शनिवार, 30 अप्रैल 2016

अकबर-बीरबल की कहानी - 7

कवि और धनवान आदमी... एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, ‘‘तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।’’ ‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, ‘‘सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।’’ कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, ‘‘अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।’’ कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, ‘‘भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?’’ ‘‘खाना, कैसा खाना ?’’ बीरबल ने पूछा। धनवान को अब गुस्सा आ गया, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?’’ ‘‘खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।’’ जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, ‘‘यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।’’ अब बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो...। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।’’ धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली। वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसाभरी नजरों से देखने लगे। इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

अकबर-बीरबल की कहानी - 6

कहानी... ईश्वर अच्छा ही करता है.... बीरबल एक ईमानदार तथा धर्म-प्रिय व्यक्ति था। वह प्रतिदिन ईश्वर की आराधना बिना नागा किया करता था। इससे उसे नैतिक व मानसिक बल प्राप्त होता था। वह अक्सर कहा करता था कि ‘ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि ईश्वर हम पर कृपादृष्टि नहीं रखता, लेकिन ऐसा होता नहीं। कभी-कभी तो उसके वरदान को भी लोग शाप समझने की भूल कर बैठते हैं। वह हमको थोड़ी पीड़ा इसलिए देता है ताकि बड़ी पीड़ा से बच सकें।’ एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, ‘‘देखो, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया-कल-शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह अच्छा किया है ?’’ कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, ‘‘मेरा अब भी यही विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है।’’ सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया। तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर बोले, ‘‘बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं, लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की जाए।’’ बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, ’’ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा अब।’’ तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई। ‘‘नहीं, इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।’’ मंदिर का पुजारी बोला, ‘‘यदि नौ उंगलियों वाले इस आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे, अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।’’ और उस दरबारी को मुक्त कर दिया गया। अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा। तभी बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह गए। ‘‘तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?’’ अकबर ने सवाल किया। जवाब में उस दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, ‘‘अब मुझे विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।’’ अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है। इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

अकबर-बीरबल की कहानी - 5

बीरबल की ख‍िचड़ी... कहानी का कुछ अंश... एक बार बादशाह अकबर ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति सर्दी के इस ठिठुरते हुए मौसम में भी रात के समय नर्मदा के पानी में घुटनों तक डूब कर पूरी रात खड़ा रहेगा, उसे भरपूर ईनाम दिया जाएगा। एक धाोबी जो कि अपनी गरीबी से तंग आ गया था, उसने अपनी गरीबी दूर करने के लिए ठंडे पानी में खड़े रहने की हिम्मत की और पूरी रात खड़ा रहा। सुबह वह बादशाह के दरबार में ईनाम लेने के लिए गया। बादशाह ने उससे पूरी रात खड़े होने का सबूत देने के लिए कहा। धाेबी बोला - जहांपनाह, मैं सारी रात नदी के किनारे महल के एक छोर पर जल रहे दीपक की लौ को देखता रहा। इसतरह सारी रात कट गई। बादशाह नाराज हो गए और बोले - इसका अर्थ ये हुआ कि तुम्हें उस महल के छोर पर जल रहे दीपक से गरमी मिलती रही और इसी कारण तुम्हें रात गुजारने में परेशानी नहीं हुई। उन्होंने क्रोध में आकर उस धाोबी को जेल में बंद करवा दिया। जब अकबर ने यह किस्सा सुना और भरे दरबार में धोबी का अपमान देखा तो वह दुखी हो गए। उन्होंने उस धोबी की सहायता करनी चाही। अकबर ने धोबी की सहायता करने का क्या उपाय किया, यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

अकबर-बीरबल की कहानी - 4

स्वर्ग की यात्रा... कहानी का अंश... जब से बीरबल बादशाह अकबर के दरबार में शामिल हुआ था, तब से अकबर के दरबार के कुछ मंत्री खुश नहीं थे। अकबर ने बीरबल का पक्ष अधिक लेना शुरू कर दिया था। इस बात ने मंत्रियों को बीरबल से ईष्र्या करने वाला बना दिया। उन्होंने शाही नाई की मदद लेने का निश्चय किया। नाई एक गरीब व्यक्ति था। वह मंत्रियों की इस बुरी योजना में शामिल नहीं होना चाहता था किन्तु उनके द्वारा दिए गए सोने के सिक्कों के कारण वह उनका विरोध नहीं कर सका। इसलिए वह मदद के लिए राजी हो गया। एक दिन जब वह अकबर के बाल काट रहा था तो उसने कहा, ”जहांपनाह! कल रात मैंने एक सपना देखा। आपके पिता मेरे सपने में आये और बोले की वह स्वर्ग में आराम से हैं। उन्होंने आपको चिन्ता न करने को कहा।“ अकबर ने जब यह सुना तो वे उदास हो गये। क्योंकि जब उनके पिता मरे थे, तब वे बहुत छोटे थे। वे अपने पिता को बहुत ज्यादा याद करते थे। वह बोले, ”मेरे पिता ने और क्या कहा? मुझे सब कुछ बताओ।“ नाई ने कहा, ”जहांपनाह! उन्होंने कहा कि वह ठीक हैं, किंतु थोड़ा बहुत ऊब गए हैं। वह बोले, यदि आप बीरबल को वहां भेज देंगे तो वह उन्हें बहुत खुश रखेगा। वह स्वर्ग से बीरबल को देखते हैं और उसकी बुद्धि और हास्य की प्रशंसा करते हैं।“ अकबर ने बीरबल से कहा, ”प्रिय बीरबल! मैं तुम से बहुत खुश हूं। किंतु अपने पिता के पास तुम्हें भेजते हुए मुझे बहुत दुख हो रहा है, जो स्वर्ग में खुश नहीं हैं, वे तुम्हें अपने पास बुलाना चाहते हैं। तुम्हें स्वर्ग में जाना होगा और उनका मनोंरजन करना होगा।“ बीरबल ने यह सुना, तो वह चौंक गया। बाद में उसे पता चला कि यह मंत्रियों और नाई द्वारा बनाई गई योजना थी। उसने अपने घर के बाहर एक कब्र खुदवाई और कब्र के साथ एक सुरंग खोदी, जो उसके शयनकक्ष तक जाती थी। फिर वह अकबर के पास गया और बोला, ”मैं स्वर्ग जाने के लिए तैयार हूं। किन्तु हमारे परिवार की परम्परा है कि हमें अपने घर के बाहर दफन किया जाता है। मैंने पहले से ही कब्र की व्यवस्था कर ली है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि मुझे वहां जिंदा दफन कर दिया जाए।“ अकबर ने बीरबल की इच्छा पूरी की। बीरबल को जिंदा दफन कर दिया गया। बीरबल सुरंग के रास्ते से अपने घर आ गया। तीन सप्ताह बाद वह अकबर के दरबार में गया। हर कोई बीरबल को देख कर हैरान था। अकबर ने कहा, ”तुम स्वर्ग से वापस कब आए? मेरे पिताजी कैसे हैं? और तुम इतने भद्दे क्यों दिख रहे हो?“ बीरबल बोला, ”महाराज आपके पिता जी ठीक हैं। उन्होनें आपको अपनी शुभकामनाएं भेजी हैं। किंतु जहांपनाह, स्वर्ग में कोई नाई नहीं है। इस वजह से मैं बहुत भद्दा दिख रहा हूं। यदि आपकी कृपा हो तो शाही नाई को आपके पिता जी के पास भेजा जाए जिससे उन्हें ख़ुशी मिलेगी।“ सम्राट ने तुरंत आदेश दिया कि नाई को जिंदा दफन करके स्वर्ग भेजा जाए। नाई अकबर के पैरों में गिर गया और क्षमा मांगने लगा। इसके बाद उसने सब कसूर कबूल कर लिया। अकबर ने यह योजना बनाने वाले सभी मंत्रियों को निकाल दिया और नाई को दस कोड़े मारने का दंड दिया। इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से सुनकर लीजिए...

अकबर- बीरबल की कहानी - 3

एक बार बादशाह अकबर के शहर में एक व्यक्ति रहता था। उसके जीने का तरीका अजीब था। वह लोगों को बेवकूफ बनाकर पैसे कमाता था। एक बार वह बाजार में एक बहुत अमीर व्यापारी से मिला, जो बाहरी देश से आया हुआ था। वह इस शहर में नया था। इसलिए जब धोखेबाज ने उसे अपने घर रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया, तो व्यापारी ने इस उम्मीद से आमंत्रण स्वीकार कर लिया कि इस नये शहर में उनके नये दोस्त बन जाएंगे। उस रात उन्होंने लाजवाब खाना खाया और बहुत देर तक बातें की। फिर व्यापारी और मेजबान सोने के लिए बिस्तर पर चले गये। अगली सुबह धोखेबाज ने व्यापारी से कहा, ”मैंने रात को आपको खाने पर आमंत्रित किया और एक अच्छे मेजबान की भूमिका निभाई। इस बात के लिए आप मुझे कैसे भुगतान करेगें?“ व्यापारी पूरी तरह भ्रमित था। उसने कहा, ”मैं नही जानता कि तुम किस बारे में बात कर रहे हो।“ धोखेबाज बोला, ”आपने मेरा हीरा चोरी कर लिया है। मैं उसे वापस चाहता हूं।“ व्यापारी ने कहा, ”मित्र मैं नहीं जानता कि तुम किस हीरे की बात कर रहे हो। मुझे बिल्कुल पता नहीं है।“ उन दोनों में लड़ाई शुरू हो गई। आखिरकार वे दोनों इसके समाधान के लिए अदालत में जाने को तैयार हो गये। बादशाह अकबर दोनों की कहानी सुनकर हैरान हो गए। उन्होंने बीरबल को यह मामला सुलझाने को कहा। धोखेबाज ने कहा, ”महाराज! मेरे पास गवाह है, जिसने व्यापारी को हीरा चोरी करते हुए देखा है बीरबल ने कहा, ”अपने गवाहों को बुलाओ। मैं इस बारे में उनसे कुछ पूछना चाहूंगा।“ एक नाई और दर्जी धोखेबाज के गवाह थे। बीरबल ने दोनों को अलग-अलग कमरों में बैठा दिया। फिर उन्हें मिट्टी का ढेर देकर हीरे के आकार के रूप में करने को कहा। नाई ने अपने जीवन में कभी हीरा नहीं देखा था। उसके पिता ने उसे बताया था कि नाई का हीरा उसका उस्तरा होता है। इसलिए उसने मिट्टी को उस्तरे की तरह आकार दे दिया।“ दर्जी की मां ने भी कहा था कि दर्जी का हीरा उसकी सुई होती है। इसलिए उसने मिट्टी को सूई की तरह आकार दे दिया। जब बीरबल ने देखा कि दोनों गवाहों ने क्या बनाया है तो वह बोला, ”जहांपनाह! इन दोनों में से किसी ने भी हीरा नहीं देखा है। तो कैसे इन दोनों ने व्यापारी को हीरा चोरी करते हुए देखा है। यह कहानी झूठी है। व्यापारी निर्दोष है। यह साबित होता है कि धोखेबाज ने नाई और दर्जी को झूठे गवाह बनने के लिए रिश्वत दी है।“ व्यापारी ख़ुशी से वापिस अपने घर चला गया, जबकि धोखेबाज को कैद खाने में डाल दिया गया। इस कहानी का आनंद आॅडियो की मदद से लीजिए...

सलमान खान एक बार फिर विवादों में

डॉ. महेश परिमल
लगता है विवादों के साथ सलमान खान का अटूट रिश्ता है। यह भी कहा जा सकता है कि विवाद में रहना उनकी आदत में शुमार हो गया है। सलमान के खिलाफ हिट एंड रन से लेकर चिंकारे के शिकार को लेकर अदालतों में केस चल रहा है। शराब पीकर कार चलाने के मामले पर वे अभी तक पूरी तरह से निर्दोष साबित नहीं हुए हैं। क्योंकि अदालत के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत में अपील की है। इन हालात में रियो ओलंपिक के लिए इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने सलमान खान को भारतीय टीम का गुडविल एम्बेसेडर बनाकर इस विवाद को और छेड़ दिया है।
सोशल मीडिया में इस समय सलमान के समर्थन और उनके खिलाफ एक तरह से जंग ही छिड़ गई है। इस विवाद को एक तरह से सलमान की आने वाली फिल्म सुल्तान’ के प्रमोशन के साथ भी देखा जा रहा है। तय है इससे फिल्म को फायदा होगा। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि गुडविल एम्बेसेडर के रूप् में किसी विख्यात व्यक्ति को लिया गया है। सलमान के साथ अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान का भी नाम था। पर इन दोनों को छोड़कर केवल सलमान के नाम पर सहमति बनी। इंडियन ओलंपिक ऐसोसिएशन ने आखिर गुडविल एम्बेसेडर के रूप् में सलमान को ही क्यों चुनायह बात समझ में नहीं आ रही है। फिर भी यह तो कहा ही जा सकता है कि स्वयं सलमान ही इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के पास गुडविल एम्बेसेडर बनने के लिए गए थे। ऐसा एसोसिएशन के खुलासे में सामने आया है। एक और बात यह है कि सलमान में दर्शकों को खींचकर लाने की काबिलियत है। अधिक दर्शक आएंगेतो कमाई भी अच्छी होगी। यदि कमाई देने वाला व्यक्ति हैतो एसोसिएशन को सलमान के भूतकाल से कोई लेना-देना नहीं है। यानी सबसे बड़ा रुपैया वाली कहावत सलमान के मामले में भी फिट बैठती है।
बताया गया है कि इस काम के लिए सलमान खान एक पैसा भी नहीं लेंगे। पर ऐसा तो अमिताभ बच्चन ने भी किया है। गुजरात के ब्रांड एम्बेसेडर बनकर। यदि गुडविल एम्बेसेडर बनाने के लिए इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन ने सलमान का नाम तय कर लिया हैतो उसे कोई रोकने वाला भी नहीं है। उसे तो कमाई से मतलब हैउसके भूतकाल से नहीं। मिल्खा सिंह या योगेश्वर दत्त उतनी कमाई नहीं करा पातेजितनी सलमान करवा सकते हैं। इनका विरोध अपनी जगह ठीक है। पर इतना जान लो कि सलमान आदतन अपराधी नहीं हैं। अगर उनसे गुनाह हुआ हैतो वे उसकी सजा भी भुगतने के लिए तैयार हैं। इसके अलावा सलमान के कई अच्छे पक्ष भी हैंजो यदा-कदा मीडिया पर आते रहते हैं। उनकी दानशीलतादयाशीलता,अच्छे व्यवहार आदि पर भी कई किस्से हैंयदि उन्हीं किस्सों को सामने लाया जाएतो वे भी एक सहृदय मानव हैं।
इस समय खेल जगत से सलमान को लेकर काफी टिप्पणियां आ रही है। कई खिलाड़ी सलमान के समर्थन में हैंउनका मानना है कि सलमान के गुडविल एम्बेसेडर बनने से पदक हासिल हो या न होपर युवाओं में खेल के प्रति रुझान बढ़ेगा। वैसे सलमान स्वयं भी एक अच्छे वेट लिफ्टर,साइकिलिस्टस्वीमर हैं। वे युवाओं के लिए प्रेरणा भी हैं। सलमान के विरोध में भी कई लोग आ खड़े हुए हैं। उनका तर्क है कि सलमान अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए कहीं भी जा सकते हैंपर ओलंपिक के मैदान को वे हथियार नहीं बना सकते। खेल जगत और फिल्म जगत के बीच यह विवाद अभी और गहराएगाइसमें कोई दो मत नहीं। मिल्खा सिंह और योगेश्वर दत्त का कहना है कि किसी खिलाड़ी को ही गुडविल एम्बेसेडर बनाया जाना चाहिए। मिल्खा सिंह तो साफ कहते हैं कि उनका विरोध सलमान के प्रति नहीं है। उनका विरोध यह है कि किसी फिल्म स्टार को गुडविल एम्बेसेडर क्यों बनाया जाएउनकी जगह कोई खिलाड़ी ही ले सकता है। इस मामले में सलमान के पिता सलीम खान तो खुलकर सामने आ एग हैं। अब रजा मुराद भी सलमान के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। उनका कहना है कि सलमान भारत के युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। वे युवाओं में खेल के प्रति रुझान पैदा करने में सक्षम हैं। एक कदम आगे बढ़ते हुए रजा मुराद तो यहां तक कहते हैं कि मिल्खा सिंह ने भारत के लिए कभी कोई ओलंपिक पदक नहीं जीता। भारत की नई पीढ़ी उन्हें भूल चुकी थी। यदि उनके नाम से फिल्म नहीं बनती, तो वे एक तेज दौड़ने वाले व्यक्ति के रूप में ही जाने जाते। फिल्म ने उन्हें नई पहचान दी है।
लंदन ओलंपिक्स में भारत के लिए कांस्य पदक जीतने वाले योगेश्वर दत्त इसमें किसी खेल की साजिश देख रहे हैं। ट्विटर पर कटाक्ष करते हुए वे कहते हैं कि सलमान खान को अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए कहीं भी जाने का अधिकार है, पर ओलंपिक इसके लिए उचित स्थान कदापि नहीं है। उन्होंने सवाल किया है कि सलमान खान को गुडविल एम्बेसेडर बना दिए जाने से क्या भारतीय टीम को और अधिक पदक मिल जाएंगे। योगेश्वर चाहते हैं कि सलमान के बजाए यदि मिल्खा सिंह या पी.टी. उषा को गुडविल एम्बेसेडर बना दिया जाता, तो बेहतर होता। सोशल मीडिया में इस मामले पर एक अभियान ही चल रहा है। विरोध करने वाले यह कह रहे हैं कि मुम्बई में शराब पीकर गाड़ी चलाने और राजस्थान में चिंकारे का शिकार के मामले में सम्बद्ध सलमान युवाओं को कैसी प्रेरणा देंगे? दूसरी तरफ सलमान के समर्थक कह रहे हैं कि सलमान स्वयं भी स्पोर्ट्समेन हैं। स्पोटर्समेन हैं। उन्होंने साइकिलिंग, स्विमिंग और वेट लिफ्टिंग की है। उन्हें भारत के गुडविल एम्बेसेडर बनने का पूरा अधिकार है। सलमान के समर्थन में भारतीय हॉकी टीम के केप्टन सरदार सिंह, भारत के शूटिंग स्टार अभिनव बिंद्रा, बॉक्सर मेरी काम, शतरंज चेम्पियन विश्वनाथ आनंद ने यही कहा है कि सलमान के नाम पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसे फिल्मी सितारों का नाम ओलंपिक से जुड़ने पर खेल की दुनिया को फायदा ही होगा।
कुछ भी हो, पर सच तो यह है कि इस बार सलमान खान के चयन को लेकर विवाद है। एक बात यह भी सामने आ रही है कि उन्होंने इस चयन प्रक्रिया में अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान को पछाड़ा है। यह बात उनके समर्थकों को अच्छी नहीं लगी होगी, इसलिए वे भी विरोध कर रहे हैं। विरोध अपनी जगह है, पर विरोध का तरीका केवल तर्क तक ही सीमित रहे, तो ही बेहतर। यह विरोध हिंसा का रूप् न ले, यही कामना की जा सकती है।
डॉ. महेश परिमल

अकबर-बीरबल की कहानी - 2

कंजूस व्यापारी... कहानी का कुछ अंश... अकबर के राज्य में हरिनाथ नाम का एक व्यक्ति रहता था। हरिनाथ एक प्रतिभाशाली चित्रकार था। वह चित्र बनाकर अपना जीवन व्यतीत करता था। क्योंकि वह चित्रकारी में बहुत अच्छा था, इसलिए वह पूरे राज्य में प्रसिद्ध था। दूर दराज के क्षेत्रों के अमीर लोग उससे अपना चित्र बनाने का आग्रह करते थे। हरिनाथ एक चित्र बनाने में बहुत समय लगाता था, क्योंकि वह पहले उसकी पूरी जानकारी इकट्ठी करता था इसी कारण उसके चित्र जीवित प्रतीत होते थे। परंतु वह बहुत पैसे नहीं कमा पाता था और कमाया हुआ अधिकतर धन चित्र बनाने के लिए कच्चे माल की खरीद में खर्च हो जाता था। एक दिन एक अमीर व्यापारी ने हरिनाथ को एक चित्र बनाने के लिए आमंत्रित किया। हरिनाथ इस उम्मीद से व्यापारी के घर गया कि यह उसे उसके काम के अच्छे पैसे दे देगा। वह कुछ दिनों के लिए वहां रूका और उसने व्यापारी को अपनी चित्रकारी से संतुष्ट करने के लिए कड़ी मेहनत की। किन्तु व्यापारी एक कंजूस व्यक्ति था। जब कुछ दिनों की कड़ी मेहनत के बाद चित्र पूरा हो गया, तब हरिनाथ उसे व्यापारी के पास ले गया। कंजूस व्यापारी ने मन में सोचा, ”यह चित्र तो वास्तव में बहुत अच्छा है किन्तु यदि मैंने इसकी सुन्दरता की तारीफ करी, तो मुझे हरिनाथ को सोने के सौ सिक्के अदा करने होंगे।“ इसलिए व्यापारी ने चित्र में गलतियां ढूंढनी शुरू कर दी। उसने कहा, ”तुम ने इसमें मेरे बाल सफेद कर दिये और मुझे ऐसा दिखा दिया कि मैं बूढ़ा हो गया हूं। मैं इसका भुगतान नहीं करूंगा।“ हरिनाथ हैरान रह गया। वह नहीं जानता था कि व्यापारी उसे चित्रकारी के पैसे नहीं देना चाहता था, इसलिए चित्र में गलतियां ढूंढ रहा है। हरिनाथ ने कहा, ”मेरे मालिक! यदि आप चाहें, तो मैं यह चित्र दुबारा बना देता हूं। इसलिए उसने सफेद बालों को ढक दिया। किंतु व्यापारी ने जब दुबारा बने चित्र को देखा, तो वह उसमें गलतियां निकालने लगा। उसने कहा, ”इसमें तो मेरी एक आंख दूसरी आंख से छोटी है। मैं तुम्हें इस बकवास चित्र के लिए कोई भुगतान नहीं करूंगा।“ हरिनाथ ने फिर से चित्र को सुधारने की पेशकश की चित्र बनाने के लिए कुछ समय मांगकर वहां से चला गया। हर बार हरिनाथ व्यापारी के पास चित्र लेकर जाता, परंतु वह उसमें और गलतियां दिखाने लगता। अंत में जब हरिनाथ व्यापारी से थक गया तब वह बीरबल के पास सहायता मांगने गया। बीरबल ने उस चित्रकार की सहायता की या नहीं और यदि की भी तो किस प्रकार... ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

