सोमवार, 18 नवंबर 2013

अलविदा :क्रिकेट के वामन अवतार

डॉ. महेश परिमल
सचिन क्रिकेट से आउट हो गए, पर भारतीयों के दिलों से कभी आउट नहीं हो सकते। वे नाबाद हैं, देश के लिए, पूरे विश्व के लिए। एक ऐसा शख्स, जो क्रिकेट से बेइंतहा प्यार करता है। अपने विदाई भाषण में एक एक करके अपने सभी अपनों को याद करता है। पिच को प्रणाम करता है, भीगी आंखों से उस स्थान से विदा लेता है। सभी प्रशंसकों का शुक्रिया अदा करता है। ऐसे महान व्यकित के लिए उपमाएं कम हो जाती हैं। शब्द साथ नहीं देते। आंखें बार-बार भीग जाती है। क्या कहें, इस इंसान को? जो न तो अपनी माटी को भूलता है, न ही अपनों को। इतना विनम्र, इतना सहज खिलाड़ी अभी तक नहीं देखा गया। इसकी लोकप्रियता की तुलना केवल महात्मा गांधी से ही की जा सकती है। जिसके एक इशारे पर लोग देश के लिए कुर्बान होने के लिए तैयार हो जाते थे। आज सचिन ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है, पर सच कहें, तो वे क्रिकेट से अलग हटकर कुछ सोच भी नहीं सकते। क्रिकेट उनकी रगों में बसा है। क्रिकेट के लिए वे अपनी कौन सी भूमिका चुनते हैं, यही देखना है।
सचिन तेंदुलकर के बारे में बात करनी हो, तो सभी सुपरलेटिव (श्रेष्ठतावाचक) शब्दोंे की कमी पड़ जाती है। मुम्बई के एयरपोर्ट पर सचिन को गुडबॉय कहते होर्डिग्स लगे हैं। सचिन को एक क्रिकेटर के रूप में विदाई को एक उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। पहले दिन जो कुछ टीवी पर देखा गया, वह सचिन के प्रशंसकों के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं था। एक-एक रन पर तालियों की गड़गड़ाहट से स्टेडियम गूंज रहा था। सचिन के बारे में शायद ही कोई बात ऐसी होगी, जो उनके प्रशंसकों से छिपी होगी। वे पहले बाएं पैर का मोजा पहनते हैं और सेंचुरी बनाने के बाद निश्चित रूप से बाएं पैर के पेड से बेट को टकराएंगे। सचिन की एक-एक गतिविधि भारतीयों को कंठस्थ हो चुकी है।
यही सचिन जब 24 वर्ष के अपने क्रिकेट कैरियर का समापन कर रहे हैं, तब किसी युवाओं में एक नया जोश हो, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। सचिन सच्चे अर्थो में नेशनल हीरो हैं। कई लोगों ने उनकी तुलना महात्मा गांधी से की है। सचमुच महात्मा गांधी के बाद हमारे देश में ऐसा कोई नहीं हुआ, जिसकी लोकप्रियता ने आकाश की सीमाओं को भी पार कर दिया हो। पहले लोगों के प्रेरणास्रोत ही महान लोग हुआ करते थे। आजादी के आंदोलन में हर कोई गांधी, नेहरु, बोस, आजाद आदि के नाम पर लोग अंग्रेजों के सामने डट जाते थे। आजादी के बाद जीवन मूल्य में बदलाव आने लगा। सब कुछ पाकर भी पुरानी पीढ़ी ने अपना स्थान खाली नहीं किया, परिणामस्वरूप देश के युवाओं ने अपनी प्रेरणा खोजने के लिए अन्यत्र नजर दौड़ाई। तब फिल्म और क्रिकेट में ही उन्हें अपना आदर्श दिखाई देने लगा। युवाओं को उनके प्रेरणास्रोत मिल गए। एक जमाने में बिशनसिंह बेदी का नाम था, उसके पहले कर्नल सी.के.नायडू लोगों के दिलों में राज करते थे। फिर सुनील गावस्कर का जमाना आया। टीवी के आगमन के साथ ही गावस्कर नॉन फिल्मी मॉडल माने जाने लगे। 1983 के वर्ल्ड कप के बाद कपिलदेव सफल्ता का पर्याय बन गए। उनके नाम का जुनून युवाओं में काफी लम्बे समय तक रहा। इसके बाद की पीढ़ी तेज हा गई। क्रिकेट से आने वाले रोल मॉडल बदलने लगे। अजहरुद्दीन से लेकर सौरव गांगुली, राहुल द्रविड से लेकर लेटेस्ट विराट कोहली के बीच सचिन ने एक क्रिकेटर के रूप में सफलता की अनोखी मिसाल पेश की है। लगातार 24 साल तक वे अपने प्रदर्शन के बल पर क्रीज पर डटे रहे। इस दौरान वे मैदान न तो कभी चीखे, न कभी आऊट होने के बाद खड़े रहे। कई बार तो अंपायर के निर्णय के पहले ही वे स्वयं को आऊट बताकर पेवेलियन की ओर लौट जाते। कई बार उन्हें गलत तरीके से आऊट किया गया, पर अंपायर के निर्णय को सर्वोपरि मानते हुए वे चुपचाप पेवेलियन लौट जाते। कभी जिद नहीं की। सेंचुरी मारने पर वे बहुत ही ज्यादा खुश हुए, न आऊट होने पर दु:खी। चेहरे पर हमेशा एक छोटी सी मुस्कान तैरते रहती।
एक क्रिकेटर के रूप में सचिन के नाम पर कई उपलब्धियां हैं। उनके प्रशंसकों के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। उनकी प्रशंसा में बहुूत कुछ कहा गया है। कुछ भी बाकी नहीं है। उनकी मां से लेकर उनके भाई और गुरु तक के बयान और साक्षात्कार पढ़ने को मिल गए हैं। दो पीढ़ियों ने उनके खेल को निहारा है। विराट कोहली सचिन के टीम मेट हैं। सचिन ने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब विराट केवल दो वर्ष के थे। इन दोनों ने हाल ही में रणजी के आखिरी मैच में लंबी भागीदारी की। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान में सचिन के छोटे कद का मजाब उड़ाया गया, लेकिन उसका जवाब उन्होंने वहां के धुआंधार इमरान, अकरम, वकार और कादिर की बॉल पर चौके-छक्के लगाकर दिए। लोग दंग रह गए, इस वामन अवतार को देखकर। किसी भी क्षेत्र में सफलता को टिकाए रखने के लिए ढाई दशक का समय बहुत कहा जाता है। ऐसे ही क्रिकेट जैसे खेल में जहां हमेशा नई-नई प्रतिभाएं आती रहती हैं, उसमें पूरे ढाई दशक तक अपने अस्तित्व को टिकाए रखना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इस चमत्कार को सचिन ने पूरी तरह से सही सिद्ध कर दिखाया है। टेस्ट क्रिकेट, वन डे और टी-20 में उन्होंने अपनी काबिलियत दिखाई। उनकी उपलब्धियां रिकॉर्ड बनकर उनके प्रशंसकों की मस्तिष्क में कैद हो गई हैं। प्रशंसकों के बीच वे हमेशा आलटाइम ग्रेट.. ग्रेटर.. ग्रेटेस्ट साबित हुए हैं। इसके बाद भी खेल के मैदान से जब वे एक क्रिकेटर के रूप में अपनी केप उतार रहे हैं, पैर पर बंधे पेड खोल रहे हैं, तब यह बात याद रखने और अनुकरणीय है कि वे सदा विनम्र बने रहे। अपनी सौजन्यता को उन्होंने कभी दांव पर नहीं लगाया। थोड़ी गंभीरता से विचार किया जाए कि ये इंसान पिछले 24 सालों से कराड़ों देशवासियों के दिलों में राज कर रहा है, मीडिया की सुर्खियां बनता रहा है, इसके बाद भी कभी किसी विवाद में उनका नाम सामने नहीं आया। मध्यमवर्गीय परिवार में अचानक ही जब नाम और धन आने लगता है, तो वह परिवार पूरे शहर में विख्यात हो जाता है, पर सचिन का परिवार कभी सुर्खियों में नहीं आया। उनके चेहरे पर कभी भी किसी के लिए आक्रोश भी नहीं देखा गया। अपार धन-दौलत भी उन्हें नम्र बनाए रखी, यह बहुत बड़ी बात है।
जब उन्होंने क्रिकेट की शुरुआत की, तब उनकी आवाज में विनम्रता थी, वही आज भी कायम है। यही सचिन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इतनी प्रचंड सफलता मिलने से इंसान तो पगला जाता है, हवा में झूलने लगता है, मस्तिष्क से विवेक गायब हो जाता है। विनोद काम्बली से लेकर शिवरामकृष्णन सहित कई क्रिकेटरों का उदाहरण हमारे सामने है। सभी क्षेत्रों में ऐसे लोग तेजी से उभरे हैं और उतनी ही तेजी से लुप्त भी हो गए हैं, पर सचिन की नम्रता का सूरज हमेशा चमकता रहा। सचिन ने प्रसिद्धि पाई और उसे पचाया भी। अपने कैरियर के दौरान उसने अपनी जीभ पर सदा संयम रखा। चेहरे पर कभी गुमान नहीं आया। वे तो खामोश रहे, पर उनका बेट बोलता रहा। आज जब उनकी निवृत्ति के चर्चे हैं, तब भी उनकी जीभ संयमित है। मीडिया