सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

निराधार हुआ आधार

डॉ. महेश परिमल
सबसे पहले जब उद्योगपति नंदन नीलकेणी ने पिछली सरकार के सामने एक भारतीय की अपनी पहचान के लिए एक प्रस्ताव रखा कि हम भारतीयों के नाम में समानता हो सकती है, पर यदि अपनी पहचान कायम करने के लिए यदि सभी के अलग-अलग नम्बर हों, जिसके आधार पर उसकी पहचान स्थापित हो सके। तो सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए सभी के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया। धीरे-धीरे यह हर भारतीय की पहचान बनने लगा। इससे आगे बढ़ते हुए भाजपा सरकार ने इसे उपभोक्ता के बैंक खाते से जोड़ने के लिए कदम उठाया। इससे समूचे देश में एक क्रांति ही आ गई। हर तरफ आधार कार्ड की ही चर्चा होने लगी। साथ-साथ इसमें की गई गलतियों एवं लापरवाहियों के किस्से भी आम हो गए। लेकिन एक बात यह ठीक रही कि इससे उपभोक्ता के खाते में सबसिडी की राशि सीधे जमा होने लगी। पर तभी सुप्रीमकोर्ट ने यह आदेश दिया कि आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जा सकता। इससे लोगों में एक तरह की बेचैनी देखी गई। काफी जद्दोजहद से बना था आधार कार्ड, लेकिन उसकी उपयोगिता को अनदेखा कर दिया गया। अब अाधार कार्ड की हालत यह है कि यह अपनी पहचान बनाते-बनाते स्वयं ही निराधार हो गया। एक तरफ डिजिटल इंडिया के लिए सरकार हाय-तौबा मचा रही है, तो दूसरी तरफ डायरेक्ट केश ट्रांसफर के साथ जुड़ी आधार कार्ड योजना के संबंध में लापरवाह हो गई है। सरकार की सबसिडी की राशि सीधे उपभोक्ता के खाते में चली जाए, इसके लिए आधार कार्ड को सीधे बैंक खाते से जोड़ दिया गया। आधार कार्ड पाकर लोग स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। लोग इसे हाईप्रोफाइल मानने लगे। लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने अपने निर्णय में यह कहा कि प्रजा का यह बायोमेट्रिक डाटा सुरक्षित नहीं है। इस जानकारी को गोपनीय भी नहीं रखा जा सकता। सुप्रीमकोर्ट ने सबसिडी जमा करने के लिए आधार कार्ड को उपयोगी माना। परंतु इसके अन्य क्षेत्रों में उपयोग के लिए अनुपयोगी माना। इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है कि इसे अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग में लाया जाए या नहीं। आधार कार्ड की योजना सभी क्षेत्रों में जारी रखी जाए या नहीं, इस आशय का सुझाव सेबी, आरबीआई, एलआईसी, ट्राई एवं आयकर आदि ने दिए हैं। इस तरह से देखते ही देखते आधार कार्ड जीवन का ही आधार बन गया। लोग इसके लिए लम्बी-लम्बी लाइनों में खड़े रहकर, परेशान होकर अपना कार्ड बनवाने लगे। सब कुछ अच्छे से चल रहा था कि अचानक ही एक जनहित याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने यह फैसला दिया कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। इस फैसले से लोगों की आशाओं पर मानों तुषारापात हो गया। आधार कार्ड को कांग्रेस अपना गेम चेंजर समझती थी, परंतु लोकसभा चुनाव में वह इसे पूरी तरह से भुना नहीं पाई। कांग्रेस के इस कार्य को भाजपा सरकार ने भुनाने का प्रयास किया, इसमें काफी हद से कामयाब भी रही।


सरकार डायरेक्ट बेनीफीट ट्रांसफर स्कीम को आधार कार्ड के साथ जोड़ना चाहती थी, परंतु इसके लिए कोई योजना तैयार नहीं कर पाई। एक योजना के अंतर्गत यह प्लान था कि सरकार की तरफ से मिलने वाले लाभ को सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते में डाल दिया जाए। यूपीए सरकार इस योजना में विफल साबित हुई। सभी यही सोच रहे थे कि एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नाकामयाब योजना को ताक पर रख देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। आधार कार्ड का आइडिया देने वाले नंदन नीलकेणी मोदी को इसकी उपयोगिता को समझाने में सफल रहे। उन्होंने बताया कि आधार कार्ड से अभी भले नहीं, पर भविष्य में इसके चमकात्कारिक परिणाम सामने आ सकते हैं। इसके बाद इस आधार कार्ड को जोरदार सफलता मिलने लगी। एलपीजी सबसिडी आदि की राशि सीधे ग्राहक के खाते में जमा होने लगी। जन धन योजना के अंतर्गत 28 अगस्त तक 17.74 करोड़ बचत खाता बैंकों में खुले थे। इसमें से 22 हजार करोड़ की राशि जमा भी हो गई। ये सभी खाते आधार कार्ड के साथ जोड़ दिए गए थे। 3 लाख 515 हजार 634 परमानेंट एकाउंट नम्बर (पेनकार्ड) आधार कार्ड के साथ जुड़ गए। आधार कार्ड का दूसरा लाभ यह हुआ कि बैंक एकाउंट ख्ुलवाना, पासपोर्ट बनवाना आदि अन्य सरकारी कामों में भी इसका उपयोग होने लगा था। सरकार को आधार कार्ड के उपयोग को एक सीमा में रखने के बजाए राज्यों में कितने बोगस राशन कार्ड हैं, इसकी जांच कर उसे रद्द करने का काम करना चाहिए।
आधार का आधार पहले तो स्पष्ट था, इसके कारण कई बोगस उपभोक्ताओं की पहचान हो गई। भ्रष्टाचार पर अंकुश लग गया। इससे प्रजा का धन योग्य हाथों में जाना शुरू हो गया। आधार कार्ड के कारण यह स्पष्ट हुआ कि 2011 में आंध्र प्रदेश में जब जनसंख्या की गणना हुई, तो पता चला कि जितने राशन कार्ड हैं, उससे अधिक उस राज्य की आबादी है। यानी की आबादी से कई गुना राशन कार्ड थे। इससे बिचौलियों का आधार खत्म हो गया। इन्हीं के कारण सरकार द्वारा दिया जाने वाला लाभ सही हाथों तक नहीं पहुंच पाता था। इससे कई फायदे हुए। लेकिन जो पहले सरकारी सहायता को लोगों तक नहीं पहुंचने देना चाहते थे, वही लोग इससे घबराने लगे। वही लोग जनहित याचिका लगाकर उसे एक बेकार योजना बनाने में लगे हुए हैं। आधार कार्ड जैसी योजना बार-बार देखने को नहीं मिलती। जब तक लार्जर बैंक कोई निर्णय न ले, तब तक आधार कार्ड केवल एलपीजी, केरोसीन और अनाज की सबसिडी में काम में लाई जा सकती है। इससे भले ही सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। लेकिन इसके लाभ को देखते हुए इसे जारी रखना चाहिए। ताकि सरकारी लाभ का फायदा सीधे हितग्राहियों को ही मिले।
डॉ. महेश परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels