सोमवार, 30 मई 2016

कविताएँ - मनोज चौहान

कविता.... मेरी बेटी... मेरी बेटी अब हो गई है चार साल की स्कूल भी जाने लगी है वह करने लगी है बातें ऐसी कि जैसे सबकुछ पता है उसे । कभी मेरे बालों में करने लगती है कंघी और फिर हेयर बैण्ड उतार कर अपने बालों से पहना देती है मुझे हंसती है फिर खिलखिलाकर और कहती है कि देखो पापा लड़की बन गए । कभी-कभार गुस्सा होकर डांटने लग पड़ती है मुझे वह फिर मुंह बनाकर मेरी ही नकल उतारने लग जाती है वह मेरे उदास होने पर भी अक्सर हंसाने लगी है वह । रूठ बैठती है कभी तो चली जाती है दूसरे कमरे में बैठ जाती है सिर नीचा करके फिर बीच - बीच में सिर उठाकर देखती है कि क्या आया है कोई उसे मनाने के लिए। उसकी ये सब हरकतें लुभा लेती हैं दिल को दिनभर की थकान और दुनियादारी का बोझ सबकुछ जैसे भूल जाता हूँ । एक रोज उसकी किसी गलती पर थप्पड. लगा दिया मैंने सुनकर उसका रूदन विचलित हुआ था बहुत । इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए और ऐसी ही अन्य अन्य मर्मस्पर्शी कविताओं को सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...

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