बुधवार, 3 सितंबर 2014

विरोध, विरोधियों को भी अच्छा लगना चाहिए

डॉ. महेश परिमल
भारतीय राजनीति अब नई करवट ले रही है। अभी तक ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि प्रधानमंत्री के सामने ही प्रदेश के मुख्यमंत्री की हूटिंग हुई हो। यह बात समझने की है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इस प्रवृत्ति पर लगाम नहीं कसी गई, तो स्थिति भयावह हो सकती है। ऐसा हो रहा है, यह कांग्रेस-भाजपा दोनों के लिए शोचनीय है। कांग्रेस यदि इसे अपना अपमान मान रही है, तो उसे सचेत हो जाना चाहिए कि ऐसा होना नागरिकों के आक्रोश का ही एक भाग है। कांग्रेस को इससे अधिक यह सोचने की आवश्यता है कि उसकी पराजय के कारण क्या हैं? यदि वह ऐसा नहीं सोचती, तो यह उसकी भूल होगी। भाजपा के लिए भी यह एक खतरे की घंटी है कि विशाल बहुमत पाकर वह मदमस्त हो गई है। यही अहंकार उसे रसातल में भी ले जा सकता है। आश्चर्य की बात यह है कि आखिर यह सब उन्हीं राज्यों में ही क्यों हो रहा है, जहां निकट भविष्य में आम चुनाव हैं। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कई नेताओं को रास नहीं आ रही है। कई नेता ईष्र्या की आग में तप रहे हैं। इस कारण भाजपा की छवि बिगड़ रही है। राजनीति में शुद्धि लाने के लिए इस तरह की हरकतें बंद होनी चाहिए।
भारतीय राजनीति में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं का बहिष्कार करने का संकल्प गैरभाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने किया है। इसके पीछे उनके कारण भी ठोस हैं। एक नहीं, पर चार गैरभाजपाशासित राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में बुलाया गया था। पर श्रोता उन्हें सुनने के बजाए नरेंद्र मोदी को सुनना चाहते थे। इससे कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को लगा कि भाजपा कार्यकर्ता उनका अपमान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री की बढ़ती लोकप्रियता से केवले कांग्रेस ही नहीं, बल्कि भाजपा नेताओं को भी ईष्र्या होने लगी है। देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह घातक है। अमूमन ऐसा होता है कि देश के प्रधानमंत्री जब भी घोषित रूप से सरकारी समारोह में शामिल होते हैं, तो राज्य के मुख्यमंत्री को भी आमंत्रित किया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री एवं राज्य के मुख्यमंत्री को भी बोलने का मौका दिया जाता है। इसके पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी समारोह में प्रधानमंत्री हों और मुख्यमंत्री की हूटिंग की गई हो। यह सब प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के बढ़ने के कारण हो रहा है।
यह तय है कि जिस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी हों, उस कार्यक्रम में लोग किसी अन्य नेता को सुनना ही पसंद नहीं करते। इसका उदाहरण भोपाल में देखने को मिला था। जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया गया, इसके तुरंत बाद ही 25 सितम्बर 2013 को उनकी एक विशाल आमसभा भोपाल में आयोजित की गई थी। इस समारोह में लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित थे। लेकिन जनता केवल नरेंद्र मोदी को ही सुनना चाहती थी। जनता के आक्रोश को देखते हुए अन्य नेताओं ने अपना भाषण छोटा कर दिया था। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को एक बार नहीं, बल्कि तीन बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ समारोह में उपस्थित रहे। पहली बार जब प्रधानमंत्री ने वैष्णो देवी के लिए रेल्वे लाइन के उद्घाटन के अवसर पर वे साथ-साथ थे। उस दौरान उमर अब्दुला को लोगों ने पूरा सुना। अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस रेल्वे लाइन का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को देते हुए नरेंद्र मोदी को एक तरह से उत्तेजित करने की कोशिश की। इसके बाद कारगिल के जिस समारोह में नरेंद्र मोदी और उमर अब्दुल्ला एक मंच पर उपस्थित थे। इस दौरान लोगों ने उमर अब्दुल्ला की हूटिंग की, वे नरेंद्र मोदी को सुनना चाहते थे।
हरियाणा और महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में सत्तारुढ़ कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। चुनाव के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पद से हटाने की माँग ने जोर पकड़ा था। पर वे दोनों ही बच गए। अगले विधानसभा चुनावों में इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की हार तय मानी जा रही है। इस समय दोनों ही मुख्यमंत्रियों की लोकप्रियता का ग्राफ काफी नीचे है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पूरे उफान पर है। इस कारण कांग्रेस के नेताओं को मोदी की लोकप्रियता से ईष्र्या होना लाजिमी है। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री के सामने ही यदि मुख्यमंत्रियों के खिलाफ हूटिंग होती है, तो इससे मुख्यमंत्रियों की पीड़ा को समझा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरियाणा से 166 किलोमीटर दूर कैथल से राजस्थान की सीमा तक जाते हुए नेशनल हाइवे का शिलान्यास के लिए पहुंचे थे। इसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी उपस्थित थे। आयोजकों ने नरेंद्र मोदी के भाषण के पहले हुड्डा का भाषण रखा था। पर जनसैलाब तो केवल नरेंद्र मोदी को ही सुनने आया था। इसलिए हुड्डा के खिलाफ नारेबाजी हो गई। हरियाणा के मुख्यमंत्री की तरह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान को भी 16 अगस्त को प्रधानमंत्री की रायगढ़ और सोलापुर में आयोजित सभाओं में अपमानित होने का कड़वा घूंट पीना पड़ा था। इसलिए नागपुर में 21 अगस्त को आयोजित कार्यक्रम में वे शामिल नहीं हुए। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तो कह चुके हैं कि
मैं प्रधानमंत्री के साथ बैठा था, किसी बीजेपी नेता के साथ नहीं। सरकारी कार्यक्रम राजनीितक ताकत दिखाने की जगह नहीं है। आपको ताकत ही दिखाना है, तो चुनावी मैदान में आइए, हम तैयार हैं। देश में एक गलत परंपरा शुरू हो रही है। ये खतरनाक संकेत हैं। यह भी सच है कि जब सोरेन के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को शांत रहने का इशारा भी किया था। जनसमूह को संयम रखने के लिए भी कहा, पर इसका किसी पर कोई असर नहीं हुआ। इस घटना से मोदी प्रशंसक भले ही खुश हो जाएं, पर उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अपने राजनीतिक विरोधियों को मात देने का यह कोई बेहतर तरीका नहीं है। इस कारण भाजपा और मोदी दोनों की ही छवि  बिगड़ती है। एक तरफ प्रधानमंत्री राजनीति के गलियारों से गंदगी दूर करने का संकल्प लेते हैं, तो दूसरी तरफ उनके ही सामने इस तरह की नारेबाजी हो रही है। विरोधियों का अपमान करना भी एक तरह की राजनीतिक गंदगी ही है। राजनीति में यदि शुद्धि लानी है, तो ऐसी हरकतों को तुरंत बंद किया जाना चाहिए। इससे एकबारगी प्रशंसक खुश हो जाएं, पर यह खुशी अधिक समय तक नहीं रह सकती। क्योंकि इस खुशी में कहीं न कहीं विरोधियों का लताड़ने का भाव है। विरोध तो ऐसा होना चाहिए कि विरोधियों को भी अच्छा लगे।
डॉ. महेश परिमल

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