मंगलवार, 3 मई 2016

कविता - मेरा देश जल रहा... - शिवमंगल सिंह 'सुमन'

कविता का अंश... घर-आंगन में आग लग रही। सुलग रहे वन -उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर- छाजन। तन जलता है , मन जलता है जलता जन-धन-जीवन, एक नहीं जलते सदियों से जकड़े गर्हित बंधन। दूर बैठकर ताप रहा है, आग लगानेवाला, मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझानेवाला। भाई की गर्दन पर भाई का तन गया दुधारा सब झगड़े की जड़ है पुरखों के घर का बँटवारा एक अकड़कर कहता अपने मन का हक ले लेंगें, और दूसरा कहता तिल भर भूमि न बँटने देंगें। पंच बना बैठा है घर में, फूट डालनेवाला, मेरा देश जल रहा, कोई नहीं बुझानेवाला। इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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