गुरुवार, 15 सितंबर 2016

प्रशांत किशोर की खाट आखिर क्या गुल खिलाएगी?

डॉ. महेश परिमल
खटिया खड़ी करना महज एक मुहावरा है, पर इसके निहितार्थ में बहुत कुछ है। कई बार यह सामने वाले को अपनी औकात दिखा देता है, तो कई बार स्वयं को मुंह की खानी पड़ती है। राहुल गांधी की सभा कभी सुर्खियां नहीं बटोर सकती हैं। इस बार सभा का जो अंत हुआ, उसी ने बटोरी सुर्खियां। इंतजार का फल मीठा होता है, यदि मीडिया सभा शुरू होते ही वहां से चला जाता, तो कुछ भी नहीं मिलता। पर उसका धैर्य काम आया। हमारे देश की गरीब जनता की ईमानदारी की हम जितनी चाहें, प्रशंसा करें, पर ईमानदारी बेईमानी बनने के अवसर के अभाव के कारण पैदा होती है। किसी गरीब को अवसर मिले और सजा का भी भय हो, तो उसे बेईमान बनने में देर नहीं लगती। इसे पूरी तरह से चरितार्थ करती है, उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की महाखाटयात्रा, जिसकी पोल पहले ही दिन खुल गई। कांग्रेस ने अपने राज में प्रजा को मुफ्त में कुछ न कुछ देने की बुरी आदत डाल दी है। देवरिया में लोगों के लिए 2000 हजार खाट की व्यवस्था की थी, लोगों ने उसे भी कांग्रेस की तरफ से मिलने वाली सौगात मान लिया। खाट को घर ले गए। वह भी पूरी दादागिरी के साथ। आयोजक देखते ही रह गए। राहुल गांधी को इस खाट सभा का सुझाव प्रशांत किशोर ने ही दिया होगा, यह तय है। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस खाट सभा का यह हश्र होगा। अब तो यह सिद्ध भी हो गया कि सभा में पहुंचने वालों को राहुल के भाषण की कोई चिंता नहीं थी, चिंता थी, तो केवल खाट को सुरक्षित घर ले जाने की। उनके लिए भाषण नहीं, खाट महत्वपूर्ण थी। सो वे ले गए। देखना यह है कि प्रशांत किशोर अब क्या तुक्का आजमाते हैं?
पूरे 27 साल हो गए, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में राज नहीं किया। इन 27 सालों में मुलायम सिंह या फिर मायावती ने एक के बाद एक उत्तर प्रदेश में राज किया। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सीटें मिलीं। इस चुनाव में मायावती और मुलायम दोनों ने ही बुरी तरह से मात खाया। कांग्रेस को केवल दो सीटें मिलीं। मायावती का तो पूरा सूपड़ा ही साफ हो गया। अब अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाने का सपना देखा है। यह सपना कांग्रेस का कम बल्कि राहुल गांधी का अधिक है। राहुल ने सपना देखकर बहादुरी का काम किया है। पर बहादुरी को मूर्खता बनते देर नहीं लगती। इसे प्रशांत किशोर को देखना है। लोग उन्हें भले ही राजनीति का चाणक्य कहते हों, पर वास्तव में वे वैसे नहीं हैं, जैसा वे स्वयं को बताते हैं। अब वे भी अपनी ओर से पूरी ताकत लगा रहे हैं। कहां तो कांग्रेस चौथे नम्बर पर है, उसे एक नम्बर पर लाने की जिम्मेदारी उठाई है उन्होंने। यदि ऐसा नहीं होता, तो प्रशांत किशोर को लोग तो बाद में भूलेंगे, पहले कांग्रेस ही उन्हें भूल जाएगी। उनका कैरियर ही चौपट हो जाएगा।
इस समय कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 403 में से केवल 28 सीटें ही मिली थीं। अब 28 से लेकर 202 का अंतर उसे पाटना है। यह बहुत ही दुष्कर कार्य है। प्रशांत किशोर के लिए यह एक चुनौती है। सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। कांग्रेस ने अपनी रणनीति इसी जातीय समीकरण को सामने रखकर तैयार की है। एक तरह की यह तुष्टिकरण की राजनीति है। ब्राह्मणों को रिझाने के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी शीला दीक्षित को सामने लाया गया है। उनके बारे में यह बताया जा रहा है कि यह ब्राह्मण परिवार की पुत्रवधू है। मुस्लिम मतों के लिए गुलाम नबी आजाद को उत्तर प्रदेश  का प्रभारी बनाया गया है। दलित राजबब्बर को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। राजपूत आर.