अकबर- बीरबल की कहानी - 1

बीरबल की चतुराई के किस्से तो संसार में प्रसिद्ध्‍ हैं ही। यहाँ उनका ही एक क‍िस्सा बताया जा रहा है... एक बार एक अजनबी व्यक्ति बादशाह अकबर के दरबार में आया और बादशाह के सम्मान में झुककर उसने कहा, ”जहांपनाह! मैं बहुत सारी भाषाओं में बात कर लेता हूं। मैं आपकी बहुत अच्छी सेवा कर सकता हूं, यदि आप मुझे अपने दरबार में मंत्रियों में शामिल कर लें।“ बदशाह ने उस व्यक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उसने अपने मंत्रियों को उस आदमी से विभिन्न भाषाओं में बात करने को कहा। अकबर के दरबार में अलग-अलग राज्यों के लोग रहते थे। हर किसी ने उससे अलग-अलग भाषा में बात की। प्रत्येक मंत्री जो आगे आकर उससे अपनी भाषा में बात करता, वह व्यक्ति उसी भाषा में उत्तर देता था। सारे दरबारी उस व्यक्ति की भाषा कौशल की तारीफ करने लगे। अकबर उससे बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसे अपना मंत्री बनने की पेशकश की। किन्तु व्यक्ति ने कहा, ”मेरे मालिक! मैंने आज कई भाषाओं में बात की। क्या आपके दरबार में कोई है, जो मेरी मातृभाषा बता सके।“ कई मंत्रियों ने उसकी मातृभाषा बताने की कोशिश की, परंतु असफल रहे। वह व्यक्ति मंत्रियों पर हंसने लगा। उसने कहा, ”मैंने यहां के बारे में सुना है कि इस राज्य में बुद्धिमान मंत्री रहते हैं। किंतु मुझे लगता है कि मैंने गलत सुना है।“ अकबर को बहुत शर्मिदंगी हुई। वह बीरबल की ओर सहायता के लिए देखने लगा। उसने बीरबल से कहा, ”कृपया मुझे इस अपमान से बचाने के लिए कुछ करो।“ बीरबल ने उस व्यक्ति से कहा, ”मेरे दोस्त! आप थके लग रहे हैं। आपने निश्चय ही यहां दरबार तक आने में बहुत लंबा रास्ता तय किया है। कृप्या आज आप आराम करें। मैं कल सुबह आपके प्रश्न का जवाब दे दूंगा।“ वास्तव में व्यक्ति बहुत थका हुआ था। उसने बादशाह से जाने की आज्ञा ली और चल दिया। उसने स्वादिष्ट खाना खाया और शाही अतिथि कक्ष में आराम करने चला गया। सभी मंत्रियों के जाने के बाद अकबर ने बीरबल से कहा, ”तुम इस व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर कैसे दोगे?“ बीरबल ने कहा, ”जहांपनाह! चिंता नहीं करें। मेरे पास एक योजना है।“ उस रात जब महल में हर कोई गहरी नींद में सो रहा था, तब बीरबल ने काला कम्बल अपने चारों ओर लपेटा और चुपके से अजनबी व्यक्ति के कक्ष में गया। बीरबल ने घास की टहनी से व्यक्ति के कान में गुदगुदी की। व्यक्ति तुरंत उठ गया। किंतु जब उसने अंधेरे में काले शरीर वाला देखा तो उसने सोचा कि वह भूत है। उसने उडि़या भाषा में चिल्लाना शुरू कर दिया, ”हे भगवान जगन्नाथ, मुझे बचाओ! मुझ पर भूत ने हमला कर दिया है।“ अचानक बादशाह ने अपने मंत्रियों सहित कक्ष में प्रवेश किया। बीरबल ने कम्बल को फ़र्श पर फेंक दिया और कमरे में प्रकाश कर दिया। उसने व्यक्ति से कहा, ”तो तुम उड़ीसा निवासी हो और तुम्हारी मातृभाषा उडि़या है। मैं सही कह रहा हूं ना,“ व्यक्ति ने बीरबल से कहा कि वह सही है। अकबर ने कहा, ”एक आदमी चाहे कितनी भी भाषाएं बोल ले, लेकिन वह जब डरता है तो अपनी मातृभाषा में ही चिल्लाता है।“ बीरबल ने पहेली को हल कर दिया। अकबर ने उसकी चतुराई के लिए उसकी प्रशंसा की। इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

कविताएँ - भारती परिमल

कविता का कुछ अंश... इस बार इस बार जब आएगी वो अपनी भीगी आँखें लेकर झरती बूँदों की गरमाहट अपनी हथेली पर नहीं महसूस करूँगी मैं चुनौती दूँगी उसे गरमाहट को लावा बना देने की। इस बार जब आएगी वो बहता लहू और गहरी चोट लेकर नहीं लगाऊँगी कोई मरहम नहीं निकलेगी मुँह से आह वो खुद ही भरेगी अपने गहरे ज़ख्म इस बार जब आएगी वो लोगों के फिकरे-ताने लेकर नहीं दूँगी किसी का जवाब सवाल फेंकती निगाहें भी नहीं उठाऊँगी उसकी ओर मौन रहकर ही तैयार करूँगी उसे लोगों को लाजवाब करने के लिए इस बार तय कर लिया है नहीं बनाऊँगी उसे कमज़ोर सामना करना है उसे हर दर-ओ-दीवार का हर अनाचार-अत्याचार का इस समाज और संसार का अंतर समझ आना ही चाहिए पान की पीक और लहू का खिलखिलाहट और अट्टहास का सुमधुर बोली और विभत्स वाणी का स्नेहासिक्त और वासनामयी दृष्टि का इस अंतर को समझाने के लिए हर सच्चाई अनुभव करवाने के लिए मैं नहीं रहूँगी उम्र के हर मोड़ पर साथ उसे थामना होगा अपना ही हाथ क्योंकि - अब बिटिया बड़ी हो रही है... अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

कहानी - अहसास - मनोज चौहान

कहानी का कुछ अंश... सुधीर की पत्नी मालती की डिलीवरी हुए आज पाँच दिन हो गए थे। उसने एक बच्ची को जन्म दिया था और वह शहर के सिविल हॉस्पिटल में एडमिट थी। सुधीर और उसके घर वालों ने बहुत आस लगा रखी थी कि उनके यहाँ लड़का ही पैदा होगा। सुधीर की माँ मालती का गर्भ ठहरने के बाद अब तक कितनी सेवा और देखभाल करती आई थी। मगर नियति के आगे किसका वश चलता है। आखिर लड़की पैदा हुयी और उनके खिले हुए चेहरे मायूस हो गए। सुधीर तो इतना निराश हो गया था कि डिलीवरी के दिन के बाद, वो दोबारा कभी अपनी पत्नी और बच्ची से मिलने हॉस्पिटल नहीं गया था। सुधीर आई.पी.एच. विभाग में सहायक अभियन्ता के पद पर कार्यरत था। उस रोज़ वह दफ़्तर में बैठा था। उसके ऑफ़िस में काम करने वाला चपरासी रामदीन छुट्टी की अर्जी लेकर आया। कारण पढ़ा तो देखा की पत्नी बीमार है और देखभाल करने वाला कोई नहीं है। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था। इसीलिए रामदीन 15 दिन की छुट्टी ले रहा था। सुधीर ने पूछा कि तुम्हारा बेटा और बहू तुम्हारी पत्नी की देखभाल नहीं करते। यह सुनकर रामदीन ख़ुद को रोक ना सका और फफक- फफक कर रोने लग गया। सुधीर ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। उसकी आँखों से निकलने वाली अश्रुधारा ने सुधीर को एक पल के लिए विचलित कर दिया। रामदीन बोला, "साहब,अपने जीवन की सारी जमा पूँजी मैंने बेटे की पढ़ाई पर ख़र्च कर दी।" सोचा था कि पढ़–लिख कर कुछ बन जाएगा तो बुढ़ापे की लाठी बनेगा। मगर शादी के छः महीने बाद ही वह अलग रहता है। उसे तो यह भी नहीं मालूम की हम लोग ज़िन्दा हैं या मर गए। ऐसा तो कोई बेगाना भी नहीं करता, साहब। काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती तो आज हमारे बुढ़ापे का सहारा तो बनती।" इतना कहकर रामदीन चला गया। सुधीर ने उसकी अर्जी तो मंजूर कर ली मगर उसके ये शब्द कि "काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती," उसे अन्दर तक झकझोरते चले गए। एक वो था जो लड़की के पैदा होने पर ख़ुश नहीं था और दूसरी ओर रामदीन लड़की के ना होने पर पछता रहा था। सुधीर सारा दिन इसी कशमकश में रहा। कब पाँच बज गए उसे पता ही नहीं चला। छुट्टी होते ही वह ऑफ़िस से बाहर निकला और उसके क़दम अपनेआप ही सिविल हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगे। "मैटरनिटी वार्ड" में दाख़िल होते ही उसने अपनी पाँच दिन की नन्ही बच्ची को प्यार से पुचकारना और सहलाना शुरू कर दिया। मालती सुधीर में आये इस अचानक परिवर्तन से हैरान थी। अपनी बच्ची के लिए सुधीर के दिल में प्यार उमड़ आया था। वह आत्ममंथित हो चुका था और उसे अहसास हो गया था की एक लड़की जो माँ-बाप के लिए कर सकती है, एक लड़का वो कभी नहीं कर सकता। उसे रामदीन के वो शब्द अब भी याद आ रहे थे कि काश! मेरी लड़की ...... ऑडियो के माध्यम से इस कहानी का सुनकर आनंद लीजिए...

कहानी - नव अवतार - भूपेन्द्र कुमार दवे

कहानी का कुछ अंश... हम पाँच बूढ़े मंदिर के सामने बने चबूतरे पर सूर्योदय होते ही जमा हो जाते थे। जो पहले आता, वह मंदिर की घंटी बजाता। उस दिन सतीश शर्मा ने आकर घंटी बजाई थी सो कहने लगे कि आज उन्होंने भगवान को जगाने का काम किया था। पर उनकी इस मजाक को सभी ने गंभीरता से ले लिया और बहस भगवान के जागने के महत्व पर टिक गई। पांड़ेजी ने चिंता जताई कि और कितने अधर्म के बाद भगवान अवतार लेंगे? एक तरह से उन्होंने भगवान के जागरण को अवतार से जोड़ दिया था। मिश्राजी ने कहा, ‘इस युग में तो उनके अवतरित होने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि अणुबम पटके जाने के दिन ही अधर्म पराकाष्ठा पर पहुँच चुका था।’ ‘इस विज्ञान के युग में तो उनके अवतार लेकर आने से भी कुछ नहीं होने का।’ तिवारीजी ने बहस में नया मोड़ लाने की कोशिश की। पर शर्माजी के धार्मिक-संस्कृति में फले-फूले विचार इससे सहमत नहीं हो सके। वे कहने लगे कि भगवान ने समय-समय पर मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन आदि विचित्र अवतार लिये हैं और आज वे हर व्यक्ति के जीवन में इसी तरह का एक विचित्र अवतार लेकर प्रकट होते रहते हैं ताकि हरेक मनुष्य अपने निर्धारित पुण्यपथ पर बेझिझक आगे बढ़ता चले। शर्माजी ने कहा कि उन्हें भी भगवान ने पथभ्रमित होने से बचाया था --- विश्व विकलांग दिवस पर --- एक अपंग बालक के रूप में अवतरित होकर। इस अवतार की कथा उसी के शब्दों में सुनना बेहतर होगा। उन्होंने कहा, ‘वह 3 दिसम्बर, विश्व विकलांग दिवस था। उस दिन को मैं भूल नहीं पा रहा हूँ जब मैंने बैंक के अंदर पैर रखा था। उस समय मैं आम आदमियों की तरह एकदम सामान्य था। मुझे बैंक से पैसे निकालने थे। मात्र दो हजार। मुझे कुछ ज्यादा की जरुरत थी पर मेरा बैंक-बैलेंस कह रहा था कि मैं इससे अधिक नहीं निकाल सकता था। मैं लाचार था, पर जैसे ही मैं बैंक से बाहर आ ही रहा था कि मेरी नजर एक वृद्ध पर पड़ी। उसने शायद बड़ी रकम निकाली थी और अपने काँपते हाथें से पैसों की गड्डी एक काले बैग में रख रहा था। न जाने क्यों मेरे कदम बेंक से बाहर आते ही ठिठक गये, उस वृद्ध के इंतजार में। वह बाहर आया और अपनी गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी चल पड़ी। मैं फूर्ती से आगे बढ़ा और अपना स्कूटर ले उसके पीछे लग गया। शहर के एक सूनसान छोर पर जाकर उसकी गाड़ी रुकी। मैंने एक पेड़ के पास अपना स्कूटर रोका। वृद्ध अपने घर में चला गया और गाड़ी का ड्राइवर गैराज में गाड़ी रख दरवाजे पर ही चाभी झुलाता बैठ गया। शाम ढलने लगी। धुधंलका छाने लगा। पर ड्राइवर बैठा रहा। शायद उसे आदेश था कि अंधेरा होने तक रुके। मैं अपने अंदर झुँझलाहट महसूस कर रहा था। मैं अपने अंदर की ताकत को शनैः शनैः कमजोर होता देखने लगा था। पर आज सोचता हूँ कि वह कमजोरी नहीं थी बल्कि वह ताकत थी जो ईश्वर अंतिम समय तक मनुष्य को देता जाता है ताकि वह उसी पथ पर कायम रहे जिसपर चलने ईश्वर ने उसे दुनिया में भेजा है। तभी अचानक ड्राइवर उठकर दरवाजे के अंदर गया और तुरंत ही बाहर आ गया। जैसे ही वह फाटक के बाहर आया, मेरे अंदर के शैतान ने मुझे उकसाया। तभी ईश्वरने मुझे रोकने एक अंतिम प्रयास किया। घनघोर बादलों की फौज ने अचानक आकाश को घेर लिया और बिजली तेजी से कोंधने लगी। बारिश की उग्रता इतनी थी कि मैं तत्क्षण भींग गया। मुझे लौट पड़ना था। पर मैंने दौड़ लगाई और वृद्ध के दरवाजे पर जाकर काॅल बेल दबाई। ‘कौन है?’ एक धीमी आवाज दरवाजे की सुराख से बाहर झाँकने लगी। मैंने फिर घंटी दबाई। आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

