मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

जेपीसी पर सरकार फिर मुश्किल में

डॉ. महेश परिमल
जेपीसी रिपोर्ट सरकार के लिए आफत की पुड़िया
जेपीसी और दिल्ली में हुए मासूम के साथ दुष्कर्म के खिलाफ सरकार से मोर्चा लेने के लिए इस बार विपक्ष की तैयारी पूरी है। इस बार वह सरकार को पूरी तरह से नकारा बनाने के लिए कृतसंकल्प है। इसके पहले तमाम सत्रों में विपक्ष ने वाकआउट का ही सहारा लिया। लेकिन इस बार विपक्ष ने तय कर लिया है कि सरकार से हर प्रश्न का उत्तर लेकर ही रहेंगे। इसलिए सरकार इस बार घिर गई है। कई सवालों के जवाब उसके पास नहीं हैं। कई बार जवाब वह गोलमोल देती है। आगामी चुनाव को देखते हुए विपक्ष ने अपनी तैयारी की है। वह सरकार को झुकाने में किसी तरह से कसर बाकी नहीं रखना चाहता। सरकार इस बार भी लाचार ही नजर आएगी।
1.76 लाख करोड़ रुपए के टू जी घोटाले की जांच का पहाड़ खोदकर जेपीसी ने एक ऐसा चूहा बाहर निकाला है, जिससे सभी वाकिफ थे। जेपीसी की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि इस घोटाले में न तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का और न ही गृह मंत्री पी.चिदम्बरम की कोई भूमिका नहीं है। रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने के पहले मीडिया में लीक कर देना किस ओर संकेत करता है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है। जेपीसी एक तरह से सरकारी तंत्र बनकर रह गया है। जेपीसी के गठन के पहले ये भरोसा दिलाया गया था कि एक ईमानदार रिपोर्ट सामने आएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समिति ने न तो प्रधानमंत्री को बुलाया और न ही गृहमंत्री को। यही नहीं समिति में अपनी बात रखने के लिए ए. राजा ने कई बार दरख्वास्त की, पर उन्हें भी नहीं बुलाया गया। यह भी भला कैसी समिति, जो आरोपी से ही डर कर भाग रही है। जिस पर आरोप है, उससे पूछताछ नहीं कर पा रही है। एक तरह से यह रिपोर्ट एक सरकारी मखौल बनकर रह गई है। निश्चित रूप से यह मामला अब संसद के ग्रीष्मकालीन सत्र में उठाया जाएगा, तो यह सत्र भी हंगामेदार होगा, इस पर कोई दो मत नहीं। इस बार विपक्ष के पास जेपीसी की रिपोर्ट के अलावा दिल्ली में मासूम के साथ हुए दुष्कर्म में दिल्ली पुलिस की भूमिका को लेकर भी संसद के सत्र को गर्म कर देगा। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि जेपीसी के अध्यक्ष पी.सी. चाको ने एक तरह से सरकारी एजेंटा की भूमिका ही निभाई है। वे शायद यह भूल गए हैं कि उन्होंने रिपोर्ट नहीं दी है, बल्कि आफत की पुड़िया दे दी है। जो सरकार को मुश्किल में ही डालेगी।
इस रिपोर्ट के पहले उन तथ्यों पर नजर डाल लिया जाए, जिसमें मुख्य आरोपी ए राजा बार-बार कह रहे हैं कि इस घोटाले की पूरी जानकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को थी। इसका सबूत देते हुए उन्होंने वह पत्र भी समिति के सामने रखा, जिसमें उन्होंने इस घोटाले की पूरी जानकारी का जिक्र है। यह पत्र 2 नवम्बर 2007 को लिखा गया था।
उन्होंने जेपीसी को यह भी बताया कि 2001 के भाव से स्पेक्ट्रम की नीलामी 2007 करने का निर्णय तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की सहमति के बाद ही लिया गया था। राजा के 17 पन्नों के बयान की पूरी तरह से उपेक्षा कर जेपीसी ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को क्लिन चिट देकर विपक्ष को छेड़ दिया है। जेपीसी ने जो रिपोर्ट तैयार की है, वह संसदीस समिति की रिपोर्ट न होकर कांग्रेस का मुखपत्र बनकर सामने आई है। इस रिपोर्ट में केग द्वारा दिए गए 1.75 लाख रुपए के आंकड़े को भी अनदेखा किया गया है। इसके बदले में 2 जी घोटाले की पूरी जिम्मेदारी सरकार पर ढोल देने की कोशिश की जा रही है। जानकारी के मुताबिक सन 1999 में वाजपेयी सरकार के गलत निर्णय के कारण 40 हजार करोड़ का नुकसान हुआ थ। इसके लिए तत्कालीन टेलिकॉम मंत्री स्व.प्रमोद महाजन को जवाबदार ठहराया गया है।
