शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

कविता - तुम लौट आना - रचना श्रीवास्तव

कविता का अंश... तुम लौट आना... क्षितिज के पार हो ठिकाना, न आने का हो, खूबसूरत बहाना, फिर भी तुम लौट आना। सूरज की पीली किरण सा, मेरे घर में आना। मुझको हौले से सहला के, कुछ देर सिरहाने बैठे रह जाना। तुम लौट आना। सीप सँजोती है स्वाति नक्षत्र की बूँद, रात करती है रखवाली नींद की, तृण सँजोता है शबनम के कतरे को, हारिल संभालता है लकड़ी, ख़ुद को तुम यों ही सँभालना। तुम लौट आना। कृष्ण रह सके न मुरली बिना, दीप जले न बिन बाती, बीज कुछ नही माटी बिना, संदेश बिना ज्यों पाती। कृष्ण का मुरली से, दीप का ज्योति से, अटूट नाता है। बीज माटी बिना, कब पनप पता है ? पत्र निरर्थक संदेश बिना, कोरा काग़ज़ बन जाता है। कुछ इन जैसा, रिश्ता निभाना। तुम लौट आना । ज्यों आती है भोर संग भावुकता, स्पर्श से झंकार, उसी तरह तुम आना। तुम लौट आना । लाती है हवा ख़ुशबू, चिड़िया चोंच में तिनका जैसे, चाँद थामे रश्मि का हाथ, तलैया में लाता है जैसे, मेरे लिए स्वयं को लाना । तुम लौट आना। गोधूलि बेला में, लौटते है सब अपने ठौर। पंछी घोसले का रुख करते हैं, सूरज भी नींद को जाता है। थका हरा इनसान, रैन बसेरे में आता है। मेरे प्यार की पनाहों में, तुम चले आना। तुम लौट आना। इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए....

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