शनिवार, 23 अप्रैल 2016

कविताएँ - कृष्णा वर्मा

वाह री सरिता... बहती सरिता स्वच्छ निर्मल जल मृदु नाद तेरा करता कल-कल मन मैला ना कोई भी छल बहे निरंतर खा-खा सौ बल। नभ के सूरज चाँद सितारे वर्षों से खड़े वृक्ष किनारे पीठ पे लहरों की चढ़-चढ़ के किश्तों में लें पींग हुलारे। अनुशासित सी विहंग कतारें तिरती उड़तीं सरि किनारे फेनल का उपहार लिए संग सरिता की लहरों को निहारें। पल-पल धारा सर्जित हुई जाए भग्नमना तरू देवें बिदाई उदग्नि पल्लव गिरें प्रवाह में चूम दुलार प्रवाह अंक लगाए। घुटनों बैठे पत्थर राह में संग तिरने को करें उपाय प्यार भरा आलिंगन दे तटी कातर दृष्टि बेबसी जताए। तूफानों से जूझ हो फिर स्थिर मरूस्थलों का भाग्य सँवारे पिया मिलन की ललक अनूठी खारे जल में उमर गुज़ारे। ऐसे ही अन्य भावपूर्ण कविताओंं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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