शुक्रवार, 13 मई 2016

लोक कथाएँँ - तोल्सतोय - अनुवाद - सुकेश साहनी

रूसी लेखक तोल्‍सतोय के बारे में हम सभी जानते हैं, कि उनकी कहानियाँँ जीवन के आसपास की सच्‍चाई को छूती हुई होती हैं। यहाँँ पर उनकी ही कुछ लोक कथाओं का हिंदी अनुवाद जो कि सुकेश साहनी द्वारा किया गया है, उसे ऑडियो के माध्‍यम से प्रस्‍तुत किया जा रहा है। इस विश्‍वास के साथ कि ये कथाएँँ आपको पसंद आएँँगी। लोक कथा का अंश... माँ ने आलूबुखारे खरीदे। सोचा, बच्चों को खाने के बाद दूँगी। आलूबुखारे मेज पर तश्तरी में रखे थे। वान्या ने आलूबुखारे कभी नहीं खाए थे उसका मन उन्हें देखकर मचल गया। जब कमरे में कोई न था, वह अपने को रोक न सका और एक आलूबुखारा उठाकर खा लिया।खाने के समय माँ ने देखा कि तश्तरी में एक आलूबुखारा कम है। उसने बच्चों के पिता को इस बारे में बताया। खाते समय पिता ने पूछा, 'बच्चो, तुममें से किसी ने इनमें एक आलूबुखारा तो नहीं लिया?' सबने एक स्वर में जवाब दिया, 'नहीं।' वान्या का मुँह लाल हो गया, किंतु फिर भी वह बोला, 'नहीं, मैंने तो नहीं खाया।' इस पर बच्चों के पिता बोले, 'यदि तुममें से किसी ने आलूबुखारा खाया तो ठीक है, पर एक बात है। मुझे डर है कि तुम्हें आलूबुखारा खाना नहीं आता, आलूबुखारे में एक गुठली होती है। अगर वह गलती से कोई निगल ले तो एक दिन बाद मर जाता है।' वान्या डर से सफेद पड़ गया। बोला, 'नहीं, मैंने तो गुठली खिड़की के बाहर फेंक दी थी।' सब एक साथ हँस पड़े और वान्या रोने लगा। अन्‍य लोक कथाओं को सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels