शुक्रवार, 27 मई 2016

कविताएँ - डॉ. दीप्ति गुप्ता

कविता का अंश... मेरे अन्दर का आकाश कभी स्वच्छ, निरभ्र, साफ-सुथरा धुला-धुला,असीम उल्लास बिखेरता मुझे उत्साहित करता है, प्रेरित करता है !…..... तब मैं चहकी-चहकी, महकी-महकी थिरकी - थिरकी, काम में मगन लिए अथक मन, प्रफुल्लित रहती हूँ दिन में दमकता सूरज रात में चमकता चाँद टिमटिम तारों की दीपित आभा एक सुहाना गुनगुना आभास मन्द - मन्द शीतल फुहार का अहसास भर देता मन में ढेर उजास ! पर ..........................., कभी-कभी मेरे अन्दर का आकाश अँधेरा, मटमैला घटाओं से घिरा अनन्त निराशा उड़ेलता मुझे हतोत्साहित करता, डराता तब मैं चुप - चुप सहमी-सहमी थमी - थमी, काम से उखड़ी लिए थका मन..............., निरूत्साहित रहती हूँ ! न दिन में सूरज, न रात में चाँद सितारे भी जैसे सो जाते लम्बी तान एक ठहरे से दर्द का आभास तूफान से पहली की खामोशी का अहसास कर देता मन को बहुत उदास ! ऐसी ही अन्य कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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