जेपीसी के सामने भूतपूर्व केबिनेट मंत्री के.एम. चंद्रशेखर ने भी अपना पक्ष रखा। इसमें स्पष्ट बताया गया है कि उन्होंने इस संबंध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चेताया था कि टेलिकॉम लायसेंस के बँटवारे में देश को 30 हजार करोड़ का नुकसान हो सकता है। उनकी इस सलाह को अनदेखा किया गया।
केंद्र सरकार द्वारा कांग्रेस सांसद पी.सी.चाको की मध्यस्थता में जो संसदीय समिति बनाई गई है,उसमें कांग्रेस के 12 एवं अन्य दलों के 18 सदस्यों को मिलाकर कुल 30 सदस्य हैं। इसके पहले तृणमूल कांग्रेस और डीएमके के प्रतिनिधि सरकार में थे, इससे जेपीसी में उनका बहुमत था। अब जेपीसी में कांग्रेस के केवल 12 सांसद ही रह गए हैं। समाजवादी पार्टी और बसपा के सांसद कांग्रेस को समर्थन दें, तो उनके प्रतिनिधियों की संख्या 14 से ऊपर पहुंच जाती है। बाकी के 16 सांसद अभी सरकार के खिलाफ हैं। इसमें भाजपा, तृणमूल कांग्रेस और डीएमके का समावेश होता है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सबसे अधिक यदि किसी दल ने सहन किया है, तो वह है डीएमके। इसलिए जेपीसी की रिपोर्ट का सबसे अधिक विरोध यही दल करेगा। इन हालात में 25 अप्रैल को होने वाली जेपीसी की बैठक भी निश्चित रूप से हंगामापूर्ण होगी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता। यदि विपक्ष जेपीसी की रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर देता है, तो सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। सरकार दबाव में भी आ सकती है।
सीबीआई ने टेलिकॉम घोटोले में ए. राजा के साथ डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि की पुत्री कनिमोजी को भी आरोपी बनाया था। करुणानिधि के अथक प्रयासों के बाद भी 2011 में कनिमोजी को 190 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। अब डीएमके ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है, तो सीबीआई कनिमोजी को फिर से सीखचों के पीछे धकेलने की तैयारी में है। कनिमोजी के खिलाफ एंफोर्समेंट डायरेक्टर ने भी मनी लांडरिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है। कनिमोजी पर यह आरोप है कि उनके संचालन में क्लाईग्नर टीवी को स्वान टेलिकॉम द्वारा 209 करोड़ रुपए की रिश्वत विदेशी बैंक के खाते में डालकर दी गई थी। इस मामले में कनिमोजी के खिलाफ जब आरोप पत्र फाइल किया जाएगा, तब उनकी धरपकड़ हो सकती है। कनिमोजी की धरपकड़ होने के बाद एंफोर्समेंट के अन्य डायरेक्टर भी उनकी सम्पत्ति में दखलंदाजी कर सकते हैं।
जेपीसी अब सभी को यह समझाने में लगी है कि 2 जी घोटाले में 1.76 लाख का नुकसान होने के आंकड़े ही झूठे हैं। यदि समिति की मानें, तो देश में इस तरह को कोई घोटाला हुआ ही नहीं है। यदि हुआ भी है, तो इसके लिए देश के प्रधानमंत्री और तात्कालीन वित्त मंत्री किसी भी रूप में दोषी नहीं हैं। वैसे तूणमूल और डीएमके द्वारा सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण सरकार मुश्किल में है। मुलायम और मायावती कभी भी सरकार गिराने में सक्षम हैं। इन परिस्थितियों में सरकार ने सीबीआई से सुप्रीमकोर्ट में झूठा शपथपत्र दाखिल करवाने का  विवाद सामने लाया है। भाजपा नेता और समिति के सदस्य यशवंत सिन्हा ने पीसी चाको पर नैतिकता ताक पर रखने का आरोप लगाया है। सीपीआई नेता गुरुदास दास गुप्ता की भी तीखी प्रतिRिया आई है। इसके बाद जेपीसी की रिपोर्ट एकपक्षीय होना भी सिद्ध हो गया है। इन सारे तथ्यों से इस बार विपक्ष मजबूत दिखाई दे रहा है और सरकार लाचार। विपक्ष के इस हमले को सरकार किस तरह से झेल पाती है और स्वयं को बचा पाती है, यह देखना है। यह भी हो सकता है कि इस सत्र के अंत तक सरकार का पतन भी हो जाए और लोकसभा चुनाव की तारीखें ही घोषित हो जाएँ। जिस तरह 2-जी पर बनी इस जेपीसी ने काम काज किया है और नतीजे निकाले हैं, उससे संयुक्त संसदीय समितियों के गठन के औचित्य पर सवाल खड़े हो गए हैं।
   डॉ. महेश परिमल

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