की भाषा में कहें, तो उन्होंने इस दौरान  ‘लूज मोमेंट’ को अपनी जीभ पर हावी नहीं होने दिया। फरारी कार की कस्टम ड्यूटी का मामला हो या फिर राज्यसभा में उनके चयन, सभी मामलों में उसने अपनी सौजन्यता का ही परिचय दिया। फरारी कार की कस्टम ड्यूटी माफ करने के नियम के मुताबिक अपील करने से ड्यूटी माफ हो जाती है। सरकार इसके लिए तैयार भी थी, पर सचिन ने करमाफी के आवेदन के बदले यह कह दिया कि जितना भी टैक्स होता है,उसका भुगतान करने के लिए वे तैयार हैं। इसी तरह राज्यसभा के लिए उनका चयन को भी विवादास्पद बनाने की कोशिश हुई। तब उन्होंने कहा कि भारत के राष्ट्रपति ने मुझे यह सम्मान दिया है, राष्ट्र के गौरव की खातिर मुझे इसे स्वीकारना ही होगा। ऐसे संजीदा जवाब ने सबकी बोलती बंद कर दी। इसके बाद सांसद के रूप में जब उन्हें राहुल गांधी के बाजू का बंगला दिया गया, तो लोगों में हलचल हो गई। इस बार उन्होंने यह कहकर सबकी बोलती बंद कर दी कि मैं जब भी दिल्ली आता हूं, तो मुझे होटल में ही रुकना अच्छा लगता है। मुझे इस शहर में स्थायी निवास की आवश्यकता ही नहीं है। ऐसा कहकर उन्होंने अपनी महानता का ही परिचय दिया।
क्रिकेट के लिए सचिन एक मिथक बन गए हैं। सचिन के रिकॉर्ड का आज उतना ही महत्व है, जितना उनकी विनम्रता का। क्रिकेट के लिए वे एक भूतकाल बन गए हैं। किंतु एक सफल, विनम्र, प्रचंड लोकप्रिय होने के बाद भी सुशील, बेशुमार दौलत होने के बाद भी सादगी पसंद और एक जवाबदार नागरिक के रूप में भी अपने प्रशंसकों के लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। क्रिकेट के इस भगवान को अलविदा कहने का साहस किसके पास होगा। हम तो अपनी सजल आंखों से केवल इतना ही कह सकते हैं कि जब भी किसी बॉलर के हाथ से बाल छूटेगी. बेट के साथ बाल टकराएगी, तब-तब हम यह सुनेंगे ‘वी विल मिस यू सचिन, आज कल और हमेशा।’
डॉ. महेश परिमल

शनिवार, 16 नवंबर 2013

अब बढ़ेगी महंगाई

डॉ. महेश परिमल
दीपावली गई, पर उसका असर अभी तक कायम है। इस बार भी महंगाई ने कमर तोड़ दी। मध्यमवर्ग के लिए हालात मुश्किल हो गए हैं। सरकार के महंगाई कम करने के तमाम वादे किसी काम के नहीं रहे। विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने कुछ कोशिश अवश्य की, पर महंगाई के बेकाबू होने पर अंकुश नहीं लग पाया। प्याज के बाद अब टमाटर रुला रहा है। आम आदमी की थाली से प्याज के बाद अब टमाटर गायब हो गया है। सरकार चुनावों में व्यस्त होने के कारण आम आदमी की समस्या को जानने की फुरसत किसी के पास नहीं। सरकार की यही अनदेखी का असर निश्चित रूप से चुनाव परिणामों पर दिखाई देगा। प्याज को लेकर देश में आंदोलन हो चुके हैं। अब टमाटर को लेकर भी होंगे। हालत यह है कि चुनाव प्रचार करने वाले किसी भी नेता पर अब टमाटर फेंकना भी महंगा पड़ेगा, कौन होगा कि अपनी भड़ास 80 रुपए किलो वाली महंगी चीज से निकालना चाहेगा? प्याज आंखों में आंसू ला रही थी, तो टमाटर गालों की लालिमा छीनने में लगा है।
इन दिनों ब्लागरों की बन आई है। कई ब्लॉगर महंगाई को लेकर तरह-तरह के तर्क दे रहे हैं। कई तर्क भले ही एक नजर में मजाकिया लगें, पर उनकी गंभीरता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी बात नहीं है कि प्याज का उत्पादन नहीं हो पाया है। प्याज का विपुल उत्पादन हमारे देश में हुआ है। वह तो मुनाफाखोरों के कारण प्याज के दाम बढ़ रहे हैं, दूसरे सरकार की नीति भी ऐसी है कि वह प्याज उत्पादकों के बजाए बिचौलियों की परवाह अधिक करती है। प्याज के बढ़ते दाम से हम यही सोचते हैं कि इस बार प्याज उत्पादक किसानों