सोमवार, 25 अप्रैल 2016

कहानी - खुला आसमान - अर्चना सिंह 'जया'

कहानी का कुछ अंश... संध्या की बेला और बाहर हल्की बारिश, मैं खिड़की से सटी हुई पलंग पर बैठी बाहर देख रही थी। पत्तों पर गिरती पानी की बूँदें निश्छल स्वच्छ सुंदर चमकदार नज़र आ रही थीं। नज़रें जैसे नन्ही-नन्ही बूँदों पर टिकी हुई थीं कि तभी राशि ने मुझे आवाज़ लगाई, " दादी, आप क्या कर रही हो? मुझे एक अनुच्छेद लिखवा दो न।" मैंने विनम्रता से कहा, "जाकर अपनी मम्मी से लिखवा लो न। मुझे क्यों परेशान कर रही हो?" उस दिन अनुराधा घर पर ही थी, मन कुछ अनमना होने के कारण ऑफ़िस नहीं गई थी। राशि, मेरी पोती बहुत ही प्यारी सातवीं कक्षा में पढ़ती है, उसकी माँ बैंक में कार्यरत है यानी मेरी बहू अनुराधा। मेरा बेटा नवीन प्राइवेट सेक्टर में कार्य करता है। दोनों ही मिलजुल कर काम करते, विचारों के सुलझे हुए हैं। कभी अगर नोंक-झोंक हो भी गई तो एक दूसरे से सुलह भी पल में ही कर लेते हैं। नवीन कॉफी बना लाता और फिर दोनों हँसते हुए कॉफी पीने का आनंद लेते। अनुराधा समय से ही घर आ जाया करती है कभी अगर देर हो भी गई तो नवीन उसे लेने चला जाता। छुट्टी के दिन हम सभी कभी लूडो या कैरम खेलते, कभी डीवीडी में नई फ़िल्म देखते। किन्तु मैं सभी फ़िल्में नहीं देखती, एक ही घर में रहते हुए भी उन तीनों को अपनी जगह देने का प्रयास करती हूँ। आज भाग-दौड़ की ज़िंदगी में पति-पत्नी को अपनी जगह तो चाहिए, ताकि नज़दीकी बनी रहे। आखिर उनकी ख़ुशी में ही मेरी भी ख़ुशी है। राशि को कुछ-कुछ चीज़ें मेरी ही हाथों की अच्छी लगती हैं, जैसे हलवा, मठरी, गुझिया, नारियल के लड्डू। राशि ने मेरी चुन्नी खींची और कहा, "दादी, आप मेरी हिन्दी टीचर हो और आपकी वज़ह से ही मुझे हमेशा अच्छे अंक आते हैं।" मैंने सोचा अब ये यूँ नहीं मानेगी, मुझे लिखवाना ही होगा। मैं हिन्दी की अध्यापिका रह चुकी थी, 18 वर्ष तक मैंने भी सर्विस की किन्तु अब कमर दर्द को लेकर परेशान रहने लगी थी। मैंने सर्विस ज़रा देर से आरम्भ की जब मेरे तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे। वे स्वावलम्बी हो गए थे, मुझे सिर्फ़ उनके खाने की चिंता हुआ करती थी। आज दोनों बेटियाँ अपने ससुराल में स्वस्थ व ख़ुश हैं। मैंने राशि से पूछा, "अच्छा! अब बता किस विषय पर अनुच्छेद लिखना है?" राशि ख़ुश हो कर बोली, "परिवार का महत्व"। आगे क्या हुआ, ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लें...

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