चूहा और मैं - हरिशंकर परसाई

लेख का कुछ अंश... चाहता तो लेख का शीर्षक ''मैं और चूहा'' रख सकता था। पर मेरा अहंकार इस चूहे ने नीचे कर दिया। जो मैं नहीं कर सकता, वह मेरे घर का यह चूहा कर लेता है। जो इस देश का सामान्‍य आदमी नहीं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ करके बता दिया। इस घर में एक मोटा चूहा है। जब छोटे भाई की पत्‍नी थी, तब घर में खाना बनता था। इस बीच पारिवारिक दुर्घटनाओं-बहनोई की मृत्‍यु आदि के कारण हम लोग बाहर रहे। इस चूहे ने अपना अधिकार मान लिया था कि मुझे खाने को इसी घर में मिलेगा। ऐसा अधिकार आदमी भी अभी तक नहीं मान पाया। चूहे ने मान लिया है। लगभग पैंतालिस दिन घर बन्‍द रहा। मैं तब अकेला लौटा। घर खोला, तो देखा कि चूहे ने काफी क्रॉकरी फर्श पर गिराकर फोड़ डाली है। वह खाने की तलाश में भड़भड़ाता होगा। क्रॉकरी और डिब्‍बों में खाना तलाशता होगा। उसे खाना नहीं मिलता होगा, तो वह पड़ोस में कहीं कुछ खा लेता होगा और जीवित रहता होगा। पर घर उसने नहीं छोड़ा। उसने इसी घर को अपना घर मान लिया था। जब मैं घर में घुसा, बिजली जलाई तो मैंने देखा कि वह खुशी से चहकता हुआ यहाँ से वहाँ दौड़ रहा है। वह शायद समझ गया कि अब इस घर में खाना बनेगा, डिब्‍बे खुलेंगे और उसकी खुराक उसे मिलेगी। दिन-भर वह आनन्‍द से सारे घर में घूमता रहा। मैं देख रहा था। उसके उल्‍लास से मुझे अच्‍छा ही लगा। पर घर में खाना बनना शुरू नहीं हुआ। मैं अकेला था। बहन के यहाँ जो पास में ही रहती है, दोपहर को भोजन कर लेता। रात को देर से खाता हूँ, तो बहन डब्‍बा भेज देती। खाकर मैं डब्‍बा बन्‍द करके रख देता। चूहाराम निराश हो रहे थे। सोचते होंगे यह कैसा घर है। आदमी आ गया है। रोशनी भी है। पर खाना नहीं बनता। खाना बनता तो कुछ बिखरे दाने या रोटी के टुकड़े उसे मिल जाते। मुझे एक नया अनुभव हुआ। रात को चूहा बार-बार आता और सिर की तरफ मच्‍छरदानी पर चढ़कर कुलबुलाता। रात में कई बार मेरी नींद टूटती मैं उसे भगाता। पर थोड़ी देर बाद वह फिर आ जाता और सिर के पास हलचल करने लगता। आगे की क‍हानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

कुछ कविताएँ - सुशांत सुप्रिय

कविता का कुछ अंश... सूरज चमको न अँधकार भरे दिलों में चमको न सूरज उदासी भरे बिलों में सूरज चमको न डबडबाई आँखों पर चमको न सूरज गीली पाँखों पर सूरज चमको न बीमार शहर पर चमको न सूरज आर्द्र पहर पर सूरज चमको न अफ़ग़ानिस्तान की अंतहीन रात पर चमको न सूरज बुझे सीरिया और ईराक़ पर जगमगाते पल के लिए अरुणाई भरे कल के लिए सूरज चमको न आज ऐसी ही अन्य मर्मस्पर्शी कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

कहानी - डोली चढ़ना जानूँ हूँ - अर्चना सिंह 'जया'

कहानी का कुछ अंश... संध्या की बेला घर आँगन में चहल-पहल, चारों ओर रौनक ,बिटिया की शादी जो थी और मैं एक दीवार पकड़कर बैठ , आसमान देखने लगी। न जाने मन मुझे किस ओर ले जा रहा था ?दिसम्बर का महीना था, शायद बेटी की बिदाई की चिंता थी । नहीें ,वो भी नहीं। फिर आज अकस्मात्् ही माँ की याद कैसे आ गई ? माँ शब्द मुझे कभी सुकून नहीं देता था, तब भी वर्षों पीछे मेरा मन आज मुझे ले उड़ चला। वैसे देखा जाए तो माँ ने मुझे जन्म तो जरूर दिया था पर शायद कुछ बात तो थी जो मुझे रह रहकर बेचैन कर देती थी। क्यों माँ के प्यार को मैंने कभी महसूस नहीं किया ? न जाने कई प्रश्न समय-असमय मुझे परेशान करते थे। माँ के स्नेह के स्पर्श की चाह आज भी क्यों मन में बनी हुई थी ? तभी एक प्रश्न स्वयं से किया ,क्या मैंनेे अपने माँ होने का फर्ज निभाया है ? इस बात का जवाब मुझे कौन देगा ? तभी सहसा ही मैं चैंक गई, मेरी बिटिया ने मुझ पर शाॅल डालते हुए कहा,‘‘ माँ,आप तो अपना ध्यान बिलकुल ही नहीं रखती हो। कल मेरे जाने के बाद क्या होगा? सबका ध्यान तो रखती हो और स्वयं के लिए लापरवाह हो जाती हो।’’ इतना कहते ही झट से गले लग कर रो पड़ी। माँ और बेटी का अर्थ मैं तब कुछ-कुछ समझ रही थी लेकिन इतनी उम्र निकल जाने के पश्चात्् ये कैसी विडम्बना थी? मुझे मेरी माँ के स्नेह के स्पर्श की चाह आज भी क्यों मेरे मन में बनी हुई थी ? आज की रात गुजर जाएगी तो कल की सुबह आएगी जो कोलाहल से भरा संवेदनपूर्ण होगी। मुझे मेरी बेटी की विदाई करनी है ,न जाने कितने सपने मैंने अपनी बेटी के लिए देखे थे। सारा घर रिश्तेदारों से भरा था फिर भी मैं खुद को उस एक पल के लिए अकेली महसूस कर रही थी। ऐसा क्यों था? पति भी कार्यभार संभालने में व्यस्त थे, अतिथियों की आवाभगत करने में लगे हुए थे। आगे क्या हुआ, जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

बाल कहानी - पंख अभी छोटे हैं - उपासना बेहार

कहानी का कुछ अंश... एक शहर के बीचों बीच बड़ा सा पार्क था, पार्क में बहुत सारे बड़े बड़े पेड़ लगे हुए थे। उन्ही पेड़ों में से एक पेड़ में चिडि़या अपने परिवार के साथ रहती थी। उसके तीन छोटे बच्चे थे। चिडि़या रोज बच्चों को घोसले में छोड़ कर सुबह से खाना लाने चली जाती और शाम को घोसले में वापस आती थी। तब चिड़िया के बच्चों में से एक बच्चा अपनी मां से हमेशा पूछता कि “मां पेड़ के बाहर की दुनिया कैसी होती है, आज आपने क्या क्या देखा” मां कहती “बेटा दुनिया बहुत ही खूबसूरत है” और वो बच्चों को बताती कि आज कहाँ कहाँ गई थी तो वह बड़े ध्यान से बातें सुनता और कहता “मां मैं कब इस खुबसूरत दुनिया को देख पाऊॅगा”. “बेटे तुम अभी छोटे हो, तुम्हारे पंख ठीक से बने नही हैं और तुमने अभी सही तरीके से उड़ना भी नहीं सीखा है, कुछ महिने ओर रुक जाओ फिर तो जिंदगी भर उड़ते रहना है। अगर अभी बाहर गये तो कोई भी जानवर तुम्हें मार देगा। बच्चा उस समय तो चुप हो जाता लेकिन उसके मन में उथल पुथल मची रहती। एक दिन जब मां भोजन लेने के लिए गयी तब बच्चे ने सोचा “अभी मैं छोटा हूँ तो पूरी दुनिया नही घूम सकता पर कम से कम इस पार्क की दुनिया तो देख ही सकता हूँ और मां के आने से पहले मैं वापस आ जाऊॅगां। जिससे माँ को भी पता नहीं चलेगा, वह अपने अन्य भाई बहनों को बताये बिना ही धीरे से घोसले के बाहर आ जाता है और पेड़ के तने से जमीन पर उतरता चला जाता है। जब वह पेड़ के निचे पहुँचता है तो देखता है कि जमीन घरे भरे घास से ढंका हुआ है। आसपास तरह तरह के रंग बिरंगे फूल खिलें हैं, यह सब देख कर वह आश्चर्यचकित हो जाता है। इससे पहले उसने इतने सुंदर फूल कभी नही देखे थे। वो खुशी के मारे जोर जोर से फुदकने लगता है। तभी फूल पर एक सतरंगी तितली आकर बैठती है। उसने आज तक ऐसी अनोखी तितली नही देखी थी, वह सोचता है कि क्यों ना इस अनोखी तितली से दोस्ती की जाये वह तितली के तरफ बढ़ता है तभी सतरंगी तितली उड़ जाती है, चिडि़या का बच्चा कुछ सोचे समझे बिना ही उसके पीछे भागने लगता है। तितली का पीछा करने के चक्कर में वह अपने पेड़ से दूर निकल आता है। आगे क्या होता है, यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

भीम बैठका एकांत की कविता है - प्रेमशंकर शुक्ल

कविता का कुछ अंश... चटटानें जहाँ पाठ हैं, हमारी सभ्यताओं का, आदि मानव का रहवास रहीं हैं गुफाएँ, अज्ञातवास कि जहाँ बैठते थे परमबलशाली भीम, वही है भीम बैठका। भीम बैठका एकांत की कविता है, जो कुछ ज्ञात में, कुछ अज्ञात में सुनी जा सकती है। ध्यान से देखिए न आप, भीम का मौन, चटटानों को कितना अथाह बना चुका है। इन चटटानों में भीम के तन-मन की आग भरी है। स्पर्श में कविता है। भीम का नाम सुनते ही, यहाँ के पेड, पाखी, कितने वाचाल हो गए हैं... आगे की कविता का ऑडियो के माध्यम से सुनिए...