के पौ-बारह हैं। पर ऐसी बात नहीं है। प्याज के बढ़ते दामों से किसानों को किसी तरह का फायदा नहीं हुआ है। सारी मलाई तो बिचौलिए ही मार रहे हैं। इसलिए दबंग के संवाद को लोग अब इस तरह से कहने लगे हैं कि साहब प्याज से डर नहीं लगता, पर टमाटर से डर लगता है। मीडिया में प्याज-टमाटर के बढ़ते दामों के पीछे की राजनीति की खोज की जा रही है। इन जरुरी जिंसों के दाम कैसे बढ़े, इसका विश्लेषण बताया जा रहा है। पर वे यह भूल रहे हैं कि अब शादी का मौसम आ गया है। अब तो आलू के अलावा अन्य जिंसों के दाम तेजी से बढेंगे। कई बार किसानों को अपने उत्पाद का सही दाम नहीं मिल पाता। कई बार उसे आशा से भी कम दाम पर अपना उत्पाद बिचौलियों को बेचना पड़ता है। सरकार यदि इन बिचौलियों पर अंकुश रख सके, तो आवश्यक जिंसों के दाम को बढ़ने से रोका जा सकता है। उत्पादकों-बिचौलियों और सरकार की नीतियों के बीच मध्यम वर्ग की हालत बहुत ही खराब है। वह अपने खर्च में कटौती नहीं कर पा रहा है और आवश्यक जिंसों के दाम तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। आय कम और व्यय अधिक।

देखा जाए, तो टमाटर के दाम बढ़ने के पीछे का कारण ही है प्याज। लोग सलाद में प्याज और टमाटर क इस्तेमाल करते हैं। जब प्याज के दाम बढ़े, ता ेवह सलाद से अदृश्य हो गई। फिर उसमें टमाटर की अधिकता होने लगी। इसलिए टमाटर भी महंगा होने लगा। इधर प्याज का इस्तेमाल कम होने लगा। उधर टमाटर का इस्तेमाल अधिक होने लगा। सलाद में पत्ता गोभी आदि का इस्तेमाल होने लगा। पाव-भाजी वालों की तो दुकान ही बंद हो गई। आखिर क्या डालें उसमें? बाजार में प्याज टमाटर की आवक तो हैं, पर वह मुनाफाखोरों के हाथ में होने के कारण वे ही इनके दाम तय करने लगे हैं। बाजार के विशेषज्ञ बताते हैं कि तुलसी विवाह के बाद शादी का मौसम शुरू हो जाएगा, फिर प्याज-टमाटर की मांग बढ़ेगी। ऐसे में इनके साथ-साथ अन्य जिंसों के दाम भी बढें़गे, इसमें कोई दो मत नहीं। इन हालात में अन्य कई सब्जियां भी आम आदमी की थाली से गायब हो जाएंगी। यह हाल 13 दिसम्बर तक रहेंगे। उसके बाद कड़वे दिन शुरू हो जाएंगे, उसके बाद 18 जनवरी से फिर शादी का मौसम शुरू हो जाएगा। तो यही समझा जाए कि यदि हम यह देखते आए हैं कि ठंड में सब्जियों के दाम कम होते हैं, तो इस बार यह धारणा झूठी साबित होगी। सब्जियों े विकल्प के रूप में अन्य सूखी सब्जियों की ओर लोगों का ध्यान जाता है, पर इस समय दलहन के दामों में 200 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, पिछले वर्ष की तुलना में इनके दामों में तीन गुना इजाफा हुआ है।  इसलिए यह भी आम आदमी के हाथ से निकल गई।
आज सरकार को चिंता इस बात की है कि लोग सोना-चांदी अधिक खरीद रहे हैं, सोने के आयात पर नियंत्रण रखने के लिए वह कई उपाय कर रही है। पर वह यह भूल गई है कि गरीबों के पास सोने-चादंी खरीदने के लिए धन नहीं है, उसकी हालत तो रोजमर्रा की चीजें खरीदने में ही खराब हो रहीे है। टमाटर, प्याज, डीजल और डॉलर आज सामान्य प्रजा के लिए एक आफत बनकर सामने आ गए हैं। इससे निबटने में सरकार तो पूरी तरह से अक्षम साबित हुई है, पर इस पर नियंत्रण रखने के सरकार के सारे उपाय धराशायी होने लगे हैं। सरकार स्वयं प्याज बेचे, इससे अच्छा यह है कि प्याज की कीमतें नियंत्रण रखने का प्रयास करे। यदि प्याज की जमाखोरी हो रही है, तो इसका सबसे आसान उपाय यह है कि जिन कोल्ड स्टोरेज में प्याज जमा है, वहां की बिजली ही काट दी जाए। प्याज वैसे ही बाजार मे आ जाएगी। सरकार स्वयं प्याज बेचे, यह शर्मनाक स्थिति है। पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने से सबसे पहला असर रोजमर्रा की चीजों पर ही पड़ता है, वह महंगी होने लगती है। सामान्य जनता प्याज, आलू, टमाटर, ककड़ी, लौकी का ही इस्तेमाल करता है। आजकल इनके भाव आममान पर हैं, ये सभी दोगुने-तीगुने दाम पर बिक रहे हैं। परवल, भिंडी आदि सब्जी तो आजकल अमीरों की सब्जी बनकर रह गई है। ये इतनी महंगी हैं कि सामान्य आदमी इसके भाव सुनकर ही दंग रह जाता है। डीजल के बढ़ते दाम के साथ इनकी भी कीमतें तेजी से बढ़ने लगी हैं। हालात दिनों-दिन बेकाबू होते जा रहे हैं।
लगातार महंगाई की चक्की में पीसते मध्यम वर्ग में बचत की मात्रा में कमी आई है। पहले यह मध्यम वर्ग अपनी बचत का कुछ हिस्सा शेयर बाजार और सोना-चांदी की खरीदी में लगाता था, पर शेयर बाजार से मध्यम वर्ग अब चेत गया है। सोना-चांदी खरीदना अब उसके बूते की बात नहीं रही। अभी पांच विधानसभाओं की चुनावी जंग शुरू हो चुकी है। सन 2014 लोकसभा चुनावों का वर्ष है। तब तक महंगाई अपने विकराल रूप में दिखाई देगी। इस महंगाई से बच पाना नई सरकारों के लिए मुश्किल है। सत्ता संभालते ही हमारे नेताओं को सबसे पहले महंगाई से ही निबटना होगा। उसके बाद ही कोई अन्य काम हो पाएगा। विकास की बात करने वाले हमारे नेता किस तरह से महंगाई पर काबू पाते हैं, यही देखना है।
  डॉ. महेश परिमल

बुधवार, 13 नवंबर 2013

तुलसी महज एक पौधा नहीं विचार है

डॉ. महेश परिमल
हममें से शायद ही ऐसा होगा, जिसने अपने घर के आँगन में तुलसी का बिरवा न देखा होगा। आज कांक्रीट के जंगल में रहते हुए शायद आज की पीढ़ी को यह पता ही नहीं होगा कि तुलसी का बिरवा किस तरह से हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। आज की पीढ़ी तो इसके महत्व से पूरी तरह से अनजान है। पर हम जानते हैं कि किस तरह से घर में सुबह-सुबह माँ, भाभी, दादी, नानी या फिर दीदी आँगन में लगे तुलसी के बिरवे की पूजा करती थीं। सचमुच उसका महत्व था हमारे जीवन में। आज जब कुछ पुरानी फिल्मों में इस तरह के गाने देखने-सुनने को मिल जाते हैं, तब पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। देखा जाए तो फिल्मों एवं धारावाहिकों में ही आज तुलसी का बिरवा जीवित है। इसके अलावा इसे नर्सरी में भी देखा जा सकता है।
फिल्मों में तुलसी, इसके लिए हमें याद करना होगा मीना कुमारी को, जो फिल्म भाभी की चूड़ियाँ में उसी बिरवे के आगे गाती हैं, ज्योति कलश छलके। इस गीत की शूटिंग के पहले मीनाकुमारी जी ने काफी मेहनत की थी। सुबह-सुबह उठकर हिंदू महिलाओं को पूजा करते देखना उनके लिए एक अलग ही अनुभव था। स्वयं मुस्लिम रीति-रिवाजों में पढ़ी-बढ़ी मीना कुमारी इस गीत को परफैक्ट करना चाहती थी। इसलिए उन्होंने हिंदू महिलाओं की एक-एक गतिविधि को ध्यान से देखा। काफी मशक्कत के बाद यह गीत पूरा ह़आ। पंडित नरेंद्र शर्मा द्वारा लिखा गया यह गीत लता जी के बेहतर गीतों में से एक है। देखा जाए तो आज यदि तुलसी जीवित है, तो वह केवल गाँवों में या फिर फिल्मों में। तुलसी के बिरवे का अपना अलग ही महत्व है। घर बनाने के पहले ही यह तय हो जाता था कि बिरवा कहाँ होगा। तुलसी के पत्तों का अपना अलग ही महत्व है। उसका उपयोग कई बीमारियों में किया जाता है। तुलसी के पत्तों की चाय का स्वाद ही कुछ अलग होता है।
खैर पहले की फिल्मों में तुलसी के चौरे के दृश्य यदा-कदा दिखाई दे जाते थे। जिन फिल्मों की शूटिंग ग्रामीण अंचलों में होती हैं, वहां हिंदू पृष्ठभूमि वाली कहानी में तुलसी का चौरा कहीं न कही आ ही जाता है। फिल्म ईश्वर में अनिल कपूर को अपना घर बदलना होता है, तो वे ट्रक पर तुलसी का चौरा ही उखड़वाकर ले जाते हैं। सन् 1978 में आई फिल्म मैं तुलसी तेरे आँगन की में फिल्म की कहानी तुलसी चौरे के इर्द-गिर्द ही घूमती है। राज खोसला द्वारा निर्मित इस फिल्म में नूतन और आशा पारेख ने गजब का अभिनय किया है। इस फिल्म के एक दृश्य में नायक विनोद खन्ना जब अपनी मां नूतन के सामने किसी बात पर तुलसी की कसम खाते हैं, तब नूतन उसे बहुत डाँटती हैं कि इसकी शपथ मत लेना। यह हम सबके लिए पवित्र है। वास्तव में तुलसी का वह चौरा उनकी सौत की याद में लगाया जाता है, ताकि वह सदैव सामने रहे और उसकी पूजा होती रहे। इस भावना के साथ फिल्मों में तुलसी का चित्रण हुआ करता था।
वास्तव में देखा जाए, तो तुलसी केवल एक पौधा ही नहीं, बल्कि एक विचार है। सात्विक विचार। जिसमें घर के सभी की भावनाएँ जुड़ी रहती हैं। तुलसी के साथ जुड़े विचार धीरे-धीरे पुख्ता होते हैं। जिस तरह से तुलसी से घर की शुद्धि होती है, ठीक उसी तरह से जिस घर में तुलसी हो, उस घर के सदस्यों के विचार भी शुद्ध होते हैं। तुलसी से होकर आने वाली बयान की शुद्धता के कहने ही क्या? फिल्मों में भले इस पर विशेष चर्चा न हो, पर यह सच है कि घर में तुलसी का एक पौधा तो होना ही चाहिए। अब तो सीमेंट का चौरा रेडीमेड मिलने लगा है। घर के उत्तरी कोने या छत पर इसे रखकर इसमें बोया जाता है तुलसी का रोपा। इसके साथ कुछ नियम भी होते हैं, जिस घर में यह होता है, वहाँ की महिलाएँ इसे पूरी तन्मयता से मानती हैं। अनजाने में तुलसी का यह बिरवा हमें अनुशासन भी सिखाता है। तुलसी में पानी सुबह-शाम डाला जाता है। सुबह पूजा होना आवश्यक है। शाम को चौरे में दीया जलाना आवश्यक है। फिल्मों में इतना कुछ नहीं दिखाया गया है, पर इतना अवश्य बताया गया है कि यह बिरवा पूरे परिवार के लिए बहुत ही उपयोगी है। विशेषकर महिलाओं के लिए।
फिल्मों में तुलसी के माध्यम से भारतीय संस्कृति के दर्शन कराए जाते रहे हैं। ताकि विदेशों तक भारतीय संस्कृति की महक इस तरह से भी पहुँचे। आज की फिल्मों में तुलसी का दिखाया जाना भले ही कम हो गया है, पर जब भी तुलसी के बिरवे से जुड़े दृश्य आते हैं, तो मन रोमांचित हो उठता है। ऐसे दृश्य देखकर एक विचार-प्रक्रिया शुरू होती है। जिसमें समभाव के साथ सर्व हिताय की भावनाएँ होती हैं। भारतीय संस्कृति में इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता, उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आँगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आँगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।
अधिकांश हिंदू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर में लगाने की प्रथा हजारों साल पुरानी है। तुलसी को देवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है। यह तो है तुलसी का धार्मिक महत्व, परंतु विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटि के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं, जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के  बैक्टिरिया आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्नी रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्नी खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