पी.एन.सिंह को उपाध्यक्ष बनाया गया है। लाख रुपए का सवाल यह है कि क्या सभी जातियों को खुश करने के बाद भी क्या कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी नैया पार लगा पाएगी? उत्तर प्रदेश के लिए जब कांग्रेस की व्यूह रचना गढ़ी जा रही थी, तब प्रशांत किशोर की इच्छा राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित करने की थी, पर राहुल यह जोखिम लेने को तैयार नहीं थे। उन्होंने दूसरा नाम प्रियंका गांधी का सुझाया। पर उनके बारे में यह शंका थी कि वह राजनीति से दूर हैं। उनका अनुभव नहीं है। मतदाता उन पर सहज ही विश्वास नहीं कर पाएंगे। आखिर में तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी शीला दीक्षित को सामने लाया गया। इन्हें सामने रखकर यदि सोनिया, राहुल और प्रियंका अपनी पूरी ताकत से प्रचार करें, तो उनकी गाड़ी 28 से तो आगे बढ़ेगी ही। यदि कोई चमत्कार हो और कांग्रेस जीत जाए, तो उसका पूरा क्रेडिट गांधी परिवार को दिया जा सकता है और नहीं जीती, तो पूरा ठीकरा शीला दीक्षित के सर पर तो फोड़ा ही जा सकता है।
राहुल गांधी की महायात्रा को सफल बनाने के लिए दो वादों का लालीपॉप देना तय किया गया। पहला वादा यह दिया गया कि किसानों का कर्जा माफ कर दिया जाएगा। दूसरा वादा है बिजली बिल में 50 प्रतिशत की राहत दी जाएगी। देवरिया में राहुल गांधी ने यह कहा था कि यूपीए सरकार ने किसानों का 70 हजार करोड़ रुपए का कर्जा माफ कर दिया था। यदि कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती है, तो उत्तर प्रदेश के किसानों का कर्जा माफ कर दिया जाएगा। यहां पर राहुल गांधी यह भूल गए कि किसानों का कर्जा माफ करने का अधिकार बैंकों के पास है और बैंकों का नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में है। यदि राज्य सरकारें किसानों का इतना बड़ा कर्जा माफ कर उक्त राशि बैंकों को दे देती हैं, तो पर इतनी बड़ी राशि सरकार आखिर लाएगी कहां से? इस पर राहुल गांधी विचार करना ही नहीं चाहते, क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार बनने की संभावना बहुत ही कम है। दूसरी ओर राहुल यह नहीं समझ पाए कि उत्तर प्रदेश की मुख्य समस्या बिजली के भारी बिल नहीं, बल्कि बिजली की कमी है। राज्य को 16 हजार मेगावॉट बिजली की आवश्यकता है। किंतु आपूर्ति हो रही है 14 हजार 454 की। बिजली की कमी के कारण उत्तर प्रदेश के शहरों में लोगों को रोजाना 8 घंटे तक पॉवर कट की पीड़ा झेलनी पड़ती है। दूसरी ओर किसानों की फसल सूख रही है। राहुल गांधी ने सस्ती बिजली के बदले पर्याप्त बिजली देने का वादा किया होता, तो ज्यादा बेहतर होता। पर मुफ्त की खाट में संतुष्ट प्रजा मुफ्त के वचनों के मोह में आ जाएगी, ऐसा शायद राहुल मानते हैं।
राहुल गांधी को सलाह देने वाली टीम पूरी तरह से हवा-हवाई है। जमीन से जुड़े लोग उसकी टीम में नहीं है। पार्टी में दूरद्रष्टाओं की कमी हो गई है। तभी तो ऐसी बेसिर-पैर के हरकतें सामने आती हैं। प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी के लिए खाट महाभियान शुरू किया। इसे देश भर में प्रचार मिला। संभवत: यह उनका एक आइडिया हो। यह भी संभव है कि यह एक सोची-समझी योजना हो। इससे उन्हें तगड़ा प्रचार तो मिल ही गया। अब शायद इसे चाय पे चर्चा के आगे खड़ा किया जाए। अब नेता किसानों के बीच जाकर बैठने लगे हैं, तो अपनी बात कहने के लिए कुछ देना जरूरी होता है, तो इस बार राहुल गांधी ने किसानों को खाट गिफ्ट में दी, यह मान लिया जाना चाहिए। यदि खाट की लूट नहीं होती, तो मीडिया इसे बिलकुल भी नहीं उछालता। इसे राहुल गांधी को समझ लेना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल

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