शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

‘आप’ खत्म कर पाएगी वीआईपी संस्कृति?

डॉ. महेश परिमल
विधानसभा चुनाव परिणाम के पहले जो मोदी लहर थी, वह परिणाम के बाद अरविंद लहर में बदल गई। जब से ‘आप’ ने अपना प्रदर्शन दिखाया है, तब से अरविंद ‘टॉक आफ द नेशन’ हैं। अब तो हालत यह है कि ‘आप’ की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बातों पर मीडिया ही नहीं, बल्कि लोगों की भी नजर है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सरकार बनाने की मंजूरी मिलने के बाद से ‘आप’ सरकार के मंत्रिमंडल के शपथविधि को रामलीला मैदान में अंतिम रूप दिया जा रहा है। शपथ विधि समारोह बड़ा किंतु सादा होगा, ऐसा कहा जा रहा है। सरकारी बंगला और कार लेने के लिए ना कहने वाले अरविंद केजरीवाल और ‘आप’ दिल्लीका वीआईपी कल्चर खत्म कर देंगे, ऐसा समझा जा रहा है। वैसे भी दिल्ली का अधिकांश पुलिस बल वीआईपी सुरक्षा में ही लगा रहता है। इससे कम से कम उन्हें तो राहत ही मिलेगी। अब वे अपना ध्यान दूसरी आवश्यक मोर्चो पर देने की कोशिश करेंगे, ऐसा समझा जा सकता है।
हमें सत्तालोलुप नेता नहीं चाहिए, हमें क्रांतिकारियों की आवश्यकता है। ऐसा कहने वाले अरविंद केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के गठन के तुरंत ही बाद अपने विधायक विनोद कुमार बिन्नी की बगावत को झेला। काफी मान-मनौव्वल के बाद वे अब यह कहने लगे हैं कि अब तो गेटकीपर भी बना दोगे, तो भी कुछ नहीं कहूंगा। वैसे बिन्नी की बगावत वाजिब थी। वे दो बार निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से चुनाव जीत चुके हैं। राजकीय ठाट-बाट को उन्होंने काफी करीब से देखा है। मंत्रिमंडल के गठन के समय वे निश्ंिचत थे कि ये सभी तो नए-नवेले हैं, मैं तो अनुभवी हूं, इसलिए मेरी नियुक्ति तो तय है। पर जब उन्हें मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया, तो उन्होंने बगावत कर दी। लेकिन अब सब ठीक है। अब तो वे कह रहे हैं कि सारा किया-कराया मीडिया का है। इस समय तो बिन्नी खामोश हैं, पर उनके भीतर का अनुभवी विधायक कभी न कभी तो मुंह खोलेगा ही। यह तय है। वैसे कांग्रेस अपना समर्थन कब वापस ले ले, यह भी पूरे विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता। इसके बाद भी ‘आप’ को लोग अभी भी सशंकित निगाहों से देख रहे हैं। क्योंकि सभी जानते हैं कि ‘आप’ ने जो चुनावी वादे किए हैं, वहीं उसके लिए खरी चुनौती हैं।
शनिवार 28 दिसम्बर को दिल्ली में एक नए प्रकार की सरकार आने वाली है। यह सरकार कई मामलों में अनोखी ही होगी। सबसे पहले तो यही है कि भावी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेड प्लस सुरक्षा लेने से इंकार कर दिया है, यही नहीं, उन्होंने सरकारी बंगला भी नहीं लेने की घोषणा की है। इस पर वे कहते हैं कि मैं तो सीधा-सादा आदमी हूं। अब तक मुझे किस तरह की सुरक्षा मिली थी? मै सुरक्षा बलों से घिरा नहीं रहना चाहता। यह अच्छी बात है, क्योंकि दिल्ली की अधिकांश पुलिस वीआईपी सुरक्षा में ही लगी रहती है। देश के दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री अपने सुरक्षा कमांडो से धिरे रहते हैं। उनके करीब जाने से ही लोग थरथराने लगते हैं। लोग यह मानने लगे हैं कि दिल्ली के ये नए मुख्यमंत्री सादगी की कुछ नई इबारत लिखेंगे। इससे अब लोग कभी भी मुख्यमंत्री को मेट्रो में सफर करते देख सकते हैं। अब तक ऐसा केवल विदेशों में ही होता रहता है, अब हमारे देश में भी होगा। जब विधायक आपके दरवाजे आकर कहेगा कि मैं यहां का विधायक हूं, आपको हमारे प्रशासन से किसी प्रकार की तकलीफ हो, तो मुझे बताएं। केजरीवाल ने न केवल कहा, बल्कि अपनी सादगी का परिचय देते हुए राष्ट्रपति से मिलने अपनी साधारण मारुति 800 से राष्ट्रपति भवन पहुंचे। उनके स्थान पर दूसरा कोई होता, तो ढोल-नगाड़ों के साथ राष्ट्रपति भवन जाता और रास्ता जाम कर देता। देखना यही है कि ये सादगी कब तक कायम रह सकती है। इस बार रामलीला मैदान अपनी सादगी के लिए जाना जाएगा। शपथ ग्रहण समारोह चकाचौंध करने वाला नहीं होगा। आम आदमी पार्टी ने किसी को भी आमंत्रण पत्र नहीं भेजा है। जिन्हें आना है, वे आ सकते हैं, जिन्हें नहीं आना है, उनके लिए कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं है। शपथ विधि के लिए कोई खास या अच्छा मुहूर्त की भी परवाह नहीं की गई। इसके पहले तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मलमास शुरू होने के पहले ही शपथ ग्रहण कर चुके हैं। मतलब यही है कि जो कुछ हो रहा है, अच्छा हो रहा है। कुछ अलग ही हो रहा है। दुनिया का यह नियम भी है कि यदि कुछ नया और अलग हो रहा हो, तो उस पर पहले तो शंका ही की जाती है। अभी तो सब यही कह रहे हैं कि ये सब कुछ अधिक समय तक नहीं चल पाएगा। पर कई लोगों का यह भी कहना है कि जो कुछ चल रहा है, उसे चलने तो दो। अभी तो चल रहा है ना? आप यदि चाहेंगे कि सब अच्छा हो, तो अच्छा ही रहेगा। यह तो लोगों की इच्छा पर भी निर्भर करता है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को यह भी सोचना और देखना होगा कि सरकार केवल मंत्रिमंडल या नेताओं से ही नहेीं चलती। इसे चलाते हैं सरकारी बाबू और अधिकारी। यदि इन लोगों के काम का रवैया नहीं बदला गया, तो समझो सब कुछ बेकार है। भ्रष्टाचार का मूल तो यही प्रशासन है। किस फाइल को आगे बढ़ाना है किसे दबाना है, इसे प्रशासन तंत्र से जुड़े लोग इसे अच्छी तरह से समझते हैं।  दिल्ली के बाबू तो और भी अधिक शातिर हैं। इन्हें नियंत्रण में लाना बहुत ही आवश्यक है। केजरीवाल मंत्रिमंडल को इन बाबुओं और अधिकारियों को ठीक करने में ही पसीना छूट सकता है। वैसे अरविंद केजरीवाल ऐसे एकमात्र मुख्यमंत्री नहीं होंगे, जिसे उनकी सादगी से पहचाना जाएगा। अभी भी देश में दो-तीन मुख्यमंत्री ऐसे हैं, जो सादगी की मिसाल हैं। इनमें सबसे पहला नाम है त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार का। इनके पास कुछ सम्पत्ति ढाई लाख रुपए की है। जब इन्होंने चुनाव के पहले अपना नामांकन पत्र भरा, तो उसमें उन्होंने जानकारी दी कि उनके हाथ में नकद राशि है 1080 रुपए और बैंक एकाउंट में है कुल 9720 रुपए। सभी को यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनका घर चलाने के लिए उन्हें पार्टी की ओर से हर महीने 5 हजार रुपए मिलते हैं। अपनी सादगी के बारे माणिक कहते हैं कि मुझे इससे अधिक की आवश्यकता ही नहीं है। मैं देश का सबसे गरीब मुख्यमंत्री हूं। यह मेरे लिए गर्व की बात है।
सादगी में इसके बाद नाम लिया जाता है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का। साधारण साड़ी और साधारण स्लीपर, वे पहले भी पहनती थीं, अब भी पहनती हैं। उन्हें भी दिखावा करना पसंद नहीं है। वे जो हैं, वही हैं। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर भी अपनी सादगी के लिए पहचाने जाते हैं। वे भी किसी तरह के दिखावे से दूर रहते हैं। दिखावा उन्हें पसंद ही नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी अपनी सादगी के लिए पहचाने जाते थे। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री बाबुभाई जशभाई पटेल की सादगी की चर्चा आज भी गुजरात के बुजुर्ग करते हैं। इस परंपरा को अरविंद केजरीवाल आगे ही बढ़ा रहे हैं, ऐसा कहा जा सकता है। सावधानी यही रखनी होगी कि कहीं सादगी के रास्ते से अभियान न आ जाए। यह सबसे अधिक खतरनाक स्थिति होगी। सरकार बनने के बाद यदि सब कुछ ठीक रहा, तो उनकी सादगी निश्चित रूप से एक नई इबारत लिखेगी, ऐसा कहा जा सकता है। यदि देश से वीआईपी कल्चर ही खत्म हो जाए, तो देश के सत्ता लोलुप नेताओं की सुरक्षा पर होने वाले अरबों रुपए बच सकते हैं, जो देश के विकास में काम आ सकते हैं।
डॉ. महेश परिमल

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