सोमवार, 4 अप्रैल 2016
एक बूँद की कहानी
मैं एक बूँद हूँ। मेरी असलियत से अनजान आप मुझे पानी की एक बूँद कह सकते हैं या फिर ओस की एक बूँद भी। नदी, झरनें, झील, सागर की लहरों का एक छोटा रूप भी। लेकिन मेरी सच्चाई यह है कि मैं पलकों की सीप में कैद एक अनमोल मोती के रूप में सहेज कर रखी हुई आँसू की एक बूँद हूँ।
इस सृष्टि के सृजनकर्ता ने जब शिशु को धरती पर उतारा तो उसकी आँखों में मुझे पनाह दी। ममत्व की पहचान बनकर मैं बसी थी माँ की पलकों में और धीरे से उतरी थी उसके गालों पर। गालों पर थिरकती हुई बहती चली गई और फिर भिगो दिया था माँ का आँचल। उस समय मैं खुशियों की सौगात बनकर माँ की आँखों से बरसी थी। दुआओं का सागर उमड़ा था और उसकी हर लहर की गूँज में शिशु का क्रंदन अनसुना हो गया था।
रात की खामोशी में जब चाँद बादलों की ओट में लुका-छिपी खेलते तारों की टीम-टीम के साथ उनकी गुनगुन सुनता है, अपनी दूधिया चाँदनी बिखेरता है, तो उस एकांत में मैं किसी विरहिणी के आँखों के उजाड़ जंगल से आजाद होती हूँ। उसके गालों के मखमली मैदान से होकर गुजरती हूँ। होठों की पंखुड़ी पर कुछ पल ठहरती हूँ और अपने खारेपन को भूल जाती हूँ। तब बीते दिनों की यादों में खोई उस विरहणी की गुलाबी पंखुडिय़ाँ भी कुछ पल के लिए फैलकर मेरी जलन का अहसास भूल जाती है। मैं चाहूँ तो उसे अपने खारेपन में डूबो दूँ और मैं चाहूँ तो उसके अधरों पर मुस्कान की कलियों को नृत्य करने पर विवश कर दूँ। और क्या-क्या कर सकती है ये बूँद, जानने के लिए सुनिए बूँद की कहानी...
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दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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