बुधवार, 20 अप्रैल 2016

कहानी - ममत्व - डॉ. विजय लक्ष्मी राय

कहानी का कुछ अंश... पूर्व दिशा में जैसे ही सूर्योदय हुआ, वैसे ही मंदिर के घंटे बजने की ध्वनि सुनाई दी । मेरी नींद से बोझिल पलकों ने उठने से इंकार किया, लेकिन चाय बनने की सूचना मिलते ही बिस्तर छोड़ना पड़ा । ब्रश करते-करते छत पर पहुंच गई । पूर्व दिशा में सूर्य की लालिमा के कारण प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता था । पक्षियों के कलरव से सारा आकाश गूँज रहा था । सभी पक्षी अपने भरण-पोषण की चिन्ता में चारों दिशाओं में उड़ चले थे । तभी मेरी दृष्टि सामने लगे नीम के वृक्ष पर पड़ी जहाँ पर पक्षियों का जमघट अभी विद्यमान था । उन्हीं पक्षियों में कुछ कबूतर भी थे । जिनमें से दो कबूतर बार-बार एक घोंसले में जाते, अपनी चोंच घोंसले में डालते, फिर उड़कर कुछ देर आँखों से ओझल हो जाते । अपने चोंच में कुछ दबाकर लाते, पुन : घोंसले तक जाते । मैं समझ गई कि उस घोंसले में कबूतर के नन्हें शावक हैं । उस घोंसले और कबूतरों के प्रति मेरी रुचि बढ़ती गई । में नित्यप्रति उन कबूतरों को देखने लगी । रविवार का दिन था । मैं कुछ देर से ही सोकर उठी थी और अपनी आदत के अनुसार ब्रश करती हुई छत पर पहुंची । उन कबूतरों को मैंने चिंतित मुद्रा में पेड़ के ऊपर तेजी से आवाज करते हुए पाया । मैं पहले तो समझ ही नहीं पायी कि ये कबूतर इतनी तेजी से आवाज क्यों कर रहे हैं? अन्य पक्षी तो उड़ चुके हैं । तभी मेरी दृष्टि नीम के पेड़ के बगल में लगे आम के पेड़ पर पड़ी । जहाँ एक बाज पक्षी बैठा हुआ था । अब सारा मामला मेरी समझ में आ गया था । बाज को देखकर सभी पक्षी तो अपनी जान बचाकर उडकर दूसरे स्थान पर चले गये थे, पर कबूतरों का यह जोड़ा घोंसले में पल रहे उनके शावकों को छोड्कर कैसे उड़ सकते थे? अत : उनकी सुरक्षा हेतु वह अपनी जान जोखिम में डालकर वहीं गुटर-गूं, गुटर-गूं कर रहा था । जिनमें उनकी बेबसी और डर की झलक सुनाई पड़ रही थी । आगे की कहानी जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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