शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

भाभी के हाथ की रोटियाँ - के. जयराम

यह कहानी नहीं, हकीकत है। आज से करीब सौ वर्ष पहले की हकीकत। जब भाई-भाई के बीच प्रेम और समर्पण् की एक अनोखी दुनिया होती थी। संबंधों का संसार सजता था और हर संबंध अपने आप में एक अनोखी सुगंध बिखेरता था। आइए, हम चलते हैं समर्पण के इसी संसार में...

रविवार, 24 जनवरी 2016

अंजना बख्‍शी की कविताऍं

साहित्‍य जगत में अंजना बख्‍शी एक जाना-पहचाना नाम है। इनकी कविताऍं मनुष्‍य को भीतर तक आंदोलित करती हैं। समाज में स्‍त्री की सच्‍चाई को उजागर करती इनकी कुछ कविताओं को स्‍वर देते हुए हमें अत्‍यंत प्रसन्‍नता अनुभव हो रही है...

शनिवार, 23 जनवरी 2016

कविता - शिवमंगल सिंह 'सुमन'

हिन्‍दी साहित्‍य जगत में 'सुमन' जी का नाम चिर-परिचित हैा वे हिन्दी के शीर्ष कवियों में से एक हैं। उन्हें सन् 1999 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। अपनी ओजपूर्ण काव्‍यधारा से उन्‍होंने साहित्‍यजगत में अमिट पहचान बनाई है। आज उनकी कविताऍं प्रस्‍तुत करते हुए मुझे भी गर्व अनुभव हो रहा है। तो आइए, सुनते हैं उनकी कुछ ओजपूर्ण कविताऍं...

कहानी - कॉम्‍पलीकेशन

कभी-कभी जिंदगी में कुछ एेसे कॉम्‍पलीकेशन्‍स आ जाते हैं कि लाख प्रयत्‍न करने के बाद भी हम उसे ठीक करने में असमर्थ होते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ डॉ. मयंक की जिंदगी में। कब, क्‍यों और कैसे? इन्‍हीं सवालों के जवाब जानिए इस कहानी में...

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

कहानी - वेदना से संवेदना तक

संवेदना का संबंध मात्र मनुष्‍य से ही नहीं होता, प्रकृति के सानिध्‍य में रहते पेड़-पौधे भी वेदना-संवेदना से जुड़े होते हैं। वे भी अपनी खुशी में खुश होते हैं अौर दुख में दुखी होते हैं। जब वे दुखी होते हैं, तो मुरझाने लगते हैं और खुश होने पर झूमने लगते हैं। इसी बात को प्रस्‍तुत करती है ये संवेदनशील कहानी ...

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

करवा का व्रत - यशपाल

पद्म भूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित यशपाल हिंदी के चुनिंदा प्रतिभाशाली लेखकों में गिने जाते हैं. उन्होंने निबंध, उपन्यास, छोटी कहानियां, नाटक और अपनी आत्मकथा लिखी है. 1976 में उपन्यास 'मेरी तेरी उसकी बात' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया.सुनिए, उनकी कहानी 'करवा का व्रत'...

फैसला - भीष्‍म साहनी

रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्‍हें हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई होने का गौरव प्राप्‍त भीष्‍म साहनी को विशेषत रुप से उनके उपन्‍यास तमस से जाना जाता है। उन्हें १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७५ में शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था। प्रस्‍तुत है, उनकी एक कहानी फैसला...

रविवार, 17 जनवरी 2016

बूढ़ी काकी - मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद की कहानियॉं आम जीवन से जुड़ी हुई होती हैं। बूढ़ी काकी कहानी भी उन्‍हीं में से एक हैं। बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है। इसी उक्ति को इस कहानी के माध्‍यम से दर्शाया गया है। तो आइए, आनंद लीजिए इस कहानी का...

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

बाल कविताऍं - रमेश तैलंग

बच्‍चों की अपनी एक अलग दुनिया होती है। इस दुनिया में सजीव और निर्जीव का भेद मिट जाता है। निर्जीव वस्‍तुऍं भी बातें करती हैं। अपनेपन और मासूमियत से भरी हुई प्‍यारी-प्‍यारी बातें... आइए सुनते हैं, उनकी कुछ प्‍यार भरी मीठी-मीठी बातें कवि रमेश तैलंग की कलम से...

