शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

शबनम शर्मा की लघुकथाएँ...

मुझे स्कूल से घर आकर 1-1½ घंटा आराम करना बहुत अच्छा लगता है। उस दिन जैसे ही मैं लेटी, मुझे किसी बच्चे की चीखों ने बेचैन कर दिया। उठी व गलियारे में खड़ी होकर अन्दाज़ा लगाने लगी कि कौन हो सकता है? ध्यान से सुना तो पड़ोस वाली औरत गुस्से में अपनी बेटी को पीट रही थी। ‘‘लड़की तो इतनी होशियार व सुशील है, पर इसकी माँ को इतना गुस्सा क्यों आया?’’ मैंने सोचा व सीढि़याँ उतरकर उनके घर जा पहुंची। देखा वीनू ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी, उसके कान से खून बह रहा था। माँ पास खड़ी फिर भी चिल्लाए जा रही थी। मुझे देखकर माहौल शान्त हुआ। मैंने कारण पूछा, तो पता चला वीनू के 2 नम्बर हिन्दी में कट गये थे जिसकी वजह से उसकी माँ ने क्रोधित होकर उसे डंडे से मारा व बच-बचाव में डंडा वीनू के कान पर लग गया व खून बहने लगा। मैंने समझाने की कोशिश की, परन्तु उसकी माँ की दलीलों के सामने मेरी एक न चली। मैं घर वापस आ गई। कुछ दिनों बाद पता चला कि आठवीं की परीक्षा में वीनू नकल करते पकड़ी गई और उसके माता-पिता को मुख्याध्यापक ने ऑफिस में बुलाया। दोनों में काफी बहस हुई व मुख्याध्यापक ने वीनू को स्कूल से निकाल दिया। स्थिति गंभीर हो गई। वीनू को अपने मामा के पास पढ़ने के लिये भेज दिया गया। उसका मन तनिक भी वहाँ जाने को न था। गर्मियों की छुट्टियों में वो घर आई हुई थी। उसकी छोटी बहन का जन्मदिन था। पड़ोसी के नाते हमें भी जाना था। मैं अन्दर वाले कमरे में बैठ गई और वीनू मेरे लिये पानी लेकर आई। बाहर जन्मदिन की तैयारियाँ चल रही थी। वीनू के चेहरे पर तनिक भी खुशी न थी। मैंने उससे कारण पूछा। वो बचपन से मेरे साथ खुली हुई है। उसकी आँखें डबडबा गईं, आवाज़ काँपने लगी, बोली, ‘‘आँटी, आपको सब पता है, उसे दिन मुझे कितनी मार पड़ी, उस डर से मैंने 3-4 प्रश्नों के उत्तर किताब से फाड़कर रख लिये थे, उनमें से 2 प्रश्न आए। मैं देखने लगी और पकड़ी गई। फिर भी माँ को समझ नहीं आया, मुझे मामा के घर भेज दिया, वहाँ स्कूल जाने से पहले मामी के साथ काम कराओ, उनके बच्चे संभालो, शाम को रसोई बनवाओ, फिर भी अहसान व तानें सुनो।’’ ‘‘तू वापस आ क्यूँ नहीं जाती?’’ ‘‘कैसे आऊँ, मम्मी-पापा की इज्ज़त का सवाल है, वो अब मुझे यहाँ लाना नहीं चाहते।’’ बोलकर वो तेज़ी से मेरे कमरे से चली गई। ऐसी ही एक और लघुकथा का ऑडियो की मदद से सुनकर आनंद लीजिए...

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