पुराणों में कहा गया है कि भगवान विष्णु को लक्ष्मी से भी प्रिय तुलसी है। इसे भगवान ने अपने सिर पर स्थान दिया है। बिना तुलसी पत्ता अर्पित किए भगवान भोग भी स्वीकार नहीं करते। तुलसी के प्रति इस प्रकार का आदर भाव बताता है कि तुलसी गुणों की खान है। वैज्ञानिक शोध से यह प्रमाणित हो चुका है कि तुलसी में कई रोगों के उपचार की क्षमता है। तुलसी जिस घर आँगन में होती है, वहाँ के वातावरण में मौजूद नकारात्मक तत्वों को सोख लेती है और सकारात्मक उर्जा का संचार करती है। वास्तु विज्ञान कहता है कि घर में तुलसी का एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए। पुराण के मुताबिक तुलसी के पौधे पर गुरु और लक्ष्मी दोनों की कृपा है। तुलसी का पौधा लगाने के लिए उत्तर पूर्व दिशा उत्तम है। उत्तर पूर्व में स्थान नहीं होने पर उत्तर अथवा पूर्व दिशा में तुलसी का पौधा लगाया जा सकता है। इन दिशाओं में तुलसी का पौधा लगाने से परिवार में सामंजस्य एवं धन वृद्घि होती है। ऐसी मान्यता है कि घर की छत पर तुलसी का पौधा रखने से घर पर बिजली गिरने का भय नहीं रहता। घर में किसी प्रकार के वास्तु दोष से बचने के लिए घर में तुलसी के पांच पौधे लगाकर उनकी नियमित सेवा करने से वास्तु दोष से मुक्ति मिलती है।
  डॉ. महेश परिमल

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

कपिल सिब्बल का सपना ‘आकाश’ जमीन पर

डॉ. महेश परिमल
चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। अब तमाम सरकारें लोक-लुभावन नारों के साथ-साथ वादों की खोज में हैं। आज का युवा नई टेक्नालॉजी पर ध्यान देता है, इसलिए सरकार यह सोच रही है कि युवाओं को आकर्षित करने के लिए उन्हें लेपटॉप दिया जाए, ताकि वे अपना कीमती वोट उस सरकार को दें। चूंकि अब युवा ही तमाम पार्टियों के वोट-बैंक हैं, इसलिए उन्हें लुभाने के लिए कुछ न कुछ ऐसा तो करना ही होगा, जिससे उनके वोट प्राप्त किए जा सकें । वैसे उत्तर प्रदेश में युवाओं को लेपटॉप देने का वादा किया गया था, लेपटॉप युवाओं को मिल भी गए हैं, पर वह पुरानी तकनीक का होने के कारण उतना लोकप्रिय नहीं हो पाया है। यह लेपटॉप उन्हें मुफ्त में मिला है, इसलिए उसे उन्होंने रख लिया है, पर उसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। वैसे केंद्र सरकार की आकाश की पहली योजना तो धराशायी हो गई। इसके बाद कपिल सिब्बल ने इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया। उसके बाद आकाश 2 योजना लाई गई, यह भी टॉय-टॉय फिस्स हो गई। अब चुनाव को देखते हु सरकार आकाश 4 ला रही है। निश्चित रूप से यह योजना युवाओं को लुभाने में कामयाब होगी। पर रोज की बदलती तकनीक को देखते हुए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि पिछली दो गलतियों से सरकार कुछ सीखेगी। पिछले प्रोजेक्ट में कहां गलती रह गई, यह जाने और सोचे बिना सरकार ने आकाश 4 ला रही है। यदि इसमें भी पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया गया, तो यह योजना भी फ्लाप होगी।
सरकार को सबसे पहले उलझन फरवरी 2012 में हुई, जब उसका बहु प्रतीक्षित प्रोजेक्ट आकाश जमीन पर आ गिरा था। कहा जाता है कि हारा हुआ पुजारी दोगुनी दौलत लगाता है, ठीक उसी तरह सरकार जल्दबाजी में आकाश 2 ले आई। इसके लिए यह घोषणा की कि लोगों को सस्ते दामों में आकाश लेपटॉप दिया जाएगा। इस योजना का क्या हुआ, इसे जाने बिना सरकार ने अब आकाश 4 ला रही है। सरकार को शायद यह पता नहीं है कि फरवरी 2012 और नवम्बर 2013 तक टेक्नालॉजी ने बहुत से पड़ाव तय कर लिए हैं। यदि आकाश 4 पुरानी तकनीक का होता है, तो इसे जमीन पर आने में देर नहीं लगेगी। अभी तो आकाश 4 किसी के हाथ में नहीं आया है, जब आएगा, तब यदि उसकी क्षमता की जानकारी होगी। इस दौरान सपा ने विधानसभा चुनाव में किए गए वादे के अनुसार उत्तर प्रदेश के कॉलेज के विद्यार्थियों को लेपटॉप का वितरण कर दिया है। जिनके पास ये लेपटॉप हैं, वे आकाश 4 नहीं लेना चाहेंगे, क्योंकि उसके लिए उन्हें तीन हजार रुपए का भुगतान करना होगा। विश्व का सबसे सस्ता लेपटॉप देने की यूपीए सरकार की इस योजना से लोग चौंक उठे थे। जब पहली बार इस आशय की घोषणा हुर्ह, तब सभी को आश्चर्य हुआ, बाद में पता चला कि यह आई टी मिनिस्टर कपिल सिब्बल का ड्रीम प्रोजेक्ट है। बाद में सिब्बल का यह सपना चकनाचूर हो गया। सरकार की भी फजीहत हुई, सो अलग।
जब आकाश 2 लोगोंे के सामने आया, तो सभी लेपटॉप में रिजोल्यूशन की समस्या देखी गई। स्क्रीन में भी कोई खास बदलाव किया गया हो, ऐसा नहीं लगा। सरकार अपना यह ड्रीम प्रोजेक्ट छोड़ना नहीं चाहती, इसलिए उसने आकाश 4 के लिए कमर कसी है। केटावींड द्वारा तैयार हुए आकाश को जब खुले रूप में बेचना शुरू किया गया, तब उसका नाम ड्ढद्ब ह्यद्यड्डह्लद्ग ७ष्द्ब था था, इसकी कीमत 3099 रखी गई थी। विद्यार्थियों को सस्ते में टेबलेट देना सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। परंतु टेबलेट के बाजार में नित नई तकनीक के टेबलेट रोज ही आ रहे हैं। इस तरह से देखा जाए, तो आकाश 4 को आने में काफी देर हो गई है। इस प्रोजेक्ट को काफी पहले आ जाना था। सरकार जो आकाश 4 बनाना चाहती है, उसका मूल प्रोजेक्ट इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी के पास से आईआईटी मुम्बई को सौंपा गया है। आकाश 4 बनाने वाले इस समय ई-कांटेक्ट बनाने में व्यस्त हैं। नए आकाश में स्टूडेंट-टीचर इंटर एक्शन एप्लीकेशन, एजुकेशन क्वीज आदि पी लोडेड करके दिए जाएंगे। लेक्चर वीडियो और प्रेजेंटेशन के लिए भी टूल्स एसडी कार्ड के साथ तैयार किया जाएंगे। आकाश प्रोग्राम  लेब में ष्ट, ष्टष्ट+ क्क4ह्लद्धoठ्ठ और विज्ञान के प्रयोगों के  लिए द्ग3श्चश्वङ्घश्वस् भी देखा जा सके, ऐसी तकनीक उपलब्ध कराई जाएगी। आकाश वन और आकाश टू के फ्लॉप शो की तरह आकाश 4 का भी हश्र हो, यह सरकार नहीं चाहती। इसलिए सरकार ग्लोबल टेंडर का आयोजन करेगी और इसकी घोषणा कब करनी है, यह भी बताएगी। आकाश 4 के स्पेशीफिकेशन के लिए घोषणा हो चुकी है। शुरुआती ऑर्डर 50 से 60 हजार टेबलेट का होगा।
2014 के लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले आकाश 4 की घोषणा हो जाएगी। सरकार मुफ्त में मोबाइल देने के फिराक में है। इसके बाद सस्ता टेबलेट देने की योजना है। सरकार इसे चुनावी मुद्दा भी बना सकती है। सरकार को भले ही टेबलेट 4 के लिए खुशी हो, पर लोग सस्ते में सरकारी टेबलेट पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। भूतकाल में आकाश टेबलेट खरीदने में जल्दबाजी करने वाले अभी तक पछता रहे हैं। आज लोग परफेक्ट टेबलेट पर विश्वास करते हैं। उसके लिए खर्च करने को भी तैयार हैं, परंतु सरकार सस्ते के नाम पर आऊट डेटेड टेक्नालॉजी अपना रही है, ऐसा प्रजा मानती है। सरकार के टेबलेट से यदि सरकारी शब्द हट जाए, तो कुछ लाभ हो सकता है। पर सरकार कम काम करके अधिक श्रेय लेना चाहती है, इसलिए मामला गड़बड़ा जाता है। सरकार की नीयत साफ हो, तो वह ऐसे टेबलेट बनाए, जो अत्याधुनिक हों और उसे आज के टेबलेट के साथ मुकाबला करने के लिए खड़ा किया जाए, तो इसे उसकी उपलब्धि कहा जाएगा। पर सरकार के सारे काम चुनाव लक्षित होते हैं, इसलिए लोग उसकी नीयत समझ जाते हैं। सरकार जितना धन टेबलेट देने के प्रचार-प्रसार में लगाती है, यदि उसका आधा हिस्सा भी टेबलेट की गुणवत्ता में लगा दे, तो वह चीज आऊट डेटेड नहीं होगी। पर सरकार को कौन समझाए?
  डॉ. महेश परिमल

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