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

हारे नहीं हैं हम अभी - 3

कहानी का कुछ अंश... कहते हैं कि जब एक मासूम मुस्कराता है, तो उसकी मुस्कान में खुदा नजर आता है। मैंने भी देखा है, एक मासूम को मुस्कराते हुए। ये घटना उस समय की है, जब मैं आॅफिस में काम करती थी। शाम को आॅफिस से घर लौटते वक्त शहर के एक बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार करते हुए अक्सर शनिवार को उससे मुलाकात हो जाया करती थी। वो दौड़कर मेरे करीब आता था और अपनी पीतल की छोटी-सी बाल्टी मेरे सामने करते हुए मुस्कराते हुए कहता था - जय शनि महाराज! उसकी बाल्टी में शनि महाराज की काली मूर्ति होती थी, साथ ही थोड़ा-सा तेल और कुछ सिक्के होते थे। पैसे मिलने की आशा में ही वह मेरे पास दौड़ा चला आता था। उसके चेहरे पर लाचारगी और मासूमियत की झलक इस तरह एक साथ नजर आती थी कि हाथ अनायास ही पर्स तक पहुँच जाते थे। उसकी मासूम मुस्कान को देखते हुए... पर्स टटोलते हुए... पचास, एक या दो का जो भी सिक्का हाथ में आता था, वो मैं उसे थमा देती थी। वो पूरी बत्तीसी दिखाता हुआ कूदता-फाँदता वहाँ से उड़न-छू हो जाता था। मेरे पर्स में चॉकलेट या पीपरमेंट जरूर होती थी, ताकि बस के घुटन भरे माहौल में मुझे तकलीफ न हो। कभी-कभी खुल्ले पैसे न होने की स्थिति में मैं उसे वही थमा दिया करती थी और वो खुश हो जाता था। कुदरत की बनाई अनुपम कृतियों में वो एक ऐसी कृति थी कि जिसके साथ कोई संबंध न होने पर भी अपनापन महसूस होता था। मैंने कभी उसका नाम नहीं पूछा, बस छोटू कहकर पुकारती थी और वह पीछे मुड़कर देखता था। कुछ महीनों से ये सिलसिला चला आ रहा था। शनिवार की शाम वो मुझे बस स्टॉप पर खड़ा मिलता या मुझे देखते ही दौड़ता-भागता आ जाता था। एक शनिवार को जब वो मेरे पास आया तो बहुत खुश था। यूँ लगा जैसे चहक रहा हो। उसके होंठ नहीं आँखे मुस्करा रही थी। मैंने आश्चर्य से उसे देखा! जैसे वो मेरे चेहरे पर उभरे प्रश्नों को समझ गया हो। उसने तुरंत अपनी बाल्टी मेरे सामने कर दी। आज उसकी बाल्टी आधी तेल से भरी हुई थी। शनि महाराज पूरी तरह से तेल में डूबे हुए थे। साथ ही सिक्के भी बहुत सारे थे। बहुत से लोगांें ने उसे तेल का दान दिया था। मैंने पूछा-अहा! छोटू, तो आज इसलिए खुश हो तुम? आज तो तुम्हें बहुत-सा दान मिला है। आज ये चमत्कार कैसे हो गया? वो हँसता हुआ बोला-आज मैं मंदिर गया था। वहाँ पर बहुत भीड़ थी। मुझे बहुत फायदा हुआ। अब मैं हर शनिवार को वहाँ जाऊँगा। लोगों का अंधविश्वास उसके चेहरे पर खुशी बनकर झलक रहा था। मैंने उसे ध्यान से देखा-9-10 साल का मासूम! शरीर से पूरी तरह स्वस्थ। केवल भाग्यदेवता की कंजूसी कि आर्थिक दृष्टि से कमजोर! किन्तु क्या यह केवल भाग्य का ही दोष था? क्या माता-पिता का दोष नहीं था, जो एक छोटे बच्चे से भीख मँगवाने का काम करवा रहे थे ? या फिर क्या वह अनाथ था? मेरे मन में उसके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी। दो-तीन बसें तो उसकी चहचहाहट में आँखों के सामने से गुजर ही चुकी थी। मैंने आने वाली और दो-तीन बसों को अनदेखा करने का मूड बना लिया और वहीं बस स्टॉप पर छोटू के साथ बैठ गई। उसकी खुशकिस्मती कि उस समय मेरे पर्स में दो फाइव स्टार थी। उसे ये थमाते हुए अपने पास बैठाया और पूछा-ये पैसे तो तुम्हारे काम आएँगे, लेकिन इस तेल का क्या करोगे ? क्या इसे बेच दोगे ? वो तेल से भरी बाल्टी को निहारते हुए गर्विली मुस्कान के साथ बोला- बेचूँगा क्यों ? इसे मैं घर ले जाऊँगा। माँ बड़ी खुश होगी। मैं मन ही मन सोच रही थी, वो कैसी माँ होगी जो बेटे से भीख मँगवाकर खुश होगी! इधर मेरी सोच से अनजान वो अपनी धुन में ही बोले जा रहा था- पिछले हफ्ते तो थोड़ा-सा ही तेल मिला था और वो भी एक स्कूटर से धक्का लगने पर गिर गया था। मेरी कमीज़ भी तेल वाली हो गई थी। पूरे हफ्ते माँ ने बिना तेल का खाना बनाया था। दो दिन पानी जैसी पतली उबली हुई दाल और एक दिन उबले आलू ही चावल के साथ खाए थे। इस हफ्ते तो माँ बघारी हुई दाल और अच्छी सब्जी बनाकर खिलाएगी। अच्छे भोजन की कल्पना से ही उसके मुँह में पानी आ गया था। आगे की कहानी ऑडियो के माध्यम से सुनकर जानिए...

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

बाल कहानी - धनुर्धारी अर्जुन

कहानी का कुछ अंश... पौराणिक कथाओं से हम सभी अच्छी तरह से परिचित हैं। ये कथाएँ हमारा मार्गदर्शन करती हैं । हमारे संस्कारों की जड़ें मजबूत करती हैं। इसलिए समय-समय पर दादी-नानी की जबानी या घर के बड़ों की जबानी हम इन कथाओं को सुनते हैं। यहाँ भी हम आपके लिए महाभारत से जुड़ी एक कथा लेकर आए हैं। बहुत पुरानी बात है। हमारे देश में पांडु नाम के एक राजा राज करते थे। उनके पाँच पुत्र थे। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। उन सभी में अर्जुन तीरंदाजी में बहुत निपुण था। आचार्य द्रोण ने एक बार कौरवों और पांडवों की परीक्षा ली। उस परीक्षा में उन्होंने सभी को एक चिडि़या की आँख पर निशाना लगाने को कहा और उससे जुड़े हुए सवाल पूछे। किसने इन सवालों का संतोषपूर्ण उत्तर दिया और किसकी जीत हुई, यह जानने के लिए आप भी इस पौराणिक कथा का आनंद एक नन्हीं बालिका की मधुर आवाज में लीजिए...

बाल कविता - देश हमारा - पीहू हजारिका

कविता का कुछ अंश... सबसे सुंदर, सबसे प्यारा, देश हमारा। ऊँचा पर्वतराज ह‍िमालय, पहने हिम का ताज हिमालय, कंचन नदियाँ दूध की धारा देश हमारा। धवल हिमालय का यह प्रांगण गंगा नित धोती है आँगन मेघ बरसते, रस की धारा देश हमारा लहरें आ चरणाें को धोती, बिखरातीं ला-लाकर मोती सिर धुनता है, सागर खारा देश हमारा... पूरी कविता सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

कहानी - अलार्म - डॉ. अपर्णा शर्मा

कहानी का कुछ अंश... दिन ठण्डा था। चार-पाँच महिलाएँ शर्मा जी की बैठक में बैठकर गपशप कर रही थीं। कुछ देर बाद मिसेज शर्मा चाय बना लाई। उन्होंने चाय कपों में उड़ेलते हुए कहा-”आप सभी पहले चाय लें। बातें बाद में। ठंड के दिनों में गर्म चाय ही अच्छी लगती हैं।” सभी ने कप उठा लिए और साथ में बिस्कुट भी। वे बिस्कुट कुतरते हुए चाय की चुस्की लेने लगी। परन्तु मिसेज शर्मा अभी कप उठा भी न पाई थीं कि उनके मोबाइल का अलार्म बज गया। वे उठी और बगल के कमरे में जाकर किसी को फोन लगाकर बातें करने लगी। इधर बहनें उनका इंतजार कर रही थीं और उधर वे फोन पर व्यस्त थीं। एक ने घड़ी की ओर देखा। वह बोली- “चार बज गए। भाभीजी आएं तो हम चलें। बच्चों का स्कूल से आने का समय हो रहा है।” दूसरी ने कहा- “हम ही कहाँ बहुत देर रूकने वाले हैं।” मिसेज शर्मा लौट आई। उनकी चाय ठंडी हो चुकी थी। रमा ने मजाक करते हुए कहा- “आपने सबको गर्म चाय पिला दी और आपकी ठंडी हो गई। अब हम चलते हैं। आप चाय गर्म कर आराम से पियें।” इसी समय शर्माजी भी सीढि़यों से उतरते हुए दिखाई दिए। एक सखी ने कहा- “देखिए आपका साथ देने शर्माजी भी आ गए हैं।” मिसेज शर्मा मजाक के मूड में नहीं थीं। वे बोली- “साथ किसी का भी मिले मेरे हिस्से में गर्म चाय और आराम है ही नहीं।” मिसेज वर्मा ने आश्चर्य से कहा- “क्यों नहीं है? दो बुजुर्ग लोग हैं आप। कौन सा अधिक काम है। आराम से बैठकर चाय पिया करें।” मिसेज शर्मा ने आहिस्ता से कहा- “काम अधिक नहीं हैं पर बिना काम के काम सैकड़ों हैं। कप में चाय डालते ही किसी को दवा याद आती है तो किसी को मोबाइल या पैन, कोई दरवाजा ही खटखटा देता है।” एक बहन ने हँसते हुए कहा- “और नहीं तो क्या! देखो अब अलार्म ही बज गया।” मिसेज वर्मा ने कौतुहल से पूछा- “इस समय अलार्म क्यों लगाया आपने? देखो अलार्म बंद करने गई और फोन भी आ गया। इसी सब में देर लगी और आपकी चाय ठंडी हो गई। आगे क्या हुआ जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

कविता - सचिन तुमने कर दिया कमाल

सचिन तुमने कर दिया कमाल..... दे दी भारत को सचिन तुमने खुशियाँ बेमिसाल महाराष्ट्र के लाल तुमने कर दिया कमाल बचपन से ही थामा हाथों में बैट और बाॅल हर बाॅल पर हिला दी पडौसी की दीवाल महाराष्ट्र के लाल तुमने कर दिया कमाल। क्रिकेट के मैदान में लड़ी अजब ही लड़ाई चैकों-छक्कों से तुमने आफत थी मचाई कई बार प्रतिस्पर्धी ने मात ही खाई और जीत की बजने लगी शहनाई चुटकी में विरोधी को दिया मैदान से निकाल महाराष्ट्र के लाल तुमने कर दिया कमाल। जब-जब तेरा बैट चला हर कोई चैंक पड़ा श्रीलंका, न्यूज़ीलैंड, अफ्रीका, पाकिस्तान चैंक पड़ा शोएब, मैक्ग्राथ, मुरलीधरन और अकरम चैंक पड़े अंजलि, सारा-अर्जुन और सारे दोस्त चैंक पड़े खुशियों की सौगात लाया आई-बाबा का दुलारा लाल महाराष्ट्र के लाल तुमने कर दिया कमाल। वैसे तो देखने में है हस्ती तुम्हारी छोटी पर भायी न कभी तुम्हें स्वार्थ की रोटी ईमानदारी से खेला जो खेल का हर दाँव चर्चे चले फिर तो हर शहर और गाँव जलती रहे सदा तुम्हारी शोहरत की मशाल महाराष्ट्र के लाल तुमने कर दिया कमाल।

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

कहानी- एक टोकरी-भर मिट्टी - माधवराव सप्रे

कहानी का कुछ अंश... किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्‍छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्‍या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धाकाल में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दु:ख के फूट-फूट रोने लगती थी। और जबसे उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्‍छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्‍न निष्‍फल हुए, तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्‍होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्‍जा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी। एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आसपास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि वह विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, ''महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्‍हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।'' जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, ''जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत-कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी-भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्‍हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ!'' श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।द आगे की क‍हानी ऑडियो के माध्यम से सुन‍िए...

