शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

बाल कहानी – सिंह और सियार – राधाकृष्ण

कहानी का अंश... गिर के जंगल में एक सियार रहता था। एक दिन वह टहलने के लिए निकला तो क्या देखता है कि एक सिंह उसके सामने खड़ा है। बाप रे ! एक झपट्‌टा मारे तो हड्डियाँ कड़कड़ा जाएँ। मेरे खून की नदी बह जाए और सारा माँस इसका भोजन बन जाए ! यहाँ से किसी तरह रफूचक्कर हो जाना चाहिए। सियार दुम दबाकर भागने लगा। मगर भागे भी तो कैसे? सिंह ने उसे देख जो लिया था। सिंह ने उसे पुकारा – ओ सियार.... और सियार भागने का रास्ता भूल गया। वह खड़ा-खड़ा थरथराने लगा। सिंह उसके पास आया और बोला – मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ। बोलो, क्या तुम्हें मँजूर है? सियार ने सिर झुकाकर कहा – नहीं, महाराज। मैं गरीब और कमजोर हूँ। मुझे आप माफ कर दीजिए। सिंह ने अचरज से पूछा – तुम मुझसे मित्रता क्यों नहीं करना चाहते? मेरी माँ ने मना किया है। क्या? तुम्हारी माँ ने क्यों मना किया है? सियार ने जवाब दिया – महोदय, मेरी माँ ने कहा है कि देखो बेटे, मित्रता, शत्रुता और संबंध बराबर वालों से करना चाहिए। आप से मेरी बराबरी नहीं। आपके साथ मेरी मित्रता शोभा नहीं देगी। सहसा सिंह गरज उठा – तुम्हारे साथ मेरी मित्रता क्यों शोभा नहीं देगी? सिंह का गर्जन जंगल में चारों तरफ गूँज उठा। तमाम पशु-पक्षी सहमकर दुबक गए। सियार की हड्डी-पसली काँपने लगी। उसकी समझ में नहीं आया कि वह सिंह से मित्रता करे या वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो जाए? सिंह ने कहा, आओ हम लोग अपना पंजा मिला लें और मित्र बन जाएँ। क्या सिंह के कहने पर सियार ने उसके साथ पंजा मिलाया? उससे मित्रता की? सारा जंगल सिंह से क्यो डरता था? सारे जानवर दुबक क्यों गए थे? सिंह उस डरपोक सियार से मित्रता क्यों करना चाहता था? इन सभी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए ऑडियो की मदद लीजिए....

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