शुक्रवार, 20 मई 2016

पिता के पत्र पुत्री के नाम - 8

आदमियों की कौमें और जबानें... लेख के बारे में... हम यह नहीं कह सकते कि दुनिया के किस हिस्से में पहले-पहल आदमी पैदा हुए। न हमें यही मालूम है कि शुरू में वह कहाँ आबाद हुए। शायद आदमी एक ही वक्त में, कुछ आगे पीछे दुनिया के कई हिस्सों में पैदा हुए। हाँ, इसमें ज्यादा सन्देह नहीं है कि ज्यों-ज्यों बर्फ के जमाने के बड़े-बड़े बर्फीले पहाड़ पिघलते और उत्तर की ओर हटते जाते थे, आदमी ज्यादा गर्म हिस्सों में आते जाते थे। बर्फ के पिघल जाने के बाद बड़े-बड़े मैदान बन गए होंगे, कुछ उन्हीं मैदानों की तरह जो आजकल साइबेरिया में हैं। इस जमीन पर घास उग आई और आदमी अपने जानवरों को चराने के लिए इधर-उधर घूमते-फिरते होंगे। जो लोग किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि हमेशा घूमते रहते हैं 'खानाबदोश' कहलाते हैं। आज भी हिंदुस्तान और बहुत से दूसरे मुल्कों में ये खानाबदोश या बंजारे मौजूद हैं। आदमी बड़ी-बड़ी नदियों के पास आबाद हुए होंगे, क्योंकि नदियों के पास की जमीन बहुत उपजाऊ और खेती के लिए बहुत अच्छी होती है। पानी की तो कोई कमी थी ही नहीं और जमीन में खाने की चीजें आसानी से पैदा हो जाती थीं, इसलिए हमारा खयाल है कि हिंदुस्तान में लोग सिन्धु और गंगा जैसी बड़ी-बड़ी नदियों के पास बसे होंगे, मेसोपोटैमिया में दजला और फरात के पास, मिस्र में नील के पास और उसी तरह चीन में भी हुआ होगा। हिंदुस्तान की सबसे पुरानी कौम, जिसका हाल हमें कुछ मालूम है, द्रविड़ है। उसके बाद, हम जैसा आगे देखेंगे, आर्य आए और पूरब में मंगोल जाति के लोग आए। आजकल भी दक्षिणी हिंदुस्तान के आदमियों में बहुत-से द्रविड़ों की संतानें हैं। वे उत्तर के आदमियों से ज्यादा काले हैं, इसलिए कि शायद द्रविड़ लोग हिंदुस्तान में और ज्यादा दिनों से रह रहे हैं। द्रविड़ जातिवालों ने बड़ी उन्नति कर ली थी, उनकी अलग एक जबान थी और वे दूसरी जातिवालों से बड़ा व्यापार भी करते थे। लेकिन हम बहुत तेजी से बढ़े जा रहे हैं। उस जमाने में पश्चिमी-एशिया और पूर्वी-यूरोप में एक नई जाति पैदा हो रही थी। यह आर्य कहलाती थी। संस्कृत में आर्य शब्द का अर्थ है शरीफ आदमी या ऊँचे कुल का आदमी। संस्कृत आर्यों की एक जबान थी इसलिए इससे मालूम होता है कि वे लोग अपने को बहुत शरीफ और खानदानी समझते थे। ऐसा मालूम होता है कि वे लोग भी आजकल के आदमियों की ही तरह शेखीबाज थे। तुम्हें मालूम है कि अंग्रेज अपने को दुनिया में सबसे बढ़ कर समझता है, फ्रांसीसी का भी यही खयाल है कि मैं ही सबसे बड़ा हूँ, इसी तरह जर्मन, अमरीकन और दूसरी जातियाँ भी अपने ही बड़प्पन का राग अलापती हैं। आगे की जानकारी ऑडियो की मदद से लीजिए...

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