tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post2999976652255425872..comments2023-11-05T14:33:52.361+05:30Comments on संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि: बुंदेली यातना गीत- मार्मिक गीतDr. Mahesh Parimalhttp://www.blogger.com/profile/11819554031134854400noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-74864783932630109522014-07-12T18:15:03.781+05:302014-07-12T18:15:03.781+05:30ये सब पढ़कर जहाँ भीतर तक मन सिहर जाता है वहीं ये सो...ये सब पढ़कर जहाँ भीतर तक मन सिहर जाता है वहीं ये सोच कर भी पीड़ा होती है कि आज़ादी को हमने कितना सस्ता समझ लिया है ... ना अपने देश से और ना ही समाज से हम कोई जुड़ाव रखना चाहते हैं। केवल अपने तक सीमित है हमारी सोच की दिशायें Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15421768457680984416noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-46990130843707122592009-08-19T17:20:34.616+05:302009-08-19T17:20:34.616+05:30हम भी सिहर उठे....यकीन नहीं होता इंसान इंसान को जा...हम भी सिहर उठे....यकीन नहीं होता इंसान इंसान को जानवर जैसे कैसे समझ लेता है... ऐसा कल भी होता था...आज भी होता है लेकिन बदले हुए रूप में....!मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.com