गुरुवार, 26 मई 2016

राजेन्द्र अविरल की कविताएँ

कविता का अंश... लाशें बोलेंगी..? कुछ नहीं होगा हमसे, क्योंकि .. अब जिन्दा चुप रहेंगे और लाशें बोलेंगी / चिल्लायेंगे गिद्ध और कौवे कुत्ते और भेड़िये नोचेंगे जिन्दा /लाशों को गीदड़ भागेंगे, उल्टे पैर गाँवो की ओर मेमने रोएंगे , शेर मिमियांएंगे , बुद्धि कसमसाएगी , चालाकी फुसफुसाएगी अहिंसा सकपकाएगी ,शांति बिलबिलाएगी, अब प्रतिहिंसा फिर हिनहिनाएगी शोलों पे जमीं राख अब खुद ब खुद उड़ जाएगी . गुम्बदों के गुबार , छा जाएंगे दिलों पर अंधेरा रातों का , मिट जाएगा आतिशबाजी में बहरे भी सुन सकेंगे,सब धमाके अब संवेदनाएं मर जाएंगी शुभकामनाएं सड़ जाएंगी रिश्ते के धागे पड़ने लगेंगे छोटे उम्मीदों की पतंगे कटती जाएंगी नगाड़ों के शोर भले ही थम जाएं पर नहीं जन्मेगी शांति मौन, वाचालों पर भारी होगा नौटंकियां बन्द होंगी और मुर्दों को जीने का हक नहीं होगा आगे की कविता एवं अन्य कविता ऑडियो की मदद से सुनिए...

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