tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post6309114493977325293..comments2023-11-05T14:33:52.361+05:30Comments on संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि: माँDr. Mahesh Parimalhttp://www.blogger.com/profile/11819554031134854400noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-58836398042748903532010-05-01T21:59:58.245+05:302010-05-01T21:59:58.245+05:30दुर्भाग्यवश धरा से ही डरने लगे
और माँ वक्त के थपेड़...दुर्भाग्यवश धरा से ही डरने लगे<br />और माँ वक्त के थपेड़ाें से भक-भक कर जलने लगी<br />बूढ़ी हो गई वह भीतर से गलने लगी<br />जिस माँ ने आबाद किया था घर को<br />वहीं माँ उस घर को खलने लगी<br />उँगली पकड़कर जिनको चलना सिखाया<br />हर पग पर जिन्हें सँभलना सिखाया<br />जिनका झूठा खाया, लोरी सुनाई<br />बापू से जिनकी कमियाँ छिपाई<br />रात भर सीने से लगा चुप कराती रही<br />बच्चों का पेट भर हर्षाती रही<br />दो पाटों के बीच सदा पिसती रही<br />ऑंखों से दर्द बनकर रिसती रही<br />बापू के हजार सितम झेलती थी पर<br />बच्चों की खातिर कुछ न बोलती थी<br />ऐसी मोम सी माँ<br />जलते-जलते बुझ गई<br />यक्ष प्रश्न कर गई<br />कि<br />एक माँ घर को सँभाल लेती है<br />सारा घर मिलकर भी माँ को सँभाल नहीं पाता<br />माँ के जीवन की संध्या को ही रोशनी क्यूं नहीं नसीब होती<br />जबकि माँ अपने बच्चों की हर पहर को रोशन करने के लिए<br />ता-उम्र ऑंधियों से लड़ा करती है<br />उनके सहारे की कद्र क्यूं नहीं हुआ करती<br />जबकि जब वह दूर चली जाती है<br />तो उनकी बहुत याद आती है ''<br /><br />एक कविता,सब कुछ कह दिया,सबके मन की बात,सब कुछ.....<br />क्या कहूँ ?<br />बस इतना ही कहूँगी माँ घर को बंधे रखने वाला सूत्र होती है.<br />इस घर से माँ जाती है ससुराल के रस्ते बंद हो जाते हैं.<br />'उस' घर से माँ जब चली जाती है तो मायके के.<br />कोई नही रहता फिर आपकी प्रतीक्षा करने वाला.<br />क्या कहूँ,शब्द नही है आज मेरे पास कुछ भी कहने के लिए.<br />मेरे तो दोनों घर में माँ नही.<br />और कोई नही करता अब मेरा भी इंतज़ार,सब हैं पर माँ के बिना सब सूना है. इसलिए उनके जीते जी हर पल को जी लिया. जी लेना चाहिए कल अफ़सोस ना हो कि वो होती तो ये करते,वो करते.ऐसा करते,वैसा रखते.मैंने क्या किया????<br />छोडिये...बस आत्मा पर कोई बोझ नही है मेरे.इतना तो हम कर ही सकते हैं फिर चाहे धूप भी ना लगाये,बारह दिन शोक भी ना मनाये कोई स्मृति चिन्ह ना बनाये चलेगा.<br /> ...............<br />....................Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-33651962534636723762010-05-01T21:23:34.485+05:302010-05-01T21:23:34.485+05:30यक्ष प्रश्न कर गई
कि एक माँ घर को सँभाल लेती है
सा...यक्ष प्रश्न कर गई<br />कि एक माँ घर को सँभाल लेती है<br />सारा घर मिलकर भी माँ को सँभाल नहीं पाता<br />अद्भुद ...ठाकुर पदम सिंहhttp://padmsingh.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-60077644831939257212009-03-07T15:02:00.000+05:302009-03-07T15:02:00.000+05:30माँ लफ्ज़ को सम्पूर्ण करती है यह रचना ..बहुत सुन्द...माँ लफ्ज़ को सम्पूर्ण करती है यह रचना ..बहुत सुन्दररंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3095988659802522890.post-21174258351836758792009-03-07T13:26:00.000+05:302009-03-07T13:26:00.000+05:30बिल्कुल दिल से निकली है यह कविता ...बिल्कुल दिल से निकली है यह कविता ...संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.com