मंगलवार, 26 जुलाई 2016

बाल कहानी - बौनी राक्षसी

कहानी का अंश… जंगल के बगल में छोटे और बड़े पहाड़ों से घिरा एक प्रदेश था। वहाँ गुफाएँ भी थीं। इस प्रदेश से एक कोस दूर मातंग नाम का एक गाँव था। मधुकर उसी गाँव की पाठशाला में एक अध्यापक था। हाल ही में उसका विवाह हुआ था। उसकी पत्नी कोमला बड़े अच्छे स्वभाव की थी। एक दिन कोमला अपनी पड़ोसन पल्लवी के साथ ग्रामाधिकारी के घर एक उत्सव में भाग लेने के लिए गई। तब पल्लवी ने उससे कहा - तुमने तो एक भी गहना नहीं पहन रखा है। कम से कम कानों में तो कर्णफूल लगा लो। यह कहते हुए उसने अपने कर्णफूल कोमला को दे दिए। उत्सव की समाप्ति के बाद जब कोमला घर लौटी तो उसने देखा कि एक कर्णफूल गायब है। कील के निकल जाने से एक कर्णफूल रास्ते में गिर गया। कोमला ने पूरी बात अपने पति मधुकर को बताते हुए कहा - मुझे पल्लवी से कर्णफूल लेने ही नहीं चाहिए थे। पर क्या करूँ? वह मान ही नहीं रही थी। कुछ भी हो, नया कर्णफूल लेकर उसे देना ही होगा। पत्नी की बात सुनकर मधुकर एकदम घबरा गया। उसे लगा मानो पल भर के लिए उसकी साँस ही रूक गई है। नई-नई ब्याही पत्नी थी। न तो उसे डाँटा जा सकता था और न ही गाली-गलौच की जा सकती थी। नया कर्णफूल बनाने में कम से कम एक हजार रूपए लगेंगे। वह क्या करे? कौन उसकी मदद करेगा? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। दिनभर वह यही सोचता रहा। रात को उसे नींद भी नहीं आई। वह घर से निकल गया। वह खुद नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है। बस, चलता जा रहा था। मधुकर को अचानक लगा कि वह पहाड़ी के पास पहुँच गया है। वहाँ उसने पहाड़ी के पास एक बौनी राक्षसी को बैठे हुए देखा। उसे देखते ही वह घबरा गया। फिर क्या हुआ? राक्षसी ने मधुकर के साथ कैसा व्यवहार किया? पल्लवी का कर्णफूल कोमला ने वापस किया या नही? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए…

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels