शनिवार, 22 मार्च 2014

देश की बिगड़ी फिटिंग का क्या करूं ?

डॉ. महेश परिमल
अभी कुछ दिनों पहले ही हमारे बहुत करीब से गुजर गया प्लम्बर दिवस। जी हां 11 मार्च को प्लम्बर दिवस ही था। हमें याद नहीं रहा। याद भी कैसे रहे, इतने सारे दिन तो आते ही रहते हैं, इसमें यदि प्लम्बर डे निकल गया, तो कौन सी आफत आ पड़ी? ऐसा तो नहीं कि इस दिन को मनाने के बाद अब हमें प्लम्बर के लिए इधर-उधर भागना नहीं पड़ेगा। हम आज भी भाग रहे हैं, वे मिलते ही नहीं। उनको ढूंढ पाना ही टेढ़ी खीर है। वे मिल भी गए, तो उनसे पहले समय लेना पड़ता है। यदि वह उस नियत समय पर आ भी गया, तो उसके नखरे इतने बड़े-बड़े होते हैं कि बरातियों के नखरे छोटे दिखने लगे। मेरा दावा है कि हमारे काम को करते हुए प्लम्बर की फरमाइशें पूरी करते हुए आपको पसीना न आ जाए, तो मेरा नाम ही बदल दें। उस पर काम सही होने की कोई गारंटी नहीं। आपके घर का पानी टपकता ही रहेगा। कहते हैं कि यदि आपके घर के नल से एक-एक बूंद पानी टपक रहा है, तो समझो आपका एक-एक पैसा बेकार जा रहा है। पर प्लम्बर को इससे क्या? वह तो बड़ी मुश्किल से काम करने आपके घर पधारेगा? उसके बाद उसी दिन काम हो गया, तो आपसे बढ़कर कोई अच्छी किस्मत वाला इस दुनिया में है ही नहीं। छोटे से छोटा काम भी दो-दिन तो लगा ही देता है। इस बीच वह मोबाइल से भी बात करेगा, बीच-बीच में चाय भी पियेगा। अपने निजी काम से कुछ देर के लिए बाहर भी जाएगा। यह सब करते हुए यदि आपका खून जल रहा है, तो जलने दो। ऑफिस से आपने छुट्टी ली है, उसने तो नहीं ली। पहले तो वह बताएगा कि काम कुछ घंटे का है, फिर वही काम एक दिन का हो जाएगा। जब उसने काम करना शुरू कर दिया, तो वही काम तीन दिन का हो जाता है। आपने उसके कहने से आफिस से एक या दो दिन का अवकाश लिया है। पर जब तीन दिन हो जाए, तब क्या करना? काम इतना बड़ा तो कतई नहीं था। इस बीच ऐसे-ऐसे सामान भी लाने पड़े, जिसकी आवश्यकता ही नहीं थी। जब जिसे छोटी बीमारी समझ रहे थे, उसके हाथ लगते ही वह बड़ी बीमारी हो गया। घर की दीवारें खुद गई, हमें खुदा याद आ गए। अब उसके लिए अलग से मजदूरों को लगाया जाएगा। उनके भी नखरे तो होंगे ही। प्लम्बर का भुगतान करने में पसीना छूटा सो अलग। क्योंकि हमने एक दिन की मजदूरी के हिसाब से सोचा था, उसने तीन दिन की मजदूरी ले ली। दीगर काम बढ़ गए, आफिस से एक दिन का और अवकाश लेना पड़ा। परिवार परेशान रहा, सो अलग। इस सारी बातों से ऐसा लगा, मानो हमारा नल बहता ही रहता, तो ठीक था। हम पानी बरबाद करने के भागी बन जाते। पर इतनी परेशानी तो नहीं होती। क्या मिलेगा हमें प्लम्बर डे मनाने से, आप ही बताएं? पानी के रूप में न जाने कितना खून टपक गया हमारा। इसे कौन समझेगा? हालांकि मैं तो फिर भी घर के लिए दो दिन का अवकाश और तीन हजार रुपए बर्दाश्त कर लूंगा, लेकिन देश का क्या, उसकी बिगड़ी फिटिंग ठीक कराना मेरी औकात के बाहर है।
डॉ. महेश परिमल


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