महाराष्ट्र का अकाल पिछली सरकार सर्जित

डॉ. महेश परिमल
आईपीएल खेलों का शुभारंभ हो गया है। इसी के साथ यह बात भी सामने आई है कि क्या इन खेलों में होने वाली पानी की बरबादी को रोका जा सकता है? महाराष्ट्र में अकाल को देखते हुए पानी की किल्लत साफ दिखाई दे रही है। अब लोगों का ध्यान गया है कि सच में एक मैच के दौरान न जाने कितने लाख लीटर पानी की बरबादी होती है। वास्तव में देखा जाए, तो महाराष्ट्र में पानी के जिस भीषण अकाल की बात की जा रही है, वह मानव नहीं, सरकार सर्जित है। महाराष्ट्र में ऐसी कई योजनाएं हैं, जिसमें लाखों लीटर पानी की बरबादी हो रही है, जिसे देखने वाला कोई नहीं है। इन योजनाओं को छोड़ भी दें, तो मुम्बई और नागपुर में स्थित मंत्रियों के बंगले के लॉन के रख-रखाव में रोज ही लाखों लीटर पानी बरबाद हो रहा है।
महाराष्ट्र में शकर के कारखानों को चलाने के लिए अरबों लीटर पानी की बरबादी होती है। इससे भी अधिक बरबादी महाराष्ट्र के कुल 41 थर्मल पॉवर प्लांट में होती है। कोयला जलकर जब बिजली उत्पादन करता है, तब थर्मल पॉवर प्लांट में कितना पानी बरबाद होता है, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। महाराष्ट्र में बांधों से महाराष्ट्र का अकाल मानव नहीं, सरकार सर्जित
डॉ. महेश परिमल
उद्योगों के लिए कुल कितना पानी दिया जाता है, उसका 44 प्रतिशत पानी थर्मल पॉवर प्लांट्स में बरबाद होता है।
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि महाराष्ट्र में उद्योगों के लिए कुल 286.9 करोड़ घनमीटर पानी की आपूर्ति की जाती है। इसमें से 125.5 करोड़ घनमीटर पानी तो केवल 41 थर्मल पॉवर प्लांट के लिए ही दिया जाता है। एक घनमीटर यानी 1000 लीटर के हिसाब से गिनती की जाए, तो थर्मल पॉवर प्लांट के लिए राज्य का कुल 1255 अरब लीटर पानी की आपूर्ति की गई है। कहां आईपीएल में खर्च होने वाला 66 लाख लीटर पानी और कहां थर्मल पॉवर प्लांट में इस्तेमाल में लाया जाने वाला 1225 अरब लीटर पानी? यदि महाराष्ट्र का बिजली का उत्पादन आधा कर दिया जाए, तो 60000 करोड़ लीटर पानी की बचत हो सकती है।
थर्मल पॉवर प्लांट में कोयला जलता है, तो भाप तैयार होती है, इसी भाप से बडे-बड़े टर्बाइन चलते हैं। थर्मल पॉवर प्लांट को ठंडा रखने के लिए लाखों लीटर पानी की आवश्यकता होती है। विदर्भ के लिए अकाल एक स्थायी भाव हो गया है। इसके अकालग्रस्त क्षेत्र चंद्रपुर और कोराडी में दो थर्मल पॉवर स्थापित किए गए हैं। विदर्भ थर्मल पॉवर प्लांट के लिए 350 अरब लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है। इसी क्षेत्र में ही स्थित इंडिया बुल के पॉवर प्लांट के लिए अपर वर्धा सिंचाई योजना का पानी दिए जाने कारण ही विदर्भ के नाराज किसानों ने इंडिया बुल के कार्यालय में तोड़फोड़ की थी।
हमारे देश में सबसे अधिक बांध यदि कहीं बनाए गए हैं, तो वह राज्य है, महाराष्ट्र। इन बांधों को बनाने का उद्देश्य किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना था। ताकि किसानों की हालत सुधर जाए। इसमें से सिंचाई के अलावा पीने के पानी के लिए भी अलग से कोटा रखा गया था। पर विकास के नाम पर इस राज्य ने उद्योगों को अधिक से अधिक बढ़ावा दिया गया। इस चक्कर में जो पानी सिंचाई के लिए रखा गया था, वह उद्योगों को दे दिया गया। इस तरह का गोरखधंधा महाराष्ट्र में काफी समय से चल रहा है। 2003 में जब शरद पवार के भतीजे अजीत पवार जब यहां के सिंचाई मंत्री थे, उस दौरान राज्य के 41 बांधों का 198 करोड़ घनमीटर पानी सिंचाई के बदले उद्योगों को देने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के कारण राज्य की 3.23 लाख हेक्टेयर जमीन सिचाई से वंचित रह गई। यह जानकारी पुणे की प्रयास नामक संस्था ने राइट टू इंफर्मेशन एक्ट के तहत प्राप्त की। इस जानकारी के अनुसार 2003 से 2011 के बीच महाराष्ट्र के 23 बांधों का 30 से 90 प्रतिशत पानी सिंचाई के बदले उद्योगों को दे दिया गया। उदाहरणस्वरूप रायगढ़ जिले के हेतवणे डेम का 88 प्रतिशत पानी स्पेशल इकॉनामी जोन को दे दिया गया था। पावना और अंबा बांधों का 81 प्रतिशत पानी सिंचाई के बदले उद्योगों को दे दिया गया था।
महाराष्ट्र सरकार के सिंचाई मंत्रालय ने बांधों का पानी उद्योगों को देने का निर्णय लिया, इसका सबसे अधिक लाभ निजी उद्योगों को हुआ। पानी के वितरण का ला कुल 47 कारखानों को मिला। पर इसमें से 12 कारखानों को सबसे अधिक 90 प्रतिशत पानी का लाभ मिला। जिन 15 थर्मल पॉवर प्लांट को अधिक पानी दिया गया, उसमें से 13 निजी थे। इसमें अमरावती स्थित इंडिया बुल्स की सोफिया पॉवर कंपनी, अदाणी रिलायंस और लान्को का भी समावेश होता है। थर्मल पॉवर प्लांट के लिए बांधों का जो पानी दिया गया, उसमें से 17 प्रतिशत इंडिया बुल्स और 7.7 प्रतिशत अडाणी के पॉवर प्लांट को दिया गया।
सिंचाई के लिए जो बांध बनाए गए थे, उसका पानी उद्योगों के अलावा पीने और घरेलू उपयोग के लिए भी तय किया गया है। किंतु इसका उपयोग शहरी क्षेत्रों के लोगों को ही अधिक मिल रहा है। 2003 से लेकर 2011 तक सिंचाई का जितना पानी पीने के उपयोग में लाया गया, उसका 98 प्रतिशत पानी नागपुर, मुम्बई, नई मुम्बई, पुणे और नासिक जैसे शहरों को दे दिया गया। ग्राम पंचायतों को केवल 2 प्रतिशत पानी ही दिया गया। आज की तारीख में गांव के लोग पानी के लिए तरस रहे हैं, उन हालात में शहर में विशेष लोगों को स्वीमिंग पूल के लिए पानी दिया जा रहा है। इससे साफ है कि देश में जल नीति किसानों को लेकर नहीं, बल्कि शहरों के विशेष लोगों को सामने रखकर ही बनाई जाती है। उद्योगपतियों को संरक्षण देने वाली गरीब किसानों के साथ अन्याय कर रही है। प्रकृति के पानी के चक्र को तोड़ने में भूमिका सबने निभाई है, पर इसका खामियाजा केवल गरीबों को ही भुगतना पड़ता है। पानी की कमी के कारण फसलें प्रभावित हो रही हैं। किसान कर्ज से लदकर आत्महत्या को मजबूर है, ऐसे में यह कैसे कहा जा सकता है कि सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। किसानों का ही हित देखना है, तो उसके हिस्से का पूरा पानी उसे ही मिले। उद्योगों के लिए कोई दूसरी व्यवस्था की जाए। किसानों का हक मारकर उद्योगों को किस तरह का बढ़ावा दिया जा रहा है। जब फसलें ही नहीं होंगी, तो उद्योग क्या करेंगे। वैसे भी विकास के नाम पर उद्योगों को जिस तरह से बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे उद्योग तो बढ़े हैं, पर किसानों की जमीन और पैदावार दोनों ही कम होते जा रही है। हर राज्य में किसानों द्वारा की जाने वाले आत्महत्याओं के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। केंद्र सरकार को जल नीति पर एक बार फिर से गंभीरता के साथ विचार करना होगा, तभी साफ हो पाएगा कि सरकार
डॉ. महेश परिमल

