गुरुवार, 26 मई 2016

कविता - अंजना वर्मा

कलम दौड़ी जा रही है... कविता का अंश... जनवरी का महीना है, आधी रात से ऊपर का वक्त, सन्नाटा लगा रहा है गश्त, झन्न बोल रही है उसकी सीटी, इंसान जड़ हो गया है बिस्तर में, पेड़ों की पत्तियाँ भी जमकर काठ हो गई है, ठंड के बिच्छूओं के अनगिनत डंको से, सड़क हो गई है अचेत.... नीली चादर पर दूधिया झीनी मसहरी में चांद सोया हुआ है गहरी नींद में.. आगे की कविता ऑडियो की मदद से सुनिए...

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