सोमवार, 2 मई 2016

गिजुभाई की बाल कहानी - 5

मगर और सियार - कहानी का अंश... एक थी नदी। उसमें एक मगर रहता था। एक बार गरमियों में नदी का पानी बिलकुल सूख गया। पानी की एक बूंद भी न बची। मगर की जान निकलने लगी। वह न हिल-डुल सकता था और न चल ही सकता था। नदी से दूर एक पोखरा था। पोखरे में थोड़ा पानी था, लेकिन मगर वहां जाये कैसे? तभी उधर से एक किसान निकला। मगर ने कहा, "ओ, किसान भैया! मुझे कहीं पानी में पहुंचा दो। भगवान तुम्हारा भला करेगा।" किसान बोला, "पहुंचा तो दूं, पर पानी में पहुंचा देने के बाद तुम मुझे पकड़ तो नहीं लोगे?" मगर ने कहा, "नहीं, मैं तुमको कैसे पकड़ूगा?" किसान ने मगर को उठा लिया। वह उसे पोखरे के पास ले गया, और फिर उसको पानी में छोड़ दिया। पानी में पहुंचते ही मगर पानी पीने लगा। किसान खड़ा-खड़ा देखता रहा। तभी मगर ने मुड़कर किसान का पैर पकड़ लिया। किसान बोला, "तुमने कहा था कि तुम मुझको नहीं खाओगे? अब तुमने तुझको क्यों पकड़ा है?" मगर ने कहा, "सुनो, मैं तो तुमको नहीं पकड़ता, लेकिन मुझे इतनी जबरदस्त भूख लगी है कि अगर मैंने तुमको न खाया, तो मर जाऊंगा। इससे तो तुम्हारी सारी मेहनत ही बेमतलब हो जायगी? मैं तो आठ दिन का भूखा हूं।" मगर ने किसान का पैर पानी में खींचना शुरू किया। किसान बोला, "ज़रा ठहरो। हम किसी से इसका न्याय करा लें।" मगर ने सोचा—‘अच्छी बात है, थोड़ी देर के लिए यह तमाशा भी देख लें। उसने किसान का पैर मजबूती के साथ पकड़ लिया और कहा, "हां, पूछ लो। जिससे भी चाहो, उससे पूछ लो।" उधर से एक बूढ़ी गाय निकली। किसान ने उसकी सारी बात सुनाई और पूछा, "बहन! तुम्हीं कहा, यह मगर मुझको खाना चाहता है। क्या इसका यह काम ठीक कहा जायगा?" गाय ने कहा, "मगर! खा लो तुम इस किसान को। इसकी तो जात ही बुरी है। जबतक हम दूध देते हैं, ये लोग हमें पालते हैं। जब हम बूढ़े हो जाते हैं, तो हमको बाहर निकाल देते हैं। क्यों भई किसान! मैं ठीक कह रही हूं न?" मगर किसान के पैर को ज़ोर से खींचने लगा। किसान बोला, "ज़रा ठहरो। हम और किसी से पूछ देखें।" वहां एक लंगड़ा घोड़ा चर रहा था। किसान ने घोड़े को सारी बात सुना दी और पूछा, "कहो, भैया,क्या यह अच्छा है?" घोड़े ने कहा, "मेहरबान! अच्छा नहीं, तो क्या बुरा है? जरा मेरी तरफ देखिए। मेरे मालिक ने इतने सालों तक मुझसे काम लिया और जब मैं लंकड़ा हो गया, तो मुझे घर से बाहर निकाल दिया? आदमी की तो जात ही ऐसी है। मगर भैया! तुम इसे खुशी-खुशी खा जाओ!" मगर किसान के पैर को जोर-जोर से खींचने लगा। किसान ने कहा, "ज़रा ठहरो। अब एक किसी और से पूछ लें। फिर तुम मुझको खा लेना।" उसी समय उधर से एक सियार निकला। किसान ने कहा, "सियार भैया! ज़रा हमारे इस झगड़े का फैसला तो कर जाओ।" कहानी में आगे क्या हुआ, क्या सियार ने किसान और मगर के बीच न्याय किया या नहीं, ये जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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