कहानी - एक विलक्षण चित्रकार - भूपेंद्र कुमार दवे

कहानी का कुछ अंश... मैं एक हाथ में लाठी लिये ज़मीन को टटोलता और दूसरे हाथ को फेंसिंग दीवार पर सरकाता जा रहा था। मुझे फेंसिंग दीवार का अंत ही नज़र नहीं आ रहा था। शायद इस ओर फाटक था ही नहीं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि फाटक के आते ही कोई खतरनाक कुत्ता भोंकने लगेगा या फिर कोई चौकीदार गाली देता हुआ दौड़ पड़ेगा। मकान शायद किसी पैसेवाले का था तभी तो इतनी लम्बी फेंसिंग वॉल ने मकान को घेर रखा था। पर चीन की दीवार का भी कहीं अंत होता है। मेरा हाथ जैसे ही लोहे के फाटक पर पड़ा तो कोई दहाड़ा, "कौन है?" मैं ठिठक गया। भारी जूते चलते हुए फाटक के करीब आये और कुछ दूरी पर थम गये। फिर मुझे आदेश हुआ, "आगे जाओ।" मैं यूँ ही कुछ देर फाटक पर बनी लोहे की नक्काशी पर हाथ फेरता खड़ा रहा। आवाज़ फिर थर्रायी, "सुना नहीं। बहरा है क्या? भाग यहाँ से।" मैं हटने ही वाला था कि मुझे सुनायी पड़ा, "कौन है?" इस समय आवाज़ किसी महिला की थी। ई भिखारी है," चौकीदार ने उत्तर दिया था। "उसे रोको। इतने दिनों बाद कोई तो इस घर पर आया है। उसे खाली हाथ मत जाने दो। यह लो। ये पैसे उसे दे देना।" कुछ रुक वह फिर बोल पड़ी, "तुम उसे रोको। पैसे मैं ख़ुद जाकर दे देती हूँ।" मुझे उस महिला के पैरों की आवाज़ पास आती सुनाई पड़ी। पर वह शायद कुछ दूरी पर आकर ठिठक गई और मुझे देखकर बोली, "आप तो विनोद हैं। है ना। मुझे देखो और पहचानो। बताओ मैं कौन हूँ?" मैं अचंभित हो उठा। आवाज़ चाहे कितनी भी बदल जाये और समय के गर्त में छिप जाये पर वह स्मृतियों की दीवारों से प्रतिध्वनित होकर जब प्रगट होती है तो उससे वही स्वर लहरियाँ उत्पन्न होती हैं जो वर्षों पूर्व आपको गुदगुदाती रही थीं। मैं पहचान गया और बोल उठा, "हो ना हो, तुम विभा हो। तुम्हारी आवाज़ मुझे बता रही है।" "पर तुमने अपनी यह कैसी हालत बना रखी है विनोद? आओ, अंदर चले आओ," वह कुछ और पास आकर बोली। मुझे फाटक का कुंदा टटोलते देख वह बोली, "अरे! यह क्या! तुम्हें दिखाई नहीं देता।" यह कह वह आगे बढ़ी और मेरा हाथ पकड़कर मुझे अंदर ले आयी। मैं अपनी लाठी लिये कुछ कदम आगे रख ही पाया था कि चौकीदार चिल्लाया, "साँप"। विभा ने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया और धीमे से बोली, "लाठी पीछे कर लो। आगे साँप है।" मुझे साँप की एक फुफकार सुनाई दी। "लो, वह चला गया। इस बगीचे में वह यूँ ही घूमता रहता है," विभा ने कहा और हम आगे बढ़े। कुछ कदम चलने पर मेरा हाथ सीढ़ी की रेलिंग पर पड़ा। मैं रुक गया। रेलिंग पर ब्रेल लिपि में छः लिखा था। विभा ने मुझे बताया कि इसका मतलब है कि आगे छः पायदान हैं। मैं जब आखरी पायदान पर पहुँचा तो पाया कि वहाँ रेलिंग पर ब्रेल लिपि में लिखा था कि बाँयी ओर दस डिग्री पर बारह कदम आगे दरवाज़ा था। मैं उसे दरवाज़े की तरफ खुद-ब-खुद चल पड़ा। दरवाज़े की बाँयी तरफ की दीवार पर नक्शा-सा बना था, जो ब्रेल लिपि में बता रहा था कि अंदर कमरे में कहाँ, कितनी दूरी पर सोफा, टेबल आदि रखे थे। मैंने कौतुहलवश विभा से पूछ ही लिया, "क्या तुम्हें मालूम था कि जब कभी मैं यहाँ आऊँगा तो मैं अपनी दृष्टि खो चुका होऊँगा या फिर तुम्हें किसी और अंधे के यहाँ आने का इंतज़ार था?" इस प्रश्न से विभा के चेहरे पर क्या रेखायें उभरी, मैं देख न सका था, पर उसने उत्तर सहज भाव में ही दिया था, "यह तुम सोचो और समझो।" मैं चुपचाप कमरे में दाखिल हो अंदाज़ लगाकर सोफे पर बैठ गया। मेरे पीछे विभा ने कमरे के अंदर आते ही प्रश्न किया, "अच्छा, पहले ये बताओ कि क्या लोगे -- गरम या ठंडा?" "मैं एक भिखारी हूँ। एक भिखारी क पास यह अधिकार ही नहीं होता कि वह अपनी पसंद को ज़ाहिर कर भीख माँगे। मेरे ख्याल से तुम भी यह अच्छी तरह जानती हो" मैंने कहा। आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

कहानी - खुला आसमान - अर्चना सिंह 'जया'

कहानी का कुछ अंश... संध्या की बेला और बाहर हल्की बारिश, मैं खिड़की से सटी हुई पलंग पर बैठी बाहर देख रही थी। पत्तों पर गिरती पानी की बूँदें निश्छल स्वच्छ सुंदर चमकदार नज़र आ रही थीं। नज़रें जैसे नन्ही-नन्ही बूँदों पर टिकी हुई थीं कि तभी राशि ने मुझे आवाज़ लगाई, " दादी, आप क्या कर रही हो? मुझे एक अनुच्छेद लिखवा दो न।" मैंने विनम्रता से कहा, "जाकर अपनी मम्मी से लिखवा लो न। मुझे क्यों परेशान कर रही हो?" उस दिन अनुराधा घर पर ही थी, मन कुछ अनमना होने के कारण ऑफ़िस नहीं गई थी। राशि, मेरी पोती बहुत ही प्यारी सातवीं कक्षा में पढ़ती है, उसकी माँ बैंक में कार्यरत है यानी मेरी बहू अनुराधा। मेरा बेटा नवीन प्राइवेट सेक्टर में कार्य करता है। दोनों ही मिलजुल कर काम करते, विचारों के सुलझे हुए हैं। कभी अगर नोंक-झोंक हो भी गई तो एक दूसरे से सुलह भी पल में ही कर लेते हैं। नवीन कॉफी बना लाता और फिर दोनों हँसते हुए कॉफी पीने का आनंद लेते। अनुराधा समय से ही घर आ जाया करती है कभी अगर देर हो भी गई तो नवीन उसे लेने चला जाता। छुट्टी के दिन हम सभी कभी लूडो या कैरम खेलते, कभी डीवीडी में नई फ़िल्म देखते। किन्तु मैं सभी फ़िल्में नहीं देखती, एक ही घर में रहते हुए भी उन तीनों को अपनी जगह देने का प्रयास करती हूँ। आज भाग-दौड़ की ज़िंदगी में पति-पत्नी को अपनी जगह तो चाहिए, ताकि नज़दीकी बनी रहे। आखिर उनकी ख़ुशी में ही मेरी भी ख़ुशी है। राशि को कुछ-कुछ चीज़ें मेरी ही हाथों की अच्छी लगती हैं, जैसे हलवा, मठरी, गुझिया, नारियल के लड्डू। राशि ने मेरी चुन्नी खींची और कहा, "दादी, आप मेरी हिन्दी टीचर हो और आपकी वज़ह से ही मुझे हमेशा अच्छे अंक आते हैं।" मैंने सोचा अब ये यूँ नहीं मानेगी, मुझे लिखवाना ही होगा। मैं हिन्दी की अध्यापिका रह चुकी थी, 18 वर्ष तक मैंने भी सर्विस की किन्तु अब कमर दर्द को लेकर परेशान रहने लगी थी। मैंने सर्विस ज़रा देर से आरम्भ की जब मेरे तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे। वे स्वावलम्बी हो गए थे, मुझे सिर्फ़ उनके खाने की चिंता हुआ करती थी। आज दोनों बेटियाँ अपने ससुराल में स्वस्थ व ख़ुश हैं। मैंने राशि से पूछा, "अच्छा! अब बता किस विषय पर अनुच्छेद लिखना है?" राशि ख़ुश हो कर बोली, "परिवार का महत्व"। आगे क्या हुआ, ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लें...

कविताएँ - शबनम शर्मा

बेटियाँ.... शायद पल भर में ही सयानी हो जाती हैं बेटियाँ, घर के अंदर से दहलीज़ तक कब आज जाती हैं बेटियाँ कभी कमसिन, कभी लक्ष्मी-सी दिखती हैं बेटियाँ। पर हर घर की तकदीर, इक सुंदर तस्वीर होती हैं बेटियाँ। हृदय में लिए उफान, कई प्रश्न, अनजाने घर चल देती हैं बेटियाँ, घर की, ईंट-ईंट पर, दरवाज़ों की चौखट पर सदैव दस्तक देती हैं बेटियाँ। पर अफ़सोस क्यों सदैव हम संग रहती नहीं ये बेटियाँ। एेसी ही अन्य कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

कहानी - माँ - कृष्णा वर्मा

कहानी का कुछ अंश... कुर्सी पर बैठी मानवी परेशान चित्त सी अपने से ही बुड़बुड़ा रही थी। सास होती तो मैं समझ सकती कि उसे मेरी क्या परवाह है मगर माँ कब से ऐसी हो गई? माँ तो हमेशा ही मेरी छोटी से छोटी बात का ध्यान रखती रही है। आज माँ को हुआ क्या जो सुबह-सुबह घर से चली गई? रसोईघर से भी आज सुबह-सुबह खटर-पटर की आवाज़ आ रही थी। मैं जागी-सोई सी अवस्था में सोच रही थी कि माँ आज इतनी सुबह क्या कर रही है। फिर सोचा शायद मंदिर जाने का मन कर आया हो क्योंकि पिछले कई हफ्तों से बीमार जो चल रही थी, मन भी तो उकता जाता है घर पड़े-पड़े। बस सोचते-सोचते फिर मेरी आँख लग गई। तन्वी की तकलीफ़ की वज़ह से सो कहाँ पाई थी मैं रातभर। सुबह मेरी आँख खुलने में देर हो गई। उठते ही घर में देखा तो माँ थी नहीं सोचा अभी आती होगी मंदिर से। इंतज़ार करते-करते दोपहर हो गई माँ तो अभी लौटी ही नहीं। झुंझलाहट के साथ-साथ फिक्र भी होने लगी, माँ गई तो गई कहाँ। इतनी देर लगा दी, बैठ गई होगी किसी से बातें करने। क्या उसे नहीं पता पिछली तीन रातों से मैं तन्वी की तकलीफ़ की वज़ह से ठीक से सो नहीं पा रही। पूरे बदन पे लाल चकत्तों ने परेशान कर रखा है बच्ची को। कोई दवा भी तो असर नहीं कर रही। अच्छी आई भारत, आते ही गर्मी ने धर दबोचा। चार दिन ही हुए मुश्किल से आए और घेर लिया तकलीफ ने। जब से माँ की बीमारी का सुना था बड़ा बेचैन था मन मिलने को। दिन-रात सोचती रहती थी कितनी बँधी हूँ यहाँ, अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों में। माँ अकेली कैसे अपना ध्यान रख पाती होगी बीमारी में। कैनेडा की जगह यदि पास के शहर में ब्याही होती मैं तो ज़रूरत पड़ने पर देख-भाल तो कर पाती। मृदुल को भी अमरीका ब्याह दिया। क्या पता था माँ को कि दोनों बेटियों को विदेश ब्याह कर जल्दी ही इतनी अकेली हो जाएगी। दो बरस पहले ही पापा का देहान्त अचानक दिल के दौरे से हो गया। जब से पापा नहीं रहे माँ ने जैसे दिल ही छोड़ दिया है और तबीयत भी ढीली ही रहने लगी है। आसान भी कहाँ होती है पिछली उम्र अकेले गुज़ारना? मैं भी क्या करती समय से देख-भाल करने कैसे आती? स्कूल की नौकरी है ही ऐसी - छुट्टियाँ भी तो जून में ही होती हैं। माँ से मिलने की तड़प ने कुछ सोचने ना दिया और छुट्टियाँ होते ही मैं तन्वी को लेकर कुछ दिनों के लिए भारत आ गई। ऐसा नहीं कि तन्वी पहले भारत आई ही नहीं, तीन बरस की थी जब पापा का देहान्त हुआ। सर्दी का मौसम था तो सब ठीक ही रहा था। तन्वी उस रोज़ दोपहर को आँगन में ना निकलती तो यह हालत ना होती। आँगन में माँ ने एक छोटा सा बगीचा लगा रखा है। रंग-बिरंगे फूलों पर उड़ती तितली को देखने के मोह ने तन्वी को धूप का एहसास ना होने दिया। उसे ख़ुश देखकर मैं भी ख़ुश थी, इस ओर ध्यान ही ना गया कि तन्वी पर ज़रा देर की धूप इस तरह से हावी हो जाएगी। बस उसी दिन से उसके बदन पर लाल चकत्ते हो गए, खुजली से परेशान ना वह रातभर सो पाती है ना मैं। मन ही मन मानवी खीझ रही थी यदि माँ घर रहती तो तन्वी के पास बैठ जाती और मैं ज़रा सोकर सर का भारीपन तो कम कर लेती - पर कहाँ। इतने में ही घर का ताला खुलने की आवाज़ आई तो वह भाग कर दरवाज़े की ओर पहुँची देखा तो माँ आ गई। खीझी तो पड़ी ही थी आते ही माँ पर बिगड़ने लगी कहाँ चली गईं थी तुम सुबह से ना कुछ कहा ना बताया। तुम्हें नहीं लगा कि मैं कितनी परेशान हो जाऊँगी। तुमने तो इतना भी ना सोचा कि ज़रा तन्वी का ख्याल ही रख लूँ ताकि मानवी कुछ देर आराम करले। मानवी गुस्से में बोलती चली जा रही थी। थकी-मांदी माँ ने सहजता से कहा, "बेटा ज़रा भीतर तो आ जाने दे ज़रा साँस ले लूँ फिर जो चाहे कह लेना।"आगे की कहानी ऑडियो की मदद से जानिए...

कविताएँ - कृष्णा वर्मा

वाह री सरिता... बहती सरिता स्वच्छ निर्मल जल मृदु नाद तेरा करता कल-कल मन मैला ना कोई भी छल बहे निरंतर खा-खा सौ बल। नभ के सूरज चाँद सितारे वर्षों से खड़े वृक्ष किनारे पीठ पे लहरों की चढ़-चढ़ के किश्तों में लें पींग हुलारे। अनुशासित सी विहंग कतारें तिरती उड़तीं सरि किनारे फेनल का उपहार लिए संग सरिता की लहरों को निहारें। पल-पल धारा सर्जित हुई जाए भग्नमना तरू देवें बिदाई उदग्नि पल्लव गिरें प्रवाह में चूम दुलार प्रवाह अंक लगाए। घुटनों बैठे पत्थर राह में संग तिरने को करें उपाय प्यार भरा आलिंगन दे तटी कातर दृष्टि बेबसी जताए। तूफानों से जूझ हो फिर स्थिर मरूस्थलों का भाग्य सँवारे पिया मिलन की ललक अनूठी खारे जल में उमर गुज़ारे। ऐसे ही अन्य भावपूर्ण कविताओंं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

कविताएँ - डॉ. अम‍िता शर्मा

डॉ. अमिता मूल रूप से हिमाचल की है और वर्तमान में वॉशिंगटन डी.सी. में स्थायी रूप से निवास कर रही हैं। आपकी रचनाओं को अपने ऑडियो ब्लॉग में स्थान देते हुए हमें प्रसन्न्‍ता अनुभव हो रही है। कविता का कुछ अंश... आज फिर बाहर चाँदी बिछी है आज फिर बिखरी धवल सी हँसी है फिर से मुझे इस मफलर ने गर्माया है नज़ारा वो सारा नज़र फिर से आया है सब याद आया है माँ का लिहाफ में सिमट के आना फिर से वो ऊन के गोले बनाना फंदे की ऊपर फंदे ही फंदे सिलाईयाँ उलझाना सिलाईयाँ सुलझाना सब याद आया है हर सिलाई पर हाथों से मापते जाना हर सिलाई पर हल्के से खींचते जाना रजाई में सभी का लिपटते चले आना रजाई घटाना रजाई बढ़ाना कोने दबाना वो कोने उठाना सब याद आया है मूंगफली गज्जकी पंजीरी की महक तरानों फ़सानों की चहक चहक सब याद आया है अचानक छुटकू का खिल-खिल खिलाना शरारती हो ऊन उठा भाग जाना माँ का हाँफना पीछे पीछे पूरे घर का चककर लगाना कमरे का हँसी से गले तक नहाना सब याद आया है माँ, सभी कुछ याद है अच्छे से याद है फिर वही मफलर पहना आज है तुम नहीं हो तुम्हारे वो चार दिन चार पहर पास है मेरे तुम्हारा प्यार, तुम्हारा दुलार , गरमा रहा है सर्द उच्छ्वास मेरे आज फिर बाहर चाँदी बिछी है आज फिर बिखरी धवल सी हंसी है फिर मुझे इस मफलर ने गर्माया है माँ तेरा दुलार बहुत याद आया है बहुत बहुत बहुत याद आया है .… एेसी ही अन्य मर्मस्पर्शी कविताओं का आनंद सुनकर लीजिए...

कब तक जारी रहेगी क्रेडिट कार्ड के नाम पर खुली लूट…

डॉ. महेश परिमल
हाल ही में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने बैंकों से कहा है कि कर्ज से लदे किसानों पर बैंकें अत्याचार करती हैंकिंतु उद्योगपतियों पर कार्रवाई करने में हिचकिचाती है। यह गलत है। इस तरह की परंपरा बंद होनी चाहिए। आखिर बैंकें कर्ज लेने वाले व्यापारियों पर इतनी मेहरबान क्यों हैंविजय माल्या को कर्ज देकर बैंकें बदनाम हो गई हैं। बैंकों ने जिस तरह से आपाधापी में व्यापारियों को कर्ज दिया हैउससे उसने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है। सुप्रीमकोर्ट ने बैंकों को काफी फटकारा भी है। खूब लताड़ भी लगाई है। पर इससे बैंकों को किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा है। हमारे देश में बैंकों की व्यवस्था जिस तरह से की गई हैउससे यह संदेश जाता है कि जब सरकारी बैंक ग्राहकों को लूटने से बाज नहीं आतीतो निजी बैंक ऐसा क्यों नहीं करेनिजी बैंकें अपनी मनमानी कर रही हैं। उन्हें यह अच्छी तरह से पता है कि सरकार की अधीन जो बैंकें हैंवह भी मनमानी ही कर रही हैं। जब सरकार अपनी ही बैंकों पर लगाम नहीं कस सकतीतो हमें चिंता करने की क्या आवश्यकता है?
देश के शीर्ष पर रहने वाली बैंकें जब क्रेडिट कार्ड के नाम पर अपने ग्राहकों को ठग रही हैउनके साथ धोखाधड़ी कर रही है,तो रिजर्व बैंक मूक रहकर तमाशा देख रही है। ये मामला जब बहुत ही ज्यादा गंभीर हो जाएगातब रिजर्व बैंक जागेगी। पर तब तक न जाने कितने उपभोक्ता ठगे जा चुकेंगे। इनसे ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक एक ऐसा डॉगी हैजो न भौंक सकता है और न ही किसी को काट सकता है।
उपभोक्ताओं से बैंके विभिन्न शुल्क के नाम पर हर महीने 10 प्रतिशत ब्याज वसूल करती है। बैंकें यह अच्छी तरह से जानती हैं कि भारतीय कभी भी समय पर भुगतान नहीं कर पाते हैं। उनकी इस मानसिकता का ये बैंकें पूरा फायदा उठाती हैं। सरकार बैंकों को कुछ कह नहीं सकती। क्योंकि यह व्हाइट कॉलर सिस्टम रिजर्व बैंक से जुड़े हुए हैं। कुछ लोग बैंकों से लोन के नाम पर करोड़ो रुपए ले लेते हैं। जब वे भुगतान नहीं कर पाते, तो बैंकों का जवाब होता है कि हमने तो उनके पेपर्स देखकर ही लोन दिया था। ऐसी भूल किसी एक बैंक ने नहीं, बल्कि कई बैंकों ने बार-बार की है। कुछ समय बाद बैंकों द्वारा रसूखदारों को लोन देने का घोटाला भी सामने आएगा, यह तय है।
क्रेडिट कार्ड हेकिंग में भी बैंकों का स्टाफ सम्बद्ध है, यह अभी तो साफ नहीं हो पाया है, पर बाद में यह घोटाला भी सामने आएगा।  कुछ लोगों के क्रेडिट कार्ड से बाहर ही बाहर धनराशि निकाल ली जाती है, यह भी किसी एक व्यक्ति के द्वारा संभव नहीं है। लोन में बैंक का स्टाफ कितना लीन है, जब यह जानकारी सामने आएगी, तब शायद रिजर्व बैंक की आंखें खुलेंगी। आखिर रिजर्व बैंक किसलिए सुविधाएं देने के नाम पर इस सिस्टम को लूट का संसाधन बनने दे रही है। शायद उसे पता ही नहीं है कि आज उसके नाक के नीचे किस तरह लूट चल रही है। रिजर्व बैंक इस समय गांधी के तीन बंदरों की तरह हो गई है। दुर्भाग्य इस बात का है कि सरकार को भी इस लूट की जानकारी है, पर वह भी इस दिशा में अपनी आंखें बंद किए हुए बैठी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग के सहारे सत्ता पर आए हैं, वही वर्ग इस खुली लूट का अधिक शिकार हो रहा है। सरकार विदेशी बैंकों को अपने यहां लाने की एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, पर अपने ही देश की बैंकों द्वारा की जा रही लूट की ओर ध्यान नहीं दे रही है।
यदि कोई फाइनेंस कंपनी लोगों को 10 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूलती होती, तो उस कंपनी से जुड़े सभी लोगों को जेल की हवा खानी पड़ती। पर जब यही काम सरकारी बैंकें तगड़ा ब्याज खुले आम ले रहीं हैं और उसकी वसूली के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों को रखती है। तब सरकार कुछ नहीं कर पाती। इस तरह से दादागिरी से धनराशि की वसूली पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया, पर जब अदालत ने इस ओर ध्यान दिया, तो सभी चौंक गए। जब इस तरह की हरकत बंद हुई, तो बैंकों ने टेलिफोन ऑपरेटरों की पूरी फौज खड़ी कर दी, जो सुबह से लेकर शाम तक वसूली के लिए तगादा करने लगी। इस कार्य को करने के लिए सरकार ने दूरंदेशी भी नहीं दिखाई। जिन ऑपरेटरों को यह काम सौंपा गया है, उन्हें यह भी नहीं पता कि लोन लेने वाला अंग्रेजी जानता है या नहीं, उसे हिंदी आती है या नहीं। यहां तो ऐसा हो रहा है कि जिसे अंग्रेजी नहीं आती, उसे अंग्रेजी में ही उगाही के लिए कहा जा रहा है। जो जिस भाषा का जानकार हो, उसे उसी भाषा में सम्प्रेषण किया जाए, तो अपनी बात आसानी से कही जा सकती है। सही सम्प्रेषण के अभाव उपभोक्ताओं का समय की बरबाद हो रहा है।
अब समय आ गया है कि क्रेडिट कार्ड के नाम पर भोली-भाली जनता को लूटने वाली बैंकों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं। विजय माल्या जैसे मोटे आसामी के सामने लाचार बैंकें छोटे ग्राहकों पर कहर बनकर टूट रही हैं। बैंक यह सोच रही हैं कि मध्यम वर्ग को लूटने का अधिकार केवल उसके पास है। इससे रसूखदारों को यह अधिकार मिल जाता है कि वे भी बैंकों को लूट लें। विजय माल्या के अलावा इस देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने बैंकों को चूना लगाने में देर नहीं की। रिजर्व बैंक की ढीली नीति के कारण क्रेडिट कार्ड के जरिए यह लूट जारी है। एक तरफ क्रेडिट कार्ड बहुत ही उपयोगी है, पर इस पर शुल्क वसूल कर खुले आम अपने उपभोक्ताओं को लूट रही है। वित्त मंत्रालय की ढीली नीतियों के कारण ही इस तरह की लूट चल रही है। इस तरह से क्रेडिट कार्ड जैसी लोकोपयोगी योजना के प्रति लोगों में अविश्वास जाग रहा है। सरकार की नीयत सामने आ रही है। आखिर 10-10 प्रतिशत ब्याज वसूलने का मतलब क्या है? यह तो हमें पठानी ब्याज की बात याद दिलाती है।
प्रजा लाचार है, अब तो क्रेडिट कार्ड की हर जगह आवश्यकता पड़ रही है। इन हालात में सरकार को रिजर्व बैंक के प्रति सख्ती से पेश आना चाहिए। ताकि अन्य बैंकें भी सचेत हो जाएं। इस तरह की लूट तो बंद होनी ही चाहिए। वरना लोगों का बैंक से विश्वास ही उठ जाएगा।
डॉ. महेश परिमल


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