शुक्रवार, 18 मार्च 2016

आदमीनामा - नज़ीर अकबराबादी

मरने में आदमी ही कफ़न करते हैं तैयार, नहला-धुला उठाते हैं कांधे पे कर सवार, कलमा भी पढ़ते जाते हैं रोते हैं ज़ार-ज़ार, सब आदमी ही करते हैं मुरदे के कारोबार, और वह जो मर गया है, सो है वह भी आदमी... आदमी की सच्चाई को बयां करती इस रचना का आनंद लीजिए...

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