्य मन को मोह लेता है। प्रकृति नई दुल्हन की तरह पूरे श्रंगार के साथ हमारे सामने होती है। इस दौरान मिलने वाले आनंद और उत्साह को किसी ने नापा नहीं जा सकता। प्रकृति के इस अनुपम उपहार को निहारने के लिए हम भला किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं?
इस ऋतु में आकाश साफ होता है। बादलों की अनुपस्थिति होती है। इसलिए रात में तारों का प्रकाश पृथ्वी पर सीधे आता है। दिन में धूप भी सुहानी लगती है। इस समय हवा में ही पागलपन भरा होता है। बातें प्रेम की ही अधिक होती है। प्रेमियों के मिलन का स्वागत पूरी प्रकृति करती है। फूल अपनी हंसी देते हैं। कोयल के कंठ से प्रेम की बोली निकलती है। फूलों की सुवास चारों और फैल जाती है। तालाब-सरोवर कमल के फूलों से ढंक जाते हैं। रात में  कमल के ये फूलं चंद्रमा की किरणों और भी प्यारे दिखाई देते हैं। खेतों में सरसों के फूलों को देखकर लगता है कि प्रकृति ने इन खेतों पर पीली चादर बिछा दी हो। इस ऋतु में पीले रंग का बहुत ही महत्व है। इस समय सभी को अपने प्रिय की याद आती ह। वे उससे मिलने को आतुर दिखाई देते हैं। आनंद, उत्साह, स्फूर्ति इस ऋतु की देन है। पीला रंग ज्ञान का प्रतीक रूप है। ज्ञान से पवित्र कुछ भी नही है। पीला वस्त्र धारण करने के पीछे यही उद्देश्य है कि ऊर्जा हमारी बुद्धि में प्रकट हो। इस ऋतु में चंद्रमा को अपार बल प्राप्त होता है। चंद्र मन का कारक देव है। इसी कारण इस ऋतु को मधु ऋतु भी कहा जाता है, क्योंकि इस ऋतु में मधुरता का प्रसार होता है।
इस ऋतु को जीव और ईश्वर के मिलन की ऋतु कहा जाता है। शारदा पूजन से बुद्धि पवित्र होती है, उससे जीव ही पवित्र हो जाता है। यह आदान-प्रदान की ऋतु है। इस ऋतु का एक ही संदेश है-आशा के सहारे समदृष्टि से प्रकृति की गोद में खेलते-खेलते परमात्मा द्वारा की गई कृपा का सदुपयोग करने से जीवन का वसंत खिल उठेगा। वसंत के आगमन से पृथ्वी का रस वृक्षों की शाखाओं में फैल जाता है, तो फिर हमारे हृदय में प्रेम की उष्मा भी उछलेगी। यदि हम वसंत के आगमन की प्रतीक्षा करते रहेंगे, तो वसंत में जो सत्य है,वही वसंत का मन-वचन एवं कर्म से स्वागत कर सकता है।. अब वसंत को जरा हटके विज्ञान की दृष्टि से देखें। वसंत उन्माद का दूसरा नाम है। प्रकृति नया चोला पहनती है। हवा में एक तरह की ऊर्जा बहती है। युवा में इसे उन्माद के रूप में देखा जा सकता है। इस समय मानव मस्तिष्क में फिरोटीन नामक द्रव्य का स्तर कम-ज्यादा होता है। इस प्रक्रिया से ही उन्माद पैदा होता है। रोमांस को गति मिलती है।
जिस तरह से वसंत ऋतु में आम की बौर आती है, उसी तरह वसंत में उन्माद का आना स्वाभाविक है। शास्त्रों में भी लिखा है कि आम के पेड़ों पर बौर आने से मस्तिष्क हिलोरें लेने लगता है। शरीर में ऋतु के अनुसार बायोकेमेस्ट्री बदलती है। वसंत ऋतुओं का राजा होने के कारण इस दौरान मानव का मूड सबसे बेहतर होता है। प्रकृति भी इस समय नव सृजन में लग जाती है। मानव मस्तिष्क का भी नवसर्जन होता है। इस समय कोई भी व्यक्ति प्रेम में पड़ सकता है। उसमें उन्माद पैदा होता है। वह रोमांटिक होने लगता है। कई लोग इसकी अधिकता के कारण मेनिया डीसीज का शिकार हो जाते हैं। अब से एक महीने तक समय पूरे वर्ष के सर्वश्रेष्ठ महीनों में से एक होगा। टेसू के फूलों को देखकर निराश हृदय में आशा का संचार होगा। अब पूरे रास्तों पर लाल, पीले टेसू के फूलों से लबालब दिखाई देंगे। सभी प्राणियों में मनुष्यों में एक अलग ही तरह की खुशी दिखाई देगी। तो आओ, वसंत के इस झूले में झूलने की कोशिश करें। प्रकृति का खुले हृदय से स्वागत करें। इससे खुशियों के रंगों में ेजीना सीखें। प्रृति का भरपूर आनंद लेकर कहें, स्वागत वसंत।
  डॉ. महेश परिमल
 

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