अनुशासन सिखाती पतंग






हरिभूमि मेंं आज प्रकाशित मेरा आलेख



सोमवार, 11 जनवरी 2016

अटल‍ बिहारी वाजपेयी की कुछ कविताऍं -

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने आेजस्‍वी भाषण के लिए पहचाने जाते हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में पहली बार हिंदी में भाषण की शुरुआत करनेवाले वे पहले व्‍यक्ति हैं। कविहृदय वाजपेयी के वक्‍तृत्‍व कला की सराहना पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी की थी। अपनी संवेदनशील कविताओं के माध्‍यम से उन्‍होंने जो विचार व्‍यक्‍त किए हैं, उसे कोई सहृदय व्‍यक्ति ही समझ सकता है। प्रस्‍तुत हैं उनकी कुछ कविताऍं -

बाल कहानी - आरुणि की गुरुभक्ति

एकलव्‍य, उपमन्‍यु, आरुणि ये सभी ऐसे शिष्‍य हैं, जिन्‍होंने अपनी गुरुभक्ति का संसार में एक अनूठा उदाहरण प्रस्‍तुत किया है। गुरु-शिष्‍य परम्‍परा की चर्चा करते हुए इनका नाम सदैव आदर एवं गर्व से लिया जाता रहा है। इन्‍होंने त्‍याग, तपस्‍या और भक्ति का ऐसा पावन स्रोत बहाया है कि संपूर्ण भारतवर्ष इनका सदैव ऋणी रहेगा। आइए जानते हैं, आरुणि की गुरुभक्ति के बारे में -

रविवार, 10 जनवरी 2016

कविता - चूहा और बिल्‍ली, कवि - एस.के.पाण्‍डेय

कवि श्री एस.के.पाण्‍डेय की बाल कविता का मजा लीजिए -

बाल कविताऍं - सफदर हाशमी

साहित्‍य की दुनिया में सफदर हाशमी एक जाना-पहचाना नाम है। आइए सुनते हैं उनकी कुछ बाल कविताऍं -

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

लवशाला - डॉ. रमेश चंद्र महरोत्रा

डॉ. रमेश चंद्र महरोत्रा देश के ख्‍याति प्राप्‍त भाषाविद रह चुके हैं। उनके निर्देशन में पॉंच डी.लिट एवं करीब साठ पी-एच.डी हो चुकी हैं। छत्‍तीसगढ़ी भाषा के विकास के लिए उन्‍होंने अपना अमूल्‍य योगदान दिया। उनका मानना है कि 'लवशाला' को आप प्रतिदिन 'हनुमान चालिसा'की तरह सुनें, जिससे पति-पत्‍नी के बीच सामंजस्‍य बना रहे।

बुधवार, 6 जनवरी 2016

कहानी कादर मियां - लेखक के. जयराम

लेखक के. जयराम यानी केशवजी जयराम राठोड़। इनके अनुभवों से जुड़ी गुजराती कहानियों का संग्रह स्‍मृति बिंदु किताब के रूप में है। इन्‍हीं कहानियों में से एक कहानी कादर मियां का हिंदी अनुवाद कर आप तक पहुँचाने का प्रयास किया है। इस विश्‍वास के साथ कि यह कहानी आपको जरूर पसंद आएगी, तो सुनिए एक मर्मस्‍पर्शी अनुभव -

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

हारे नहीं है हम अभी - 1

जिसने कभी रोशनी से साक्षात्‍कार नहीं किया, वह एक प्राध्‍यापक भी हो सकता है। इसके अलावा वो पी.एच-डी. भी कर सकता है और वह भी गिरीश कर्नाड के नाटकों पर। ऐसे शख्‍स को भला आप क्‍या कहेंगे? डॉ. रोहित त्रिवेदी ही वह शख्‍स हैं, जिन्‍होंने कुछ ऐसा कर दिखाया है जो सक्षम लोग भी मुश्‍ि कल से कर पाते हैं। वे आज के युवाओं की प्रेरणा हैं। जानिए उन्‍हीं के बारे में...

सोमवार, 4 जनवरी 2016

कम नहीं होंगी चुनौतियाँ

दैनिक जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण के संपादकीय पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख

शनिवार, 2 जनवरी 2016

डॉ. महेश परिमल - आओ समय को बोना सीखें...

छत्‍तीसगढ़ की माटी में जन्‍मे महेश परिमल का यह मानना है कि समय को काटना तभी संभव है, जब उसे बोया जाए। समय बोने की यह प्रक्रिया किस तरह की जा सकती है, ये इस लेख में आप स्‍वयं ही सुन लीजिए -

परीक्षा बच्‍चों की, कसौटी पालकों की - डाॅ. महेश परिमल

छत्‍तीसगढ़ की माटी में जन्‍मे डॉ. महेश परिमल मूल रूप से एक लेखक हैं। आजीविका के रूप में पत्रकारिता को अपनाने के बाद उनका लेखनकार्य जीवंत हो उठा। यहाँ उन्‍हीं का एक आलेख प्रस्‍तुत है -

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